दोस्तों, अब मुझे हर हफ्ते नई पोस्ट लिखने के लिए खुद ही हिंट मिल जाती है, और नई घटना भी। आज रात को मैंने एक तंत्र से सम्बंधित स्वप्न देखा। वह जीवंत, स्पष्ट व असली लग रहा था। वह स्वप्न सुबह के समय आया। ऐसा लग रहा था कि वह मेरी किसी पूर्वजन्म की घटना पर आधारित रहा होगा। तभी तो मैं उसमें भावनात्मक रूप से बहुत ज्यादा बह गया था, और मुझे आनंद भी आया। उस स्वप्न से प्राचीनकाल के तंत्र के बारे में मेरे मन में तस्वीर स्पष्ट हो गई। वैसे भी एक कुण्डलिनी योगी का पुरानी या अपने पूर्वजन्मों की घटनाओं से सामना उसके स्वप्न में होता ही रहता है। वे सारे स्वप्न बहुत मीनिंगफुल होते हैं।
प्राचीनकाल में तंत्र बहुत उन्नत था
उस सपने में मैंने देखा कि मैं अपने परिवार सहित एक ऊंचे पहाड़ के किसी पर्यटक स्थल जैसे स्थान पर था, जहां पर चहल-पहल थी, व बहुत आनंद आ रहा था। कुछ पुराने परिचितों से भी वहां मेरी मुलाक़ात हुई। उस पहाड़ की तलहटी एक मैदानी जैसे भूभाग से जुड़ी हुई थी। उस जोड़ पर एक विशालकाय मंदिर जैसा स्थान था। हम नीचे उतर कर उस मंदिर परिसर में प्रविष्ट हो गए। चारों और बहुत सुन्दर चहल-पहल थी। बहुत आनंद आ रहा था। परिसर में एक प्रकाशमान गुफा जैसी संरचना भी थी, जिसके अन्दर भी बाजार सजे हुए थे। मेरी पत्नी उसमें घुमते-फिरते और शौपिंग करते हुए कहीं मुझसे खो गई थी। मैं उसे भी खोज रहा था। उस खोजबीन में मैंने मंदिर के बहुत से कमरे देखे, जो लाइन में थे. हालांकि कुछ कमरे सीढ़ियों से कुछ ऊपर चढ़कर भी थे। ऐसा लग रहा था, जैसे कि सारा मंदिर परिसर किसी विशालकाय छत के नीचे था। नीचे की पंक्ति के एक कमरे में मैं घुस गया। वहां पर बहुत से लोग नीचे, एक दरी पर बैठे थे। वहां पर बीच में जैसे मैंने अपना बैग पीठ से उतार कर रख दिया, और मैं भी बैठ गया। तभी एक महिला अन्दर आई, और मुझे बड़े प्यार व अपनेपन से अपने साथ, गलियों से होते हुए, सीढ़ियों के ऊपर के एक कमरे तक ले गई। उससे कुछ पुरानी जान-पहचान भी महसूस हो रही थी, पर वह स्पष्ट नहीं थी। शायद इसीलिए मुझे उसके साथ आनंद आ रहा था। एक-दो स्थान पर उसने मुझे अपना स्पर्श भी करवाया। वह उस कमरे में एक कुर्सी पर बैठ गई। उसके सामने मेज पर बहुत से कागजात पड़े थे। उसके समीप ही दो-चार पुरुष लोग भी कुर्सियों पर बैठे हुए थे। महिला ने किसी बीमा जैसी योजना के कुछ कागजात जैसे दिखाए, और मुझसे कहा कि मेरी पत्नी ने उस योजना के लिए हामी भरी थी। मैं मुकरने लगा, तो उसके चेहरे पर कुछ हलकी मायूसी जैसी दिखी। तभी वे लोग कुछ अन्य ग्राहकों का काम निपटाने लगे, जिससे मैं मौक़ा पाकर वहां से खिसक गया। मैं वापिस उसी कमरे में आ गया, जहां पहले बैठा था, क्योंकि मैं अपना बैग वहीं भूल गया था। पर मुझे अपना बैग वहां नहीं मिला। मैं काफी उदास हुआ, क्योंकि उसमें कुछ अन्य जरूरी चीजों के साथ मेरा महँगा किन्डल ई-रीडर भी था। मैं बहुत निराश होकर बैग खोजने लगा। मैंने कई कमरों में तलाश की, यह सोचकर कि कहीं मैं दूसरे कमरों में तो नहीं बैठा। मैं फिर बीच वाली खुली लॉबी में गया, जिसके अन्दर वे कमरे खुलते थे। वह एक रेलवे स्टेशन की तरह बहुत खुली-डुली जगह थी, जहाँ पर काफी चहल-पहल थी। वहां एक-दो पुलिस वाले भी सीमेंट के बेंच पर बैठे हुए थे। उनसे पूछा, तो उन्होंने लापरवाही से व मुझसे पीछा छुड़ाने के लिए कहा कि मेरा बैग कभी नहीं मिलेगा, और उसे किसी ने उठा लिया होगा। मैंने फिर से उसी कमरे का दरवाजा खोला, जहां मैं बैठा हुआ था। वहां पर दो भद्र पुरुष नाईट सूट में मदिरा पीने का आनंद ले रहे थे। वे दोनों पालथी लगा कर आराम से बैठे फुए थे। वे मध्यम कद-काठी के और कुछ सांवले लग रहे थे। मदहोशी की ख़ुशी की मुस्कान उनके चेहरे पर साफ झलक रही थी। पूछने पर उन्होंने मुझे बताया कि मेरा बैग वहीं कमरे में पड़ा था। मैं बहुत खुश हुआ और उनसे कहा कि शराब से आपके अन्दर ज्ञान की आँख खुली, जिससे आप मेरा बैग ढूंढ सके। वे बहुत खुश होकर