भीष्म की कविताएँ

गांव-शहर 
हम गाँवों के गबरू हैं तुम सा 
शहर में जीना क्या जानें।
है गांव शहर में भी बसता तन
से न सही मन से मानें।
बस सूखी रोटी खाई है तुम सा शहद
में पला नहीं।
हमने न झेली न टाली ऐसी भी 
कोई बला नहीं।
हमने न पेड़ से खाया हो फल
ऐसा कोई फला नहीं।
तब तक सिर को दे मारा है जब
तलक पहाड़ भी टला नहीं।
सिर मत्थापच्ची करते जब तुम 
थे भरते लंबी तानें।
हम गाँवों -----
दिल-जान से बात हमेशा की तुम
सी घुटन में जिया नहीं।
है प्यार बाँट कर पाया भी नफ़रत
का प्याला पिया नहीं।
इक काम जगत में नहीं कोई भी
हमने है जो किया नहीं।
है मजा नहीं ऐसा कोई भी
हमने हो जो लिया नहीं।
फिर अन्न-भरे खेतों में खड़ के
दाना-दाना क्यों छानें।
हम गाँवों के ----
है इज्जत की परवाह नहीं 
बेइज्जत हो कर पले बढ़े।
अपनों की खातिर अपने सर 
सबके तो ही इल्जाम मढ़े।
कागज की दुनिया में खोकर भी 
वेद-पुराण बहुत ही पढ़े।
हैं असली जग में भी इतरा कर
खूब तपे और खूब कढ़े।
बस बीज को बोते जाना था कि
स्वर्ण कलश मिलते न गढ़े
इस सोच के ही बलबूते हम तो 
हर पल निशदिन आगे बढ़े।
फिर छोटा मकसद ठुकरा कर हम
लक्ष्य बड़ा क्यों न ठानें।
हम गाँवों के -----
जो शहर न होते फिर अपनी हम
काबिलियत को न पाते।
रहते अगर न वहाँ तो क्या है 
घुटन पता कैसे पाते।
न लोकतंत्र से जीते गर ये 
नियम-व्यवस्था न ढाते।
फिर बेर फली तरु न भाते गर 
भेल पकौड़े न खाते।
हम साइलेंट जोन में न बसते तो 
घाट मुरलिया न गाते।
हम रिमझिम स्नान भी न करते गर
नगर में न तनते छाते।
है रात के बाद सुबह आती तम से ही
लौ दमखम पाती।
है सुखदुख का चरखा चलता वह
न देखे जाति-पाति।
फिर अहम को अपने छोड़ के हम यह
सत्य नियम क्यों न मानें।
हम गाँवों ----
है ढोल-गंवार यही कहते बस 
तुलसी ताड़न-अधिकारी।
है अन्न उगाता जो निशदिन वो 
कैसे है कम अधि-कारी।
जो दुनिया की खातिर जाता हो 
खेतों पर ही बलिहारी।
वो कम कैसे सबसे बढ़कर वो 
तो मस्ती में अविकारी।
फिर ऊंच-नीच ठुकरा क्यों न हम
इक ही अलख को पहचानें।
हम गाँवों ---
हँस चुगे जब दाना-दुनका, कवूआ मोती खाता है~ समसामयिक सामाजिक परिस्थितियों पर आधारित एक आलोचनात्मक, कटाक्षपूर्ण व व्यंग्यात्मक कविता-गीत
ज्ञानीजन कहते दुनिया में
ऐसा कलियुग आता है।
हँस चुगे जब दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानी-ध्यानी ओझल रहते
काल-सरित के संग न बहते।
शक्ति-हीनता के दोषों को
काल के ऊपर मढ़ते रहते।
मस्तक को अपने बलबूते
बाहुबली झुकाता है।
हँस चुगे जब दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
खूब तरक्की है जो करता
नजरों में भी है वो खटकता।
होय पलायित बच जाता या
दूर सफर का टिकट है कटता।
अच्छा काम करे जो कोई
वो दुनिया से जाता है।
हँस चुगे जब दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
अपनी डफली राग भी अपना
हर इक गाना गाता है।
कोई भूखा सोए कोई
धाम में अन्न बहाता है।
दूध उबाले जो भी कोई
वही मलाई खाता है।
हँस चुगे जब दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
संघे शक्ति कली-युगे यह
नारा सबको भाता है।
बोल-बोल कर सौ-दफा हर
सच्ची बात छुपाता है।
भीड़ झुंड बन चले जो कोई
वही शिकार को पाता है।
हँस चुगे जब दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
जितने ढाबे उतने बाबे
हर-इक बाबा बनता है।
लाठी जिसकी भैंस भी उसकी
मूरख बनती जनता है।
शून्य परीक्षा हर इक अपनी
पीठ को थप-थपाता है।
हँस चुगे जब दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
करतब-बोध का ठेका देता
कोई भी तब पेन न लेता।
मेल-जोल से बात दूर की
अपना भी न रहता चेता।
हर इक अपना पल्ला झाड़े
लदे पे माल चढ़ाता है।
हँस चुगे जब दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
शिष्टाचार किताबी होता
नौटँकी खिताबी होता।
भीतर वाला सोया होता
सर्व-धरम में खोया होता।
घर के भीतर सेंध लगाकर
घरवाले को भगाता है।
हँस चुगे जब दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
मेहनत करे किसान बिपारी
खूब मुनाफा पाता है।
बैठ-बिठाय सिंहासन पर वो
पैसा खूब कमाता है।
देकर करज किसानों को वह
अपना नाच नचाता है।
हँस चुगे जब दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
जात-धरम को ऊपर रख कर
हक अपना जतलाता है।
शिक्षा-दीक्षा नीचे रख कर
शोषित वह कहलाता है।
निर्धन निर्धनता को पाए
पैसे वाला छाता है।
हँस चुगे जब दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
 

