दोस्तों, यह पोस्ट शांति के लिए और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए समर्पित है। क्योंकि कुंडलिनी योग विशेषरूप से हिंदु धर्म से जुड़ा हुआ है, इसीलिए इसको कतई भी अनदेखा नहीँ किया जा सकता। मैं वैसा बनावटी और नकली योगी नहीँ हूँ कि बाहर से योग-योग करता फिरूँ और योग के मूलस्थान हिंदूवाद पर हो रहे अत्याचार को अनदेखा करता रहूँ। अभी हाल ही में इस्लामिक आतंकियों ने कश्मीर में एक स्कूल में घुसकर बाकायदा पहचान पत्र देखकर कुछ हिंदुओं-सिखों को मार दिया, और मुस्लिम कर्मचारियों को घर जाकर नमाज पढ़ने को कहा। इसके साथ ही, बांग्लादेश में मुस्लिमों की भीड़ द्वारा हिंदुओं और उनके धर्मस्थलों के विरुद्ध व्यापक हिंसा हुई। उनके सैकड़ों घर जलाए गए। उन्हें बेघर कर दिया गया। कई हिंदुओं को जान से मार दिया गया। जेहादी भीड़ मौत का तांडव लेकर उनके सिर पर नाचती रही। सभी हिंदु डर के साए में जीने को मजबूर हैं। मौत से भयानक तो मौत का डर होता है। यह असली मौत से पहले ही जिंदगी को खत्म कर देता है। इन कट्टरपंथियों के दोगलेपन की भी कोई हद नहीँ है। हिंदुओं के सिर पर तलवार लेके खड़े हैं, और उन्हीं को बोल रहे हैं कि शांति बनाए रखो। भई जब मर गए तो कैसी शान्ति। हिंसा के विरुद्ध कार्यवाही करने के बजाय हिंसा को जस्टिफाई किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि कुरान का अपमान हुआ, इस्लाम का अपमान हुआ, पता नहीँ क्या-2। वह भी सब झूठ और साजिश के तहत। फेसबुक पर झूठी पोस्ट वायरल की जा रही है। पुलिस और अन्य सुरक्षा एजेंसियां चुपचाप मूकदर्शक बनी हुई हैं। उनके सामने भी हिंसा हो रही है। धार्मिक हिंसा के विरुद्ध सख्त अंतरराष्ट्रीय कानून बनाए जाने की सख्त जरूरत है। दुनियादारी मानवीय नियम-कानूनों से चलनी चाहिए। किसी भी धर्म में कट्टरवाद बर्दाश्त नहीं होना चाहिये। सभी धर्म एक-दूसरे की ओर उंगली दिखाकर अपने कट्टरवाद को उचित ठहराते हुए उसे जस्टिफाई करते रहते हैं। यह रुकना चाहिए। कट्टरवाद के खिलाफ खुल कर बोलना चाहिए। मैं जो आज आध्यात्मिक अनुभवों के शिखर के करीब पहुंचा हूँ, वह कट्टरपंथ के खिलाफ बोलते हुए और उन्मुक्त जीवन जीते हुए ही पहुंचा हूँ। कई बार तो लगता है कि पश्चिमी देशों की हथियार निर्माता लॉबी के हावी होने से ही इन हिंसाओं पर इतनी अंतरराष्ट्रीय चुप्पी बनी रहती है। इस्कॉन मंदिर को गम्भीर रूप से क्षतिग्रस्त किया गया, भगवान की मूर्तियां तोड़ी गईं, और कुछ इस्कॉन अनुयायियों की बेरहमी से हत्या की गई। सबको पता है कि यह सब पाकिस्तान ही करवा रहा है। इधर दक्षिण एशिया में बहुत बड़ी साजिश के तहत हिंदुओं का सफाया हो रहा है, उधर पूरा अंतरराष्ट्रीय समुदाय चुप, संयुक्त राष्ट्र संघ चुप, मानवाधिकार संस्थाएँ चुप। क्या हिंदुओं का मानवाधिकार नहीँ होता? क्या हिंदु जानवर हैँ? फिर यूएनओ की पीस कीपिंग फोर्स कब के लिए है। हिंदुओं के विरुद्ध यह साजिश कई सदियों से है, इसीलिए तो पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदुओं की जनसँख्या कई गुणा कम हो गई है, और आज विलुप्ति की कगार पर है, पर मुसलमानों की जनसंख्या कई गुना बढ़ी है। अफगानिस्तान और म्यांमार में भी हिंदुओं के खिलाफ ऐसे साम्प्रदायिक हमले होते ही रहते हैं। यहाँ तक कि भारत जैसे हिन्दुबहुल राष्ट्र में भी अनेक स्थानों पर हिंदु सुरक्षित नहीं हैं, विशेषकर जिन क्षेत्रों में हिन्दु अल्पसंख्यक हैं। आप खुद ही कल्पना कर सकते हैं कि जब भारत जैसे हिन्दुबहुल देश के अंदर और उसके पड़ोसी देशों में भी हिंदु सुरक्षित नहीं हैं, तो 50 से ज्यादा इस्लामिक देशों में हिंदुओं की कितनी ज्यादा दुर्दशा होती होगी। पहले मीडिया इतना मजबूत नहीं था, इसलिए दूरपार की दुनिया ऐसी साम्प्रदायिक