दोस्तों, पिछली पोस्ट में मैंने ड्रीम विजिटेशन के बारे में बताया था। इस पोस्ट में मैं उससे संबंधित अपने अनुभवों के बारे में बताऊंगा।
आदमी (आत्मा) की मृत्यु नहीं होती, वह केवल रूप बदलता रहता है
आज से दो वर्ष पहले मेरी दादी जी का देहांत हो गया था। बुढ़ापा मृत्यु का मुख्य कारण रहा, हालांकि उसमें एक अनजानी सी लंबी बीमारी का भी योगदान था। यह भी संयोग ही है कि उन्हें श्वासरोग की भी समस्या थी, और कोरोना(कोविड-19) भी श्वासरोग ही फैला रहा है। बहुत से शारीरिक व मानसिक कष्टों के बीच में उन्होंने अपने प्राण छोड़े। स्वभाव से वे कोमल, भावनाप्रधान, सुखप्रधान व भीरु स्वभाव की थीं। कई बार तो वे अपनेपन की मोहमाया से ग्रस्त लगती थीं, पर वे उसे प्रेमभावना कहती थीं। दयालु, मानवतापूर्ण व ममतामयी स्वभाव की मूर्ति थीं। मेहनती थीं और अच्छे-बुरे की अच्छी परख रखती थीं। अपनों के सुख व भले के लिए चिंतित रहा करती थीं। वे बच्चों से बहुत प्यार करती थीं। बच्चों को वे जरा भीडांटने नहीं देती थीं, उन्हें गुस्से में हाथ भी लगाना तो दूर की बात रही। वे पालतु जानवरों की भी बहुत देखरेख रखती थीं। वे बहुत सोच-विचार करा करती थीं। मरने से और उसके बाद की दुर्गति से बहुत डरती थीं। उनकी मृत्यु के लगभग 15 दिन बाद मेरी उनसे सपने में मुलाकात हुई। अजीब सा शांतिपूर्ण अंधेरा था। मुट्ठी में भरने लायक घना अंधेरा था। पर आम अंधेरे के विपरीत उसमें चमक थी चमकीले काजल की तरह। वह मोहमाया या अज्ञान से दबी हुई आत्मा की स्वाभाविक चमक होती है। उस अंधेरे के रूप में भी मैं उन्हें स्पष्ट पहचान रहा था। इसका मतलब है कि उस अंधेरे में उनके रूप की एनकोडिंग थी। मतलब कि किसी आदमी की आत्मा का अंधेरा उसके गुण और रूप के अनुसार होता है। उसी अंधेरे से अगले जन्म में वही गुण और कर्म फिर से प्रकट हो जाते हैं। इसका अर्थ है कि सभी अंधेरे एक जैसे नहीं होते।
उनका वह रूप मुझे अच्छा लगा। वह आकाश की तरह पूरा खुला हुआ और विस्तृत था। वह मुझे अपनी क्षणिक आत्मज्ञान की अनुभूति की तरह लगा। परन्तु उसमें प्रकाश व आनंद वाला गुण किसी चीज के दबाने से ढका हुआ जैसा लग रहा था। शायद यही दबाव अज्ञान, आसक्ति, द्वैत, मोहमाया, कर्मसंस्कार आदि के नाम से जाना जाता है। ऐसा लगा जैसे ग्रहण काल में आसमान के आकार का सूर्य पूरा ढका हुआ हो, और नीचे का प्रकाश उस काले आसमान को कुछ अजीब सी या चमकीले काजल जैसी चमक देता हुआ बाहर की तरफ उमड़ना चाह रहा हो। इसे ही अज्ञान के पर्दे से आत्मा का ढकना कहते हैं। इसे ही अज्ञान रूपी बादल से आत्मा रूपी सूर्य का ढकना भी कहते हैं।