गाने के लिए उपयुक्त वैकल्पिक रचना (मामूली परिवर्तन के साथ)~
(हँस चुगे है दाना-दुनका, कवूआ मोती खाता है)~एक समसामयिक कटाक्षपूर्ण कविता-गीत
ज्ञानीजन कहते जगत में
ऐसा कलियुग आता है।
हँस चुगे है दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानी-ध्यानी ओझल रहते
काल-सरित तट रहते हैं।
शक्ति-हीनता के दोषों को
काल के ऊपर मढ़ते हैं।
मस्तक को अपने बलबूते-2
बाहु-बली झुकाता है।
हँस चुगे है दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
खूब तरक्की करता है जो
आँखों में वो खटकता है।
होय पलायित बच जाता जां
दूर-टिकट तब कटता है।
अच्छा काम करे जो कोई-2
वो दुनिया से जाता है।
हँस चुगे है दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
अपनी डफली राग भी अपना
हर इक गाना गाता है।
कोई भूखा सोए कोई
धाम में अन्न बहाता है।
दूध उबाले है जो कोई-2
वो ही मलाई खाता है।
हँस चुगे है दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
संघे शकती कली-युगे यह
नारा सबको भाता है।
बोल-बोल के सौ-दफा हर
सच्ची बात छुपाता है।
भीड़-झुंड चलता जो कोई-2
वो ही शिकारी पाता है।
हँस चुगे है दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
जितने ढाबे उतने बाबे
हर-इक बाबा बनता है।
लाठी जिसकी भैंस भी उसकी
मूरख बनती जनता है।
शून्य परीक्षा हर इक अपनी-2
पीठ को थप-थपाता है।
हँस चुगे है दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
करतब का ठेका देता है
पेन न कोई लेता है।
मेल-जोल से बात दूर की
अपना भी न चेता है।
हर इक अपना पल्ला झाड़े-2
लदे पे माल चढ़ाता है।
हँस चुगे है दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
शिष्टाचार किताबी होता
नौटँकी व खिताबी है।
भीतर वाला सोया होता
सर्व-धरम में खोया है।
घर के भीतर सेंध लगाकर-2
घरवाले को भगाता है।
हँस चुगे है दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
मेहनत करे किसान बिपारी
पैसा खूब कमाता है।
बैठ-बिठाय सिंहासन पर वो
खूब मुनाफा पाता है।
देकर करज किसानों को वो-2
अपना नाच नचाता है।
हँस चुगे है दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
जात-धरम को ऊपर रख कर
हक अपना जतलाता है।
शिक्षा-दीक्षा नीचे रख कर
शोषित वह कहलाता है।
निरधन निरधनता को पाए-2
पैसे वाला छाता है।
हँस चुगे है दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
ए जी रे---
ए जी रे---
धुन प्रकार~रामचंद्र कह गए सिया से, ऐसा कलियुग आएगा---
 

