कुण्डलिनी जागरण- यह कैसे काम करता है

दोस्तो, क्वोरा पर कुण्डलिनी-जागरण के बारे में बहुत से प्रश्न पूछे जाते रहते हैं। मुख्य प्रश्न यही होता है कि कुण्डलिनी जागरण क्या होता है? बार-२ वही उत्तर दोहराना कुछ युक्तियुक्त सा नहीं लगता है। इसलिए मैंने निर्णय लिया कि इससे सम्बंधित एक वैबसाईट पोस्ट बनाई जाए, ताकि पाठकों को क्वोरा से इसकी ओर रिडायरेक्ट किया जा सके।

किसी को याद करना ही कुण्डलिनी जागरण है

तत्त्वतः तो ऐसा ही है। केवल याद करने के स्तर में ही भिन्नता होती है। कुण्डलिनी को इससे अधिक गहराई से याद नहीं किया जा सकता। जागरण की अवस्था में कुण्डलिनी दिल की गहराईयों में पूरी उतरी होती है। कुण्डलिनी जागरण के समय कुण्डलिनी आत्मा की गहराईयों में पूरी उतर चुकी होती है। वास्तव में कुण्डलिनी आत्मा से जुड़ जाती है। वह आत्मा से एकाकार हो जाती है। उस समय आत्मा उसे दूसरी वस्तु के रूप में नहीं देख पाता। उस समय आत्मा उसे अपने ही रूप में देखता है। आत्मा पूरी तरह से कुण्डलिनी-रूप बन जाता है। यहाँ याद किया गया व्यक्ति (गुर, देवता, प्रेमी आदि या सैद्धांतिक रूप से कुछ भी) ही कुण्डलिनी के रूप में होता है। आत्मा का अभिप्राय यहाँ आम आदमी का अपना निरपेक्ष व अंधकारमय स्वरूप है। वह रूप विचारों व अनुभवों से पूर्णतः रिक्त जैसा होता है। वह अंधकारमय शून्य जैसा होता है। वह माया या अज्ञान या भ्रम से ही अंधकारमय बना होता है। वास्तव में तो वह कुण्डलिनी की तरह ही प्रकाशमान होता है।

इसका मतलब है कि कुण्डलिनी-जागरण के समय आत्मा भी कुण्डलिनी के रूप में चमकने लगता है। इससे यह होता है की सभी कुछ अपने जैसा महसूस होने लगता है। कोई द्वैत नहीं रहता। सभी कुछ अद्वैत-रूप में प्रकाशित होने लगता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि कुण्डलिनी समेत सभी अनुभव स्वभाव से ही प्रकाशमान होते हैं। उस समय कुण्डलिनी के जुड़ने से आत्मा भी प्रकाशमान बन जाता है। विशाल अग्नि को अपनी एक लौ अपने से अलग कैसे लग सकती है? आत्मा को दुनिया के अनुभव / पदार्थ तब अपने से अलग लगते थे, जब वह कुण्डलिनी से नहीं जुड़ा था। उस समय उसे कुण्डलिनी भी अपने से अलग लगती थी। बेशक कुण्डलिनी का कितना ही ज्यादा ध्यान क्यों नहीं किया जाता था, कुछ न कुछ अलगाव तो उससे रहता ही था। एक अन्धकार से भरे कमरे को अपने अन्दर पैदा हुई एक आग की चिंगारी अपने जैसी कैसे लग सकती है? उसे तो वह अपने से अलग ही लगेगी न।

कुण्डलिनी जागरण आदमी को उसकी अपनी असली आत्मा की झलक दिखाता है। इससे वह योगसाधना आदि के निरंतर अभ्यास से उसे पूर्ण रूप से प्राप्त करने के लिए प्रेरित होता है।

कुण्डलिनी जागरण ज्यादा देर तक नहीं टिकता

कुण्डलिनी जागरण कुछ सेकंडों से ज्यादा समय तक नहीं झेला जा सकता। उस समय मस्तिष्क में विस्फोटक दबाव जैसा बना होता है। अधिकाँश मामलों में आदमी भय से या संकोच से कुण्डलिनी को स्वयं ही नीचे उतार देता है। यदि वह खुद न उतारे, तो कुछ देर में ही मस्तिष्क बहुत थक जाता है, और जागरण के अनुभव को खुद बंद कर देता है। फिर आदमी थकान के कारण आराम कर सकता है। संभवतः उसे नींद तो नहीं आती, क्योंकि वह उस समय आनंद, शान्ति, अद्वैत, और तनावहीनता से भरा होता है। उसका मस्तिष्क शून्य जैसा भी बन सकता है, जिसमें उसे विचार-शून्य असली आत्मा का अनुभव भी हो सकता है।

कुण्डलिनी जागरण की अवधि व्यक्ति के अभ्यास, मनोबल, शारीरिक बल, आयु, सामाजिक स्थिति आदि के ऊपर भी निर्भर कर सकती है। पर इसे एक मिनट से ज्यादा समय तक जारी रखना असंभव सा ही लगता है।

