कुंडलिनी योग दर्शन को दर्शाती कार्टून फ़िल्म राया एंड द लास्ट ड्रेगन

सभी को श्री गुरु नानकदेव के प्रकाश पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं

दोस्तों, मैं पिछली पोस्टों में ड्रेगन के कुंडलिनी प्रभावों के बारे में बात कर रहा था। इसी कड़ी में मुझे एनीमेशन मूवी राया एंड द लास्ट ड्रेगन देखने का मौका मिला। इसमें मुझे एक सम्पूर्ण योगदर्शन नजर आया। अब यह पता नहीं कि क्या इस फ़िल्म को बनाते समय योगदर्शन की भी किसी न किसी रूप में मदद ली गई या मुझे ही इसमें नजर आया है। जहाँ तक मैंने गूगल पर सर्च किया तो पता चला कि दक्षिण पूर्वी एशियाई (थाईलैंड आदि देश) जनजीवन से इसके लिए प्रेरणा ली गई है, किसी योग वगैरह से नहीं। थाईलैंड में वैसे भी योग काफी लोकप्रिय हो गया है। इसमें एक ड्रेगन शेप की नदी या दुनिया होती है। उसमें एक हर्ट नामक कुमान्द्रा लैंड होती है। वहाँ सब मिलजुल कर रहते हैं। हर जगह ड्रेगन्स का बोलबाला होता है। ड्रेगन सबको ड्रन अर्थात बवंडर नामक पापी राक्षस से बचाती है। ड्रन लोगों की आत्मा को चूसकर उन्हें निर्जीव पत्थर बना देते हैं। ड्रेगन उन ड्रन राक्षसों से लड़ते हुए नष्ट हो जाती हैं। फिर पांच सौ साल बाद वे ड्रन फिर से हमला कर देते हैं। हर्ट लैंड के पास ड्रेगन का बनाया हुआ रत्न होता है, जो ड्रन से बचाता है। वह पत्थर बने आदमी को तो जिन्दा कर सकता है, पर पत्थर बनी ड्रेगनस को नहीं। दूरपार के कबीले उस रत्न की प्राप्ति के लिए हर्ट लैंड के कबीले से अलग होकर नदी के विभिन्न भागों में बस जाते हैं। उन कबीलों के नाम होते हैं, टेल, टेलन, स्पाइन और फैंग। टेलन ट्राइब ने तो ड्रन से बचने के लिए अपने घर नदी पे बनाए होते हैं। दरअसल पानी में ड्रेगन का असर नहीं होता है, जिससे ड्रन वहाँ नहीं पहुंच पाता। हर्ट कबीले का मुखिया बैंज चाहता है कि सभी कबीले इकट्ठे होकर समझौता कर के फिर से कुमान्द्रा बना ले, जिसमें सभी मिलजुल कर ड्रन से सुरक्षित रहें। इसलिए वह समारोह का आयोजन करता है जिसमें वह सभी कबीलों को बुलाता है। वहाँ फैंग कबीले का एक बच्चा बैंज की बेटी राया को धोखा देकर सभी कबीलों के लोगों को रत्न तक पहुंचा देती है। वे सभी रत्न के लिए आपस में लड़ने लगते हैं। इससे रत्न पांच टुकड़ों में टूट जाता है। हरेक कबीले के हाथ एक-एक टुकड़ा लगता है। रत्न के टूटने से ड्रन सब पर हमला कर देता है। सब जान बचाने को इधर-उधर भागते हैं। बैंज भी पुल पर खड़े होकर रत्न का टुकड़ा अपनी बेटी को देकर यह कहते हुए उसे नदी में धक्का देता है कि वह कुमान्द्रा बना ले और वह खुद ड्रन के हमले से पत्थर बन जाता है। छः सालों बाद राया नदी का किनारा ढूंढने किश्ती में जा रही होती है ताकि अंतिम ड्रेगन सिसू कहीं मिल जाए। उसे वह रेगिस्तान जैसे टेल कबीले के नजदीक अचानक मिलती है। सिसू उसे बताती है कि वह रत्न उसके भाई बहिनों ने बनाकर उसे सौम्पा था, उसपर विश्वास करके। वह पाती है कि जब वह एक टुकड़ा रखती है तो वह अपनी शक्तियों का उपयोग कर