ढाई आखर प्रेम का पढ़ ले, जो कोई वो ही ज्ञानी
बोल नहीं सकता कुछ भी मैं
घुटन ये कब तुमने जानी।
चला है पदचिन्हों पर मेरे
मौनी हो या फिर ध्यानी।
मरने की खातिर जीता मैं
जीने को मरते हो तुम।
खोने का डर तुमको होगा
फक्कड़ का क्या होगा गुम।
हर पल एकनजर से रहता
लाभ हो चाहे या हानि।
बोल नहीं सकता ----
मेरे कंधों पर ही तुमने
किस्मत अपनी चमकाई।
मेरे ही दमखम पर तुमने
धनदौलत इतनी पाई।
निर्विरोध हर चीज स्वीकारी
फूटी-कौड़ी जो पाई।
खाया सब मिल-बाँट के अक्सर
बन इक-दूजे संग भाई।
कर्म-गुलामी की पूरी, ले
कुछ तिनके दाना-पानी।
बोल नहीं---
तेज दिमाग नहीं तो क्या गम
तेज शरीर जो पाया है।
सूंघे जो परलोक तलक वो
कितनी अद्भुत काया है।
मेरा इसमें कुछ नहीं यह
सब ईश्वर की माया है।
हर-इक जाएगा दुनिया से
जो दुनिया में आया है।
लगती तो यह छोटी सी पर
बात बड़ी और सैयानी।
बोल नहीं---
हूँ मैं पूर्वज तुम सबका पर
मेरा कहा कहाँ माना।
क़ुदरत छेड़ के क्या होता है
तुमने ये क्यों न जाना।
याद करोगे तब मुझको जब
याद में आएगी नानी।
बोल--
मरा हमेशा खामोशी संग
तुम संग भीड़ बहुत भारी।
तोड़ा हर बंधन झटक कर
रिश्ता हो या फिर यारी।
मुक्ति के पीछे भागे तुम
यथा-स्थिति मुझे प्यारी।
वफा की रोटी खाई हरदम
तुमको भाए गद्दारी।
कर-कर इतना पाप है क्योंकर
जरा नहीं तुमको ग्लानि।
बोल नहीं---
लावारिस बन बीच सड़क पर
तन मेरा ठिठुरता है।
खुदगर्जी इन्सान की यारो
कैसी मन-निष्ठुरता है।
कपट भरे विवहार में देखो
न इसका कोई सानी।
बोल नहीं---
रोटी और मकान बहुत है
कपड़े की ख्वाइश नहीं।
शर्म बसी है खून में अपने
अंगों की नुमाइश नहीं।
बेहूदे पहनावे में तुम
बनते हो बड़े मानी।
बोल नहीं----
नशे का कारोबार करूँ न
खेल-मिलावट न खेलूँ।
सारे पुट्ठे काम करो तुम
मार-कूट पर मैं झेलूँ।
क्या जवाब दोगे तुम ऊपर
रे पापी रे अभिमानी।
बोल नहीं----
पूरा अपना जोर लगाता 
जितना मेरे अंदर हो।
मेरा जलवा चहुँ-दिशा में
नभ हो या समंदर हो।
बरबादी तक ले जाने की
क्यों तुमने खुद को ठानी।
बोल नहीं सकता—
खून से सींचा रे तुझको फिर
भूल गया कैसे मुझको।
रब मंदर मेरे अंदर फिर
भी न माने क्यों मुझको।
लीला मेरी तुझे लगे इक
हरकत उल्टी बचकानी।
बोल नहीं---
कुदरत ने हम दोनों को जब
अच्छा पाठ पढ़ाया था।
भाई बड़ा बना करके तब
आगे तुझे बढ़ाया था।
राह मेरी तू क्या सुलझाए
खुद की जिससे अनजानी।
बोल नहीं--
बेशक लक्ष्य नहीं तेरा पर
है मुंहबोला वह मेरा।
मकड़जाल बुन बैठा तू जो 
उसने ही तुझको घेरा।
याद दिलाऊँ लक्ष्य तुम्हारा
बिन मस्तक अरु बिन बानी।
बोल नहीं---
प्यार की भाषा ही समझूँ मैं
प्यार की भाषा समझाऊँ।
प्यार ही जन्नत प्यार ही ईश्वर
प्यार पे बलिहारी जाऊँ।
ढाई आखर प्रेम का पढ़ ले
जो कोई वो ही ज्ञानी।
बोल नहीं--
 
