शिव की तरह शक्ति भी शाश्वत है
दोस्तों, मैं पिछली पोस्ट में बता रहा था कि शक्ति कहाँ से आती है। शाक्त कहते हैं कि शिव की तरह शक्ति भी शाश्वत है। यह मानना ही पड़ेगा, क्योंकि अगर शक्ति नाशवान है, तब वह सृष्टि के प्रारम्भिक शून्य आकाश में कहाँ से आती है। अगर शिव को ही एकमात्र अविनाशी और मूल तत्त्व माना जाए तो एक नया स्पष्टीकरण है। सूक्ष्मशरीर रूपी क्वांटम फ्लकचूएशनस आत्मा में रिकॉर्ड हो जाती हैं। उन क्वांटम फ्लकचूएशनस के अनुसार ही आत्मा में अंधेरा होता है। मतलब क्वांटम फ्लकचूएशनस की किस्म और मात्रा के अनुसार ही आत्मा का अंधेरा भिन्नता रखता है। यह नियम व्यष्टि और समष्टि, दोनों ही मामलों में लागू होता है। इसे ही कारण शरीर कहते हैं। आत्मा का वही अंधेरा फिर सृष्टि के प्रारम्भ में अपने अनुसार पुनः क्वांटम फ्लकचूएशन पैदा करता है। मतलब कारण शरीर या कारण ब्रह्माण्ड सूक्ष्मशरीर या सूक्ष्म ब्रह्माण्ड के रूप में आ जाता है। उससे फिर स्थूल शरीर या स्थूल ब्रह्माण्ड बन ही जाता है। पर प्रश्न फिर भी बचा ही रहता है। फौरी तौर पर तो यही उत्तर बनता है कि अँधेरे अंतरिक्ष के रूप में शक्ति अर्थात कारण शरीर तो रहता है, पर अनुभव के रूप में उसका अपना अस्तित्व नहीं होता, अनुभव के रूप में वह परमात्मा शिवरूप ही होता है। या कह लो कि शक्ति शून्य शिव से एकाकार हो जाती है।
सृष्टि के प्रारम्भ में शक्ति शिव से अलग होकर सृष्टि की रचना प्रारम्भ करती है
जैसे सरोवर का जल हमेशा हिलता रहता है वैसे ही अंतरिक्ष में हमेशा सूक्ष्म तरंगें उठती रहती हैं। दोनों में कभी हवा आदि से लहरें ज्यादा बढ़ जाती हैं। यही एनर्जी से कण का उदय है। अंतरिक्ष में ये तरंगें आकाशीय पिंडों के आपस में टकराने से बनती हैं। यह तो वैज्ञानिक भी बोलते हैं कि जब अंतरिक्ष में ज्यादा उथलपुथल मचती है, तो नए ग्रहों व सितारों आदि का ज्यादा निर्माण होता है। पर शुरुआत के शून्य अंतरिक्ष में यह उथलपुथल कैसे मचती है, यह खोज का विषय है।
ब्लैक होल में ब्रह्माण्ड के जन्म और मृत्यु का राज छिपा हो सकता है
तारा जब मरता है तो वह सिंगुलेरिटी तक कंम्प्रेस होकर ब्लैक होल बन जाता है। वह सिंगुलेरिटी अव्यक्त आकाश में विलीन हो जाती है, क्योंकि किसी चीज के छोटा होने की अंतिम सीमा शून्य आकाश में जाकर ही खत्म होती है। मतलब वह पहले स्बसे छोटा मूलकण बनता है। उसकी ग्रेविटी बहुत ज्यादा होती है। मतलब वह क्वांटम ग्रेविटी है। इसमें एक मूलकण से सृष्टि बनने का राज अर्थात बिग बैंग का राज छिपा हुआ है। जब एक मूलकण के अंदर पूरा तारा समा सकता है तो उससे पूरे तारे का उदय भी तो हो सकता है। वह पुनः-रचना व्हाइट होल के माध्यम से हो सकती है। तभी कहते हैं कि ब्लेक होल सृष्टि रचना की फैक्ट्री हो सकता है। हो सकता है कि सृष्टि के अंत में ग्रेविटी हावी होकर पूरे ब्रह्माण्ड या पूरी सृष्टि को ही ब्लैक