कुण्डलिनी के लिए उचित विधि से बैठना

मित्रो, कुछ दिनों पहले मुझे माता वैष्णो देवी तीर्थ जाने का सुनहरा मौका मिला। इसके बारे में महत्त्वपूर्ण बातें मैं आगे बताऊंगा। परन्तु एक बात जो मैंने नई जानी, वह समुचित विधि से बैठने के बारे में थी। उस यात्रा के दौरान मेरी कुण्डलिनी उछालें मार रही थी।

डंडे की तरह सीधी पीठ रखने को बैठने की उचित विधि नहीं कहते

पहले मैं समझा करता था कि पीठ डंडे की तरह सीधी होनी चाहिए। वास्तव में ऐसा नहीं है। पीठ में सामान्य मोड़ अपनी पूरी गहराई में रहने चाहिए। पीठ की समुचित स्थिति एक नाग की तरह होती है, जैसे की मैंने पिछली पोस्ट में विस्तार से वर्णित किया है। इसमें नाभि की सीध में, पीठ पर एक गड्ढा सा बनता है। फिर पीठ बाहर को आती हुई ऊपर जाती है। अंत में सिर का अन्दर की ओर को झुका हुआ मोड़ आता है। नाभि की सीध में पीछे, पीठ पर जितना गहरा गड्ढा बनेगा, पीठ उतनी ही अधिक सीधी मानी जाएगी। इससे इसके नीचे (हिप पर), पीठ वाले स्वाधिष्ठान चक्र पर एक खिंचाव/ऐंठन सी बनेगी, जहाँ कुण्डलिनी चमकेगी। वास्तव में ऐसी पीठ के सभी चक्रों पर कुण्डलिनी बखूबी चमकेगी। पीठ का नाग के रूप में ध्यान करने से यह खिंचाव प्रत्येक चक्र पर कुण्डलिनी के साथ प्रकट होता है। एक ऊपर की तरफ को खिंचाव भी महसूस होता है।

कार की ड्राईविंग सीट से सही ढंग से बैठने की सीख

ज्यादातर आधुनिक कारों की ड्राईविंग सीट (बकेट सीट) टाईट जैसी होती है। उसमें कम से कम जगह में शरीर को फिट करना पड़ता है। शरीरविज्ञान के अनुसार, यदि आदमी अपनी पीठ को उसके कुदरती पोस्चर में जितना अधिक ले जाएगा, उसके शरीर की मांसपेशियों की टोन (मजबूती) उतनी ही अधिक बढ़ेगी। साथ में, स्वस्थ सांस/पेट से सांस भी सुधरेगा। उससे वह छोटी सी जगह में भी अच्छी तरह से व आराम से अपने शरीर को, विशेषकर अपनी टांगों को एडजस्ट कर पाएगा।

ड्राईविंग सीट पर मेरी कुण्डलिनी

मेरे पास मध्यम आकार की कार थी। कार तो वह सर्वोत्तम थी, पर उसकी ड्राईविंग सीट मुझे कुछ टाईट लगती थी। एक कुदरती व कम्पेनसेटरी प्रक्रिया/प्रेरणा से मैं उस सीट पर अपनी पीठ सीधी रखने लगा। मैं अपनी पीठ के उपरोक्त लम्बर क्षेत्र के गड्ढे वाले स्थान पर एक फोल्ड किया हुआ तौलिया रखने लगा। उस तौलिए से उस गड्ढे को सहारा मिलता था, और गड्ढे के सुखद स्पर्श का अनुभव भी होता था। उस पिट पॉइंट पर मेरी कुण्डलिनी भरपूर चमकती थी, जो बीच-२ में सहस्रार से लेकर मूलाधार तक सभी पिछले चक्रों पर दौड़ती रहती। बहुत आनंद आता, शान्ति मिलती, और लगता कि असली ड्राईविंग वही थी। मुझे ऐसा लगता था कि मैं एक फाईटर प्लेन के कोकपिट में फिट रहता था। शुरू-२ में मुझे लगा था कि टाईट सीट वाली महँगी कार मैंने क्यों ले ली थी, पर बाद में असलियत का पता चला। संभवतः उसी सीटिंग से प्रभावित होकर मुझे कुण्डलिनी योग का अभ्यास शुरू करने की प्रेरणा मिली।