घटनाओँ से अनभिज्ञ रहती थी। पर आज तो अगर कोई छींकता भी है, तो भी ऑनलाइन सोशल मीडिया में आ जाता है। इसलिए आज तो जानबूझकर दुनिया चुप है। पहले संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी संस्थाएँ नहीं होती थीं। पर आज भी ये संस्थाएँ न होने की तरह ही लग रही हैं, क्योंकि ये अल्पसंख्यकों को कोई सुरक्षा नहीँ दे पा रही हैं। वैसा बोस भी क्या, जो अपने मातहतों को काबू में न रख सके। मुझे तो यह दिखावे का यूएनओ लगता है। उसके पास शक्ति तो कुछ भी नहीँ दिखती। क्योँ वह नियम नहीं बनाता कि कोई देश धर्म के आधार पर नहीँ बन सकता। आज के उदारवादी युग में धर्म के नाम पर राष्ट्र का क्या औचित्य है। धार्मिक राष्ट्र की बात करना ही अल्पसंख्यक के ऊपर अत्याचार है, लागू करना तो दूर की बात है। जब एक विशेष धार्मिक राष्ट्र का मतलब ही अन्य धर्मों पर अत्याचार है, तो यूएनओ इसकी इजाजत कैसे दे देता है। यूएनओ को चाशनी में डूबा हुआ खंजर क्यों नहीं दिखाई देता। प्राचीन भारत के बंटवारे के समय आधा हिस्सा हिंदुओं को दिया गया, और आधा मुसलमानों को। पर वस्तुतः हिंदुओं को तो कोई हिस्सा भी नहीं मिला। दोनों हिस्से मुसलमानों के हो गए लगते हैं। आज जिसे भारत कहते हैं, वह भी दरअसल हिंदुओं का नहीं है। दुनिया को हिन्दुओं का दिखता है, पर है नहीँ। यह एक बहुत बड़ा छलावा है, जिसे दुनिया को समझना चाहिए। भारत में एक विशेष धर्म को अल्पसंख्यक के नाम से बहुत से विशेषाधिकार प्राप्त हैं, जिसका ये खुल कर दुरुपयोग करते हैं, जिसकी वजह से आज भारत की अखंडता और संप्रभुता को खतरा पैदा हो गया लगता है। पूरी दुनिया में योग का गुणगान गाया जाता है, अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है, पर जिस धर्म से योग निकला है, उसे खत्म होने के लिए छोड़ दिया गया है। बाहर-बाहर से योग का दिखावा करते हैं। उन्हें यह नहीं मालूम कि यदि हिंदु धर्म नष्ट हो गया, तो योग भी नहीं बच पाएगा, क्योंकि मूलरूप में असली योग हिंदु धर्म में ही है। पतंजलि योगसूत्रों पर जगदप्रसिद्ध और गहराई से भरी हुई पुस्तक लिखने वाले एडविन एफ. ब्रयांट लिखते हैं कि हिंदू धर्म, विशेषकर इसके ग्रँथ (मुख्यतया पुराण) ही योग का असली आधारभूत ढांचा है, जैसे अस्थिपंजर मानव शरीर का आधारभूत ढांचा होता है। योग तो उसमें ऐसे ही सतही है, जैसे मानवशरीर में चमड़ी। जैसे मानव को चमड़ी सुंदर और आकर्षक लगती है, वैसे ही योग भी। पर अस्थिपंजर के बिना चमड़ी का अस्तित्व ही नहीँ है। इसलिए योग को गहराई से समझने के लिए हिन्दु धर्म विशेषकर पुराणों को गहराई से समझना पड़ेगा। इसीलिए योग को बचाने के लिए हिन्दु धर्म और उसके ग्रन्थों का अध्ययन और उन्हें संरक्षित करने की जरूरत है। उनकी पुस्तक पढ़ कर लगता है कि उन्होंने कई वर्षों तक कड़ी मेहनत करके हिन्दु धर्म, विशेषकर पुराणों को गहराई से समझा है, उसे अपने जीवन में उतारा है। मैंने भी हिंदु धर्म का भी गहराई से अध्ययन किया है, और योग का भी, इसलिए मुझे पता है। कुछ धर्म तो हिंदु धर्म का विरोध करने के लिए ही बने हुए लगते हैं। हिंदु धर्म पूरी तरह से वैज्ञानिक है। असली धर्मनिरपेक्षता हिन्दु धर्म में ही समाहित है, क्योंकि इसमें दुनिया के सभी धर्म और आचार-विचार समाए हुए हैं। यहां तक कि एक मुस्लिम मौलवी और जमीयत उलेमा हिंद के नेता, मुफ्ती मोहम्मद इलियास कासमी ने भी भगवान शिव को इस्लाम के पहले दूत के रूप में संदर्भित किया है। ज्यादा बताने की जरूरत नहीं है। समझदारों को इशारा ही काफी होता है। जिन धर्मों को अपने बढ़ावे के लिए हिंसा, छल और जबरदस्ती की जरूरत पड़े, वे धर्म कैसे हैं, आप खुद ही सोच सकते हैं। मैंने इस वेबसाइट में हिंदु धर्म की वैज्ञानिकता को सिद्ध किया है। अगर किसी