कुण्डलिनी के साथ पशु-प्रेम

यह सर्वविदित है कि कुण्डलिनी प्रेम का प्रतीक है। कुण्डलिनी समर्पण का प्रतीक है। कुण्डलिनी श्रद्धा-विश्वास का प्रतीक है। कुण्डलिनी स्वामीभक्ति का प्रतीक है। कुण्डलिनी सेवाभाव का प्रतीक है। कुण्डलिनी परहितकारिता का प्रतीक है। कुण्डलिनी आज्ञापालन का प्रतीक है। कुण्डलिनी सहनशक्ति का प्रतीक है। ये कुण्डलिनी के साथ रहने वाले मुख्य गुण हैं। अन्य भी बहुत से गुण कुण्डलिनी के साथ विद्यमान रहते हैं। यदि हम गौर करें, तो ये सभी मुख्य गुण पशुओं में भी विद्यमान होते हैं। इनमें से कई गुण तो उनमें मनुष्यों से भी ज्यादा मात्रा में प्रतीत होते हैं।  इससे यह अर्थ निकलता है कि पशु कुण्डलिनी-प्रेमी होते हैं। आइये, हम इसकी विवेचना करते हैं।

कुण्डलिनी स्वामीभक्ति का प्रतीक है

आजतक कुत्ते से ज्यादा स्वामीभक्ति किसी प्राणी में नहीं देखी गई है। ऐसे बहुत से  उदाहरण हैं, जब कुत्ते ने अपने मालिक के लिए जान तक दे दी है। इसका अर्थ है कि कुत्ते के मन में अपने मालिक के व्यक्तित्व की छवि स्थाई और स्पष्ट रूप से बसी हुई होती है। वह छवि कुत्ते के मन के लिए एक खूंटे की तरह काम करती है। इससे कुत्ता आपने विचारों और क्रियाकालापों के प्रति अनासक्ति भाव या साक्षी भाव प्राप्त करता रहता है। उससे कुत्ते को आनंद प्राप्त होता रहता  है। उस कुण्डलिनी छवि के महत्त्व को वह कभी नहीं भूलता, यहाँ तक कि उसके लिए जान तक दे सकता है। इसके विपरीत, बहुत से मनुष्य अपने मालिक के प्रति वफादारी नहीं निभा पाते। इससे सिद्ध  हो जाता है कि कुत्ता  मनुष्य से भी ज्यादा कुण्डलिनी प्रेमी होता है।

कुण्डलिनी सेवा भाव का प्रतीक है

उदाहरण के लिए, गाय को ही लें। वह हमें दूध देकर हमारी सेवा करती है। अधिकतर गौवें अपनी देख-रेख करने वाले मालिक के पास ही दूध देती हैं। दूसरा कोई जाए, तो वे जोर की लात भी टिका सकती हैं। इसका सीधा सा अर्थ है कि गाय के मन में अपने मालिक की छवि बस जाती है, जो  उसके लिए कुण्डलिनी का काम करती है।  एक आदमी  तो अपने मालिक को कभी भी छोड़ सकता है, परन्तु गाय ऐसा कभी नहीं करती है। इससे भी यही सिद्ध होता है कि पशु मनुष्य से भी ज्य्यादा नैष्ठिक कुण्डलिनी भक्त होते हैं।

यह अलग बात है कि दिमाग की कमी के कारण पशु मनुष्य की तरह मालिक (कुण्डलिनी) को बारम्बार बदल भी नहीं सकता। अधिकाँश मनूश्य तो अपने दिमाग पर इतना घमंड करने लग जाते हैं कि कुण्डलिनी के परिपक्व होने से पहले ही उसे बदल देते हैं। ऐसी स्थिति से तो पशु वाली स्थिति ही बेहतर प्रतीत होती है। एक बात और है। पालतु पशु को जब आदमी द्वारा संरक्षण व भोजन प्राप्त होता है, तभी उसे कुण्डलिनी को ज्यादा बढ़ाने का अवसर मिलता है।

कुण्डलिनी परहितकारिता का प्रतीक है

इसी तरह, विभिन्न पशु-पक्षी विभिन्न प्रकार  के उत्पाद देकर मनुष्य का भला करते  रहते हैं। ऐसा उनके मनुष्य के प्रति प्रेम से ही सम्भव  हो सकता है। माता प्रेम के वशीभूत होकर ही अपने बच्चे को दूध पिलाती है। यह भी सत्य है कि प्रेम केवल कुण्डलिनी से ही होता है। यह अलग बात है कि पशु उसे बोलकर बता नहीं सकता। यदि प्रेम न भी हो, तो भी किसी का हित करते हुए स्वयं ही उससे प्रेम हो जाता है। यहाँ तक कि पेड़-पौधे भी कुण्डलिनी-प्रेमी होते हैं, क्योंकि वे भी सदैव परहित में लगे रहते हैं।

