कुण्डलिनी के लिए संस्कृत का योगदान

मित्रो, संस्कृत सीखने के बारे में क्वोरा पर बहुत से प्रश्न मिलते रहते हैं। मेरे उत्तरों से भी कुछ लोगों को फायदा हुआ। फिर मैंने सोचा कि क्यों न मैंI संस्कृत पर एक सुन्दर ब्लॉग पोस्ट बनाऊँ, जिससे बहुत से  लोगों को फायदा मिल सके। यह पोस्ट उसी सोच का परिणाम है।

संस्कृत के प्रति मेरा रुझान

मैं शुरू से ही संस्कृत-विद्वानों से भरे परिवार में पला बढ़ा हूँ। इससे संस्कृत मुझे विरासत में ही मिल गई थी। छवीं से दसवीं कक्षा तक संस्कृत विषय पढ़ना  अनिवार्य था, उससे भी मुझे कुछ सहयोग मिला। यदि पहली कक्षा से ही संस्कृत विषय लगा होता, तो और ज्यादा लाभ होता। खेद का विषय है कि भारत के बहुत से राज्य संस्कृत की बजाय अपनी क्षेत्रीय  भाषाओं को ज्यादा अहमियत देते हैं। कई राज्यों में तो संस्कृत भाषा को पढ़ाया ही नहीं जाता, जैसे कि पंजाब में। भारत में संस्कृत के पिछड़ने का एक मुख्य कारण यह भी है।

संस्कृत से कुण्डलिनी को बल मिलता है

यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव भी रहा है। जवानी के दिनों में, जब मैं भौतिकता से भरे हुए अपने व्यावसायिक कार्यों में उलझा हुआ रहता था, तब प्रतिदिन संस्कृत का कुछ अध्ययन कर लेता था। पुराणों की संस्कृत मुझे सर्वाधिक भाती थी। अधिक खाली समय मिलने पार संस्कृत में कुछ् लिख भी लिया करता था। कुछ ही सालों में उन संस्कृत-लेखों से एक छोटे आकार की पुस्तक तैयार हो गई, जो आपको नीचे दिए गए लिंक पर निःशुल्क रूप में उपलब्ध हो जाएगी। उस संस्कृत के प्रभाव से मेरी कुण्डलिनी मेरे मन में स्थायी रूप से बसी रहती थी। जब-२ मैं संस्कृत से दूर चला जाता था, तब-२ वह कुण्डलिनी मेरे मन से ओझल हो जाया करती थी।

संस्कृत से स्मरणशक्ति बढ़ती है

यह तथ्य वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा सिद्ध किया जा चुका है। अमेरिका के वैज्ञानिकों ने एक वैज्ञानिक शोध के द्वारा यह पता लगाया  है कि संस्कृत के प्रभाव से मस्तिष्क में संरचनात्मक परिवर्तन देखे गए। वे परिवर्तन मस्तिष्क की क्षमता कि वृद्धि को, मुख्यतया स्मरणशक्ति की वृद्धि को इन्गित कर रहे थे। यह बात तो हम सभी जानते हैं कि मस्तिष्क की कार्यक्षमता का मुख्य मापदंड स्मरणशक्ति ही तो है।

संस्कृत से ध्यान-शक्ति बढ़ती है

वास्तव में ध्यान-शक्ति व स्मरणशक्ति के बीच में कोई अंतर नहीं है। सर्वोच्च कोटि के स्मरण को ही ध्यान कहते हैं। तभी तो कुण्डलिनी-ध्यान के रूप में कुण्डलिनी के स्पष्ट रूप का, प्रचुर मात्रा में लगातार स्मरण होता  रहता है। यह भी कह सकते  हैं कि स्मरणशक्ति को कुण्डलिनी पर केन्द्रित करने से वह ध्यान-शक्ति बन जाती है। अतः स्वयं ही सिद्ध हो जाता है कि संस्कृत से कुण्डलिनी को शक्ति मिलती है। यदि वह संस्कृत लयबद्ध, सरल  व रोचक मन्त्रों के रूप में हों (जैसे कि पुराणों में हैं); तब तो कुण्डलिनी को और अधिक लाभ पहुंचता है।

हिंदु-पुराण संस्कृत के अनुपम भण्डार हैं

पुराणों की संस्कृत बहुत सरल, स्पष्ट, लयबद्ध, संगीतबद्ध, छंदबद्ध, रुचिकर व ज्ञानकर है। मेरे दादाजी प्रतिदिन मूल संस्कृत में व उसके हिंदी अनुवाद में पुराण पढ़ा करते थे। उसके प्रभाव से मेरी कुण्डलिनी मेरे मस्तिष्क में ही स्थायी रूप से रहती थी।