को विश्वास न हो तो वह इस वेबसाइट का अध्ययन कर ले। मैं यहाँ किसी धर्म का पक्ष नहीं ले रहा हूं, और न ही किसी धर्म की बुराई कर रहा हूँ, केवल वैज्ञानिक सत्य का बखान कर रहा हूं, अपनी आत्मा की आवाज बयाँ कर रहा हूँ, अपने कुंडलिनी जागरण के अनुभव की आवाज को बयाँ कर रहा हूँ, अपने आत्मज्ञान के अनुभव की आवाज को बयाँ कर रहा हूँ, अपने पूरे जीवन के आध्यात्मिक अनुभवों की आवाज को बयां कर रहा हूँ, अपने दिल की आवाज को बयां कर रहा हूँ। मैं तो कुछ भी नहीँ हूँ। एक आदमी क्या होता है, उसका तर्क क्या होता है, पर अनुभव को कोई झुठला नहीं सकता। प्रत्यक्ष अनुभव सबसे बड़ा प्रमाण होता है। आज इस्कॉन जैसे अंतरराष्ट्रीय हिन्दु संगठन की पीड़ा भी किसी को नहीं दिखाई दे रही है, जबकि वह पूरी दुनिया में फैला हुआ है। मैंने उनकी पीड़ा को दिल से अनुभव किया है, जिसे मैं लेखन के माध्यम से अभिव्यक्त कर रहा हूँ। यदि हिंदु धर्म को हानि पहुंचती है, तो प्रकृति को भी हानि पहुंचती है, धरती को भी हानि पहुंचती है। प्रकृति-पूजा और प्रकृति-सेवा का व्यापक अभियान हिंदु धर्म में ही निहित है। देख नहीँ रहे हो आप, दुनिया के देशों के बीच किस तरह से घातक हथियारों की होड़ लगी है, और प्रदूषण से किस तरह धरती को नष्ट किया जा रहा है। धरती को और उसके पर्यावरण को यदि कोई बचा सकता है, तो वह हिंदु धर्म ही है। भगवान करे कि विश्व समुदाय को सद्बुद्धि मिले।
Category: दंगे-फ़साद
कुण्डलिनी के विकास के लिए कोरोना (कोविड-19) से सहायता प्राप्त करना; नई दिल्ली की निजामुद्दीन-मस्जिद में तबलीगी जमात के मरकज की घटना; एक आध्यात्मिक-मनोवैज्ञानिक विश्लेषण
हम किसी भी धर्म का समर्थन या विरोध नहीं करते हैं। हम केवल धर्म के वैज्ञानिक और मानवीय अध्ययन को बढ़ावा देते हैं।
इस पोस्ट में दी गई समाचारीय सूचना को सबसे अधिक विश्वसनीय माने जाने वाले सूत्रों से लिया गया है। इसमें लेखक या वैबसाईट का अपना कोई योगदान नहीं है।
दोस्तों, अभी दुनियाभर में लौक डाऊन का सख्ती से पालन किया जा रहा है, ताकि कोरोना महामारी से बचा जा सके। भारत में भी पूरे देश में 14 अप्रैल तक संपूर्ण लौकडाऊन है। यह लौकडाऊन 21 दिनों का है। सभी लोग अपने घरों में कैद हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कह रहे हैं कि उससे कुछ दिनों के लिए तो महामारी कम हो जाएगी, पर लगभग 45 दिनों के लगातार लौकडाऊन से ही महामारी से पूरी तरह से बचा जा सकता है।
ऐसी लौकडाऊन की स्थिति में इस्लाम को मानने वाली कट्टरपंथी तबलीगी जमात के लोग कोरोना वायरस से दोस्ती निभा रहे हैं। नई दिल्ली में अनेक कोरोना संक्रमित देशों के लोग अभी हाल ही में इकट्ठे हुए, जब नई दिल्ली में कर्फ्यू लगा हुआ था। ये लोग टूरिस्ट वीजा पर भारत आए हुए थे, पर यहाँ पर वे धर्म-प्रचार कर रहे थे, जो कि अवैध है। इन्होंने पुलिस की चेतावनी को भी नहीं माना। अनेकों बार पुलिस भी इनसे डरती है, क्योंकि ये सामने तो खुली हिंसा पर उतारू हो जाते हैं, पर पीठ के पीछे प्रताड़ित होने का ढोंग करते हैं। अधिकाँश देशी-विदेशी मीडिया भी इन्हें प्रताड़ित की तरह प्रस्तुत करते हैं। सूक्ष्म परजीवियों (कोरोना वायरस) की भी शरीर के अन्दर ऐसी ही स्ट्रेटेजी होती है। मीडिया टेप के सामने आने से यह खुलासा हुआ है कि निजामुद्दीन की उस तबलीगी मस्जिद में उसके अध्यक्ष मौलाना साद लोगों को भड़का रहा है। वह सभी को कह रहा है कि मुसलामानों को आपस में नजदीकी बनाए रखना चाहिए, और एक थाली में खाना खाना नहीं छोड़ना चाहिए। और कहता है कि कोरोना वायरस का प्रोपेगेंडा मुसलमानों को अलग-थलग करने के लिए फैलाया गया है। अल्लाह ने अगर कोरोना से मौत लिखी है, तो कोई नहीं बचा सकता। मस्जिद में मरने से अच्छा क्या काम