सकती है। हरेक टुकड़ा उसकी अलग किस्म की शक्ति को क्रियाशील करता है। वह सिसू की मदद से वहाँ के मंदिर में रत्न का दूसरा टुकड़ा ढूंढ लेती है। इससे सिसू ड्रेगन को आदमी के रूप में आने की शक्ति मिल जाती है। फिर फैंग कबीले से बचते हुए वे स्पाइन कबीले में पहुंचते हैं। इस यात्रा में राया को पांच छः दोस्त भी मिल जाते हैं, जिनमें कोई तो बच्चे की तरह तो कोई बंदर की तरह और कोई मूर्ख जैसा होता है, हालांकि सभी ताकतवर होते हैं। शक्तिशाली फैंग कबीले की राजकुमारी नमारी से सिसू लड़ना नहीं चाहती, और उसे तोहफा देकर समझाना चाहती है। जब सिसू उसे रत्न के टुकड़े दिखा रही होती है, तब नमारी धोखे से उसपर तीरकमान साध लेती है। डर के मारे राया उसपर जैसे ही तलवार से हमला करने लगती है, वह वैसे ही तीर चला देती है, जिससे सिसू मरकर नदी में गिर जाती है। सारा पानी सूखने लगता है और ड्रन के हमले एकदम से बढ़ जाते हैं। राया के सभी दोस्त और नमारी भी अपने-अपने रत्न के टुकड़े से ड्रन को भगाने लगते हैं, पर कब तक। वे टुकड़े भाप में गायब हो रहे होते हैं। तभी राया को सिसू की बात याद आती है कि रत्न के टुकड़े जोड़ने के लिए विश्वास भी जरूरी है। इसलिए वह नमारी को रत्न का टुकड़ा थमाती है, और खुद पत्थर बन जाती है। राया को देखकर उसके दोस्त भी नमारी को टुकड़े सौम्प कर खुद पत्थर बन जाते हैं। अंत में नमारी भी अपना टुकड़ा उनमें जोड़कर खुद भी पत्थर बन जाती है। रत्न पूरा होने पर चारों ओर प्रकाश छा जाता है, राया के पिता बैंज समेत सभी पत्थर बने लोग जिन्दा हो जाते हैं। सभी पत्थर बनी ड्रेगन्स भी जिन्दा हो जाती हैं। कुमान्द्रा वापिस लौट आता है, और सभी लोग फिर से मिलजुल कर रहने लगते हैं।

राया एन्ड द लास्ट ड्रेगन का कुंडलिनी-आधारित स्पष्टीकरण

यह चाइनीस ड्रेगन कम और कुंडलिनी तंत्र वाला नाग ज्यादा है। यही सुषुम्ना नाड़ी है। मैं पिछली एक पोस्ट में बता रहा था कि दोनों एक ही हैं, और कुंडलिनी शक्ति को रूपांकित करते हैं। वह रीढ़ की हड्डी जैसे आकार का है, और पानी में मतलब स्पाइनल कॉर्ड के सेरेबरोस्पाइनल फ्लूड में रहता है। मेरुदण्ड में कुंडलिनी शक्ति के प्रवाह से ड्रन-रूपी या पापरूपी बुरे विचार दूर रहते हैं। कुमान्द्रा वह देह-देश है, जिसमें सभी किस्म के भाव अर्थात लोग मिलजुल कर रहते हैं। विभिन्न चक्र ही विभिन्न कबालई क्षेत्र हैं, और उन चक्रोँ पर स्थित विभिन्न मानसिक भाव व विचार ही विभिन्न कबालई लोग हैँ। कुमान्द्रा दरअसल कुंडलिनी योग की अवस्था है, जिसमें सभी चक्रोँ पर कुंडलिनी शक्ति अर्थात ड्रेगन को एकसाथ घुमाया जाता है। हरेक चक्र के योगदान से इस कुंडलिनी शक्ति से एक कुंडलिनी चित्र अर्थात ध्यान चित्र चमकने लगता है। यह कभी किसी चक्र पर तो कभी किसी दूसरे चक्र पर प्रकट होता रहता है। यही वह रत्न है जो द्वैत रूपी ड्रन से बचाता है। आदमी ने उस कुंडलिनी चित्र को केवल अपने हृदय में धारण किया हुआ था। मतलब आदमी साधारण राजयोगी की तरह था, तांत्रिक कुंडलिनी योगी की तरह