यह युद्ध है यह युद्ध है
यह युद्ध है यह युद्ध है।
न कोई यहाँ पे गाँधी है
न कोई यहाँ पे बुद्ध है।
यह युद्ध है यह युद्ध है।
वीरपने की ऐसी होड़ कि
हिंसा-व्यूह का दिखे न तोड़।
कोई तोप चलाता है तो
कोई देता है बम फोड़।
रुधिर-सिक्त शापित डगरी पर
दया सब्र रूपी न मोड़।
लड़े सांड़ पर मसले घास
जिस पर देते उनको छोड़।
मान पलायन-कायरता न
युद्ध-नीति में इसका जोड़।
असली वीर विरल जगती में
हर इक न होता रणछोड़।
नीति-मार्ग अवरुद्ध है।
यह युद्ध है----
गलती को दुत्कारे फिर भी
नकल उसी की करते हैं।
हमलावर को अँगुली कर के
खुद भी हमला करते हैं।
चिंगारी वर्षों से दबी जो
उसको हवा लगाते हैं।
क्रोध का कारण और ही होता
और को मार भगाते हैं।
खून बहा कर नदियां भर-भर
भी हर योद्धा क्रुद्ध है।
यह युद्ध है---
बढ़त के दावे हर इक करता
आम आदमी है पर मरता।
लाभ उठाए और ही कोई
कीमत उसकी और ही भरता।
जीत का तमगा लाख दिखे पर
न स्वर्णिम न शुद्ध है।
यह युद्ध है----
धर्म का चोला हैं पहनाते
युद्ध को कोमलता से सजाते।
दिलों के महलों को ठुकराकर
पत्थर पर झंडा फहराते।
कैसा छद्म-युद्ध है यह
कैसा धर्म-युद्ध है।
यह युद्ध है---
ज्वाला में सब जलता है और
पानी में सब गलता है।
पेड़ हो चाहे या हो तिनका
नाश न इनका टलता है।
रणभूमि में एकबराबर
मूर्ख है या प्र-बुद्ध है।
यह युद्ध है----
राजा वीर बहुत होता था
रण को कंधे पर ढोता था।
जान बचाने की खातिर वो
गिरि-बंकर में न सोता था।
आज तो प्रजा-खोरों का दिल
राज-धर्म-विरुद्ध है।
यह युद्ध है---
आग बुझाने जाना था जब
आग लगाई क्यों तूने।
आग तपिश के स्वाद की खातिर
लेता जला तू कुछ धूने।
बात ही करनी थी जब आखिर
बात बिगाड़ी क्यों तूने।
सोच सुहाग उजड़ते क्योंकर
क्यों होते आँचल सूने।
परमाणु की शक्ति के संग
प्रलयंकर महा-युद्ध है।
यह युद्ध है--
खून-पसीने की जो कमाई
वो दिखती अब धरा-शायी।
मुक्ति मिलती जिस शक्ति से
क्यों पत्थर में थी वो गंवाई।
बुद्धि नहीं कुबुद्ध है।
यह युद्ध है---
 

अब तो पुष्प खिलने दो, अब तो सूरज उगने दो~कुंडलिनी रूपकात्मक आध्यात्मिक कविता

अब तो पुष्प खिलने दो
अब तो सूरज उगने दो।
भौँरा प्यासा घूम रहा
हाथी पगला झूम रहा।
पक्षी दाना चौँच में लेके
मुँह बच्चे का चूम रहा।
उठ अंगड़ाई भरभर के अब
नन्हें को भी जगने दो।
अब तो पुष्प--
युगों युगों तक घुटन में जीता
बंद कली बन रहता था।
अपना असली रूप न पाकर
पवनवेग सँग बहता था।
मिट्टी खाद भरे पानी सँग
अब तो शक्ति जगने दो।
अब तो पुष्प ---
लाखों बार उगा था पाकर
उपजाऊ मिट्टी काया।
कंटीले झाड़ों ने रोका या
पेड़ों ने बन छाया।
खिलते खिलते तोड़ ले गया
जिसके भी मन को भाया।
हाथी जैसे अभिमानी ने
बहुत दफा तोड़ा खाया।
अब तो इसको बेझिझकी से
अपनी मंजिल भजने दो।
अब तो पुष्प--
अबकी बार न खिल पाया तो
देर बहुत हो जाएगी।
मानव के हठधर्म से धरती
न जीवन दे पाएगी।
करो या मरो भाव से इसको
अपने काम में लगने दो।
अब तो पुष्प --
मौका मिला अगर फिर भी तो
युगों का होगा इंत-जार।
धीमी गति बहुत खिलने की
एक नहीं पंखुड़ी हजार।
प्रतिस्पर्धा भी बहुत है क्योंकि
पूरी सृष्टि खुला बजार।
बीज असीमित पुष्प असीमित
चढ़ते मंदिर और मजार।
पाखण्डों ढोंगों से इसको
सच की ओर भगने दो।
अब तो पुष्प खिलने दो
अब तो सूरज उगने दो।
 
चूल्हा कैसे जलेगा, जीवन कैसे चलेगा
चूल्हा कैसे जलेगा
जीवन कैसे चलेगा।
आज का दिन तो चल पड़ा पर 
कल कैसे दिन ढलेगा।
चूल्हा कैसे जलेगा। 
बचपन बीता खेलकूद में
सोया भरी जवानी में।
सोचा उमर कटेगी यूँ ही
अपनी ही मनमानी में।
नहीं विचारा पल भर को भी
वक़्त भी ऐसे छलेगा।
चूल्हा कैसे ~~
सोचा था कुछ काम करेंगे
खून पसीना एक करेंगे।
पढ़ लिख न पाए तो भी तो
भूखे थोड़ा ही मरेंगे।
सोचा नहीं हमारे हक से
पेट मशीन का पलेगा।
चूल्हा कैसे ~~
नायाबी न थमी है, पर 
काम की फिर भी कमी है।
काम वहाँ पर नहीं है मिलता
जहाँ गृहस्थी जमी है।
गृहसुख त्याग के इस मानुष का
पैसा कैसे फलेगा।
चूल्हा कैसे~~
काश कि ऐसा दिन होता सब 
को पैसा मुमकिन होता।
उसके ऊपर वो पाता जो 
जितना भी दाना बोता।
झगड़े मिटते इससे क्यों नर 
इक-दूजे संग खलेगा।
चूल्हा कैसे ~~
काम तो है आ~राम को
योगा के विश्राम को।~2
इसके पीछे उमर कट गई 
आखिर कब ये फलेगा।
चूल्हा कैसे ~~
 

