जय बघाटेश्वरी मां शूलिनी
पुस्तक परिचय
यह पुस्तक भारतवर्ष के हिमाचल प्रदेश से सम्बंधित है। इस पुस्तक में प्रदेश के विशेषतः सोलन जिले के जनसामान्य इतिहास, भूगोल, लोकसंस्कृति, देवसंस्कृति और कला के बारे में रुचिप्रद वर्णन किया गया है। सोलन जिला, जिसे पहाड़ों का प्रवेशद्वार भी कहा जाता है, हिमालयी उत्तुंग शिखरों को आधुनिक रूप से विकसित मैदानी भूभागों से जोड़ता है। इस जिले में आधुनिकता का प्रसार तेजी से बढ़ रहा है, जिससे यहाँ की लोक-संस्कृति खतरे में पड़ती हुई नजर आ रही है। प्रस्तुत पुस्तक में उसी नष्ट होती हुई स्थानीय लोक-सांस्कृतिक धरोहर को बचाने का प्रयास किया गया है। अन्य भी इस पुस्तक में बहुत से रुचिकर ऐतिहासिक कथानक, स्थानीय लोकोक्तियाँ, वा कवितायेँ हैं, जो हर प्रकार के पाठक के मन को भाएंगे। थोड़े से स्थान पर पहाड़ी भाषा का भी प्रयोग हुआ है, भाषा को सीखने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य मात्र से। यह पुस्तक ब्राम्हणत्व से भी सम्बंधित है। साथ में इसमें हिमाचल प्रदेश के सोलन जनपद के इतिहास, भूगोल और वर्तमान स्वरूप का वर्णन भी किया गया है। लेखक स्वयं इसी क्षेत्र के निवासी हैं। इसमें लेखक ने अपने बचपन से लेकर लिखे गए नोट डाले हुए हैं। अध्यात्म के बारे में मुख्य कुंजी-शब्द इसमें मिल जाएंगे, जो किसी भी जिज्ञासु के लिए अच्छे प्रेरक सिद्ध हो सकते हैं। पुस्तक मनोरंजक है। इस पुस्तक में पहाड़ी संस्कृति की विशेष झलक है। पहाड़ों का भोला-भाला व सादा जीवन बरबस ही मन को आकर्षित कर देता है। पहाड़ों की वादियों के बीच घटी ऐतिहासिक सत्यकथाओं का अपना ही विशेष महत्त्व है। पहाड़ी जीवन कभी भी उबाऊ नहीं होता। पहाड़ों के प्राकृतिक नजारों के आगे बड़ी से बड़ी कृत्रमता भी फीकी पड़ जाती है। आशा है कि पाठकगण प्रस्तुत पुस्तक का भरपूर आनंद उठाएंगे। लेखक ने शास्त्री की उपाधि प्राप्त की है, तथा भारतीय दर्शन में आचार्य की है। योग दर्शन के ऊपर इन्होंने पी.एच.डी. की है। इन्होंने संस्कृत महाविद्यालय सोलन में 20 वर्षों से अधिक समय तक लगातार अध्यापन कार्य किया है। लेखक ने अपनी सभी पुस्तकें अपनी सेवानिवृत्ति के करीब व उसके बाद लिखी हैं। इसीलिए लेखक के पूरे जीवन के उन्नत अनुभव उनकी पुस्तकों में स्पष्ट रूप से झलकते हैं।
लेखक परिचय
लेखक एक जाने-माने साहित्यकार व इतिहासकार हैं। लेखन उनका एक जन्मजातीय शौक है। उन्होंने संस्कृत व हिंदी, दो विषयों में एम.ए. की है, तथा योग दर्शन पर पी.एच.डी. की है। इन्होंने संस्कृत महाविद्यालय सोलन में लगातार 25 सालों तक अध्यापक की सेवाएं प्रदान की हैं। उन्होंने कुल मिलाकर 7 पुस्तकें लिखी हैं। सभी पुस्तकें हिंदी में हैं। उनकी लेखन -शैली सरल, साधारण, स्वाभाविक व शुद्ध भारतीय है। उन्हें पहाड़ों के देवी-देवताओं से बहुत लगाव है। यही कारण है कि उनकी प्रत्येक पुस्तक में उनका विशेष व आश्चर्यजनक वर्णन उपलब्ध होता है।
कीवर्ड्स
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