नहीं। इससे हर्ट लैंड के लोग मतलब हृदय की कोशिकाएं तो शक्ति से भरी थीं, पर अन्य चक्रोँ से संबंधित अंग शक्ति की कमी से जूझ रहे थे। इसलिए स्वाभाविक है कि वे हर्ट कबीले से शक्तिस्रोत रत्न को चुराने का प्रयास कर रहे थे। एकबार हर्टलैंड के मुखिया बैंज मतलब जीवात्मा ने सभी लोगों को दावत पे बुलाया मतलब सभी चक्रोँ का सच्चे मन से ध्यान किया। पर उन्होंने मिलजुल कर रहने की अपेक्षा छीनाझपटी की और रत्न को तोड़ दिया, मतलब कि आदमी ने निरंतर के तांत्रिक कुंडलिनी योग के अभ्यास से सभी चक्रोँ को एकसाथ कुंडलिनी शक्ति नहीं दी, सिर्फ एकबार ध्यान किया या सिर्फ साधारण अर्थात अल्पप्रभावी कुंडलिनी योग किया। इससे स्वाभाविक है कि शक्ति तो चक्रोँ के बीच में बंट गई, पर कुंडलिनी चित्र गायब हो गया, मतलब वह निराकार शक्ति के रूप में सभी पांचोँ मुख्य चक्रोँ पर स्थित हो गया अर्थात रत्न पांच टुकड़ों में टूट गया और एक टुकड़ा हरेक कबीले के पास चला गया। इस शक्ति से सभी चक्रोँ के लोग जिन्दा तो रह सके थे, पर अज्ञान रूपी ड्रन से पूरी तरह से सुरक्षित नहीं थे, क्योंकि रत्न रूपी सम्पूर्ण कुंडलिनी चित्र नहीं था। अज्ञान से तो ध्यान-चित्र रूपी रत्न ही बचाता है। ध्यान-चित्र अर्थात रत्न के छिन जाने से बैंज नामक आत्मा तो अज्ञान के अँधेरे में डूब गई मतलब वह मर गया, पर उसने बेटी राया मतलब बुद्धि को बचीखुची कुंडलिनी शक्ति का प्रकाश मतलब रत्न का टुकड़ा देकर कहा कि वह शरीर-रूपी दुनिया में पुनः कुमान्द्रा मतलब अद्वैतवाद अर्थात मेलजोल स्थापित करे। राया मतलब बुद्धि फिर पानी मतलब सेरेबरोस्पाइनल फ्लूड या मेरुदण्ड के ध्यान में छलांग लगा देती है, जहाँ कुंडलिनी शक्ति मतलब सिसू ड्रेगन के प्रभाव से वह ड्रन से बच जाती है। दरअसल चक्रोँ के ध्यान को ही ध्यान कहते हैं। चक्र पर ध्यान को आसान बनाने के लिए बाएं हाथ से चक्र को स्पर्ष कर के रखा जा सकता है, क्योंकि दायां हाथ तो प्राणायाम के लिए नाक को स्पर्ष किए होता है। इससे खुद ही कुंडलिनी चित्र का ध्यान हो जाता है। यही हठयोग की विशिष्टता है। राजयोग में ध्यान-चित्र का ध्यान जबरदस्ती और मस्तिष्क पर बोझ डालकर करना पड़ता है, जो कठिन लगता है। जैसे चक्र का ध्यान करने से खुद ही ध्यानचित्र का ध्यान होने लगता है, उसी तरह मेरुदण्ड में स्थित नागरूपी सुषुम्ना नाड़ी का ध्यान करने से भी कुंडलिनी चित्र का ध्यान खुद ही होने लगता है। स्पर्ष में बड़ी शक्ति है। सुषुम्ना का स्पर्ष पीठ की मालिश करवाने से होता है। ऐसे बहुत से आसन हैं, जिनसे सुषुम्ना पर दबाव का स्पर्ष महसूस होता है। जो कुर्सी पूरी पीठ को अच्छे से स्पर्ष करके भरपूर सहारा देती है, वह इसीलिए आनंददायी लगती है, क्योंकि उस पर सुषुम्ना क्रियाशील रहती है। जो मैं ओरोबोरस सांप वाली पिछली पोस्ट में बता रहा था कि कैसे एकदूसरे के सहयोग से पुरुष और स्त्री दोनों ही अपने शरीर के आगे वाले चैनल में स्थित चक्रोँ के रूप में अपने शरीर के स्त्री रूप वाले आधे भाग को क्रियाशील करते