 
कोरोना से कभी डरो ना

आओ मिल कविता बनाएं
जग से को-रो-ना भगाएँ।
आओ मिल कविता बनाएं
जग से को-रो-ना भगाएँ।।

घर पर ही हमेशा रहना
हाथ हमेशा धोते रहना।
घर पर ही हमेशा रहना
हाथ हमेशा धोते रहना।।
दो गज दूरी बना के रखना
घर पे बने पकवान ही चखना।
दो गज दूरी बना के रखना
घर पे बने पकवान ही चखना।।
आओ मिल कविता बनाएं
जग से को-रो-ना भगाएँ।
आओ मिल कविता बनाएं
जग से को-रो-ना भगाएँ।।

सेनी-टाईजर जेब में रखना
मुँह को अपने मास्क से ढकना।
सेनी-टाईजर जेब में रखना
मुँह को अपने मास्क से ढकना।।
नहीँ किसी से हाथ मिलाना
हाथ जोड़ कर रस्म निभाना।
नहीँ किसी से हाथ मिलाना
हाथ जोड़ कर रस्म निभाना।।
आओ मिल कविता बनाएं
जग से को-रो-ना भगाएँ।
आओ मिल कविता बनाएं
जग से को-रो-ना भगाएँ।।

मौका मिले लगा लो टीका
इससे वो पड़ेगा फीका।
मौका मिले लगा लो टीका
इससे वो पड़ेगा फीका।।
खांस बुखार तुम्हें जो आएं
मुफ्त में इसकी जाँच कराएं।
खांस बुखार तुम्हें जो आएं
मुफ्त में इसकी जाँच कराएं।।
आओ मिल कविता बनाएं
जग से को-रो-ना भगाएँ।
आओ मिल कविता बनाएं
जग से को-रो-ना भगाएँ।।

खत्म करेंगे हम कोरोना
को-रो-ना से कभी डरो ना।
खत्म करेंगे हम कोरोना
को-रो-ना से कभी डरो ना।।
आओ मिलके कसम ये खाएँ
मिल के को-रो-ना को भगाएँ।
आओ मिलके कसम ये खाएँ
मिल के को-रो-ना को भगाएँ।।
आओ मिल कविता बनाएं
जग से को-रो-ना भगाएँ।
आओ मिल कविता बनाएं
जग से को-रो-ना भगाएँ।।

-हृदयेश बाल
 
स्कूल चले हम

घर को चले हम, घर को चले हम
स्कूल से अपने घर को चले हम।
को-रो-ना से डर हरदम
अपने-अपने घर चले हम।।
घर को चले हम, घर को चले हम
स्कूल से अपने-घर को चले हम।

खेल नहीं अब सकते हम
स्कू-ल के मैदान में।
कूद नहीं अब सकते हम
खेलों के जहान में।।
अब तो मजे करेंगे हम
खेत पर खलिहान में।
बूढ़ी अम्मा के संग-संग
बतियाएंगे हम हरदम।।
घर को चले हम, घर को चले हम
स्कूल से अपने घर को चले हम।
को-रो-ना से डर हरदम
अपने-अपने घर चले हम।।
घर को चले हम, घर को चले हम
स्कूल से अपने-घर को चले हम।

ऑनलाइन से पढ़ेंगे हम
ऑलराउंडर बनेंगे हम।
फालतू मीडिया छोड़कर
नॉलेज ही चुनेंगे हम।।
घर में योग करेंगे हम
इंडोर खेल करेंगे हम।
प्रातः जल्दी उठ करके
वॉकिंग भी करेंगे हम।।
घर को चले हम, घर को चले हम
स्कूल से अपने घर को चले हम।
को-रो-ना से डर हरदम
अपने-अपने घर चले हम।।
घर को चले हम, घर को चले हम
स्कूल से अपने-घर को चले हम।

स्कूल तो अपने जाएंगे
वैक्सी-नेशन के बाद।
फिर तो हम हो जाएंगे
जेल से जैसे हों आजाद।।
फिर तो नहीं करेंगे हम
व्यर्थ समय यूँ ही बरबाद।
पढ़-लिख कर व खेल कर
हम होंगे बड़े आबाद।।
शिक्षार्थ स्कूल जाएं हम
सेवार्थ हो आएं हरदम।
स्कूल का नाम रौशन करके
देश को रौशन करदें हम।।
स्कूल चले हम, स्कूल चले हम
घर से अपने- स्कूल चले हम।
हरा के उस को-रो-ना को
अपने-अपने स्कूल चले हम।।
स्कूल चले हम, स्कूल चले हम
घर से अपने-स्कूल चले हम।

