कुण्डलिनी शक्ति अशुभ व भूतिया घटनाओं से रक्षा करती है

दोस्तों, मैं पिछली पोस्ट में बता रहा था कि पुराने लोगों को वर्महोल, व्हाइट होल और टेलीपोर्टेशन आदि का पता था, हालांकि अपने तरीके से। उन्हें पता था कि स्थूल शरीर के साथ यह संभव नहीं है, पर सूक्ष्मशरीर के साथ संभव है। इसलिए वे अच्छे कर्मों से अपने सूक्ष्मशरीर को ज्यादा से ज्यादा अच्छा बनाते थे, ताकि वह उन्हें अच्छे ग्रह, सितारे या ब्रह्माण्ड में ले जा सके, क्योंकि उन्हें यह भी पता था कि क्वांटम इनफार्मेशन कभी नष्ट नहीं होती। इसी वजह से हम देखते हैं कि आजकल के बच्चे जन्म से ही हाइटेक होते हैं। वे स्मार्टफोन के बिना खाना भी नहीं खाते। दरअसल उनके हाल ही के पिछले जन्म की हाइटेक सूचना उनके सूक्ष्मशरीर में दर्ज हुई होती है। रही बात शरीर के साथ व्हाइट होल से गुजरना या टेलीपोर्टेशन करना, मुझे तो यह संभव लगता नहीँ है। चलो मान लेते हैं कि किसी चमत्कारिक शक्ति से यह संभव हो गया। फिर भी जाएंगे कहाँ क्योंकि अभी तक कोई भी पूरी तरह से हेबिटेबल अर्थात जीवन के अनुकूल ग्रह नहीँ मिला है। कोई मंगल पर जाने की योजना बना रहा है, कोई चाँद पर। वहाँ बाद में जाएं, पहले ऊँचे हिमालय में जाकर देख लो। तापमान की एक डिग्री की कमी भी कम्पकम्पी दे सकती है और जीवन को जोखिम में डाल सकती है। दूसरे ग्रह पर बाद में जाना, क्योंकि वहाँ तो ऐसी अनगिनत समस्याएं होंगी, वे भी विकराल रूप में। धरती पर ही ऐसे बहुत से स्थान हैं, जिन्हें विज्ञान हेबिटेबल नहीँ बना पा रहा है, अन्य ग्रहों की तो दूर की बात है। उमंग और जोश बनाए रखने में कोई बुराई नहीं है।

वैज्ञानिक अंदेशा जता रहे हैं कि ब्लैक होल में छुपे पदार्थ किसी अन्य आयाम में छिपे ब्रह्माण्ड में जा सकते हैं। अंतरिक्ष के अनगिनत आयाम मतलब अनगिनत कॉपीयां हो सकती हैं, जैसा अभी हाल की एक पिछली पोस्ट में बताया गया है। अब पता नहीं कौन सी कॉपी में जाकर वे पुनः भौतिक रूप में जन्म ले लेते हैं। यह ऐसे ही है जैसे आदमी मरने के बाद पता नहीं कौन सी कॉपी में चला जाता है। हम जीव दूसरी कॉपी मतलब दूसरे जीव में स्थित ब्रह्माण्ड को बिल्कुल भी अनुभव नहीं कर सकते। हालांकि हम दूसरे जीव के शरीर को तो अनुभव कर ही सकते हैं। इसी तरह हम बाहरी अर्थात स्थूल रूप में तो दूसरे ब्रह्माण्ड को जान ही सकते हैं। पर दूसरे ब्रह्माण्ड हमारी पहुंच से परे हैं। यह ऐसे ही है जैसे नार्थ पोल पर बैठा व्यक्ति साऊथ पोल पर बैठे व्यक्ति को नहीं देख सकता।