हैं, वह सब स्पर्श का ही कमाल है। राया को उस नदी अर्थात सुषुम्ना नाड़ी में ड्रेगन रूपी शक्ति का आभास होता है, इसलिए वह उसकी खोज में लग जाती है। उसे वह टेल आईलैंड में छुपी हुई मतलब उसे शक्ति मूलाधार चक्र में निद्रावस्था में मिल जाती है। उस ड्रेगन रूपी कुंडलिनी शक्ति की मदद से वह रत्न के टुकड़ों को मतलब कुंडलिनी चित्र को उपरोक्त टापुओं पर मतलब शक्ति के अड्डों पर मतलब चक्रोँ पर ढूंढने लगती है। एक टुकड़ा तो उसके पास दिल या मन या आत्मा या सहस्रार रूपी बैंज का दिया हुआ है ही, सदप्रेरणा के रूप में। आत्मा दिल या मन में ही निवास करती है। दूसरा टुकड़ा उसे टेल आईलैंड के मंदिर मतलब मूलाधार चक्र पर मिल जाता है। इससे ड्रेगन मानव रूप में आ सकती है, मतलब वीर्यबल से कुंडलिनी शक्ति पूरी सुषुम्ना नाड़ी में फैल गई, जो एक फण उठाए नाग या मानव की आकृति की है। टेलन द्वीप के लोग पानी के ऊपर रहते हैं, मतलब फ्रंट स्वाधिष्ठान चक्र के बॉडी सेल्स तरल वीर्य से भरे प्रॉस्टेट के ऊपर स्थित होते हैं। फ्रंट स्वाधिष्ठान चक्र एक पुल जैसे नाड़ी कनेक्शन से रियर स्वाधिष्ठान चक्र से जुड़ा होता है। इसे ही टेलन द्वीप के लोगों का नदी के बीच में बने प्लेटफॉर्म आदि पर घर बना कर रहना बताया गया है। इसी नदी जल रूपी तरल वीर्य की शक्ति से इस द्वीप रूपी चक्र पर ड्रन रूपी अज्ञान या निकम्मेपन का प्रभाव नहीं पड़ता। पुल से गुजरात राज्य के मोरबी का पुल हादसा याद आ गया। हाल ही में एक लोकप्रिय हिंदु मंदिर से जुड़े उस झूलते पुल के टूटने से सौ से ज्यादा लोग नदी में डूब कर मर गए। उनमें ज्यादातर बच्चे थे। सबसे कम आयु का बच्चा दो साल का बताया जा रहा है। टीवी पत्रकार एक ऐसे छोटे बच्चे के जूते दिखा रहे थे, जो नदी में डूब गया था। जूते बिल्कुल नए थे, और उन पर हँसते हुए जोकर का चित्र था। बच्चा अपने नए जूते की खुशी में पुल पर आनंद में खोया हुआ कूद रहा होगा, और तभी उसे मौत ने अपने आगोश में ले लिया होगा। मौत इसी तरह दबे पाँव आती है। इसीलिए कहते हैं कि मौत को और ईश्वर को हमेशा याद रखना चाहिए। दिल को छूने वाला दृश्य है। जो ऐसे हादसों में बच जाते हैं, वे भी अधिकांशतः तथाकथित मानसिक रूप से अपंग से हो जाते हैं। मैं जब सीनियर सेकंडरी स्कूल में पढ़ता था, तब हमें अंग्रेजी विषय पढ़ाने एक नए अध्यापक आए। वे शांत, गंभीर, चुपचाप, आसक्ति-रहित, और अद्वैतशील जैसे रहते थे। कुछ इंटेलिजेंट बच्चों को तो उनके पढ़ाने का तरीका धीमा और पिछड़ा हुआ लगा पहले वाले अध्यापक की अपेक्षा, पर मुझे बहुत अच्छा लगा। सम्भवतः मैं उनके तथाकथित आध्यात्मिक गुणों से प्रभावित था। प्यार से देखते थे, पर हँसते नहीं थे। कई बार कुछ सोचते हुए कहा करते थे कि कभी किसी का बुरा नहीं करना चाहिए, इस जीवन में क्या रखा है आदि। बाद में सुनने में आया कि जब वे अपने पिछले स्कूल में स्कूल का कैश लेके जा रहे थे, तब कुछ बदमाशों ने उनसे पैसे छीनकर उन्हें स्कूटर समेत सड़क के पुल से नीचे धकेल दिया था। वहाँ वे बेहोश पड़े