अब तो पुष्प खिलने दो
अब तो सूरज उगने दो।
भौँरा प्यासा घूम रहा
हाथी पगला झूम रहा।
पक्षी दाना चौँच में लेके
मुँह बच्चे का चूम रहा।
उठ अंगड़ाई भरभर के अब
नन्हें को भी जगने दो।
अब तो पुष्प--
युगों युगों तक घुटन में जीता
बंद कली बन रहता था।
अपना असली रूप न पाकर
पवनवेग सँग बहता था।
मिट्टी खाद भरे पानी सँग
अब तो शक्ति जगने दो।
अब तो पुष्प ---
लाखों बार उगा था पाकर
उपजाऊ मिट्टी काया।
कंटीले झाड़ों ने रोका या
पेड़ों ने बन छाया।
खिलते खिलते तोड़ ले गया
जिसके भी मन को भाया।
हाथी जैसे अभिमानी ने
बहुत दफा तोड़ा खाया।
अब तो इसको बेझिझकी से
अपनी मंजिल भजने दो।
अब तो पुष्प--
अबकी बार न खिल पाया तो
देर बहुत हो जाएगी।
मानव के हठधर्म से धरती
न जीवन दे पाएगी।
करो या मरो भाव से इसको
अपने काम में लगने दो।
अब तो पुष्प --
मौका मिला अगर फिर भी तो
युगों का होगा इंत-जार।
धीमी गति बहुत खिलने की
एक नहीं पंखुड़ी हजार।
प्रतिस्पर्धा भी बहुत है क्योंकि
पूरी सृष्टि खुला बजार।
बीज असीमित पुष्प असीमित
चढ़ते मंदिर और मजार।
पाखण्डों ढोंगों से इसको
सच की ओर भगने दो।
अब तो पुष्प खिलने दो
अब तो सूरज उगने दो।
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