दोस्तों, मैं इस पोस्ट में कुंडलिनी से जुड़ा हुआ सबसे बड़ा रहस्य उजागर करने जा रहा हूँ। योग साधना से जिस चीज को बढ़ाया जाता है, उसको भिन्न-2 स्थानों पर भिन्न-2 नाम दिए गए हैं। कहीं इसे ऊर्जा, कहीं पर संवेदना, कहीं पर प्रकाश, और कहीं पर कुंडलिनी कहा जाता है। वास्तव में ये सभी नाम सही हैं। ये सभी नाम एक ही साधना का वर्णन ऐसे कर रहे हैं, जैसे बहुत से अंधे एक हाथी का वर्णन उसके एक-2 अंग से करते हैं।
संवेदना-ऊर्जा के ऊर्ध्वगमन का मेरा अपना अनुभव
मैंने पिछली पोस्ट में बताया था कि भावनात्मक सदमे से कैसे मेरी संवेदना-ऊर्जा मूलाधार से सहस्रार तक लगातार प्रवाहित हो रही थी। सहस्रार मस्तिष्क के बीचोंबीच या यूँ कहो कि चोटी बांधने वाले स्थान से तीन अंगुल आगे की तरफ एक बिंदु रूप में था। वहां पर वैसे भी दबाने पर एक संवेदनात्मक अनुभूति होती है। वह गर्दन की सतह के बीचोंबीच होती हुई एक सीधी रेखा में सहस्रार तक जा रही थी, सिर के करवेचर के साथ नहीं मुड़ रही थी। मतलब कि वह सिर की सतह के साथ लहर न खाकर उसके बीच में से घुसकर ऊपर जा रही थी। ओर वह प्रकाशमान ऊर्जा एक पुल की तरह लग रही थी, जो इन दोनों चक्रों को आपस में जोड़ रही थी। इसका अर्थ है कि मेरी सुषुम्ना नाड़ी खुल गई थी। वास्तव में यह ऊर्जा एक खारिश की अनुभूति जैसी ही साधारण सेंसेशन थी, पर बहुत घनीभूत थी। मैं पहले ऐसे ऊर्जा चैनेल पर कम ही विश्वास करता था, पर इस अनुभव से मेरा विश्वास पक्का हो गया। यह ऊर्जा प्रवाह लगभग 10 सेकेंड तक बना रहा, जिसके दौरान मुझे एक अति प्रकाशमान मंदिर का साक्षात अनुभव हुआ। जैसे कि मैं उस मंदिर से जुड़कर एकाकार हो गया था। फिर मेरी कुंडलिनी मेरे उस अनुभव क्षेत्र में आई, और मैं उससे एकाकार हो गया। यद्यपि यह पूर्ण एकाकार नहीं था। अर्थात यह खंडित या अल्प कुंडलिनी जागरण था, पूर्ण नहीं। सम्भवतः ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मेरी सुषुम्ना पूरी तरह नहीं खुली थी, और ज्यादा समय तक खुली नहीं रही।
कुंडलिनी से एकाकार होने के अतिरिक्त लाभ
जिस समय संवेदना ऊर्जा मूलाधार से सहस्रार तक सुषुम्ना नाड़ी से प्रवाहित हो रही हो, उस समय जो मानसिक चित्र बनता है, वह उतना तीव्र व स्पष्ट होता है कि आदमी उससे जुड़कर एकाकार हो जाता है। उससे आदमी को जीवन का वह सबसे बड़ा सुख मिलता है, जो कि सम्भव है। उससे आदमी संतुष्ट हो जाता है। उससे वह जीवन के प्रति अनासक्त होकर अद्वैतशील बन जाता है। उससे उसके मन में कुंडलिनी का बसेरा हो जाता है, क्योंकि अद्वैत के साथ कुंडलिनी सदैव रहती है। यदि आदमी पहले से ही कुंडलिनी साधना कर रहा हो, तब सुषुम्ना प्रवाह के दौरान अन्य चित्रों की बजाय कुंडलिनी का चित्र बनता है, और उससे आदमी एकाकार हो जाता है। इससे कुंडलिनी को अतिरिक्त शक्ति मिल जाती है। यदि प्रारंभ से ही संवेदना के साथ कुंडलिनी को जोड़ा जाता रहे, तब दोनों एक दूसरे को बढ़ाते रहते हैं। सुषुम्ना प्रवाह के दौरान जब कुंडलिनी मेरे मन में आई, तब मुझे उसके साथ मंदिर से अधिक जुड़ाव महसूस हुआ। