योग संसार में अक्सर कहा जाता है कि योग करते समय जीभ की शिखा को मुंह के अंदर पीछे वाले नरम तालु से छुआ कर रखना चाहिए। यह प्राचीन तकनीक आज के कोरोना (कोविड-19) काल में भारी तनाव के बोझ को दूर करने के लिए अद्भुत साबित हो सकती है। आज हम इसके मनोवैज्ञानिक और शरीर वैज्ञानिक पहलुओं पर विचार करेंगे।
जीभ को तालु से छुआने से कुंडलिनी स्विच ऑन हो जाता है, जिससे कुंडलिनी परिपथ पूरा हो जाता है
मुझे पहले ऐसा विशेष महसूस नहीं होता था। परन्तु जब मुझे कुंडलिनी योग करते हुए 2-3 साल बीत गए, तब मुझे इसके महत्व का पूरा अनुभव हुआ। जब मेरी जीभ ऊपर और पीछे को मुड़कर सॉफ्ट पेलेट की मालिश करती थी, तब मुझे ऐसा लगता था कि वह मेरे दिमाग को नीचे की तरफ चूस रही थी। सॉफ्ट पेलेट एक फिसलन भरे नरम गद्दे की तरह लगा, जिस पर जीभ को उरे-परे फिसलाने से बड़ी सुखद अनुभूति हुई। फिर दिमाग के रस के साथ मेरी कुण्डलिनी भी जीभ के पीछे से होती हुई नीचे गले तक उतर गई। वहां से अनाहत चक्र, फिर मणिपुर चक्र, और अंत में स्वाधिस्ठानचक्र-मूलाधार चक्र पर पहुंच कर सांसों की शक्ति से पीछे से ऊपर की ओर चली गयी। रीढ़ की हड्डी से होते हुए सभी चक्रों को भेदते हुए वह फिर मस्तिष्क तक पहुंच गई। वहां से फिर जीभ से होकर नीचे आ गई। इस तरह से कुंडलिनी परिपथ चालू हो गया, और कुंडलिनी पूरे शरीर में गोल-गोल घूमने लगी। इस प्रक्रिया में शरीर की सेंटरिंग (केन्द्रीकरण) का भी योगदान होता है, जिसका जिक्र हम आने वाली पोस्टों में करेंगे।
कुण्डलिनी स्विच के ऑन होने से दिमाग में हल्कापन महसूस होता है
जैसे ही कुंडलिनी स्विच से होकर मेरे दिमाग का रस या बोझ (कुंडलिनी) नीचे उतरा, वैसे ही मेरा दिमाग एकदम हल्का व शांत हो गया। जब कुंडलिनी पीछे से चढ़कर दिमाग तक पहुंची, दिमाग फिर भारी हो गया।इस तरह वह भारी-हल्का होता रहा और शक्ति पूरे शरीर में घूमने लगी।
खेचरी मुद्रा और माइक्रोकोस्मिक ऑर्बिट में जीभ को तालु से छुआया जाता है
बहुत से लोग सोचते हैं कि माइक्रोकोस्मिक ऑर्बिट में ही कुंडलिनी स्विच का वर्णन है, तथा उसने ही कुंडलिनी योग को पूर्ण किया। उससे पहले कुंडलिनी योग से कुण्डलिनी दिमाग में अटकी रहती थी और दिमागी परेशानियां पैदा करती थी। वास्तव में योग की खेचरी मुद्रा में कुंडलिनी स्विच का विस्तार से वर्णन है। उसमें तो जीभ के जोड़ को काटकर जीभ को इतना लंबा कर दिया जाता है कि वह पीछे मुड़कर नाक को जाने वाले सुराख में घुस जाती है। उससे कुंडलिनी स्विच परमानेंटली ऑन हो जाता है, जिससे योगी हमेशा कुंडलिनी के आनंद में झूमने लगता है। यद्यपि इस तरीके को करने की सलाह नहीं दी जाती, क्योंकि इससे स्वास्थ्य व जीवन शैली को भारी जोखिम उठाना पड़ सकता है।
माइक्रोकोस्मिक ऑर्बिट व कुंडलिनी योग भिन्न-2 परिस्थितियों के लिए हैं
कुंडलिनी जागरण दिमाग में ही होता है, अन्य चक्रों में नहीं। इसलिए यह सिद्ध है कि कुंडलिनी योगी को जल्दी कुंडलिनी जागरण होता था। प्राचीन भारत में बहुत शांतिपूर्ण और आरामदायक जीवनशैली होती थी। वातावरण व जलवायु भी विश्व में सर्वोत्तम होते थे। इसलिए वहां के योगी अपने दिमाग में कुंडलिनी का बोझ अच्छी तरह से झेल लेते थे। अधिकांश योगियों को कुंडलिनी स्विच की जरूरत ही नहीं पड़ती थी। मुझे भी कुंडलिनी जागरण के लिए इसकी जरूरत नहीं पड़ी थी।पर आज मैं इसकी जरूरत महसूस करता हूँ, क्योंकि अब मेरे दिमाग में दूसरे कामों का बोझ बढ़ गया है।
कुंडलिनी स्विच से बहुत से स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं
सुबह-2 जब कई बार मेरा बॉवेल प्रेशर नहीँ बनता, तब मैं कुंडलिनी योग के बाद कुंडलिनी स्विच को ऑन करता हूँ। मैं कुंडलिनी का परिपथ नाभि चक्र तक बनाता हूँ। कुंडलिनी आगे के नाभि चक्र से पीछे घुसती है और पीछे वाले नाभि चक्र से होकर ऊपर चढ़ जाती है। जल्दी ही मेरी अंतड़ियों में हलचल शुरु हो जाती है, और मेरा पेट साफ हो जाता है।
कुण्डलिनी स्विच के पीछे छिपा हुआ शरीर विज्ञान
खाना खाते समय हमारी जीभ बार-2 तालु को छूती है। उससे दिमाग की ऊर्जा जीभ के रास्ते से होकर नाभि चक्र तक पहुंच कर खाना पचाने में मदद करती है। इसीलिए खाना खाने के बाद रक्तचाप भी कम हो जाता है, और आदमी दिमाग में हल्कापन महसूस करता है।
एम्ब्रोसिया, नेक्टर, अमृत, एलिकसिर ऑफ़ गॉड, लव पोशन, सीएसएफ आदि नाम कुण्डलिनी स्विच से जुड़े हैं
कुछ अभ्यास के बाद मैंने सॉफ्ट पेलेट से एक मीठा-नमकीन व जैली जैसा रस चखा। वह आनंद के साथ दिमाग का बोझ घटने से पैदा होता है। उसे उपरोक्त नामों से भी जाना जाता है।