दोस्तों, आजकल असफल प्रेम के मामले बढ़ते जा रहे हैं। इसकी मुख्य वजह अविश्वास, भावनाओं की बेकद्री, रिश्तों में गलतफहमियां, स्वार्थ व धोखेबाजी आदि मानव स्वभाव की बुराइयां हैं। असफल प्रेम का सदमा आदमी के पूरे शरीर व मन को झकझोरने वाला होता है। इससे बचने के लिए कुंडलिनी योग एक सर्वोत्तम साधन है। इसलिए आजकल सभी को कुंडलिनी योग करना चाहिए, क्योंकि किसी न किसी रूप में सभी लोग प्रेम के सताए हुए हैं।
प्रेमी का शरीर आदमी के चक्रों में बस जाता है
आदमी का अपने प्रेमी के साथ बहुत गहरा जुड़ाव पैदा हो जाता है। प्रेमी का आदमी के मन में लगातार स्मरण बना रहता है। भोजन करते समय स्मरण से प्रेमी का शरीर आदमी के आगे के तालु, विशुद्धि, अनाहत और मणिपुर चक्रों पर बस जाता है। भावनामय होने पर वह अनाहत चक्र पर मजबूत हो जाता है। यौन उत्तेजना होने पर वह मन से नीचे उतरकर स्वाधिष्ठान व मूलाधार चक्रों पर आ जाता है। वहाँ से वह मेरुदंड से ऊपर चढ़कर फिर से मस्तिष्क के सहस्रार चक्र में पहुंच जाता है। इससे आदमी के पीछे वाले चक्रों पर भी वह चित्र स्थापित हो जाता है। गहन चिंतन करते समय प्रेमी का चित्र आज्ञा चक्र में पहुंच जाता है। एक प्रकार से प्रेमी का चित्र कुंडलिनी बन जाता है, और कुंडलिनी योग अनजाने में ही चलता रहता है। यह प्रक्रिया बहुत धीमी और कुदरती होती है, इसलिए इसका आभास भी नहीं होता और प्रेमी का चित्र भी बहुत ज्यादा मजबूती से शरीर के सभी चक्रों पर जम जाता है।
कुंडलिनी योग से बनी हुई बनावटी कुंडलिनी प्रेमी के चित्र को रिप्लेस कर देती है
गुरु या देव रूप की कृत्रिम कुंडलिनी को प्रतिदिन के कुंडलिनी योग अभ्यास से चक्रों पर दृढ़ कर दिया जाता है। इससे प्रेमी के रूप वाली कुदरती कुंडलिनी चक्रों से हटने लगती है। इससे आदमी को असफल प्रेम के सदमे से राहत मिलती है। साथ में, कुंडलिनी योगी भविष्य के लिए भी असफल प्रेम के सदमे से सुरक्षित हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि उसके चक्रों पर बनावटी कुंडलिनी पहले से ही डेरा डाले हुए होती है। इससे वहाँ पर प्रेम की कुदरती कुंडलिनी अपना डेरा नहीं जमा पाती।
यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि कृत्रिम कुंडलिनी योग करते समय प्रेमी की छवि का भी कुंडलिनी के रूप में ध्यान किया जा सकता है। हालांकि, कुंडलिनी के कमजोर होने और कई सामाजिक समस्याओं से बचने के लिए प्रेमी के संबंध में उचित शारीरिक संयम रखा जाना चाहिए। जब प्रेमी की छवि का मन में पूर्ण प्रदर्शन हो जाता है तब वह संतुष्ट हो जाता है, जिससे प्रेमी के लिए वासना या लालसा स्वयं ही घट जाती है। इसके बाद, कुंडलिनी भी कमजोर हो जाती है। यह प्रक्रिया उस कुंडलिनी के जागरण या अन्य कुंडलिनी, मुख्य रूप से गुरु या देवता के मानसिक रूप के त्वरित विकास व जागरण के लिए अहम भूमिका प्रदान करती है।
असफल प्रेम से उत्पन्न सदमे के इलाज के लिए और उससे बचाव के लिए हिंदी में लिखित पुस्तक “शरीरविज्ञान दर्शन- एक आधुनिक कुंडलिनी तंत्र (एक योगी की प्रेमकथा)” सर्वोत्तम प्रतीत होती है।
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