होल बना कर खत्म कर दे। फिर पूरा अंतरिक्ष ही ब्लैक होल अर्थात अव्यक्त आकाश अर्थात अंधकारपूर्ण आकाश अर्थात मूल प्रकृति बन जाएगा। हालांकि उसमें पूरी सृष्टि उच्च दबाव में समाई होगी। अब ये नहीं पता कि वह किस रूप में उसमें होगी। जब उस परम ब्लैक होल का अंधकाररूप दबाव एक निश्चित मात्रा या समय सीमा को लांघेगा, तब प्रलय का अंत हो जाएगा और उसमें दबे अव्यक्त पदार्थ प्रकाशमान तरंगों के रूप में बाहर अर्थात परम व्यक्त अर्थात परम पुरुष की ओर प्रस्फुटित होने लगेंगे। इसे ही प्रकृति और पुरुष अर्थात यिन और यांग के बीच आकर्षण और सम्भोग कहा जाता है। इससे शिशु रूप में नई सृष्टि का पुनर्जन्म और विकास होगा। सम्भवतः इसीलिए शास्त्रों में अनेक स्थानों पर मन के विचारों मुख्यतः कुण्डलिनी छवि को भी पुत्र कह कर सम्बोधित किया जाता है। उदाहरण के लिए देव कार्तिकेय, सगर-पुत्र आदि। स्वाभाविक है कि सृष्टि पहले की तरह ही बनेगी क्योंकि पिछली सृष्टि के दबे पदार्थ ही उसे बना रहे हैं। नई सृष्टि बनने की प्रक्रिया और क्रम भी पुरानी की तरह ही होगा क्योंकि अक्सर देखा जाता है कि जिस क्रम में कोई चीज टूट कर नष्ट होती है, वह लगभग उसी क्रम और प्रक्रिया में आगे से आगे जुड़ते हुए पुनः निर्मित होती है। यह भी हो सकता है कि बिग क्रन्च होने की बजाय बिग बैंग ही चलता रहे, जिससे अंत में सभी मूलकण भी एकदूसरे से दूर छिटक कर आकाश में विलीन हो जाएं। पर बनेगा तो तब भी ब्लैक होल जैसा ही। उसमें भी सब कुछ यहाँ तक कि प्रकाश भी टूट कर मूल अंतरिक्ष के अँधेरे में गायब हो जाएगा।
आदमी का सूक्ष्म शरीर भी एक ब्लैक होल ही है
आदमी भी तो ऐसे ही मरता है। सारे जीवन भर मानसिक ब्रह्माण्ड का निर्माण करता है। अंत में सब कुछ अँधेरनुमा ब्लैकहोल जैसे अव्यक्त में समा जाता है। आदमी के नए जन्म पर उसके नए मानसिक ब्रह्माण्ड का निर्माण इसी मानसिक या सूक्ष्म ब्लैकहोल से होता है। मतलब जैसी सूचना उस अँधेरे में दर्ज होती है, नया ब्रह्माण्ड भी वैसा ही बनता है। तभी तो कहते हैं कि आदमी का नया जन्म उसके पुराने जन्मों के अनुसार ही होता है।
ब्लैक होल में प्रकाश तो अनगिनत सितारों जितना समाया हो सकता है, पर वह दबा हुआ या अव्यक्त होता है। यह मृत्यु के बाद जीवात्मा के सूक्ष्म शरीर अर्थात प्रेतात्मा की तरह है। उसमें अनेक जन्मों के जगत का प्रकाश समाहित होता है, पर वह दबा हुआ सा अर्थात अनभिव्यक्त सा होता है। ऐसा लगता है कि वह प्रकाश बाहर उमड़ने को बेताब है।
हरेक जीव एक ब्रह्माण्ड और ब्लैक होल के रूप में जन्म और मृत्यु को प्राप्त होता रहता है
ब्लैक होल का अनुभवात्मक विवरण