एक अच्छे कुर्सी-मेज की सहायता से अनूठा कुण्डलिनी योग

एक उचित आकार-प्रकार की कुर्सी बहुत लाभदायक होती है, जिसमें पूरी पीठ अपनी कुदरती स्थिति की पूरी गहराई में स्थिर रह सके। उसमें उचित उभार का लम्बर सपोर्ट उचित स्थान पर हो। उसमें उचित स्थान पर हेडरेस्ट हो। हेडरेस्ट लगभग गर्दन की सिधाई में सीधा ऊपर होना चाहिए। मामूली सा टिल्ट पीछे की ओर दिया जा सकता है। वास्तव में उस कुर्सी पर रखी हुई पीठ एक पण उठाए हुए नाग से पूरी तरह से मेल खाती होनी चाहिए। आर्म्स रेस्ट उस उंचाई पर होने चाहिए, जहाँ पर सीधी बाजू की कोहनी/एल्बो होती है। वे सीधे आगे की और होने चाहिए। टांगों में घुटनों की तरफ चढ़ाई होनी चाहिए, ताकि घुटनों का स्तर हिप के स्तर से अधिक उंचाई पर हो। कई लोग बोलते हैं कि इससे घुटनों में दर्द होता है। इससे बचने के लिए टांगों की स्लोप को कुछ घटाया जा सकता है, या घुटनों को एक्सरसाईज से मजबूत किया जा सकता है। टांगें आगे को नहीं फैली होनी चाहिए, क्योंकि इससे पीठ की कुदरती शेप बिगड़ती है। टांगें जितना अधिक शरीर की ओर सिकुड़ी होंगी, उतनी ही अधिक मजबूती कुदरती पीठ को मिलेगी। कार की सोच-समझ कर बनाई गई ड्राईविंग सीट बिलकुल ऐसी ही होती है। इसी आसन से आदमी सर्वाधिक सतर्क व माईंडफुल रहता है। कुण्डलिनी भी इसी आसन से मजबूत होती है। इससे यह भी सिद्ध हो जाता है कि कुण्डलिनी से आदमी सतर्क, मननशील व विकासशील बनता है।

अब मेज की बात करते हैं। अच्छा हो, अगर एडजस्टेबल हाईट का टेबल हो। टेबल इतनी ऊँचाई पर होना चाहिए ताकि पीठ की कुदरती स्थिति न बिगड़े, और उस पर रखी पुस्तक को पढ़ते समय आँखों पर भी बोझ न पड़े। यह उंचाई सीधी बाजू की कोहनी के स्तर तक होती है। कुर्सी भी एडजस्टेबल/हाईड्रोलिक हो तो ज्यादा अच्छा है।

प्रेमयोगी वज्र के साथ भी ऐसा ही अनूठा वाकया हुआ था। उपरोक्त प्रकार का कुर्सी-मेज का जोड़ा उसने एक छोटे से कमरे में फिट करवा दिया था। वह हल्का, सस्ता, कामचलाऊ, पुराने जमाने का व टिन का बना था। फिर भी उससे उसकी पीठ का उचित पोस्चर विकसित हो गया। वह दिन-रात उस पर बैठकर लगातार अध्ययन करता। उससे उसका अध्ययन भी उत्कर्ष तक पहुंचा, और उसकी कुण्डलिनी भी।

उचित पीठ से बैठने का वैज्ञानिक आधार

संभवतः कुदरती पीठ से बैठने से मेरुदंड पूर्णतः रिलेक्सड व कार्यक्षम रहता है। मेरुदंड से ही सभी संवेदनाएं ऊपर-नीचे ट्रेवल करती हैं। वैज्ञानिक तौर पर, कुण्डलिनी शरीर की सर्वोच्च संवेदना ही होती है।

Please click on this link to view this post in English (Kundalini with proper sitting posture)

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demystifyingkundalini by Premyogi vajra- प्रेमयोगी वज्र-कृत कुण्डलिनी-रहस्योद्घाटन

I am as natural as air and water. I take in hand whatever is there to work hard and make a merry. I am fond of Yoga, Tantra, Music and Cinema. मैं हवा और पानी की तरह प्राकृतिक हूं। मैं कड़ी मेहनत करने और रंगरलियाँ मनाने के लिए जो कुछ भी काम देखता हूँ, उसे हाथ में ले लेता हूं। मुझे योग, तंत्र, संगीत और सिनेमा का शौक है।

4 thoughts on “कुण्डलिनी के लिए उचित विधि से बैठना”

  1. Kindly tell me who you are. The deepest subject is dealt with you with such an ease! Are you talking nonsense! Are you a real practitioner?

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