अब तो यह प्रमाण भी मिला है कि ब्लैक होल में सभी पदार्थ बहुत ज्यादा विस्फोटक दबाव में दबे होते हैं। वे सम्भवतः विस्फोट के साथ बाहर निकलना चाहते हों, क्योंकि कोई भी वस्तु हो या व्यक्ति, दबाव में रहना पसंद नहीं करते। हवा, पानी आदि चीजें उच्च दबाव के क्षेत्र से निम्न दाब क्षेत्र की तरफ भागते हैं। काम के बेवजह दबाव की वजह से हर साल हजारों-लाखों कर्मचारी अपनी कम्पनियाँ बदलते हैं, अन्यथा बीमार पड़ जाते हैं। पर ब्लैक होल के वे दबे पदार्थ ब्लैकहोल के गुरुत्व बल को भगाकर बाहर नहीं भाग पाते। यह ऐसे ही है जैसा मैं हाल की एक पिछली पोस्ट में सूक्ष्मशरीर रूपी प्रेतात्मा के बारे में बता रहा था। हालांकि कुछेक मामलों में ब्लैक होलों को थोड़े-बहुत पदार्थ उगलते हुए देखा गया है। इसी तरह प्रेतात्मा भी विरले मामलों में डरावने रूप बनाकर लोगों को डरा सकते हैं। इन्हें भटकी हुई आत्माएं कहते हैं। ये उनके साथ ज्यादा होता है, जो अकाल मृत्यु से मरते हैं। अकालमृत्यु मतलब पूरी दुनियावी मायामोह में डूबे आदमी की अचानक मृत्यु। दुनिया के प्रति आसक्ति और द्वैत भाव वाले आदमी के साथ भी ऐसा हो सकता है। इसमें आदमी को अपने मानसिक ब्रह्माण्ड को हल्का और छोटा करने का मौका ही नहीं मिलता। इससे उनका सूक्ष्म शरीर अचानक से बहुत ज्यादा दबाव के साथ बन जाता है। उसी दबाव के कारण वे आभासी जैसे डरावने रूप बनाते रहते हैं। यह पता नहीं कि कैसे। कईयों में अच्छे संकल्पों का दबाव ज्यादा होता है, इसलिए उन्हें स्वर्ग का अनुभव होता है। कईयों में बुरे संकल्पों का दबाव ज्यादा होता है इसलिए वही संकल्प नर्क के अनुभव के रूप में बाहर को स्फुटित होते रहते हैं। वैसे तो प्रेतात्मा अँधेरे के रूप में रहती है। उसमें कोई संकल्प-विकल्प नहीँ होते। पर संकल्प-विकल्प उसमें आत्मा के अँधेरे के रूप में छिपे होते हैं। आदमी जब ऐसी आत्मा के सम्पर्क में आता है, तो वे छुपे हुए संकल्प उसके मन में जिन्दा होने लगते हैं। वे इतना ज्यादा शक्तिशाली हो सकते हैं कि वे उसे असली भौतिक रूप में भी दिख सकते हैं। इसे ही भूत दिखना कहते हैं। भूत का मतलब ही भूतकाल है। मतलब यह पुराने समय में हुआ है, अभी नहीँ है। इसीलिए भूतिया फिल्मों में आदमी की भूत बनी जीवात्मा की जीवित समय की मार्मिक घटना भूत बनकर डराते हुई दिखाई जाती है। यदि किसी का ऐसे काल्पनिक भूत से सामना हो जाए तो कहते हैं कि उससे बात नहीँ करनी चाहिए। क्योंकि क्या पता करतबी दिमाग़ झूठमूठ में ही क्या डरावना नजारा दिखा दे, जिससे हर्टफेल ही हो जाए। दिमाग़ के करतब का एक अन्य उदाहरण है, मरते हुए आदमी को ले जाने काले यमराज का काले भैंसे पर बैठकर आना। यह शास्त्रों में भी लिखा है और यह एक वैश्विक अनुभव भी है, मतलब किसी देश या धर्म तक सीमित नहीँ है। दरअसल उस समय ऐसी मानसिक अवस्था होती है कि दिमाग़ वैसा  काल्पनिक दृश्य रच लेता है जो असली जैसा लगता है। भौतिक रूप से कहीं कोई भैंसा-वैँसा नहीं आता। एकबार मुझे एक जीवंत सपने में एक काला भैंसा पहाड़ी की चोटी की तरफ घने अँधेरे जंगल से होकर ले गया। वह अंधेरा दिव्य व आनंदमय था, किसी महान आदमी या संत के सूक्ष्मशरीर की तरह। वह भैंसा मुझे बीच रास्ते में छोड़कर भाग गया। फिर मैं ऊपर चढ़ते हुए उस अकेली व मध्यम ऊँचाई की पहाड़ी की चोटी पर पहुंच गया। अलौकिक दृश्य था। दो या तीन मंजिला दिव्य कुटिया थी। दिव्य व चाँद या मौमबत्ती जैसी रौशनी थी, फिर भी चकाचक। जब मैं दूसरी मंजिल के खुले आँगन या टेरेस में बाहर निकला, तो वहाँ एक दिव्य साधुबाबा थे। मेरी लिखी पुस्तक उनके हाथ में थी और खुशी से मुस्कुराते हुए कह रहे थे कि उन्हें डाक आदि से मिली और वे मेरा ही इंतजार कर रहे थे। उन्होंने मेरा प्रेमभाव से भरा दिव्य सम्मान किया। जल्दी ही स्वप्न टूटा और मैं उस दिव्य अहसास से बाहर हो गया। इसका वर्णन मैंने इस वैबसाईट के अबाउट पेज पर भी किया है।

