यह युद्ध है यह युद्ध है~कविता

यह युद्ध है यह युद्ध है।
न कोई यहाँ पे गाँधी है
न कोई यहाँ पे बुद्ध है।
यह युद्ध है यह युद्ध है।

वीरपने की ऐसी होड़ कि
हिंसा-व्यूह का दिखे न तोड़।
कोई तोप चलाता है तो
कोई देता है बम फोड़।
रुधिर-सिक्त शापित डगरी पर
दया सब्र रूपी न मोड़।
लड़े सांड़ पर मसले घास
जिस पर देते उनको छोड़।
मान पलायन-कायरता न
युद्ध-नीति में इसका जोड़।
असली वीर विरल जगती में
हर इक न होता रणछोड़।
नीति-मार्ग अवरुद्ध है।
यह युद्ध है----

गलती को दुत्कारे फिर भी
नकल उसी की करते हैं।
हमलावर को अँगुली कर के
खुद भी हमला करते हैं।
चिंगारी वर्षों से दबी जो
उसको हवा लगाते हैं।
क्रोध का कारण और ही होता
और को मार भगाते हैं।
खून बहा कर नदियां भर-भर
भी हर योद्धा क्रुद्ध है।
यह युद्ध है---

बढ़त के दावे हर इक करता
आम आदमी है पर मरता।
लाभ उठाए और ही कोई
कीमत उसकी और ही भरता।
जीत का तमगा लाख दिखे पर
न स्वर्णिम न शुद्ध है।
यह युद्ध है----

धर्म का चोला हैं पहनाते
युद्ध को कोमलता से सजाते।
दिलों के महलों को ठुकराकर
पत्थर पर झंडा फहराते।
कैसा छद्म-युद्ध है यह
कैसा धर्म-युद्ध है।
यह युद्ध है---

ज्वाला में सब जलता है और
पानी में सब गलता है।
पेड़ हो चाहे या हो तिनका
नाश न इनका टलता है।
रणभूमि में एकबराबर
मूर्ख है या प्र-बुद्ध है।
यह युद्ध है----

राजा वीर बहुत होता था
रण को कंधे पर ढोता था।
जान बचाने की खातिर वो
गिरि-बंकर में न सोता था।
आज तो प्रजा-खोरों का दिल
राज-धर्म-विरुद्ध है।
यह युद्ध है---

आग बुझाने जाना था जब
आग लगाई क्यों तूने।
आग तपिश के स्वाद की खातिर
लेता जला तू कुछ धूने।
बात ही करनी थी जब आखिर
बात बिगाड़ी क्यों तूने।
सोच सुहाग उजड़ते क्योंकर
क्यों होते आँचल सूने।
परमाणु की शक्ति के संग
प्रलयंकर महा-युद्ध है।
यह युद्ध है--

खून-पसीने की जो कमाई
वो दिखती अब धरा-शायी।
मुक्ति मिलती जिस शक्ति से
क्यों पत्थर में थी वो गंवाई।
बुद्धि नहीं कुबुद्ध है।
यह युद्ध है---