मैंने उनसे उनका हालचाल पूछा तो उन्होंने कहा कि वहाँ पर तो ऐसी-वैसी कोई दिक्कत नहीं थी। उन्होंने मेरा हाल पूछा तो मैंने कहा कि मैं ठीक था। उन्होंने कहा, “मैं तो वैसे ही डरती थीं कि मरने के बाद पता नहीं क्या होता होगा। पर मैं तो यहाँ ठीक हूँ”। उन्हें वह स्थिति कुछ शक के साथ पूर्ण जैसी लग रही थी, पर मुझे उसमें कमी लग रही थी। शायद वे उस स्थिति को भगवान ही समझ रही हों। शायद वह उस स्थिति के बारे में जानने के लिए मुझसे संपर्क कर रही हों। मैंने प्रसन्न मुद्रा में आसमान की तरफ ऊपर हाथ उठाकर और ऊपर देखते हुए उन्हें उनके अंत समय के निकट कहा भी था कि वे सबसे ऊपर के आकाश लोक में जाएंगी, जिसे उन्होंने गौर से व विश्वास के साथ सुना था। ऐसा मैंने उनके ऐसा पूछने पर कहा था कि उस लाईलाज बिमारी के बाद वह कहाँ जा रही थीं। उनके उस विश्वास की एक वजह यह भी थी कि मेरे दादाजी ने लगभग 25 वर्ष पहले उन्हें मेरे सामने मेरे आत्मज्ञान के बारे में प्रसन्नता व बड़े आत्मगौरव के साथ बताया था। मेरी कुंडलिनी के निर्माण में मेरे दादाजी का बहुत बड़ा योगदान रहा था।
फिर उस ड्रीम विजिटेशन में मेरी दादीजी ने मुझसे कहा, “तेरे बहुत से अहितचिंतक पीठ पीछे तेरे विरुद्ध बोल रहे हैं”। तो मैंने उनसे कहा, “आप भगवान के बहुत नजदीक हो, इसलिए कृपया उनसे स्थिति सामान्य करने के लिए प्रार्थना करो”। उन्होंने कहा, “ठीक है”। मैं उस समय प्रतिदिन कुण्डलिनी योग कर रहा था। इसका अर्थ है कि कुंडलिनी (अद्वैत) मृत्यु के बाद ईश्वर की तरफ ले जाती है।
प्रेतात्मा के द्वारा भगवान का स्मरण करना बहुत बड़ी बात है, क्योंकि उस समय वह पूरी तरह से भूखी-प्यासी व आश्रय विहीन होती है। हो सकता है कि उससे उन्हें भगवान की तरफ गति मिल गई हो। आश्चर्य की बात है कि जिस स्थान पर उन प्रेतात्मा के लिए धार्मिक रीति के अनुसार जल का कलश रखा हुआ था, वहीं पर उनसे मुलाकात हुई। वहां पर एक शिवलिंग टेलीफोन सेट का काम कर रहा था, जिसके माध्यम से उनसे बात हो रही थी। बड़ी स्पष्ट,भावपूर्ण व जीवंत आवाज थी उनकी। वह मुंह से निकली हुई आवाज नहीं थी। वह सीधी उनकी आत्मा से आ रही थी और मेरी आत्मा को छू रही थी। ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई स्विच दबा और मैं शरीर रहित आयाम में प्रविष्ट हो गया था। फिर मैंने परिवार के और सदस्यों से उनकी बात करानी चाही। पर वे लोग उन्हें मरा हुआ मान रहे थे। फिर मुझे भी उनके मरे हुए होने का भान हुआ। मैं तनिक दुखी होकर विलाप करने लगा और थोड़ा डर सा गया। उससे वह आत्मा ओझल हो गई और मैं एकदम से आत्मा के आयाम से बाहर आ गया।
प्रियजनों की आत्मा आने वाले खतरे का बोध भी करवाती है
कुछ महीनों बाद मैंने उन्हें बड़ी भयावह अवस्था में देखा। वह शायद वैसी ही स्थिति थी, जैसी उन्होंने अपनी मृत्यु के समय महसूस की होगी। मैंने उन्हें अपने पुश्तैनी घर के बरामदे में मृत रूप में जीवित बैठे देखा। वह बड़ा विचित्र व क्लेशपूर्ण अनुभव था। शायद वह मुझे अगले दिन होने वाली दुर्घटना के बारे में बताना चाह रही हों, पर बोल नहीं पा रही हों। अगले दिन मेरे कमरे की खिड़की पर एक जहरीला कोबरा सांप था, जिससे मेरा कर्मचारी बाल-बाल बच गया।