भटकी आत्मा के संबंध में मैं एक घटना सुनाता हूँ। मैं एक सुंदर पहाड़ी पर बने ढाबे में कभीकभार लंच करने जाया करता था। उसमें वेज-ननवेज हर किस्म का खाना बनता था। सुनने में आया कि एकबार रात को कुछ बदमाश ग्राहकों ने शराब के नशे में बिल को लेकर कहासुनी के बाद ढाबामालिक के बाप के ऊपर जबरदस्ती गाड़ी चढ़ा दी और फरार हो गए। अचानक, एकदम और दर्दनाक मृत्यु हुई थी, इसलिए वह अकालमृत्यु हुई। उसके बाद जब भी मैं उस ढाबे में जाता था, मुझे वहां अजीब सी एनर्जी महसूस होती थी। साथ में हर बार मेरे संबंधियों के साथ कोई न कोई अशुभ वाकया होता-होता टल जाता था। सम्भवतः मुझे कुण्डलिनी बचा लेती थी, पर कुण्डलिनी योग न करने के कारण कमजोर मन वाले संबंधी पर वह असर डालती थी। सम्भवतः कुण्डलिनी का कुछ असर उन तक भी पहुंच जाता था। उसके बाद मैंने वहाँ जाना बिल्कुल बंद कर दिया। साधारण धार्मिक कृत्य तो सभी कराते हैं, पर विशेष मृत्यु के बाद वे विशेष व शक्तिशाली होने चाहिए, ताकि दिवंगत आत्मा को शांति मिले। इसी तरह मैं एक बार परिचित के घर में सोया था। रात को मैंने देखा कि छत से जलती हुई लकड़ियाँ मेरे ऊपर गिर रही हैं। मैं चिल्लाया भी। फिर मैंने गुरु और कुण्डलिनी का ध्यान किया। इससे वह भूतिया दृश्य हट गया और मुझे नींद आ गई। वहाँ पर ऐसी भूतिया घटनाओं और अकालमृत्यु का पुराना इतिहास रहा था। संक्षेप में प्रत्यक्षदर्शियों द्वारा सुनी घटनाएं कहूँ तो एक व्यक्ति को रात को पानी पर तैरती ज्योतियां दिखती थीं, जो जलती और बुझती थीं। उस पानी में एक नजदीकी प्रेतग्रस्त परिवार ने प्रेत को गिट्टीयों में बांधकर दबा रखा था। शायद पत्थरों के छोटे टुकड़ों या ऐसे यन्त्रों को गिट्टी कहा गया है। एक मित्र को आधी रात को सुनसान सड़क के पास खेलते बच्चे दिखे जो छोटे-बड़े हो रहे थे। एक मित्र को प्रेतबाधा से ग्रस्त मकान में रात को दरवाजा खटखटाने की आवाज आती, दरवाजा खोलने पर लगता कि कुछ अंदर भागता हुआ किसी छेद वगैरह से कुछ वस्तुओं की आवाज के साथ बाहर निकल गया, पर दिखता कुछ नहीँ था। मेरे पूर्व के एक सज्जन व भोले पड़ोसी को एक तांत्रिक ने यह कह कर रात को अकेले श्मशान या कब्रगाह में जाने को इसलिए कह दिया कि उससे उसका खतरे में पड़ा व्यापार सुरक्षित बचेगा। सुबह वह वहाँ मृत मिला। रिपोर्ट से पता चला कि उसका हर्ट फेल हुआ। पर मेरे दादा इतने बहादुर होते थे कि अक्सर कहते थे कि श्मशान में अकेले आराम से सो सकते हैं। बस ऊपर से ओढ़ने के लिए एक चादर चाहिए। उनके अंदर बहुत कुण्डलिनी बल था। हनुमान चालीसा को भूत भगाने में सर्वोत्तम माना जाता है। मुझे भी लगता है कि हनुमान चालीसा एकदम से कुण्डलिनी शक्ति और कुण्डलिनी चित्र को मजबूती के साथ क्रियाशील कर देता है। हाँ, वही भगवान हनुमान इस चालीसा के माध्यम से शक्ति देते हैं, जिसे बाघेश्वर धाम सरकार वाले पंडित धीरेन्द्र शास्त्री ने सिद्ध किया हुआ है, और जिससे वे बहुत से चमत्कार दिखाते हैं। मुझे सबसे रोमांचकारी, नकली या ढोंगी गुरुओं से बचाने वाली और पारिवारिक प्रेम को उजागर करने वाली यह बात लगी कि उनके दादा ही उनके धर्मगुरु हैं। बहुत से तथाकथित जादूगर, सैकुलर और विधर्मी लोग उनका पर्दाफाश करने सामने आए, पर सफल न हो सके। आजकल यह एक गर्म चर्चा का विषय बना हुआ है।