कुण्डलिनी आज्ञापालन का प्रतीक है

हम उसी की आज्ञा का पालन सबसे अधिक तत्परता के साथ करते हैं,  जो हमारे मन में सबसे अधिक बसा होता है, जो हमें सबसे अधिक महत्त्वशाली लगता है, और जिस पर हमें सबसे अधिक विश्वास होता है। वही हमारी कुण्डलिनी के रूप में होता है। वही आनंद का स्रोत भी होता है। अपनी मालिक की आज्ञा का पालन कुत्ते बहुत बखूबी करते हैं। कुत्ते में तो दिमाग भी इंसान से कम होता है। इसका सीधा सा अर्थ है कि कुत्ता केवलमात्र कुण्डलिनी से ही आज्ञापालन के लिए प्रेरित होता है, अन्य लॉजिक से नहीं। आदमी तो दूसरे भी बहुत से लॉजिक लगा लेता है। इसका सीधा सा अर्थ है कि एक कुत्ता भी कुण्डलिनी की अच्छी समझ रखता है।

इन बातों का उद्देश्य मनुष्य को गौण सिद्ध करना नहीं है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि मनुष्य जीव-विकास की सीढ़ी पर सबसे ऊपर है। यहाँ बात केवल कुण्डलिनी के बारे में हो रही है।

कुण्डलिनी कर्तव्यपालन का प्रतीक है

एक बैल यदि अस्वस्थ भी हो, तो भी वह खेत में हल चलाने से पीछे नहीं हटता। इसी तरह, यदि उसका मूड ऑफ़ हो, तो भी वह अपने कदम पीछे नहीं हटाता। यह अलग बात है, यदि वह हल चलाते-२ हांफने लगे या नीचे गिर जाए। इसका सीधा सा अर्थ है कि बैल भी कुण्डलिनी प्रेमी होता है। उसका रोजमर्रा का काम व उसके मालिक का व्यक्तित्व उसके मन में एक मजबूत कुण्डलिनी के रूप में बस जाता है, जिसे वह नजरअंदाज नहीं कर पाता। अपने आनंद के स्रोत को भला कौन बुद्धिमान प्राणी छोड़ना चाहे। इसी तरह, सहनशक्ति के मामले में बभी समझ लेना चाहिए।

पशुओं के कुण्डलिनी प्रेम के बारे में प्रेमयोगी वाज्र का आपना अनुभव

उसका ब्बच्पन पालतु पशुओं से भरे-पूरे परिवार में बीता था। पशुओं के मन के भाव पढ़ने में उसे बहुत मजा आता था। जंगल में बैलों का खेल-२ में आपस में भिड़ना उसे रोमांचित कर देता था। मवेशियों का जंगल के घास से पेट भर जाने के बाद अपने बाड़े की तरफ दौड़ लगाना एक अलग ही रोमांच पैदा करता था। एक गाय बड़ी नटखट, चंचल व साथ में दुधारू भी थी। वह एक नेता की तरह सभी मवेशियों के आगे-२ चला करती थी। सभी मवेशी उसे सींग मारने को आतुर रहते थे, इसलिए वह अकेले में ही चरा करती थी। वह जंगल के डर से उनकी नजरों से दूर भी नहीं जाती थी। उसकी बछिया भी वैसी ही निकली। वह देखने में भी बहुत सुन्दर थी। जंगल से बाड़े की तरफ पहाड़ी से नीचे उतरते समय वह पूंछ खड़ी करके बड़ी तेजी से कुदकते हुए भागती, और कुछ दूर जाकर पीछे से आने वाले  मवेशियों का इन्तजार करते हुए खड़ी होकर बार-२ गर्दन मोड़कर पीछे देखने लग जाती। जब वे नजदीक आते, तब फिर से दौड़ पड़ती।

जब प्रेमयोगी वज्र की कुण्डलिनी बलवान होती थी, तब सभी मवेशी उसके आसपास चरने के लिए आ जाया करते थे। कोई मवेशी उसे कान टेढ़े करके बड़े आश्चर्य से व प्रेम से देखने लग जाते थे। कई तो उसे चाटने भी लग जाते थे। वे उसे बार-२ सूंघते, और आनंदित हो जाते। शायद उन्हें कुण्डलिनी के साथ विद्यमान सबलीमेटिड वीर्य की खुशबू भी उसके रोमछिद्रों से निकली हुई महसूस होती थी। कुण्डलिनी जागरण के आसपास (प्राणोत्थान के दौरान) भी पशुओं के संबंध में उसका ऐसा ही अनुभव रहा। कई बार तो खूंटे से बंधीं कमजोर दिल वाली भैंसें उसे अचानक अपने पास पाकर डर सी भी जाती थीं, और फिर अचानक प्यार से सूंघने लग जाती थीं। ज्यादातर ऐसा उन्हीं के साथ होता था, जो क्रोधी, सींग मारने वाली, और दूध देने में आनाकानी करने वाली होती थीं। इसका सीधा सा मतलब है कि वे कुण्डलिनी से कम परिचित होती थीं।

पशुओं के बीच में रहने से कुण्डलिनी विकास

प्रेमयोगी वज्र ने यह महसूस किया कि पशुओं, विशेषकर जंगल में खुले घूमने वाले, पालतु, व गाय जाति के मवेशियों के बीच में रहकर कुण्डलिनी ज्यादा स्पष्ट रूप से विकसित हो जाती थी। पशु स्वभाव से ही प्रकृति प्रेमी होते हैं। प्रकृति में तो हर जगह अद्वैतरूपा कुण्डलिनी विद्यमान है ही। इसलिए कुण्डलिनी प्रेमी को पशुओं से भी प्रेम करना चाहिए।

  Please click on this link to view this post in English (Kundalini with animal love)

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Published by

minakshirani

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