मुस्कुराने लगे, और एक पेग हाथ में पकड़ कर मुझसे बोले कि मैं भी उसे देवी माता के नाम पर पी लेता। मैंने उन्हें मुस्कुराते हुए धन्यवाद कहा, और चल दिया। यद्यपि मेरा मन लगातार कर रहा था कि मैं एक पेग देविमाता के नाम पर लगा लेता। परन्तु मैं उन्हें मना कर चुका था, इसलिए वापिस नहीं मुड़ना चाहता था। परिसर से बाहर निकल कर ही दुकानों की एक कतार लगी हुई देखी। मैं एक मिठाई की दुकान में कुछ मिठाई खरीदने के लिए घुस गया। वहां पर दुकान के शुरू में ही खड़े मुझे कुछ चिर-परिचित दोस्त मिले, जो ख़ुशी के साथ शराब के बारे में कुछ आपसी बातें करने लगे। मैंने कहा कि ऐसी बातें न करो, नहीं तो मेरा मन भी देवी माता के नाम पर एक पेग लगाने का कर जाएगा। ऐसा सुनकर सब हंसने लगे। उन दुकानों की कतार वाली सड़क चढ़ाई की दिशा में बाहर जा रही थी। कुछ चढ़ाई चढ़ कर मैं निचले तरफ की एक दुकान के सीमेंट से बने पक्के प्लेटफोर्म पर चढ़ गया। तभी मुझे विचित्र व दिल को छूने वाले गाजे-बाजे/संगीत की आवाजें सुनाई देने लगीं। वह सजे हुए रथ पर देवी माता की झांकी निकल रही होगी। मैं देवी माता के प्यार मैं इतना बह गया कि मेरी आँखों में प्रेम के आंसुओं की बाढ़ आ गई, और मैं हलकी आवाज में रुक-२ कर रोने लगा। मैं बार-बार अपनी दाहिनी बाजू को फोल्ड करके, उससे अपनी आँखों को पोंछ रहा था, और आँखों को ढक भी रहा था। वह मैं इसलिए कर रहा था, ताकि कोई मुझे रोता हुआ जानकार अजीब न समझे, और उससे मेरे प्यार की भावना में बहने में रुकावट न पैदा हो। फिर मैंने सोचा कि उस अजनबी स्थान पर मुझे कोई नहीं पहचानता होगा। इसलिए मैं खुले दिल से जोर-जोर से रोने लगा। तभी मुझे एक लेटा हुआ भक्त सड़क पर दिखा, जो रोल होकर ऊपर की तरफ आ रहा था। वह देवी माता का कोई महान भक्त होगा। वह भी मध्यम से सांवले रंग का था। उसने खड़े होकर मुझे बड़ी-बड़ी व भावपूर्ण आँखों से देखा, और वह भी मानो भावना में बह गया। तभी मैंने देखा कि एक सांवले व ताकतवर आदमी ने एक बकरी के बच्चे को एक हाथ से सीधा अपने सिर से भी ऊपर, गले से पकड़ कर उठाया हुआ था, और उसे देवी माता की भक्ति के साथ मिश्रित क्रोध व हिंसक भाव के साथ देख रहा था। किड मिमिया रहा था। उसका दूसरा हाथ सीधा नीचे की ओर था, जिसमें उसने एक बड़ा सा खंजर पकड़ा हुआ था। वह बार-बार देवी माता का नाम ले रहा था। मैं पीछे हट कर दुकान की ओट में आ गया, ताकि वह निर्दयी दृश्य मुझे न दिखता। थोड़ी देर बाद, मैं आगे को खिसका ताकि मैं देख सकता कि क्या वहां पर किड के जुदा किए हुए धड़ और सिर थे, और चारों तरफ फैला हुआ खून था। परन्तु वहां पर सभी किड पहले की तरह ज़िंदा थे, और ख़ुशी से हिल-डुल रहे थे। उससे मैंने चैन की सांस ली, और ख़ुशी महसूस की। शायद सांकेतिक रूप में ही देवी माता को भेंट चढ़ा दी गई थी। तभी अलार्म बजा, और मेरा स्वप्न टूट गया।
उस स्वप्न से मुझे प्राचीनकाल के उन्नत तंत्र, विशेषकर काले तंत्र के बारे में स्पष्ट अनुभूति हुई। प्राचीनकाल में तंत्र एक उन्नत विज्ञान के रूप में था, और जन-जन में व्याप्त था। परन्तु उसके साथ हिंसा, व्यभिचार आदि के बहुत से दोष भी बढ़ जाते थे, विशेषतः जब उसे उचित तरीके से नहीं अपनाया जाता था। तंत्र के दुरूपयोग के कारण ही इसकी अवनति हुई। इस्लाम भी एक प्रकार का अतिवादी तंत्र ही है। यह इतना कट्टर है कि लोग इस बारे बात करने से भी कतराते हैं। इसीलिए यह जस का तस बना हुआ है। हिन्दु तंत्र में भी प्राचीनकाल में नरबली की प्रथा था, परन्तु उसका व्यापक विरोध होने पर उसे बंद कर दिया गया।
प्रेमयोगी वज्र का तंत्र सम्बंधित अपना अनुभव
उसने कुण्डलिनी के विकास के लिए किसी विशेष तंत्र का सहारा नहीं लिया। उसने वही काम किए, जो दूसरे सामान्य लोग भी करते हैं, पर उसने उन कामों को अद्वैतपूर्ण/तांत्रिक दृष्टिकोण के साथ किया। यही तरीका उचित भी है। इससे तंत्र का दुरुपयोग नहीं होता।
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