जहाँ भी देखो वहीं दक्ष हैं। अहंकार से भरे हुए अपने-अपने पक्ष हैं। कोई याग-यज्ञ में डूबा कोई दुनिया का अजूबा। कोई बिजनेसमेन बना है हड़प के बैठा पूरा सूबा। एक नहीँ धंधे लक्ष हैं जहां भी देखो वहीँ दक्ष हैं। अहंकार से भरे हुए अपने-अपने पक्ष हैं। कर्म-मार्ग में रचे-पचे हैं राग-रागिनी खूब मचे हैं। नाम-निशान नहीं है सती का शिव भी उस बिन नहीं जचे हैं। अंधियारे से भरे कक्ष हैं जहां भी देखो वहीँ दक्ष हैं। अहंकार से भरे हुए अपने-अपने पक्ष हैं। ढोंग दिखावा अंतहीन है मन की निष्ठा अति महीन है। फल पीछे लट्टू हो रहते फलदाता को झूठा कहते। चमकाते बस नयन नक्श हैं जहां भी देखो वहीँ दक्ष हैं। अहंकार से भरे हुए अपने-अपने पक्ष हैं। प्रेम-घृणा का झूला झूले दर्शन वेद पुराण का भूले। बाहु-बली नहीं कोई भी नभ के पार जो उसको छू ले। शिवप्रकोप से न सरक्ष हैं जहाँ भी देखो वहीँ दक्ष हैं। अहंकार से भरे हुए अपने-अपने पक्ष हैं। ~भीष्म🙏
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बहुत ख़ूब। निवेदन है कि अपने अनुभव से इस सबसे आपकी मुक्ति का मार्ग भी शामिल करें ताकि शिकायत के साथ सुझाव का सही तालमेल बने, और लोग लाभान्वित हो सकें हमारे अनुभव से।
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जी महोदय जरूर। दिव्य दृष्टि सम्पन्न लगते हैं जो हमारे अनुभव को जान गए। शिव कृपा व गुरु कृपा से हैं थोड़े से, जो इस वेबसाइट में हैं। इनमें सर्वोत्तम पुस्तक शरीरविज्ञान दर्शन लगती है मुझे। धन्यवाद
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