रहे जब उनकी पत्नि ने उन्हें ढूंढते हुए वहाँ से अस्पताल पहुंचाया। डरे हुए और मजबूर आदमी के तरक्की के सारे रास्ते बंद हो जाते हैं, यहाँ तक कि उसकी पहले की की हुई तरक्की भी नष्ट होने लगती है। बेशक वह पिछली तरक्की के बल पर आध्यात्मिक तरक्की जरूर कर ले। पर पिछली तरक्की का बल भी कब तक रहेगा। हिन्दुओं को पहले इस्लामिक हमलावरों ने डराया, अब पाकिस्तान पोषित इस्लामिक आतंकवाद डरा रहा है। तथाकथित ख़ालिस्तानी आतंकवाद भी इनमें एक है। जिस धर्म के लोगों और गुरुओं ने मुग़ल हमलावरों से हिंदु धर्म की रक्षा के लिए हँसते-हँसते अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे, आज उन्हींके कुछ मुट्ठी भर लोग तथाकथित हिंदुविरोधी खालिस्तान आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं, बाकि अधिकांश लोग भय आदि के कारण चुप रहते हैं, क्योंकि बहुत से बोलने वालों को या तो जबरन चुप करवा दिया गया या मरवा दिया गया। अगर विरोध में थोड़ा-थोड़ा सब स्वतंत्र रूप से बोलें, तो आतंकवादी किस किस को मारेंगे। सूत्रों के अनुसार कनाडा उनका मुख्य अड्डा बना हुआ है। अभी हाल ही में हिन्दूवादी शिवसेना के नेता सुधीर सूरी की तब गोली मारकर हत्या कर दी गई, जब वे देव मूर्तियों को कूड़े में फ़ेंके जाने का विरोध करने के लिए शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे। सूत्रों के अनुसार इसके तार भी पाक-समर्थित खालिस्तान से जुड़े बताए जा रहे हैं। तथाकथित हिंदु विचारधारा वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेता गगनेजा हो या रवीन्द्र गोसाईं, इस अंतर्राष्ट्रीय साजिश के शिकार लोगों की सूचि लंबी है। गहराई से देखने पर तो यह लगता है कि हिंदु ही हिंदु से लड़ रहे हैं, उकसाने और साजिश रचने वाले तथाकथित बाहर वाले होते हैं। हाँ, अब पोस्ट के मूल विषय पर लौटते हैं। आपने भी देखा ही होगा कि कोई चाहे कैसा ही क्यों न हो, किसी न किसी बहाने सम्भोग की तरफ आकर्षित हो ही जाता है, ताकि अपनी ऊर्जा को बढ़ा सके, मतलब यहाँ निकम्मापन नहीं पनपता। तीसरा टुकड़ा उसे स्पाइन ट्राईब अर्थात मेरुदण्ड में मिला, सुषुम्ना में उठ रही संवेदना के रूप में। मेरुदण्ड स्थित कुंडलिनी शक्ति अर्थात सिसू ड्रेगन को कुंडलिनी चित्र चक्रोँ से मिला होता है, जैसा कि शिवपुराण में आता है कि ऋषिपत्नियों (चक्रोँ) ने अपने वीर्य तेज को हिमालय (मेरुदण्ड) को दिया। इसीको सिसू कहती है कि उसे रत्न के टुकड़े उसके भाई-बहिनों ने दिए, जो इन विभिन्न टापुओं पर रहते थे। हरेक चक्र से मिली कुंडलिनी चित्र रूपी चिंतन शक्ति से सिसू रूपी कुंडलिनी शक्ति मजबूती प्राप्त करती है, और अपने मस्तिष्क में अर्थात आदमी के मस्तिष्क में (क्योंकि फन उठाए नाग का मस्तिष्क ही आदमी का मस्तिष्क है) एक विशेष शक्ति और उससे एक नया सकारात्मक रूपांतरण महसूस करती है। इसको उपरोक्त मिथक कथा में ऐसे कहा है कि हरेक रत्न का टुकड़ा प्राप्त करने से वह एक विशेष नई शक्ति प्राप्त करती है। राया और सिसू फैंग