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि रोज के कुंडलिनी ध्यान से मैं कुंडलिनी के साथ जीने का अभ्यस्त हो गया था। इन बातों से सिद्ध होता है कि सम्पूर्ण साधना कुंडलिनी योग ही है।
यदि चक्र अवरोधित न हों, तो सुषुम्ना के ऊर्जा प्रवाह के अनुभव के बिना ही कुंडलिनी जागरण होता है, और वह जागरण संपूर्ण होता है
उपरोक्त तथ्य को सिद्ध करने के लिए मैं अपना ही उदाहरण देता हूँ। अपने आत्मज्ञान के अनुभव के दौरान मैं सपने में दिख रहे दृश्य के साथ एकाकार हुआ था, किसी विशेष कुंडलिनी चित्र के साथ नहीं। परंतु उसके बाद मेरी वह महिला मित्र कुंडलिनी के रूप में मेरे मन में दृढ़ता से संलग्न हो गई थी, जिसकी सर्वाधिक सहायता से मैं उस आत्मज्ञान के अनुभव तक पहुंचा था।
उसके कई वर्षों बाद मैं कुंडलिनी साधना करने लगा। मैंने उन्हीं वृद्ध आध्यात्मिक पुरुष को अपनी कुंडलिनी बनाया हुआ था। उस दौरान जब मेरी सुषुम्ना खुली और उसमें ऊर्जा का प्रवाह हुआ (यद्यपि मुझे वह प्रवाह अनुभव नहीं हुआ, क्योंकि मेरे सभी चक्र अनब्लॉक थे, इसी वजह से वह जागरण संपूर्ण था, यद्यपि मैंने डर कर उसे एकदम नीचे उतार दिया), तब कुंडलिनी चित्र मेरे मन में प्रकट हुआ और मैं उससे पूरी तरह से एकाकार हो गया। हालांकि बैकग्राउंड के अन्य दृष्यों से भी मैं एकाकार ही था, पर मुख्य तो कुंडलिनी ही थी। इसी तरह, आत्मज्ञान के समय भी मुझे पीठ में एनर्जी फलो का भान नहीं हुआ, इसीलिए वह जागरण भी पूर्ण शक्तिशाली लग रहा था।
विशेष प्रकार का श्वास होने पर ही सुषुम्ना नाड़ी खुलती है
कहते हैं कि जब श्वास डायफ्रागमेटिक अर्थात एब्डोमिनल, गहरी, धीमी और बिना आवाज के चले; तभी सुषुम्ना के खुलने की ज्यादा संभावना होती है। मेरे भावनात्मक सदमे के दौरान मेरी सांसें बिल्कुल ऐसी ही हो गई थीं। इसीसे मेरी सुषुम्ना नाड़ी खुली। इससे यह जनप्रचलित बात सिद्ध हो जाती है कि सांसों के नियमन से ही योग होता है।
सुषुम्ना के थ्रू एनर्जी राईज के लिए मूलाधार और सहस्रार चक्र के बीच में बहुत ज्यादा विभवांतर अर्थात पोटेंशियल डिफरेंस पैदा होना चाहिए
भावनात्मक सदमे से ये फायदा हुआ कि मेरा मस्तिष्क फुली डिस्चार्ज होकर नेगेटिव पोटेंशियल में आ गया था। मूलाधार तांत्रिक योगसाधना के कारण फुली पोसिटिव पोटेंशियल में था। इससे मूलाधार और सहस्रार के बीच में बहुत ज्यादा पोटेंशियल डिफरेंस पैदा हुआ। इससे मूलाधार और सहस्रार के बीच में सेंसेशनल इलेक्ट्रिक स्पार्क पैदा हुआ, जिसे हम एनर्जी राइज कह रहे हैं।
और हां, पूर्व पोस्ट में जिस मित्र से मुझे भावनात्मक सदमा मिला था, उससे प्यारा समझौता हो गया है। सप्रेम।