दोस्तो, हाल की पिछली कुछ पोस्टों के विश्लेषण से लगता है कि हो सकता है कि जिन्हें हम मानसिक बिमारी समझते हों, वे दरअसल जागृति की तरफ बढ़ रहे मन के लक्षण हों, पर उन्हें हम ढंग से संभाल न पाने के कारण वे मानसिक रोग बन जाते हों। मैं इसे अपनी आपबीती से भी सिद्ध कर सकता हूं। जिस किसी स्थान विशेष पर मुझे यौनबल मिलता था, वहां मेरा ध्यानचित्र मुझे हर क्षेत्र में अव्वल बनाता था, चाहे वह आध्यात्मिक हो या भौतिक। पर जहां मुझे वह नहीं मिलता था, वहां वह मुझे एक मनोरोगी जैसा भी बना देता था। बेशक वह यौनबल काल्पनिक संभोग ही क्यों न हो, काल्पनिक यौनसाथी का समाधि जैसा स्थायी मानसिक चित्र क्यों न हो। यहां तक कि बेशक वह स्त्री की बजाय पुरुष ही क्यों न हो। ऐसे में तो मुझे समलैंगिकता में भी कोई बुराई महसूस नहीं हुई। हालांकि यह अलग बात है और जैसा मुझे लगता है कि कुंडलिनी जागरण स्त्रीपुरुष प्रेम से ही मिलता है, क्योंकि यिन और यांग का संपूर्ण सम्मिलन पुरुष और स्त्री के बीच ही हो सकता है। पाठकों को यह अजीब लग सकता है।
महान पाश्चात्य मनोवैज्ञानिक सिगमंड फ्रायड कहते हैं कि शरीर के हरेक हिस्से में यौन-उन्माद अर्थात ऑर्गेज्म है। यह तो तंत्र में बहुत पहले से कहा गया है। तभी तो कुण्डलिनी शक्ति का चक्रोँ पर आना मतलब वहाँ पर यौन उन्माद को अनुभव करना ही है। कुंडलिनी योग का मतलब ही उस मूलाधार की यौनोन्माद या ऑर्गेस्मिक से भरी संवेदना को ऊपर चढ़ाते हुए उसे सभी चक्रों को बारीबारी से प्रदान करना है। यह ऑर्गेस्मिक व आनंदपूर्ण संवेदना एक सुपर टॉनिक की तरह है। यह जिस चक्र पर पहुंचती है, उसकी सभी जैविक गतविधियों को बढ़ाते हुए उन्हें सुधारती भी है और संतुलित भी करती है। उस चक्र के प्रभावक्षेत्र में जितने भी अंग व जैवीय भाग आते हैं, वे भी खुद ही चक्र की तरह लाभान्वित हो जाते हैं। क्योंकि सातों चक्रों में सारा शरीर कवर हो जाता है, इसलिए पूरा शरीर स्वस्थ व संतुलित हो जाता है, बिमारियां इससे दूर रहती हैं। दरअसल जननांगों का यौनोन्माद तो चक्रों के अपने स्वाभाविक या इन्हेरेंट यौनोन्माद को बढ़ाने का ही काम करते हैं, अपना यौनोन्माद तो उनके अंदर पहले से ही है। उनका यह आंतरिक यौनोन्माद विभिन्न जैविक अभिक्रियाओं व प्रक्रियाओं के आधारभूत रूप में है। जननांगों से तो उसे बस अतिरिक्त धक्का ही मिलता है। ऐसा समझ लो कि उनका अपना यौनोन्माद आइडलिंग पर स्वतः घूम रहे इंजिन की तरह है, और जननांगों का यौनोन्माद गाड़ी के एकसेलरेटर पैडल की तरह है। अगर जननांगों का यौनोन्माद ही सबकुछ होता, तब तो फेल हो रहा हार्ट भी उससे चालू हो जाता। पर ऐसा नहीं होता। यह ऐसे ही है, जैसे अगर इंजन बंद हो या पिस्टन आदि पुर्जों की खराबी से वह बंद हो रहा हो, तो एकसेलरेटर पैडल को दबाने से भी वह चालू नहीं होगा।
एक जगह सिगमंड फ्रायड थोड़ा हट कर विचार रखते हैं। वे कहते हैं कि संभोग शक्ति सबसे बड़ी है, मतलब प्राइम मोटिवेटर या प्रमुख प्रेरक है, पर हमारे तंत्र दर्शन में शुरु से ही कहा गया है कि संकल्प शक्ति उससे भी बड़ी प्रेरक है। अगर फ्रायड बिल्कुल सही होते तो हरेक व्यक्ति को जागृति मिला करती, क्योंकि संभोग तो सभी लोग करते हैं। सच्चाई यह है कि संभोग से भी जागृति उन्हीं को मिलती है, जिन्होंने योगसाधना और अन्य आध्यात्मिक तरीकों से गुरु और जागृति की प्राप्ति के लिए मन में पहले से ही दृढ़ संकल्प बना कर धारण कर रखा हो। इस बारे में किसी नई पोस्ट में विस्तार से चर्चा की कोशिश करेंगे।