फिर कहते हैं कि ब्लैक होल चमकते सितारों को अपनी तरफ खींच कर निगल लेते हैं। मतलब वे मृत्युरूप होते हैं। सूक्ष्मशरीर भी तो मृत्युरूप ही होता है। जीवन उसके चारों तरफ घूमता है। वह जीवन के केंद्र में होता है, और बढ़ती आयु के साथ जीवन को अपनी ओर ज्यादा से ज्यादा खींचता जाता है। अंत में जीवन उसमें गिरकर खत्म हो जाता है। आदमी का सूक्ष्मशरीर उसके जीवन की हरेक गतिविधि पर अपना नियंत्रण रखता है। कहते हैं कि वे संस्कार सूक्ष्मशरीर अर्थात सबकोन्सियस माइंड अर्थात अवचेतन मन में ही रहते हैं, जो आदमी के व्यवहार को प्रभावित करते हैं। उसी तरह ब्लैक होल भी अपने से जुड़े सभी ग्रहों, सितारों और अन्य आकाशीय पिंडों को अपने नियंत्रण में रखकर उन्हें अपने चारों तरफ घुमाता रहता है। इसी तरह डार्क एनर्जी और डार्क मेटर भी पूरे ब्रह्माण्ड का संतुलन बना कर रखते हैं। फिर कहते हैं कि एक ब्लैक होल अपने पितृ तारे को तो निगलता ही हैं, पर दूसरे अन्य अनगिनत तारों को भी निगलते हैं। महान आत्मा जैसे कि किसी महान नेता, खिलाड़ी या अन्य किसी महान कलाकार का सूक्ष्म शरीर भी तो उनके अनगिनत फॉलोवर को अपनी तरफ खींचता है। उनकी मृत्यु से उनके पिछलग्गू कई दिन मातम व मायूसी के माहौल में रहते हैं, कई आत्महत्या कर लेते हैं, और कई दंगे फैलाकर जिनोसाइड अर्थात सामूहिक नरसंहार को अंजाम देते हैं। बेशक वे सभी एक बड़े ब्लैकहोल में समा जाते हैं, पर उनकी पृथक सत्ता भी रहती ही है।

Published by

demystifyingkundalini by Premyogi vajra- प्रेमयोगी वज्र-कृत कुण्डलिनी-रहस्योद्घाटन

I am as natural as air and water. I take in hand whatever is there to work hard and make a merry. I am fond of Yoga, Tantra, Music and Cinema. मैं हवा और पानी की तरह प्राकृतिक हूं। मैं कड़ी मेहनत करने और रंगरलियाँ मनाने के लिए जो कुछ भी काम देखता हूँ, उसे हाथ में ले लेता हूं। मुझे योग, तंत्र, संगीत और सिनेमा का शौक है।

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Twitter picture

You are commenting using your Twitter account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s