मैं पिछली पोस्ट में बता रहा था कि जीवात्मा का पुनर्जन्म एक मां के गर्भ में होता है। यह अनेक सम्भावनाओं में से एक है। जीवात्मा सूर्य-आदि मार्गों से भी जा सकती है, चंद्रादि मार्ग से भी, स्वर्ग भी जा सकती है और नर्क भी, किसी भी ग्रह या लोक-परलोक को जा सकती है, मुक्त भी हो सकती है, और बद्ध भी रह सकती है। इसका असली अनुभव तो ज्ञानी ऋषियों ने ही किया था, जिसका वर्णन उन्होंने वेद-शास्त्रों में किया है। हम तो उन्हींके अनुभवों की वैज्ञानिक विवेचना करने की कोशिश करते हैं। मेरा अनुभव तो यही है कि मैंने एकबार अपने मृत परिचित की जीवात्मा को अनुभव किया था। वह ब्लैक होल की तरह थी, मतलब उसमें उस आदमी का पूरा व्यक्तित्व समाया हुआ था, जो उसकी जीवित अवस्था से भी ज्यादा अनुभव हो रहा था, उसके पिछले सभी जन्मों के प्रभाव के साथ, पर फिर भी सबकुछ अंधेरनुमा ही था, हालांकि अंतहीन खुले आसमान की तरह। वैसे ही, जैसे ब्लैक होल में पूरा विश्व समाया होता है। ऐसा लग रहा था जैसे उनका जीवित अवस्था का प्रकाशमान जगत अर्थात उनका जीवनयात्रा की शुरुआत से लेकर अब तक का पूरा पिछला व्यक्तित्व किसी दबाव से दबा था, इससे वह अवस्था कज्जली या चमकीली काली थी, मतलब चेतना व सेल्फ अवेयरनेस अर्थात आत्मजागरूकता से भरा अंधेरा था वह, जड़ता या मूढ़ता से भरा नहीं, और शान्तियुक्त आनंद भी था उसमें, हालांकि प्रकाश की कमी से आनंद अधूरा था। ऐसा ही जैसे किसी को सुखचैन तो दो पर अँधेरी कोठरी में बंद रखो। शायद यह एक जानवर जैसा बंधन है जो एक अंधेरे कमरे में बंधा हुआ है, लेकिन अच्छी तरह से खिलाया और पानी पिलाया जाता है, इसलिए भगवान को पशुपति नाथ या जानवरों का स्वामी कहा जाता है। ऐसा लग रहा था कि वह दबा हुआ बैकग्राउंड प्रकाश पूरे जोर व विस्फोट से बाहर को फैलना चाहता हो अभिव्यक्ति के रूप में। सम्भवतः ब्लैक होल भी ऐसा ही होता है। इवेंट होरीजन के साथ देखने पर तो वह वैसा ही लगता है। इवेंट होरीज़ोन को आप आदमी के स्थूल शरीर जैसा या अभिव्यक्त रूप जैसा कह लो, और ब्लैक होल को इसके सूक्ष्म शरीर या दबे रूप जैसा। इवेंट होरीज़ोन में पूरा दृश्य जगत प्रकाशमान और स्थूल होता है, जबकि ब्लैक होल के अंदर वह सूक्ष्मता और अँधेरे में चला जाता है, रहता वहाँ भी पूरा ही है। विचित्र अवस्था होती है सूक्ष्म शरीर की। फिर वो जीवात्मा कई दिन बाद दिव्य जैसी अवस्था में टहलते हुए महसूस हुई। सम्भवतः वह स्वर्ग या मुक्ति की तरफ जा रही थी। मैंने इसका सविस्तार वर्णन एक पुरानी पोस्ट में किया है। मैं इस अनुभव के दौरान तांत्रिक कुण्डलिनी योग का गहन अभ्यास कर रहा था। सम्भवतः इसी ने मुझे उस दिव्य अनुभव के योग्य बनाया था। वह शुभचिंतक प्रेतात्मा थी। इसी तरह एकबार मुझे योगाभ्यास के बीच में ही कुछ अशुभ प्रेतात्माओं के सूक्ष्म शरीरों का अनुभव भी हुआ था। वे हिंसक व गुस्सैल व रक्तपिपासु जैसे लग रहे थे। दरअसल सूक्ष्म शरीर अपनी आत्मा के अंदर या आत्मा के रूप में महसूस होते हैं। वह एक अहसास होता है, जिसके लिए विचारों का घोड़ा दौड़ाने की जरूरत नहीं होती। आपको चीनी की मिठास क्या विचार बताते हैं। नहीं, वह