अवसादरोधक दवा कैसे काम करती है
प्रेमयोगी वज्र प्रचंड दुनियादारी में उलझा हुआ व्यक्ति था। उससे उसका मन बहुत अशांत हो गया था। यद्यपि वह शरीरविज्ञान दर्शन की सहायता से उसे काफी हद तक काबू कर रहा था। परन्तु फिर भी वह पूरी तरह से काबू नहीं हो पा रहा था। एक बार वह गंभीर गैस्ट्राइटीस के वहम से एंडोस्कोपी करवाने गया। चिकित्सक ने उसकी मनोदशा को समझते हुए उसे डेढ़ महीने की अवसादरोधक व क्रोधनाशक दवा (नाम याद नहीं) प्रेस्क्राईब कर दी। उसे उसको खाते हुए अपने अवसाद व क्रोध में काफी कमी महसूस हो रही थी। उसने गूगल पर पढ़ लिया था कि एक महीने तक रोजाना खाने पर ही इस दवा का प्रभाव स्थाई बन पाता है। अतः वह दवा को खाता रहा। उसे लग रहा था कि जो काम आध्यात्मिक पुस्तक शरीरविज्ञान करती थी, वही काम वह दवा भी कर रही थी। यद्यपि दवा का काम कुछ ज्यादा ही जड़ता, उग्रता, स्मरणशक्ति की कमी, और कृत्रिमता से भरा हुआ था। उसे आत्मजागरण व कुण्डलिनीजागरण का अद्वैतकारक प्रभाव भी अवसादरोधी दवा के अद्वैतकारक प्रभाव से मिलता-जुलता लगा, यद्यपि शुद्धता और स्तर में अंतर के साथ। एकहार्ट टोल्ले ने भी लगभग ऐसा ही बयान किया है कि अवसादरोधी दवा का प्रभाव आत्मजागरण के प्रभाव जैसा होता है, यद्यपि तुलनात्मक रूप से बहुत निम्न दर्जे का और उग्रता के साथ।
वह लम्बी खांसी से परेशान था
उसने बहुत सी एंटीबायोटिक दवाइयां खाईं, पर खांसी ठीक नहीं हुई। वह समझ रहा था कि एंटीबायोटिक दवाइयाँ काम नहीं कर रही थीं, जीवाणुओं के प्रतिरोध के कारण। वास्तव में उसकी खांसी की वजह क्रोनिक गेस्ट्राइटीस थी। जब उसने 1 महीने तक पेंटोपराजोल और डॉमपेरिडोन दवाइयां खाईं तथा योग करने के साथ कुछ सावधानियां बरतीं; तब उसकी खांसी जड़ से ख़त्म हो गई। आजकल के तनाव भरे जीवन में यह समस्या विकराल हो गई है, जिस बारे में अधिकाँश लोग गलतफहमी का शिकार हो जाते हैं।
I don’t see it as a road to true and lasting awakening, but it can give people a glimpse of freedom from the prison of their conceptual mind (a worth reading interview with Eckhart tolle)…………..
INTERVIEW WITH ECKHART TOLLE
मस्तिष्कप्रभावी दवाओं से रूपांतरण
शरीरविज्ञान दर्शन एक अद्वैतवादी सोच है। इससे सिद्ध होता है कि वह दवा अद्वैत को उत्पन्न कर रही थी। माईंड अल्टरिंग ड्रग्स भावनाओं को नियंत्रित करने के लिए पावर ब्रेक की तरह काम करती है, जिससे मस्तिष्क के सॉफ्ट टिशू को नुक्सान पहुँच सकता है। उसे अपनी स्मरणशक्ति कम होती हुई महसूस हो रही थी। क्रोध के समय तो उसका मस्तिष्क जवाब देने लगता था, इसलिए वह क्रोध कर ही नहीं पाता था। क्रोध से उसका मस्तिष्क दबावयुक्त, भारी, सुस्त, और अंधकारमय सा हो जाता था। शारीरिक रूप से भी वह शिथिल व कमजोर जैसा रहने लग गया था। उसकी कार्यक्षमता काफी घट गई थी। वह अपने अचानक हुए परिवर्तन को देखकर हैरान था। इसलिए उसने 30-35 दिन के बाद वह दवा बंद कर दी, और बची हुई दवा कूड़ेदान में डाल दी। यद्यपि उसका रूपांतरण स्थायी रूप से हो गया था। वह पिछली अवस्था में कभी भी वापिस नहीं लौट पाया।
अवसादरोधक दवा आनंद व अद्वैत को कैसे उत्पन्न करती है?