बीच का बंदर खेलेंगे
स्टप्पू भी अब खेलेंगे।
लुक्का-छुप्पी खेलेंगे
चोर-सिपाही खेलेंगे।।
इक-दूजे संग दौड़ें हम
प्रेम के धागे जोड़ें हम।
मिलजुल रहना सीखें हम
कदम से सबके मिला कदम।।
स्कूल चले हम, स्कूल चले हम
घर से अपने-स्कूल चले हम।
हरा के उस को-रो-ना को
अपने-अपने स्कूल चले हम।।
स्कूल चले हम, स्कूल चले हम
घर से अपने-स्कूल चले हम।
-हृदयेश बाल
 
हे! पर्वतराज करोल [भक्तिगीत-कविता]

हे! पर्वतराज करोल
तेरा अद्भुत साया।
जब जग ने ठुकराया
तू-ने अपनाया।

हे! पर्वतराज करोल
तेरा अद्भुत साया।
जब जग ने ठुकराया
तू-ने अपनाया।

हे! पर्वतराज करोल
तेरा अद्भुत साया।
हे! पर्वतराज करोल
तेरा अद्भुत साया।
हे! पर्वतराज करोल।

सुबह-सवेरे जब भी उठता
तू ही सबसे पहले दिखता।
सुबह-सवेरे जब भी उठता
तू ही सबसे पहले दिखता।

सूरज का दीपक मस्तक पर
ले के जग को रौशन करता।
सूरज का दीपक मस्तक पर
ले के जग को रौशन करता।

सूरज को डाले जल से तू
सूरज को डाले जल से तू
सूरज संग नहाया।
हे! पर्वतराज करोल
तेरा अद्भुत साया।
जब जग ने ठुकराया
तू-ने अपनाया।

हे! पर्वतराज करोल
तेरा अद्भुत साया।
जब जग ने ठुकराया
तू-ने अपनाया।

हे! पर्वतराज करोल
तेरा अद्भुत साया।
हे! पर्वतराज करोल
तेरा अद्भुत साया।
हे! पर्वतराज करोल।

काम बोझ से जब भी थकता
सर ऊपर कर तुझको तकता।
काम बोझ से जब भी थकता
सर ऊपर कर तुझको तकता।

दर्शन अचल वदन होने से
काम से हरगिज़ न रुक सकता।
दर्शन अचल वदन होने से
काम से हरगिज़ न रुक सकता।

कर्मयोग का पावन झरना
कर्मयोग का पावन झरना
पल-पल तूने बहाया।
हे! पर्वतराज करोल
तेरा अद्भुत साया।
जब जग ने ठुकराया
तू-ने अपनाया।

हे! पर्वतराज करोल
तेरा अद्भुत साया।
जब जग ने ठुकराया
तू-ने अपनाया।

हे! पर्वतराज करोल
तेरा अद्भुत साया।
हे! पर्वतराज करोल
तेरा अद्भुत साया।
हे! पर्वतराज करोल।

बदल गए सब रिश्ते नाते
बदल गया संसार ये सारा।
बदल गए सब रिश्ते नाते
बदल गया संसार ये सारा।

मित्र-मंडली छान के रख दी
हर-इक आगे काल के हारा।
मित्र-मंडली छान के रख दी
हर-इक आगे काल के हारा।

खुशकिस्मत हूँ तेरे जैसा
खुशकिस्मत हूँ तेरे जैसा
मीत जो मन का पाया।
हे! पर्वतराज करोल
तेरा अद्भुत साया।
जब जग ने ठुकराया
तू-ने अपनाया।

हे! पर्वतराज करोल
तेरा अद्भुत साया।
जब जग ने ठुकराया
तू-ने अपनाया।

हे! पर्वतराज करोल
तेरा अद्भुत साया।
हे! पर्वतराज करोल
तेरा अद्भुत साया।
हे! पर्वतराज करोल।

सबसे ऊंचे पद पर रहता
कहलाए देवों का दे-वता।
सबसे ऊंचे पद पर रहता
कहलाए देवों का दे-वता।

उठकर मूल अधार से प्राणी
रोमांचित मस्तक पर होता।
उठकर मूल अधार से प्राणी
रोमांचित मस्तक पर होता।

सब देवों ने मिलकर तेरा 
सब देवों ने मिलकर तेरा 
प्यारा रूप बनाया।
हे! पर्वतराज करोल
तेरा अद्भुत साया।
जब जग ने ठुकराया
तू-ने अपनाया।