एक अपना अंदरूनी अहसास होता है। उसके साथ पीछे से अच्छे विचार आए, वह अलग बात है। उसी तरह उन दुष्ट प्रेतों के अहसास के साथ कुछ हड्डीनुमा, लाल आँखों वाले व बड़े नुकीले दांतों व गुस्से वाले चित्र तो मन में बने, पर वे तो अहसास का पीछा करने वाले विचार होते हैं, अहसास नहीं। सूक्ष्म शरीर तो एक अहसास ही होता है, बिना किसी भौतिक रूपरंग का। मस्तिष्क एक थिएटर मेन की तरह होता है, जो अहसास या मूड के अनुसार चित्र बना लेता है। मैंने गुरु स्मरण से उस घटिया अहसास को शांत किया। वह अहसास 10-20 सेकंड जितना ही रहा होगा। उसके एक-दो दिन बाद एक बुरी घटना टलने की खुशखबरी मिली। इसी तरह मैंने बताया था कि किस तरह जीव का जन्म होता है। यह भी मैं शास्त्रों में लिखी बातों को वैज्ञानिक अमलीजामा पहना रहा था, कुछ अपना हल्का अनुभव भी है, हालांकि वह गहरा या निर्णायक अनुभव नहीं है। एक उपनिषद में तो एक जगह यहाँ तक कहा गया है कि जीवात्मा बादलों तक पहुंच कर बारिश के जल में घुलकर जमीन पर आ जाती है, फिर जड़ों से होकर अन्न के पौधे में घुस जाती है। जब कोई आदमी उस अन्न के दाने को खाता है, तो उसके शरीर से होकर उसके वीर्य में पहुंच जाती है। उससे उसकी पत्नि के गर्भ में प्रविष्ट होकर जन्म ले लेती है।
जो भौतिक विज्ञान की पहुंच से परे हो, वहाँ आध्यात्मिक योग-विज्ञान से ही पहुंचा जा सकता है
भौतिक वैज्ञानिक ब्लैक होल के अँधेरे में झाँकने में अस्मर्थ हैं। पर योग विज्ञान इशारा कर रहा है कि उसमें सभी पदार्थ अदृष्य आत्मा अर्थात अदृष्य आसमान के रूप में विद्यमान रहते हैं, जिन्हें आसमान रूप आत्मा के द्वारा सीधा अनुभव तो किया जा सकता है पर भौतिक इन्द्रियों के द्वारा नहीं। जीव का सूक्ष्म शरीर भी वैसा ही होता है।
ब्लैक होल ब्रह्माण्ड-शरीर अर्थात ब्रह्मा का सूक्ष्म शरीर व कारण शरीर है
एलियन हरेक भौतिक पदार्थ के रूप में उपस्थित रहकर हमारे सबसे निकट होते हुए भी सबसे दूर हैं
उपरोक्त तथ्यों से तो यही सिद्ध होता है। देहरहित सूक्ष्मशरीर व कारण शरीर के बीच मुझे कोई ज्यादा अंतर नहीं लगता। दोनों में ही क्वांटम फ्लकचूएशनस आत्मा में रिकॉर्ड हो जाती हैं। यही मामुली सा अंतर है कि सूक्ष्मशरीर थोड़े समय के लिए रहता है, क्योंकि उसको स्थूल रूप में प्रकट करने के लिए भौतिक सृष्टि का वजूद होता है, जबकि कारण शरीर लम्बे समय तक बना रहता है, क्योंकि उस समय सृष्टि की प्रलयावस्था होती है, और कहीं कुछ भी भौतिक रूप में नहीं होता। इसके अलावा, कारण शरीर पूरी तरह से शांत दिखाई देता है क्योंकि इसमें किसी भी क्वांटम लहर की उतार-चढ़ाव को आकर्षक भूतिया अभिव्यक्ति के रूप में लंबे समय तक अनुभव नहीं किया जाता है, जैसा कि कभी-कभी सूक्ष्म शरीर के मामले में होता है। इसका मतलब है कि आम जीव की तरह ब्रह्मा नाम के जीव का अस्तित्व भी है, जैसा शास्त्रों में कहा गया है। ब्रह्माण्ड