हो सकता है। अल्लाह को मानने वाले डाक्टर से ही अपना इलाज करवाएं। फिर वे लोग उस मस्जिद से निकलकर पूरे देश में फैल गए। उनमें से बहुत से लोग कोरोना से संक्रमित पाए गए। कुछ मर गए। बहुत से लोग अभी भी मस्जिद आदि में छुपे हुए हैं, जो पकड़ में नहीं आ रहे हैं। यहाँ तक कि जब कुछ लोगों को क्वारनटाइन में रखने का प्रयास किया गया, तो वे हरेक हिदायत को ठुकराने लगे, दुर्व्यवहार करने लगे, पत्थरबाजी करने लगे (कुछ तो फायरिंग करते हुए भी सुने गए), और कर्मचारियों पर थूकने लगे, ताकि कोरोना वायरस हर जगह फैल सके। इस घटना के बाद पूरे देश में कोरोना मरीजों की संख्या एकदम से बढ़ी है, जिसने लौकडाऊन की सफलता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।
कुण्डलिनी जीवन और मृत्यु के संगम में निहित है
धार्मिक शास्त्रों में मृत्यु से संबंधित युद्ध, दुर्भिक्ष आदि आपदाओं की बहुत सी कहानियां आती हैं। साथ में, उन्हीं शास्त्रों में ही जीवन से भरपूर कथा-रस भी बहुतायत में है। इससे जीवन और मृत्यु के संगम की अनुभूति होती है। उसी संगम को अद्वैत कहते हैं। उसी अद्वैत के साथ कुण्डलिनी भी विद्यमान होती है। यह धार्मिकता कथा-कहानियों तक ही सीमित रहनी चाहिए। जब उन्हें असली जीवन में हूबहू उतारने का प्रयास किया जाता है, तब उसे अतिवादी या कट्टर धार्मिकता कहा जाता है।
कुण्डलिनी की प्राप्ति के लिए अति लालसा से प्रेरित होकर ही अमानवीय काम होते हैं
इसी वजह से ही कई बार कुण्डलिनी योगी नीरस, उबाऊ, कट्टर, अमानवीय, व उग्रवादी जैसे लगते हैं। ऐसा इसलिए लगता है, क्योंकि उनमें मृत्यु का भय नहीं होता। अपनी कुण्डलिनी के प्रभाव से वे जीवन-मृत्यु में, यश-अपयश में, व सुख-दुःख में समान होते हैं। उनके मन में यह समता कुण्डलिनी योग साधना से छाई होती है। परन्तु धार्मिक कट्टरवादी इस समता/अद्वैत को अमानवीय कामों से पैदा करते हैं। वे गलत काम करते हैं, ताकि उनके मन से मृत्यु, अपयश व दुःख का भय ख़त्म हो ज्जाए। इससे वे भी जीवन-मृत्यु में, यश-अपयश में, व सुख-दुःख में समान रहने लगते हैं। इस अद्वैत से उनके मन में कुण्डलिनी अप्रत्यक्ष तरीके से आकर बस जाती है।
मतलब साफ है कि कुण्डलिनी योगी कुण्डलिनी की मदद से अद्वैत को प्राप्त करता है, परन्तु धार्मिक कट्टरवादी आमानवीय कामों से अद्वैत को प्राप्त करता है। किसी कारणवश धार्मिक कट्टरवादी कुण्डलिनीयोग नहीं कर पाते हैं। उनके पास मध्य मार्ग के अनुसार संतुलित व तांत्रिक जीवन जीने का अवसर होता है, पर वे उस पर विशवास नहीं करते, और उसे बहुत धीमा तरीका भी मानते हैं। आध्यात्मिक मुक्ति के प्रति इसी अति लालसा से प्रेरित होकर वे अमानवतावादी बन जाते हैं। उनमें से बहुत कम लोग ही सफल हो पाते हैं, बाकि सारे तो नरक की आग में गिर जाते हैं। तभी तो कई धर्मों में पुनर्जन्म को माना गया है, ताकि आदमी निरुत्साहित होकर अमानवीय न बन जाए, और वह यह समझ सके कि उसकी साधना की कमी उसके अगले जन्म में पूरी हो जाएगी।
कुण्डलिनी ही दंगों के लिए जिम्मेदार है, और कुण्डलिनी ही दंगों से सुरक्षा के लिए भी जिम्मेदार है; एनआरसी के विरोध में दिल्ली दंगों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण
हम किसी भी धर्म का समर्थन या विरोध नहीं करते हैं। हम केवल धर्म के वैज्ञानिक और मानवीय अध्ययन को बढ़ावा देते हैं।
पिछली पोस्ट में हमने पढ़ा कि किस प्रकार से दिल्ली दंगों की तैयारी बेहतरीन बारीकी, तालमेल और गोपनीयता से लम्बे समय से चल रही थी। हिंसक अभियान को अंजाम देने वाली ऐसी उम्दा कार्यशैली तो हमारे अपने शरीर में ही दिखाई देती है, अन्यत्र कहीं नहीं। क्योंकि हमारा पूरा शरीर कुण्डलिनी शक्ति (अद्वैत शक्ति) के द्वारा चलायमान है, इससे सिद्ध होता है कि दिल्ली की जेहादी मानसिकता वाली घटना के पीछे भी कुण्डलिनी शक्ति का ही मुख्य योगदान था।