हे! पर्वतराज करोल
तेरा अद्भुत साया।
जब जग ने ठुकराया
तू-ने अपनाया।

हे! पर्वतराज करोल
तेरा अद्भुत साया।
हे! पर्वतराज करोल
तेरा अद्भुत साया।
हे! पर्वतराज करोल।

जटा बूटियाँ तेरे अंदर
नाग मोरनी मानुष बंदर।
जटा बूटियाँ तेरे अंदर
नाग मोरनी मानुष बंदर।

गंगा नद नाले और झरने
नेत्र तीसरा भीषण कन्दर।
गंगा नद नाले और झरने
नेत्र तीसरा भीषण कन्दर।

चन्द्र मुकुट पर तोरे सोहे
बरबस ही मोरा मन मोहे।
चन्द्र मुकुट पर तोरे सोहे
बरबस ही मोरा मन मोहे।

उपपर्वत नीचे तक जो है
नंदी वृष पर बैठे सो है।
उपपर्वत नीचे तक जो है
नंदी वृष पर बैठे सो है।

बिजली सी गौरा विराजे
कड़कत चमकत डमरू बाजे।
बिजली सी गौरा विराजे
कड़कत चमकत डमरू बाजे।

आंधी से हिलते-डुलते वन
नटराजन के जैसे साजे।
आंधी से हिलते-डुलते वन
नटराजन के जैसे साजे।

बाघम्बर बदली का फूल
धुंध बनी है भस्म की धूल।
बाघम्बर बदली का फूल
धुंध बनी है भस्म की धूल।

गणपत जल बन बरसे ऊपर
ऋतु मिश्रण का है तिरशूल।
गणपत जल बन बरसे ऊपर
ऋतु मिश्रण का है तिरशूल।

मन-भावन इस रूप में तेरे
मन-भावन इस रूप में तेरे
शिव का रूप समाया।
हे! पर्वतराज करोल
तेरा अद्भुत साया।
जब जग ने ठुकराया
तू-ने अपनाया।

हे! पर्वतराज करोल
तेरा अद्भुत साया।
जब जग ने ठुकराया
तू-ने अपनाया।

हे! पर्वतराज करोल
तेरा अद्भुत साया।
हे! पर्वतराज करोल
तेरा अद्भुत साया।
हे! पर्वतराज करोल।
~हृदयेश बाल~bhishm
 
जहाँ भी देखो वहीं दक्ष हैं
जहां भी देखो वहीँ दक्ष हैं।
अहंकार से भरे हुए
अपने-अपने पक्ष हैं।

कोई याग-यज्ञ में डूबा
कोई दुनिया का अजूबा।
कोई बिजनेसमेन बना है
हड़प के बैठा पूरा सूबा।

कोई याग-यज्ञ में डूबा
कोई दुनिया का अजूबा।
कोई बिजनेसमेन बना है
हड़प के बैठा पूरा सूबा।

एक नहीँ धंधे लक्ष हैं
जहां भी देखो वहीँ दक्ष हैं।
अहंकार से भरे हुए
अपने-अपने पक्ष हैं।
अहंकार से भरे हुए
अपने-अपने पक्ष हैं।

कर्म-मार्ग में रचे-पचे हैं
राग-रागिनी खूब मचे हैं।
नाम-निशान नहीं है सती का
शिव भी उस बिन नहीं जचे हैं।

कर्म-मार्ग में रचे-पचे हैं
राग-रागिनी खूब मचे हैं।
नाम-निशान नहीं है सती का
शिव भी उस बिन नहीं जचे हैं।

अंधियारे से भरे कक्ष हैं
जहां भी देखो वहीँ दक्ष हैं।
अहंकार से भरे हुए
अपने-अपने पक्ष हैं।
अहंकार से भरे हुए
अपने-अपने पक्ष हैं।

ढोंग दिखावा अंतहीन है
मन की निष्ठा अति महीन है।
फल पीछे लट्टू हो रहते
फलदाता को झूठा कहते।

ढोंग दिखावा अंतहीन है
मन की निष्ठा अति महीन है।
फल पीछे लट्टू हो रहते
फलदाता को झूठा कहते।

चमकाते बस नयन नक्श हैं
जहां भी देखो वहीँ दक्ष हैं।
अहंकार से भरे हुए
अपने-अपने पक्ष हैं।
अहंकार से भरे हुए
अपने-अपने पक्ष हैं।

प्रेम-घृणा का झूला झूले
दर्शन वेद पुराण का भूले।
बाहु-बली नहीं कोई भी
नभ के पार जो उसको छू ले।

प्रेम-घृणा का झूला झूले
दर्शन वेद पुराण का भूले।
बाहु-बली नहीं कोई भी
नभ के पार जो उसको छू ले।

शिवप्रकोप से न सरक्ष हैं
जहाँ भी देखो वहीँ दक्ष हैं।
अहंकार से भरे हुए
अपने-अपने पक्ष हैं।
अहंकार से भरे हुए
अपने-अपने पक्ष हैं।