ही उसका शरीर है। यह अलग बात है कि वह इससे बद्ध नहीं होता। प्रलय के समय ब्रह्मा की आत्मा में ब्रह्माण्ड रिकॉर्ड हो जाता है। सृष्टि के समय वह फिर अपने पुराने स्थूल रूप में प्रकट हो जाता है। पर शास्त्र कहते हैं कि ब्रह्मा प्रलय के समय अपनी मृत्यु के साथ मुक्त हो जाता है। फिर नई सृष्टि के लिए वो रेकॉर्डिंग कहाँ रहती है। मतलब साफ है कि वह जीवनमुक्त हो जाता है, विदेहमुक्त नहीं। मतलब उसका शरीर और जन्म-मृत्यु का चक्र बना रहता है, पर मुक्ति के अहसास के साथ। पर जीवनमुक्त तो वह पहले भी था। ऐसा शायद यह दर्शाने के लिए लिखा गया है कि जीव और ब्रह्मा की गति एक जैसी है। ब्रह्मा और जीव में कोई अंतर नहीं। जीवनमुक्त के बारे में जो कुछ भी सोच लो, वह सही ही होता है, क्योंकि वह किसी से प्रभावित ही नहीं होता। यह ऐसे ही है जैसे कुछ अंतरिक्ष वैज्ञानिक अंदेशा जता रहे हैं कि हमें एलियन इसलिए नहीं दिखते क्योंकि वे भौतिक पदार्थों के रूप में ढल गए हैं, और ऐसे बन गए हैं कि वे हर जगह हैं भी और नहीं भी। पूरा ब्रह्माण्ड भी ऐसा ही एक विशालकाय एलियन हो सकता है। सम्भवतः इस बात को जानकर ही सभी चीजों को देवता मानने की और उनको विभिन्न रूपों में पूजने की परम्परा शुरु हुई थी। ऐसे जीवनमुक्त लोग ही तो होते हैं। फिर शास्त्र कहते हैं कि कोई भी जीव तरक्की करते हुए ब्रह्मा बन सकता है। इसका मतलब मुझे यही लगता है कि ब्रह्मा की तरह पूर्ण जीवनमुक्त बन सकता है, न कि असली ब्रह्मा।
शिव अगर सरोवर है तो शक्ति उसमें हलचल पैदा करने वाला हवा का झोँका है
मान लेते हैं कि सरोवर में जल की हलचल की तरह अंतरिक्ष में क्वांटम फ्लकचूएशनस हमेशा विद्यमान रहती हैं, जिसे हम अव्यक्त कहते हैं। यह भी मान लेते हैं कि महाप्रलय के समय अंतरिक्ष एक पूर्ण शांत जल-सरोवर की तरह हो जाता है, जिसमें बिल्कुल भी हलचल नहीं रहती, मतलब क्वांटम फ्लकचूएशनस भी थम जाती हैं। इसे परम अव्यक्त भी कह सकते हैं और परम व्यक्त या परमात्मा भी। जैसे हवा के झोंके से जल की सतह पर बार-बार उसी किस्म की तरंगों के पैटर्न उसी क्रम में बनते रहते हैं, उसी तरह अंतरिक्ष में भी उसी किस्म की सृष्टि उसी निश्चित क्रम में बारबार बनती रहती है। पर फिर भी अंत में प्रश्न यही बचता है कि प्रलय के अंत में जब सब कुछ शून्य होता है, तब वह ऊर्जा या शक्ति कहाँ से आती है, जो उस हलचल को बढ़ा देती है। शून्य में वो हवा का झोंका कहाँ से आता है, जो शुरुआती हलचल को पैदा करता है। बाद में तो यह भी मान सकते हैं कि हलचल से हलचल खुद ही आगे से आगे बढ़ती रहती है। अंतरिक्ष में चलने वाला वह हवा का झोंका ही वह शक्ति है, जिसे शाक्त सम्प्रदाय वाले लोग शिव की तरह शाश्वत और अविनाशी मानते हैं। शिव अगर निश्चल अंतरिक्ष है, तो शक्ति उसमें हलचल पैदा करने वाला हवा का झोंका है।
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