ज्ञानीजन कहते दुनिया में
ऐसा कलियुग आता है।
हँस चुगे जब दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानी-ध्यानी ओझल रहते
काल-सरित के संग न बहते।
शक्ति-हीनता के दोषों को
काल के ऊपर मढ़ते रहते।
मस्तक को अपने बलबूते
बाहुबली झुकाता है।
हँस चुगे जब दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
खूब तरक्की है जो करता
नजरों में भी है वो खटकता।
होय पलायित बच जाता या
दूर सफर का टिकट है कटता।
अच्छा काम करे जो कोई
वो दुनिया से जाता है।
हँस चुगे जब दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
अपनी डफली राग भी अपना
हर इक गाना गाता है।
कोई भूखा सोए कोई
धाम में अन्न बहाता है।
दूध उबाले जो भी कोई
वही मलाई खाता है।
हँस चुगे जब दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
संघे शक्ति कली-युगे यह
नारा सबको भाता है।
बोल-बोल कर सौ-दफा हर
सच्ची बात छुपाता है।
भीड़ झुंड बन चले जो कोई
वही शिकार को पाता है।
हँस चुगे जब दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
जितने ढाबे उतने बाबे
हर-इक बाबा बनता है।
लाठी जिसकी भैंस भी उसकी
मूरख बनती जनता है।
शून्य परीक्षा हर इक अपनी
पीठ को थप-थपाता है।
हँस चुगे जब दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
करतब-बोध का ठेका देता
कोई भी तब पेन न लेता।
मेल-जोल से बात दूर की
अपना भी न रहता चेता।
हर इक अपना पल्ला झाड़े
लदे पे माल चढ़ाता है।
हँस चुगे जब दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
शिष्टाचार किताबी होता
नौटँकी खिताबी होता।
भीतर वाला सोया होता
सर्व-धरम में खोया होता।
घर के भीतर सेंध लगाकर
घरवाले को भगाता है।
हँस चुगे जब दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
मेहनत करे किसान बिपारी
खूब मुनाफा पाता है।
बैठ-बिठाय सिंहासन पर वो
पैसा खूब कमाता है।
देकर करज किसानों को वह
अपना नाच नचाता है।
हँस चुगे जब दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
जात-धरम को ऊपर रख कर
हक अपना जतलाता है।
शिक्षा-दीक्षा नीचे रख कर
शोषित वह कहलाता है।
निर्धन निर्धनता को पाए
पैसे वाला छाता है।
हँस चुगे जब दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
साभार~@bhishmsharma95🙏
गाने के लिए उपयुक्त वैकल्पिक रचना (मामूली परिवर्तन के साथ)~हँस चुगे है दाना-दुनका, कवूआ मोती खाता है
ज्ञानीजन कहते जगत में
ऐसा कलियुग आता है।
हँस चुगे है दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानी-ध्यानी ओझल रहते
काल-सरित तट रहते हैं।
शक्ति-हीनता के दोषों को
काल के ऊपर मढ़ते हैं।
मस्तक को अपने बलबूते-2
बाहु-बली झुकाता है।
हँस चुगे है दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
खूब तरक्की करता है जो
आँखों में वो खटकता है।
होय पलायित बच जाता जां
दूर-टिकट तब कटता है।
अच्छा काम करे जो कोई-2
वो दुनिया से जाता है।
हँस चुगे है दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
अपनी डफली राग भी अपना
हर इक गाना गाता है।
कोई भूखा सोए कोई
धाम में अन्न बहाता है।
दूध उबाले है जो कोई-2
वो ही मलाई खाता है।
हँस चुगे है दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
संघे शकती कली-युगे यह
नारा सबको भाता है।
बोल-बोल के सौ-दफा हर
सच्ची बात छुपाता है।
भीड़-झुंड चलता जो कोई-2
वो ही शिकारी पाता है।
हँस चुगे है दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
जितने ढाबे उतने बाबे
हर-इक बाबा बनता है।
लाठी जिसकी भैंस भी उसकी
मूरख बनती जनता है।
शून्य परीक्षा हर इक अपनी-2
पीठ को थप-थपाता है।
हँस चुगे है दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
करतब का ठेका देता है
पेन न कोई लेता है।
मेल-जोल से बात दूर की
अपना भी न चेता है।
हर इक अपना पल्ला झाड़े-2
लदे पे माल चढ़ाता है।
हँस चुगे है दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
शिष्टाचार किताबी होता
नौटँकी व खिताबी है।
भीतर वाला सोया होता
सर्व-धरम में खोया है।
घर के भीतर सेंध लगाकर-2
घरवाले को भगाता है।
हँस चुगे है दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
मेहनत करे किसान बिपारी
पैसा खूब कमाता है।
बैठ-बिठाय सिंहासन पर वो
खूब मुनाफा पाता है।
देकर करज किसानों को वो-2
अपना नाच नचाता है।
हँस चुगे है दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
जात-धरम को ऊपर रख कर
हक अपना जतलाता है।
शिक्षा-दीक्षा नीचे रख कर
शोषित वह कहलाता है।
निरधन निरधनता को पाए-2
पैसे वाला छाता है।
हँस चुगे है दाना-दुनका
कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानीजन----
ए जी रे---
ए जी रे---
धुन प्रकार~रामचंद्र कह गए सिया से, ऐसा कलियुग आएगा---
साभार~@bhishmsharma95🙏
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