 
जय माता दुर्गे जय माता तारा

जय माता दुर्गे
जय माता तारा।
हम पापी मानुष को
तेरा सहारा।।

जय माँ भवानी
तेरा जयकारा।
भव-सा-गर का
तू ही किनारा।।
जय माता दुर्गे------

हिंगलाज नानी।
जय हो जयकारा
तेरे लिए मेरा 
जीवन पहारा।।
जय माता---

भटकूँ अवारा
बेघर बिचारा।
तेरे सिवा नहीं
अब कोई चारा।।
जय माता---

जग देख सारा
भटका मैं हारा।
भूलूँ कभी न
तेरा नजारा।।
जय माता---

हे अम्बे रानी
जय जय जयकारा
पागल सुत तेरा
नकली खटारा।।
जय माता----

तू ही जगमाता
तू ही विधाता।
तू जो नहीं हमें
कुछ भी न आता।।
हम थरमामीटर
तू उसमें पारा।
तू क्षीरसागर
हम पानी खारा।।
जय माता---

किसमत का मारा
जग में नकारा
तू जो मिले जग
पाए करारा।।
जय माता---

जो है हमारा
सब है तुम्हारा।
दूँ क्या मैं तुझको
जो हो हमारा।।
जय माता दुर्गे
जय माता तारा।
हम पापी मानुष को
तेरा सहारा।।
 
कब तक सत्य छुपाओगे

कब तक सत्य छुपाओगे
कब तक प्रकाश दबाओगे।

खड़ा है रावण धर्म में
पड़ा है खंजर मर्म में।
पाप है अपने चरम में
मनुता डूबी शर्म में।
हिंसा का ढूंढोगे
कब तक बहाना।
जैसा करोगे 
वैसा पाओगे।
कब तक सत्य छुपाओगे
कब तक प्रकाश दबाओगे।

पूजा पंडाल सज चुके
अपना धर्म भज चुके।
रावण धर्म के लोगों के
हिंसक कदम नहीँ रुके।
पुतले को जलाओगे
अपना मन बहलाओगे।
कब तक सत्य छुपाओगे
कब तक प्रकाश दबाओगे।

अगला वर्ष आएगा
यही बहारें लाएगा।
राज करेगा वीर बुजदिल
ये ही मंजर पाएगा।
मानवता को बुजदिली
कब तक तुम कह पाओगे।
कब तक सत्य छुपाओगे
कब तक प्रकाश दबाओगे।
 
राम से बड़ा राम का नाम~भक्तिगीत कविता
जग में सुंदर हैं सब काम
पर मिल जाए अब आ~राम।
बोलो राम राम राम
राम से बड़ा राम का नाम।१।-2
दीपावली मनाएं हम
खुशियां खूब लुटाएं हम।
आ~राम आ~राम रट-रट के
काम को ब्रेक लगाएं हम।२।
मानवता को जगाएँ हम
दीप से दीप जलाएँ हम।-2
प्रेम की गंगा बहाएं हम-2
नितदिन सुबहो शाम।३।
बोलो राम राम राम
राम से बड़ा राम का नाम।-2
जग में------
वैर-विरोध को छोड़ें हम
मन को भीतर मोड़ें हम।
ज्ञान के धागे जोड़ें हम
बंधन बेड़ी तोड़ें हम।४।
दिल से राम न बोलें हम
माल पराया तोलें हम।-2
प्यारे राम को जपने का-2
ऐसा हो न काम।५।
बोलो राम राम राम
राम से बड़ा राम का नाम।-2
जग में------
मेहनत खूब करेंगे हम
रंगत खूब भरेंगे हम।
मन को राम ही देकर के
तन से काम करेंगे हम।६।
अच्छे काम करेंगे हम
अहं-भ्रम न भरेंगे हम।-2
बगल में शूरी रखकर के-2
मुँह में न हो राम।७।
बोलो राम राम राम
राम से बड़ा राम का नाम।-2
जग में------
भाईचारा बाँटें हम
शिष्टाचार ही छांटें हम।
रूढ़ि बंदिश काटें हम
अंध-विचार को पाटें हम।८।
धर्म विभेद करें न हम
एक अभेद ही भीतर हम।-2
कोई शिवजी कहे तो कोई-2
दुर्गा कृष्ण या राम।९।
बोलो राम राम राम
राम से बड़ा राम का नाम।-2
जग में------
 
अटल जी को श्रद्धा सुमन
उठ जाग होनहार, 
प्रकाश हो या अंधकार।
बाँध तरकस पीठ पर, 
भर तीर में फुंकार।।
झुका दे शीश दोनों का, 
कर ना पाए फिर कभी भी वार।
उठ जाग होनहार, 
प्रकाश हो या अंधकार।।

लेखक का परिचय: @bhishmsharma95

Twitter address