कबीले से बचते हुए स्पाइन कबीले में पहुंचते हैं, मतलब अवेयरनेस या बुद्धि और कुंडलिनी शक्ति आगे के चक्रोँ से ऊपर नहीं चढ़ती, अपितु पीछे स्थित रीढ़ की हड्डी से ऊपर चढ़ती है। यह इसलिए कहा गया है क्योंकि फैंग मतलब मुंह का नुकीला दाँत आगे के चक्रोँ के रास्ते में ही आता है। इस यात्रा में उसे चार-पांच मददगार दोस्त मिल जाते हैं, मतलब पाँच प्राण और मांसपेशियों की ताकत जो कि कुंडलिनी शक्ति को घुमाने में मदद करते हैं। फैंग आईलैंड में वे पीछे से मतलब पीछे के विशुद्धि चक्र से प्रविष्ट होती हैं। वह इसलिए क्योंकि कुंडलिनी शक्ति को विशुद्धि चक्र से ऊपर चढ़ाना सबसे कठिन है, इसलिए वह आगे की तरफ फ़िसलती है। वहाँ राजकुमारी निमारी मतलब बीमारी मतलब कमजोरी या अंधभौतिकता उसे मार देती है, मतलब उसे वापिस हटने पर मजबूर करती है, और वह नदी में गिर जाती है, मतलब मेरुदण्ड के फ्लूड में बहती हुई वापिस नीचे चली जाती है। उससे बवंडर ताकतवर होकर लोगों को मारने लगते हैं, मतलब चक्रोँ में फँसी भावनाओं को बाहर निकलने का मौका न देकर वहीं उन्हें पत्थर अर्थात शून्य अर्थात बेजान बनाने लगते हैं। चक्र भी बवंडर की तरह गोलाकार होते हैं। सिसू नमारी से लड़ना नहीं चाहती मतलब जब कुंडलिनी शक्ति विशुद्धि चक्र को लांघ कर ऊपर चढ़ने लगती है, तब मन की लड़ाई-झगड़े वाली सोच नष्ट हो जाती है। मन का सतोगुण बढ़ा हुआ होता है। वह नमारी को तोहफा देना चाहती है मतलब उसे कुछ मिष्ठान्न आदि खिलाकर। वैसे भी मुंह में कुछ होने पर कुंडलिनी सर्कट कम्प्लीट हो जाता है, जिससे कुंडलिनी आसानी से घूमने लगती है। पर हुआ उल्टा। उस तोहफे से कुंडलिनी की मदद करने की बजाय वह दुनियादारी के दोषों जैसे गुस्से, लड़ाई व अति भौतिकता आदि को बढ़ाने लगी। इससे तो कुंडलिनी शक्ति नष्ट होगी ही। इसको ऐसे दिखाया गया है कि सिसू तीर लगने से मरकर नदी में गिर जाती है, मतलब शक्ति फिर सेरेबरोस्पाइनल द्रव से होती हुई मेरुदण्ड में वापिस नीचे चली जाती है। इससे फिर से ड्रन के हमले शुरु हो जाते हैं। इससे शक्ति की कमी से टुकड़ों में बंटे कुंडलिनीचित्र रूपी रत्न से वे बवंडर से बचने की कोशिश करते हैं, पर शक्ति के बिना कब तक कुंडलिनी चित्र बचा पाएगा। कुंडलिनी चित्र अर्थात ध्यान चित्र को शक्ति से ही जान और चमक मिलती है, और शक्ति को कुंडलिनी चित्र से। दोनों एकदूसरे के पूरक हैं। इससे वह मेडिटेशन चित्र भी धूमिल पड़ने लगता है। इससे राया मतलब बुद्धि को याद आता है कि आपसी सौहार्द और विश्वास से ही सीसू मतलब शक्ति ने वह कुंडलिनी रत्न प्राप्त किया था। इसलिए वह अपना रत्न भाग नमारी मतलब दुनियादारी या भौतिकता को दे देती है। सभी अंग और प्राण बुद्धि का ही अनुगमन करते हैं, इसलिए उसके सभी दोस्त मतलब प्राण भी जिन्होंने विभिन्न चक्रोँ से कुंडलिनी भागों को कैपचर किया है, वे भी अपनेअपने रत्नभाग नमारी को दे देते हैं। नमारी भी अपना टुकड़ा उसमें जोड़ देती है, मतलब वह भी पूरी शक्ति का इस्तेमाल करते हुए दुनियादारी में