कुण्डलिनी से ही पिंड (माईक्रोकोस्म) और ब्रह्माण्ड (मैक्रोकोस्म) की सत्ता है
शरीरविज्ञान दर्शन में शरीर के सूक्ष्म समाज और मनुष्य के स्थूल समाज के बीच में पूर्ण समानता सिद्ध की गई है। जब-२ मैं उस दर्शन के बारे में विचार करते हुए काम करता था, तब-२ मेरे मन में कुण्डलिनी (अद्वैत शक्ति) छा जाया करती थी। इस दर्शन के 15 साल के अभ्यास से मेरी कुण्डलिनी एकबार क्षणिक रूप से जागृत भी हुई थी। इससे सिद्ध होता है कि शरीर अद्वैत तत्त्व या कुण्डलिनी से चलायमान है, क्योंकि जहाँ अद्वैत तत्त्व है, वहां पर कुण्डलिनी भी विद्यमान है। क्योंकि हमारा शरीर सृष्टि की हूबहू नक़ल है, इसलिए सृष्टि के मामले में भी कुण्डलिनी ही पूरी तरह से जिम्मेदार है।
हमारे अपने शरीर की सुरक्षा प्रणाली बड़ी जटिलता और सटीकता प्रदर्शित करती है
हमारे शरीर की सुरक्षा प्रणाली में भी सूक्ष्म सैनिक (श्वेत रक्त कण), सूक्ष्म अधिकारी (होरमोन आदि), सूक्ष्म सैन्य वाहन (ब्लड फ्लो से मोबिलिटी), सूक्ष्म हथियार (टोक्सिन आदि), सूक्ष्म गुप्तचर (विभिन्न सन्देश प्रणालियाँ) व अन्य सभी कुछ सूक्ष्म रूप में होता है। चालाकी से भरी हुई सूक्ष्म योजनाएं (जैव रासायनिक अभिक्रियाएँ आदि) बनती हैं। शरीर पर हमला करने वाले सूक्ष्म उग्रपंथियों (कीटाणुओं) को मारने के लिए अनेक प्रकार के हथकंडे अपनाए जाते हैं। यदि दिल्ली के सुरक्षाबलों के पास भी ऐसी ही कार्यशैली होती, तो उग्रपंथी दंगे न कर पाते। यदि वे भी देह-देश की तरह ही कुण्डलिनी की सहायता लेते, तो अवश्य सहायता मिलती।
शरीर पर हमला करने वाले कीटाणु (जैसे कि कोरोना वायरस) भी कुण्डलिनी की मदद से ही कई बार शरीर की सुरक्षा व्यवस्था को धूल चटा देते हैं
कीटाणुओं (उग्रपंथियों, उदाहरण के लिए कोरोना वायरस) की कार्यप्रणाली भी बड़ी जटिल व चतुराई से भरी होती है। वे शरीर को तबाह करने का प्रयास पूरी तत्परता व धर्म-निष्ठा से करते हैं। वैसा वे कुण्डलिनी की सहायता लेकर करते हैं। फर्क सिर्फ यह है कि वे अमानवीय काम को अंजाम देने के लिए कुण्डलिनी की मदद लेते हैं, जबकि श्वेत रक्त कण (सुरक्षक सैनिक) मानवता को बचाने के लिए।
हर बार शरीर-समाज के सैनिक अपने समाज पर हमला करने वाले उग्रपंथियों को मुंहतोड़ जवाब देकर उन्हें तबाह करते हैं। विरले मामलों में वे उग्रपंथी शरीर-समाज पर भारी पड़ जाते हैं, जिससे शरीर रोगी बन जाता है। वैसी हालत में भी शरीर उनका डट कर मुकाबला करता है। वैसे मामलों में भी बहुत विरले मामलों में ही सूक्ष्म उग्रपंथी शरीर को तबाह कर पाते हैं।
परन्तु हमारे अपने स्थूल समाज में इससे उलट हो रहा है। धार्मिक उग्रपंथी धर्म के नाम से कुण्डलिनी की मदद लेते हुए हर बार जान-माल का बहुत नुक्सान कर जाते हैं। विरले मामलों में ही सुरक्षाबल उनकी योजनाओं को विफल कर पाते हैं। इसका मतलब है कि हमारे सुरक्षाबलों को सशक्त होने की जरूरत है, जिसके लिए कुण्डलिनी की भरपूर सहायता प्राप्त की जानी चाहिए।
अनगिनत संख्या में युद्ध, इस शरीर-देश के अंदर और बाहर चल रहे हैं, हर पल। घृणा से भरे कई दुश्मन, लंबे समय तक सीमा दीवारों के बाहर जमे रहते हैं, और शरीर-मंडल/देश पर आक्रमण करने के सही अवसर की प्रतीक्षा कर रहे होते हैं। जब किसी भी कारण से इस जीवित मंडल की सीमा-बाड़ क्षतिग्रस्त हो जाती है, तो वे दुश्मन सीमा पार कर जाते हैं। वहां पर वे रक्षा विभाग की पहली पंक्ति के द्वारा हतोत्साहित कर दिए जाते हैं, जब तक कि रक्षा-विभाग की दूसरी पंक्ति के सैनिक उन दुश्मनों के खिलाफ कड़ी नफरत और क्रोध दिखाते हुए, वहां पहुँच नहीं जाते। फिर महान युद्ध शुरू होता है। अधिकांश मामलों ………..