एकबार मैंने उन सूक्ष्म शरीर को फिर से भगवान की याद दिलाई
वह किसी रिश्तेदार के यहाँ आराम से सबके साथ बाहर बैठी थीं। मेरी मुलाकात होने पर मैंने उन्हें ईश्वर की याद दिलाई। वह धीरे-2 भवन के अंदर को सरक गईं और ओझल हो गईं। उनका रूप पहले से कुछ अधिक स्वच्छ लग रहा था। सूक्ष्म शरीर भगवान के तेज को ज्यादा देर सहन नहीं कर सकता।
अंतिम बार मैंने उन सूक्ष्म शरीर को बहुत निर्मल देखा
वे मेरे पुश्तैनी घर के मुख्य गेट से बरामदे में प्रविष्ट हो रही थीं। उन्होंने उज्ज्वल सफेद कपड़े पहन रखे थे। वे बहुत निर्मल, शान्त व आनन्दमयी लग रही थीं। उनसे मिल कर मेरा रोम-2 खिल उठा। उन्होंने मुझसे पूछा कि मैं कहाँ गया था। मैंने कहा कि मैं हरिद्वार गया था। हरिद्वार भगवान का सबसे बड़ा तीर्थ माना जाता है। यह विश्वप्रसिद्ध योग राजधानी ऋषिकेश के नजदीक स्थित है। वे मुस्कुराते हुए व मुझसे यह पूछते हुए भवन के अंदर प्रविष्ट हुईं कि क्या मैं उससे पहले हरिद्वार नहीं गया था। उनका पूछने का मतलब था कि मैं पहले भी तो हरिद्वार गया हुआ था।
जब मेरे चाचा का सूक्ष्म शरीर मुझे चेतवानी देने आया था
उससे कुछ समय पहले मेरे चाचा की मृत्यु हाईपर थायरेडिसम बीमारी के कारण अचानक हृदय गति रुकने से हुई थी। वे बड़े मिलनसार व सामाजिक होते थे। ड्रीम विजिटेशन में मुझे वे अपनी मित्रमण्डली के साथ होहल्ला व हंसी मजाक करते हुए एक विचित्र सी अंधेरी पर शांत गुफा के अंदर चलते मिले। मैं और मेरी 5 साल की बेटी भी कुछ अजीब, चन्द्रमा की रौशनी से मिश्रित अंधेरे वाली और आनंद वाली जगह पर कुछ सीढ़ियां चढ़ कर उनके पीछे चल दिए। गुफा के दूसरे छोर पर बहुत तेज स्वर्ग के जैसा प्रकाश था। चाचा ने मुझसे मुस्कुराते हुए अपने साथ चलने के लिए पूछा। मैंने अनहोनी की आशंका से मना कर दिया। मेरी बेटी को वह नजारा बड़ा भा रहा था, इसलिए वह उनके साथ चलने के लिए जिद करने लगी। मैंने उसे बलपूर्वक रोका और हम गुफा से बाहर वापिस लौट आए। अगले दिन मेरी कार सड़क से बाहर निकलने से बाल-2 बच गई। साथ बैठी हुई मेरी फैमिली ने मुझे समय रहते चेता दिया था।
अपरिचित की आत्मा भी ड्रीम विजिटेशन में सहायता माँग सकती है
मेरे एक रिश्तेदार के लड़के को सपने में एक मंदिर के साधु बार-2 आकर अपना अंतिम संस्कार करने के लिए कहते थे। खोजबीन करने पर पता चला कि उन साधु की हत्या हो गई थी और उनकी लाश को नाले में फेंक दिया गया था। मेरे उन रिश्तेदार ने साधु का पुतला बनवाया और उसका विधिवत अंतिम संस्कार करवाया। उसके बाद उन साधु का सपने में आना बंद हो गया। मैं उस बात पर यकीन नहीं करता था। पर अपने खुद के उपरोक्त ड्रीम विजिटेशन के अनुभव के बाद वैसी अलौकिक घटनाओं पर विश्वास होने लग गया।