इससे व्यक्ति किसी के भी बारे में गहराई से नहीं सोच पाता, और न ही ढंग से विश्लेषण या जजमेंट कर पाता है। इससे सभी वस्तु-विचारों के प्रति स्वयं ही साक्षीभाव पैदा हो जाता है। उससे आनंद पैदा होता है। साथ में, विश्लेषण व जजमेंट की कमी से सभी वस्तु-विचारों के बीच का अंतर मिटने लगता है, जिससे सभी कुछ एक जैसा लगने लगता है। यही तो अद्वैत है। यह सब ऐसे ही होता है, जैसे शराब के हल्के नशे में होता है। सीधा सा मतलब है कि मेडीटेशन बुद्धि-शक्ति को बढ़ा कर अद्वैतभाव को उत्पन्न करती है, जबकि मस्तिष्क-परिवर्तक दवाएं बुद्धि-शक्ति को घटा कर। फिर भी ये दवाएं आध्यात्मिक जागरण की झलक तो दिखा ही देती हैं। उस झलक का पीछा करते हुए आदमी वास्तविक आत्म-जागरण को भी प्राप्त कर सकता है।
मस्तिष्क-परिवर्तक दवाओं से ध्यान लगाने में कैसे सहायता मिलती है?
अपनी मानसिक गतिविधियों के अचानक ही बहुत धीमा पड़ने से प्रेमयोगी वज्र को आश्चर्य भी हुआ, और कुछ दुःख भी। वह अपनी पूर्ववत मानसिकता को प्राप्त करने के उपाय सोचने लगा। वह मानसिकता उसकी याददाश्त से जुड़ी हुई थी, जो ड्रग के प्रभाव से काफी कम हो गई थी। उसे कुछ समय के लिए एक ऐसे व्यक्ति की संगति मिल गई, जो नियमित रूप से योगासन करता था। उसे देखकर वह भी करने लगा। धीरे-२ उसे अभ्यास हो गया। वह इंटरनेट व पुस्तकों की मदद भी लेने लगा। उसमें मानसिक शक्ति तो पहले की तरह प्रचुर थी, परन्तु वह कहीं लग नहीं रही थी। इसका कारण यह था कि वह दवा के प्रभाव से उन पिछली बातों व घटनाओं को भूल गया था, जिनसे उसकी मानसिक शक्ति जुड़ कर क्षीण होती रहती थी। दवा से उसका पिछला संसार मिट जाने से उसकी प्रचंड मानसिक शक्ति उससे मुक्त हो गई थी। इसीलिए उसे महसूस नहीं हो रही थी। योग की सहायता से वह छुपी हुई व भरपूर मानसिक शक्ति उसकी कुण्डलिनी को स्वयं ही लगने लगी। इससे वह समय के साथ जागृत हो गई।
दुनियादारी की मानसिकता का कुण्डलिनी-मानसिकता के रूप में प्रकट होना
कुण्डलिनीयोग से उसे अपनी खोई हुई पुरानी मानसिकता प्राप्त हो गई। यद्यपि वह पहले की तरह अद्वैतपूर्ण दुनियादारी के रूप में नहीं थी, अपितु वह अकेली कुण्डलिनी के रूप में थी। समस्त मानसिक शक्ति एकमात्र कुण्डलिनी को लगने से वह जागृत हो गई।
प्रबल मानसिकता की प्राप्ति केवलमात्र अद्वैतभाव से संभव
यह ध्यान देने योग्य बात है कि प्रबल, अविरल व स्थायी मानसिकता केवल अद्वैतपूर्ण दुनियादारी से ही संभव है। द्वैतपूर्ण व्यवहार से मानसिकता चरम के निकट पहुँचने से पहले ही क्षीण होती रहती है। इससे सिद्ध होता है कि प्रेमयोगी वज्र का अद्वैतपूर्ण जीवन-व्यवहार (geetaa-ukt karmayoga) भी उसके कुण्डलिनी-जागरण में सहायक बना।
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