हमारा अपना शरीर एक अद्वैतशाली ब्रम्हांड-पुरुष
यह पोस्ट “शरीरविज्ञान दर्शन” पुस्तक से साभार ली गई है।
शरीरविज्ञान दर्शन- एक आधुनिक कुण्डलिनी तंत्र (एक योगी की प्रेमकथा)
कुण्डलिनी से प्रेरित होकर ही धर्म या परंपरा का निर्माण हुआ, जिससे पैदा होने वाले अद्वैत के नशे के अन्दर कुछ स्वार्थी धार्मिक कट्टरपंथियों ने नफरत का इतना जहर घोल दिया, जिससे पैदा होने वाली हिंसा से कई सभ्यताएं व संस्कृतियाँ समूल नष्ट हो गईं, और कई नष्ट होने की कगार पर हैं
हम किसी भी धर्म का समर्थन या विरोध नहीं करते हैं। हम केवल धर्म के वैज्ञानिक और मानवीय अध्ययन को बढ़ावा देते हैं।
दोस्तों, अभी हाल ही में दिल्ली में आम आदमी पार्टी (AAP) के विधायक ताहिर हुसैन के घर की छत से बहुत से देसी हथियार बरामद हुए हैं, जिनसे दिल्ली में मासूम लोगों की भीड़ को निशाना बनाया गया, जिससे बहुत से लोगों की जानें भी गईं। वास्तव में वह एकाएक नहीं हुआ। उसके लिए कट्टरपंथियों की योजना बड़े सुनियोजित तरीके से लम्बे समय से चल रही थी। वास्तव में उस साजिश को रचने के लिए इस्लामिक कट्टरपंथियों के द्वारा कुण्डलिनी-सिद्धांत का ही सहारा लिया गया, हालांकि दुनिया के सामने ये कुण्डलिनी को सिरे से नकारते हैं।
कुण्डलिनी एक शक्ति है, जो कुछ धार्मिक परंपरागत मामलों में अच्छे कामों की तरह ही बुरे काम भी करवा सकती है
हमें इस भ्रम में कभी नहीं रहना चाहिए कि कुण्डलिनी आदमी से बलपूर्वक अच्छे काम करवाती रहती है। यह सत्य है कि कुछ सीमा तक कुण्डलिनी आदमी को अच्छे काम करने के लिए प्रेरित करती है। परन्तु अंतिम निर्णय लेने की स्वतंत्रता आदमी के अपने पास ही होती है। आदमी कुण्डलिनी के इशारे को बलपूर्वक नजरअंदाज करके कुण्डलिनी शक्ति से बुरे काम को भी अंजाम दे सकता है। यद्यपि उससे उसे बहुत बड़े पाप का भागी बनना पड़ता है। कुण्डलिनी का ऐसा ही दुरुपयोग कुछ काले तांत्रिक करते हैं। तभी तो कहा है कि कुण्डलिनी तंत्र यदि स्वर्ग दे सकता है, तो नरक भी दे सकता है। परन्तु डरने की बात नहीं। ऐसा अक्सर तभी होता है, जब लम्बी परंपरा के वशीभूत होकर कुण्डलिनी के इशारे को लम्बे समय तक दबाया जाता है। ऐसी ही एक विकृत परम्परा धार्मिक कट्टरपंथियों व उग्रपंथियों की है, जो धर्म के नाम पर अमानवीय काम करते हैं। वैसे कुण्डलिनी आदमी को सुधरने के अवसर लागातार देती रहती है। जब-२ आदमी गलत काम करने वाला होता है, तब-२ यह एक सच्चे गुरु की तरह आदमी के सामने आने लगती है, और उसे समझाने जैसे लगती है। अच्छे काम करने पर यह शाबाशी भी देती है।
कुण्डलिनी को आसानी से सबके लिए उपलब्ध करवाने के लिए ही नियमबद्ध परंपरा या धर्म का निर्माण होता है
परंपरा या धर्म की रचना भी कुण्डलिनी सिद्धांत से ही प्रेरित थी। आम आदमी कुण्डलिनी को नहीं समझ सकता था। इसलिए धर्म या परम्परा के नाम से आदमी को बाँधने वाला मानसिक खूंटा बनाया गया। उसमें आदमी के हरेक काम व व्यवहार के नियम बनाए गए, जिनसे आदमी का मन हर समय उस धर्म विशेष से बंधा रहता। उससे आदमी नशे के जैसी मस्ती व आनंद में डूबा रहने लगा। अवसादरोधी (एंटीडिप्रेसेंट) दवाओं (ड्रग्स) को खाने से भी वैसा ही कुण्डलिनी जैसा नशा महसूस होता है। तभी तो साम्यवादी लोग धर्म को एक प्रकार का नशा मानते हुए उसका विरोध करते हैं। हालांकि नशे से उत्पन्न अद्वैत और कुण्डलिनी से उत्पन्न अद्वैत के बीच में गुणवत्ता का बहुत फर्क होता है।