अनासक्ति और अद्वैत के साथ व्यवहार करने लगती है। इससे वह रत्न पूरा जुड़ जाता है मतलब अद्वैत की शक्ति से कुंडलिनी चित्र आनंद और शांति के साथ पूरा चमकने लगता है। इससे चक्रोँ में दबी हुई भावनाएँ फिर से प्रकट होकर आत्मा के आनंद में विलीन होने लगती हैं, मतलब बवंडर द्वारा पत्थर बनाए लोग फिर से जिन्दा होकर आनंद मनाने लगते हैं। सुषुम्ना की शक्ति भी उस चित्र की मदद से जागने लगती है। सुषुम्ना नाड़ी के साथ ही शरीर की अन्य सभी नाड़ियों में भी अवेयरनेस दौड़ने लगती है, मतलब उनमें दौड़ती हुई शक्ति की सरसराहट आनंद के साथ महसूस होने लगती है। इसको ऐसे कहा गया है कि फिर पत्थर बनी सभी ड्रेगन भी जिन्दा हो जाती हैं। वे ड्रेगन पूरे कुमान्द्रा में खुशहाली और समृद्धि वापिस ले आती है। क्योंकि शरीर भी एक विशाल देश की तरह ही है, जिसमें शक्ति ही सबकुछ करती है। हरेक नाड़ी में आनंदमय शक्ति के दौड़ने से पूरा शरीर खुशहाल, हट्टाकट्टा और तंदुरस्त तो बनेगा ही। इससे पहले रत्न के टुकड़े पत्थर बने लोगों को तो जिन्दा कर पा रहे थे पर पत्थर बनी ड्रेगनों को नहीं। इसका मतलब है कि धुंधले कुंडलिनी चित्र से चक्रोँ में दबी भावनाएँ तो उभरने लगती हैं, पर उससे सरसराहट के साथ चलने वाली शक्ति महसूस नहीं होती। शक्तिशाली नाग के रूप में सरसराहट करने वाली कुण्डलिनी शक्ति मानसिक कुंडलिनी छवि का ही अनुसरण करती है। इसके और आगे, तांत्रिक यौन योग इस शक्ति को और ज्यादा मजबूती प्रदान करता है। महाराज ओशो भी यही कहते हैं। मतलब कि शक्ति चक्रोँ पर विशेषकर मूलाधार चक्र में सोई हुई अवस्था में रहती है। इसका प्रमाण यह भी है कि यदि आप मन में नींद-नींद का उच्चारण करने लगो, तो कुंडलिनी शक्ति के साथ कुंडलिनी चित्र स्वाधिष्ठान चक्र और मूलाधार चक्र पर महसूस होने लगेगा, नाभि चक्र में भी अंदर की ओर सिकुड़न महसूस होगी। साथ में रिलेक्स फील भी होता है, असंयमित विचारों की बाढ़ शांत हो जाती है, मस्तिष्क में दबाव एकदम से कम होता हुआ महसूस होता है, और सिरदर्द से भी राहत मिलती है। यह तकनीक उनके लिए बहुत फायदेमंद है जिनको नींद कम आती हो या जो तनाव में रहते हैं।

निद्रा देवी ही नींद की अधिष्ठात्री है। “श्री निद्रा है” मंत्र मैंने डिज़ाइन किया है। श्री से शरीरविज्ञान दर्शन का अद्वैत अनुभव होता है, जिससे कुंडलिनी मस्तिष्क में कुछ दबाव बढ़ाती है, निद्रा से वह कुंडलिनी दबाव के साथ निचले चक्रोँ में उतर जाती है, है से आदमी सामान्य स्थिति में लौट आता है। अगर योग करते हुए मस्तिष्क में दबाव बढ़ने लगे, तब भी यह उपाय बहुत कारगर है। दरअसल योग के लिए नींद भी बहुत जरूरी है। जागृति नींद के सापेक्ष ही है, इसलिए नींद से ही मिल सकती है। जो जबरदस्ती ही हमेशा ही सतोगुण को बढ़ा के रखकर जागे रहने का प्रयास करता है, वह कई बार मुझे ढोंग लगता है, और उससे आध्यात्मिक जागृति प्राप्त होने में मुझे संदेह है। इसी तरह किताब में पढ़ते समय मुझे लगता था कि शाम्भवी मुद्रा पता नहीं कितनी बड़ी चमत्कारिक विद्या