कुण्डलिनी जागरण के बारे में भ्रम

बहुत से लोग कुण्डलिनी-ध्यान को और प्राणोत्थान (कुण्डलिनी-उत्थान) को ही कुण्डलिनी जागरण समझ लेते हैं। यह भ्रम स्वाभाविक ही है, क्योंकि पूर्वोक्तानुसार सभी स्वभाव से समान ही हैं, और इन सभी स्थितियों में कुण्डलिनी का स्मरण या चिंतन विद्यमान होता है। केवल स्मरण के स्तर में ही अंतर होता है। साधारण कुण्डलिनी-ध्यान में यह स्मरण सबसे कम होता है। प्राणोत्थान में यह स्मरण और अधिक होता है। कुण्डलिनी-जागरण में यह सर्वोच्च होता है। जहां साधारण कुण्डलिनी ध्यान व प्राणोत्थान वाला कुण्डलिनी ध्यान लम्बे समय तक (घंटों से दिनों तक) लगातार जारी रखा जा सकता है, वहीँ कुण्डलिनी जागरण को एक मिनट से ज्यादा अवधि तक जारी नहीं रखा जा सकता। जहां साधारण कुण्डलिनी ध्यान और प्राणोत्थान वाले कुण्डलिनी ध्यान को अपनी इच्छा व अभ्यास से कभी भी पैदा किया जा सकता है, वहीँ कुण्डलिनी जागरण को इच्छानुसार पैदा नहीं किया जा सकता। कुण्डलिनी जागरण स्वयं होता है, और बिना बताए होता है। जब बहुत सी अनुकूल परिस्थितियाँ इकट्ठी होती हैं, तभी यह होता है। साथ में, इसको पैदा करने के लिए एक मानसिक झटका देने वाला उत्तेजक या उद्दीपक (ट्रिगर) भी होना चाहिए। वास्तव में आदमी इसके होने के बारे में कोई पूर्वानुमान नहीं लगा पता। यह तब होता है, जब आदमी को इसके होने के बारे में जरा भी अंदेशा नहीं होता। परन्तु साथ में यह भी सत्य है कि यह कुण्डलिनी ध्यान और प्राणोत्थान की अवस्था में ही होता है, और ये व्यक्तिगत व परिवेशीय परिस्थितियों के अनुसार विभिन्न अरसे से (महीनों से लेकर वर्षों की अवधि तक) जारी रखे हुए होने चाहिए।

प्राणोत्थान के बारे में विस्तृत जानकारी निम्नलिखित पोस्ट पर पढ़ी जा सकती है।

प्राणोत्थान व कुण्डलिनी-जागरण के बीच में तत्त्वतः कोई अंतर नहीं है। दोनों के बीच में केवल अभिव्यक्ति के स्तर का ही अंतर है। इसीलिए कई अति महत्त्वाकांक्षी लोग प्राणोत्थान को ही कुण्डलिनी जागरण समझ लेते हैं। पूर्णता को प्राप्त प्राणोत्थान ही कुण्डलिनी जागरण कहलाता है …….

प्राणोत्थान- कुण्डलिनी जागरण की शुरुआत

कुंडली जागरण के वास्तविक समय के अनुभव को जानने के लिए निम्नलिखित वेबपेज पढ़ा जा सकता है।

शक्तिशाली फरफराहट के साथ, जैसे वह अनुभव ऊपर की ओर उड़ने का प्रयास कर रहा था। अतीव आनंद की स्थिति थी। वह आनंद एकसाथ अनुभव किए जा सकने वाले सैंकड़ों यौनसंबंधों से भी बढ़ कर था। सीधा सा अर्थ है कि इन्द्रियां उतना आनंद उत्पन्न कर ही नहीं सकतीं। मेरी कुण्डलिनी पूरी तरह से प्रकाशित होती हुई, सूर्य का मुकाबला कर रही थी …..

प्रेमयोगी वज्र अपनी उस समाधि(कुण्डलिनीजागरण/KUNDALINI AWAKENING) का वर्णन अपने शब्दों में इस प्रकार करता हैैं

अगली पोस्ट में हम यह बताएँगे कि कुण्डलिनी जागरण के लिए दिमाग में किन 5 चीजों का एकसाथ इकट्ठा होना जरूरी है।     

कुण्डलिनी विषय के दिल तक पहुँचने के लिए कृपया अगली दोनों पोस्टें क्रमवार जरूर पढ़ें

Please click on this link to view this post in English (Kundalini awakening- How it works)

ਇਸ ਪੋਸਟ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬੀ ਵਿਚ ਪੜ੍ਹਨ ਲਈ ਇੱਥੇ ਕਲਿੱਕ ਕਰੋ (ਕੁੰਡਲਨੀ ਜਾਗਰਣ – ਇਹ ਕਿਵੇਂ ਕੰਮ ਕਰਦਾ ਹੈ )

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demystifyingkundalini by Premyogi vajra- प्रेमयोगी वज्र-कृत कुण्डलिनी-रहस्योद्घाटन

I am as natural as air and water. I take in hand whatever is there to work hard and make a merry. I am fond of Yoga, Tantra, Music and Cinema. मैं हवा और पानी की तरह प्राकृतिक हूं। मैं कड़ी मेहनत करने और रंगरलियाँ मनाने के लिए जो कुछ भी काम देखता हूँ, उसे हाथ में ले लेता हूं। मुझे योग, तंत्र, संगीत और सिनेमा का शौक है।