इतिहास गवाह है कि धर्म के नशे से कई सभ्यताएं रक्तरंजित हुईं
धर्म के नशे के कारण आदमी अंधा जैसा हो गया। वह धर्म पर इतना विश्वास करने लगा कि उसे उसमें बताई गई गलत बातें भी सही लगने लगीं। इसी धर्म के नशे की कड़वाहट में छुपाकर कई स्वार्थी व अमानवीय तत्त्वों ने इतना ज्यादा नफरत का जहर घोला, जिससे कई संस्कृतियाँ व सभ्यताएं रक्तरंजित हुईं।
कुण्डलिनी द्वारा सुरक्षा की भावना के विकास के माध्यम से दंगों की रोकथाम
आजकल अधिकाँश लोगों में जरुरत से ज्यादा असुरक्षा की भावना बढ़ गई है। जो लोगों के पास है, उसका वे पूरा आनंद उठा ही नहीं पाते हैं। इसका कारण यही है कि वे भविष्य की चिंता अधिक करते हैं। लोगों के अन्दर भविष्य के मामले में असुरक्षा की भावना इस कदर बढ़ गई है कि वे हिंसक होकर अपने वर्तमान को बिगाड़ने पर तुल गए हैं। उदाहरण के लिए, भारत की संसद से पारित किए गए एक बिल को ही लें। इस बिल का नाम नागरिकता संशोधन विधेयक / सीएए (citizen amendment act/ CAA) है। इस बिल में पड़ौसी देशों में प्रताड़ित धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारत में नागरिकता देने का प्रावधान है। ये पड़ौसी देश वही हैं, जो धर्म के नाम पर भारत से अलग हुए थे। वे देश तो इस्लामिक राष्ट्र बन गए, पर भारत धर्मनिरपेक्ष (यद्यपि मुस्लिम तुष्टिकरण के साथ) देश बना रहा।
उपरोक्त बिल के विरोध के लिए भारत के मुस्लिम भाइयों को स्वार्थपरक राजनेताओं व बुद्धिजीवियों द्वारा धर्म के नाम पर भड़काया जा रहा है। वे इसके विरोध में हिंसक प्रदर्शन कर रहे हैं। उनका मानना है कि वर्तमान में तो यह बिल उचित और मानवतावादी है। उनके मन का डर तो केवल अनजाने भविष्य के प्रति आशंकाओं (एनआरसी / NRC बिल आदि) को लेकर है। ऐसे लोग क़ानून से बच नहीं पाएंगे।
भविष्य से सम्बंधित सुरक्षा की भावना के मामले में पशु मनुष्य से बेहतर हैं
मैं पिछले गर्मी के मौसम में अपनी पत्नी के साथ सायं भ्रमण कर रहा था। वहां हम एक घास के मैदान में बने एक बैंच पर बैठ गए। वहां पर एक गाय बैठी थी, जो बड़े आराम से जुगाली कर रही थी। ऐसा लग रहा था कि दुनिया के सारे सुख उसे उस समय मिले हुए थे। वह प्रसन्न थी। उसके चेहरे पर अपने निकट भविष्य की चिंता जरा भी नजर नहीं आ रही थी। कुछ ही महीनों में कड़ाके की ठण्ड पड़ने वाली थी। वह बेघर थी, इसलिए स्वाभाविक था कि दो महीने की सर्दियों की रातों का ख्याल ही उसके होश उड़ा देता। पर वह उससे बेखबर होकर अपनी मौजूदा स्थिति का भरपूर लुत्फ उठा रही थी। कोई आदमी होता, तो पूरा गर्मियों का मौसम डर-२ के गुजरता। वह आने वाली सर्दियों की चिंता में डूबा रहता, और गर्मियों की सुहानी रातों का जरा भी आनंद न ले पाता। अपने विश्लेषण करने वाले दिमाग पर जरूरत से ज्यादा भरोसा करने से ऐसा ही होता है। ऐसे झूठे दिमागी जंजालों से बचने के लिए अद्वैत और कुण्डलिनी का सहारा लेना चाहिए।
कुण्डलिनी से सुरक्षा की भावना कैसे बढ़ती है?