है, क्योंकि लिखा ही ऐसा होता था। लेखन इसलिए होता है ताकि कठिन चीज सरल बन सके, न कि उल्टा। सब कुछ सरल है यदि व्यावहारिक ढंग से समझा जाए। नाक पर या नासिकाग्र पर नजर रखना कुंडलिनी शक्ति को केंद्रीकृत कर के घुमाने के लिए एक आम व साधारण सी प्रेक्टिस है। एकसाथ दोनों आँखों से बराबर देखने से आज्ञा चक्र पर भी ध्यान चला जाता है, यह भी साधारण अभ्यास है। जीभ को तालू से ज्यादा से ज्यादा पीछे छुआ कर रखना भी एक साधारण योग टेक्टिक है। इन तीनों तकनीकों को एकसाथ मिलाने से शाम्भवी मुद्रा बन जाती है, जिससे तीनों के लाभ एकसाथ और प्रभावी रूप से मिलते हैं। इसीलिए जीवन संतुलित होना चाहिए ताकि उसमें पूरे शरीर का बराबर योगदान बना रहे, और शरीर कुमान्द्रा अर्थात संतुलित बना रहे। संतुलन ही योग है। इसी तरह रत्न के टुकड़े लोगों का ड्रन से स्थायी बचाव नहीं कर पा रहे थे। यह राजयोग वाला उपाय है, जिसमें केवल मन या दिल में कुंडलिनी चित्र का ध्यान किया जाता है, हठयोग के योगासन व प्राणायाम आदि के रूप में पूरी योगसाधना नहीं की जाती। इसलिए जबतक कुंडलिनी चित्र का ध्यान किया जाता है तब तक तो वह बना रहता है, पर जैसे ही ध्यान हटाया जाता है, वैसे ही वह एकदम से धूमिल पड़ जाता है। यही बैंज कबीले वाला स्थानीय उपाय है। इससे मन या हृदय में तो ड्रन से बचाव होता है, पर अन्य चक्रोँ पर लोगों के पत्थर बनने के रूप में भावनाएँ दबती रहती हैं। इसलिए सम्पूर्ण, सार्वकालिक व सार्वभौमिक उपाय हठयोग के साथ यथोचित दुनियादारी ही है, राजयोग मतलब खाली बैठकर केवल ध्यान लगाना नहीं। ऐसा इसलिए क्योंकि हठयोग में पूरे शरीर का और बाहरी संसार का यथोचित इस्तेमाल होता है। संसार में भी पूरे शरीर का इस्तेमाल होता है, केवल मन व दिल का ही नहीं। हालांकि प्रारम्भिक तौर पर पूर्ण सात्विक राजयोग ही कुंडलिनी चित्र को तैयार करता है, और उसे संभाल कर रखता है। यह ऐसे ही है, जैसे बैंज कबीले के मुखिया ने रत्न को संभाल कर रखा हुआ था। कई लोग हठयोग के आसनों को देखकर बोलते हैं कि यह तो शारीरिक व्यायाम है, असली योग तो मन में ध्यान से होता है। उनका कहने का मतलब है कि मन रूपी चिड़िया बिना किसी आधार के खाली अंतरिक्ष में उड़ती रहती है। पर सच्चाई यह है कि मन रूपी चिड़िया शरीर रूपी पेड़ पर निवास करती है। पेड़ जितना ज्यादा स्वस्थ और फलवान होगा, चिड़िया उतनी ही ज्यादा खुश रहेगी।

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demystifyingkundalini by Premyogi vajra- प्रेमयोगी वज्र-कृत कुण्डलिनी-रहस्योद्घाटन

I am as natural as air and water. I take in hand whatever is there to work hard and make a merry. I am fond of Yoga, Tantra, Music and Cinema. मैं हवा और पानी की तरह प्राकृतिक हूं। मैं कड़ी मेहनत करने और रंगरलियाँ मनाने के लिए जो कुछ भी काम देखता हूँ, उसे हाथ में ले लेता हूं। मुझे योग, तंत्र, संगीत और सिनेमा का शौक है।

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