संस्कृत व अंग्रेजी के बीच में समानता

यह जानकारी मुझे किसी लेख आदि में नहीं मिली, पर यह मेरा अपना अनुभव है। जिसकी संस्कृत पर अच्छी पकड़ है, उसकी अंग्रेजी पर भी हो सकती है। दोनों ही भाषाओं में शब्दों के जोड़, शब्दों के संक्षिप्त रूप, अलंकार व व्याकरण की गहराई जैसे मूलभूत गुण एकसमान हैं। उदाहरण के लिए, unforgettable- अंग्रेजी, अविस्मरणीयः – संस्कृत, भुलाया न जा सकने वाला- हिंदी। यहाँ अंग्रेजी व संस्कृत की शब्द संरचना एक जैसी लगती है।

संस्कृत सीखने के जिज्ञासुओं के लिए कुछ सुझाव

बहुत से लोग संस्कृत सीखने के लिए वर्षों तक व्याकरण में उलझे रहते हैं। वे पुराणों की असली संस्कृत से वंचित रह जाते हैं। यदि पुराण नहीं पढ़े, तो संस्कृत से क्या लाभ? भाषा व्याकरण से नहीं, अपितु अभ्यास से आती है। इसलिए सीधे ही पुराणों को पढ़ना चाहिए। मैं वर्षों तक इसी ऊहापोह में रहा, और कभी भी अपने संस्कृतज्ञान के बारे में आश्वस्त नहीं हो सका। फिर किसी वृद्ध की सलाह से मैंने बॉम्बे प्रिंटिंग प्रेस से हिंदी-अनुवाद सहित मूल संस्कृत में लिखा गया योगवासिष्ठ ग्रन्थ मंगवाया। यह ग्रन्थ महाभारत जितने बड़े आकार का है। इसमें पुनरुक्तियाँ बहुत अधिक हैं। इसलिए मैं पूरी रप्तार से उसे पढ़ने लगा, बिना गहराई में जाकर। हिदी अनुवाद को तभी देखता था, जब बहुत ही जरूरी होता था। जो संस्कृत श्लोक समझ नहीं आता था, वह आगे स्पष्ट हो जाता था। मैंने एक अनुवाद की साधारण पुस्तक, एक संस्कृत से हिंदी शब्दकोष, एक शब्द रूपावली व एक धातु रूपावली को भी अपने पास सहायता के लिए रखा हुआ था। लगभग छः महीने में ही मैंने पूरा ग्रन्थ पढ़ लिया। उससे खुद ही मुझमें व्याकरण कि सैंस आने लगी।  मुझे विश्वास होने लगा कि मुझे संस्कृत आती थी। फिर तो मुझे संस्कृत का चस्का जैसा लग गया। उसके बाद भागवत पुराण व फिर 108 उपनिषदों को भी इसी तरह तनिक हिंदी अनुवाद की सहायता से मूल संस्कृत में पढ़ लिया। फिर जाकर संस्कृत से मेरा मन भरा। यदि खाली व्याकरण में उलझा रहता, तो कुछ न मिलता। आज भी प्रतिदिन संस्कृत में पुराण का १-२ पृष्ठ पढ़ लेता हूँ। यदि संस्कृत का रोज का अभ्यास बना रहे, तो बहुत अधिक लाभ मिलता है। अतः संस्कृत के जिज्ञासु भाई-बहिनों को सलाह दी जाती है कि वे इसी तरह के योजनाबद्ध रूप में संस्कृत को सीखें, जिससे जल्दी ही  कामयाबी मिल सके। वास्तव में जिनको शुद्ध हिंदी आती है, उनके लिए संस्कृत सीखना बेहद आसान है। हिंदी में संस्कृत के ही शब्द हैं। जब उन शब्दों में सही ढंग से वचन व विभक्तियाँ लगाई जाती हैं, तब वे ही हिंदी-शब्द संस्कृत-शब्द बन जाते हैं।

संस्कृत को बढ़ावा देने का एक अनुपम प्रयास

मैंने अपने आत्मीय मित्र प्रेमयोगी वज्र के अविस्मरणीय सहयोग से “शरीरविज्ञानदर्शनं” नामक एक लघु संस्कृतपुस्तिका को लिखकर संकलित किया। उस  निःशुल्क पुस्तिका का डाऊनलोड लिंक यहाँ दिया जा रहा है।  

   भारतवासियों को पता है कि संस्कृत हमारी प्राचीन भाषा है । हिन्दुओं के धर्मग्रंथ भी इसी भाषा में है । संस्कृत को हम देववाणी भी कहते है ।        

अमेरिका वैज्ञानिकों ने किया शोध, संस्कृत मंत्रों के उच्चारण से बढती है स्मरणशक्ति

नासा के वैज्ञानिकों ने भी यह माना है कि मंत्रों का हमारे मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है.

कितना ज़रूरी है मंत्रों का सही उच्चारण?

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