कुण्डलिनी योग से मन की कुण्डलिनी मजबूत होती है। उससे अद्वैत भाव मजबूत होता है। अद्वैत भाव के मजबूत होने से आदमी को सभी कुछ एकसमान लगता है। इससे उसके मन में किसी ख़ास चीज के प्रति आसक्ति नहीं रहती। वह किसी ख़ास चीज को प्राप्त करने के लिए छटपटाता नहीं है। इसी वजह से वह किसी भी परिस्थिति का विरोध नहीं करता। यदि कभी करता भी है, तो शांतिपूर्वक ढंग से करता है। मानवता, अहिंसा, और शांति तो कुण्डलिनी योगी के अन्दर सबसे प्रमुख गुण होते हैं। कुण्डलिनी इंसान को इंसान बनाती है।
कुण्डलिनी समस्याओं से कैसे बचाती है?
कुण्डलिनी आदमी को नियंत्रित रखती है। वह आदमी को भड़कने नहीं देती। वह आदमी के धीरज को बढ़ाती है। उससे अद्वैत व शान्ति का अनुभव होता है। उससे दिमाग अच्छी तरह से व सकारात्मक रूप से काम करने लगता है। उससे समस्या को सुलझाने में मदद मिलती है। कुण्डलिनी पूरे शरीर में घूमती रहती है, जिससे पूरा शरीर स्वस्थ रहता है। उससे आदमी का शरीर बलवान और मेहनती बनता है। उससे भी समस्याएँ सुलझने लगती हैं।
यह सत्य सिद्धांत है कि कर्म का फल अवश्य मिलता है। कुण्डलिनी से आदमी बुरे काम कर ही नहीं पाता। उससे उसे भविष्य में बुरे फल मिलने की सम्भावना नहीं रहती। उससे भविष्य की समस्याएँ रुक जाती हैं।
कुण्डलिनी योग एक वैज्ञानिक और प्राकृतिक धर्म
इतिहास गवाह है कि अधर्म ने मानवता का उतना नुक्सान नहीं किया है, जितना धर्म ने किया है। सबसे पहला, प्राकृतिक और मानवतावादी धर्म कुण्डलिनी योग ही था। उसको किसी विशेष स्थान से सम्बन्ध रखने वाले और विशेष विचारधारा वाले लोगों के संगठन ने अपनाया। उससे हिन्दु धर्म बन गया। कुछ दूसरे स्थानों पर रहने वाले लोगों के विभिन्न संगठनों ने हिन्दु धर्म का विरोध करने वाले कुछ विभिन्न धर्म बना लिए। परन्तु वे इस गलतफहमी में रहे कि कुण्डलिनी योग हिन्दु धर्म की खोज है। वे आज तक इसी भ्रम में हैं। इसीलिए वे कुण्डलिनी योग को अपनाने में हिचकिचाते हैं। परन्तु वास्तविकता यह है कि कुण्डलिनी योग पूरी तरह से वैज्ञानिक, बेरंग और कुदरती है। कुण्डलिनी योग के बिना तो कोई भी धर्म अधूरा है।
प्रेमयोगी वज्र के जीवन में कुण्डलिनी का योगदान
वह एक बिलकुल साधारण आदमी था। जब से उसे कुण्डलिनी का साथ मिला, तभी से वह तरक्की करने लगा। उसे तो कुण्डलिनी का बहुत सहयोग मिला। वास्तव में भगवान् कुण्डलिनी के माध्यम से ही सहायता करता है। उसी की सहायता से वह उच्च अध्ययन कर पाया। उसी की सहायता से वह उच्च भावना के साथ लोगों की सेवा कर पाया। उसी की वजह से वह उच्च स्तर का जीवन जी पाया। उसी की वजह से वह अनेक प्रकार की समस्याओं से बच पाया, और अनेक प्रकार की समस्याओं पर काबू पा पाया।
वह एक बार अपने घर समेत अपनी सारी संपत्तियों को छोड़कर घर से बहुत दूर चला गया। इससे उसकी भविष्य की सभी चिंताएं मिट गईं। उस नए व वीरान स्थान पर उसे अपनी असुरक्षा की भावना बिलकुल भी महसूस नहीं हुई। इससे उसे शान्ति मिली और वह कुण्डलिनी के बारे में अध्ययन करने लगा, और कुण्डलिनी योग करने लगा। एक साल के अन्दर ही उसकी कुण्डलिनी जागृत हो गई। कुण्डलिनी जागरण का अर्थ है, दुनिया के सभी सुखों की एकसाथ प्राप्ति। इससे मन पूरी तरह से तृप्त और संतुष्ट हो जाता है।
सीधा सा अर्थ है कि भविष्य को लेकर चिंता और असुरक्षा की भावना झूठी होती है। उनसे कुछ प्राप्त नहीं होता है, बल्कि जो अपने पास होता है, वह भी चला जाता है। इनसे जितना बचा जा सके, बचना चाहिए।
कुण्डलिनी ही वास्तविक धर्मनिरपेक्षता है ।
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शरीरविज्ञान दर्शन- एक आधुनिक कुण्डलिनी तंत्र (एक योगी की प्रेमकथा)
कुण्डलिनी की वैज्ञानिकता को सिद्ध करने वाली निम्नलिखित पुस्तक अनुमोदित की जाती है।
कुण्डलिनी विज्ञान- एक आध्यात्मिक मनोविज्ञान
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