कुंडलिनीयोग शक्ति से वैज्ञानिक विचार प्रयोग में मदद मिलती है

अंतरिक्ष फैल रहा है, गेलेक्सियां नहीं भाग रहीं। बिगबैंग से पहले भी अंतरिक्ष ही था। फिर ब्लैकहोल के अंदर का अंतरिक्ष फैलने लगा अनंत अंतरिक्ष के ही अंदर, भ्रम से। आदमी जैसे जैसे अपना नोलेज बढ़ाता है उसे लगता है वह अंतरिक्ष की तरह फेल रहा। आम हालत में उसे अपना अंतरिक्ष स्वरूप सिकुड़ा हुआ सा लगता है। दरअसल अंतरिक्ष नहीं फैल रहा बल्कि ब्लैकहोल के अंदर कैद डार्क एनर्जी फैल रही है। ब्लैकहोल के अंदर अनंत अंतरिक्ष तो बन गया पर डार्क एनर्जी उस पूरे अंतरिक्ष में नहीं फैली है। क्योंकि डार्क एनर्जी का कोई भौतिक रूप नहीं है, इसलिए ऐसा लगता है कि अंतरिक्ष फैल रहा है, मतलब पितृ अंतरिक्ष के अंदर ब्लैकहोल का अंतरिक्ष फैल रहा है। बेशक पूरा तारा सिंगुलरिटी तक सिकुड़ा था, और वह सिंगुलरिटी डार्क मैटर है, जो अंतरिक्ष जितना सूक्ष्म है, मतलब आकार में अनंत छोटा है, फिर भी वह कहीं लोकलाइज्ड है, और पूरे अनंत अंतरिक्ष में नहीं फैला है। यह भी भ्रम जैसा ही है। हम आदमी भी बेशक अनंत अंतरिक्ष हैं, पर हमें ऐसा लगता नहीं। हमें अपना स्वरूप एक लोकलाइज्ड अर्थात शरीर या मस्तिष्क तक सीमित अंधेरे की तरह लगता है। लगता है कि ब्लैहोल को भी आदमी की तरह भ्रम हो जाता है। इसीलिए अंधेरा बनता है। है वही परम उर्जा परमात्मा पर उसका प्रकाश गायब महसूस होता है। वह डार्क मैटर है। इससे उसी परम प्रकाश परमात्मा में तरंग को बनने और बढ़ने की प्रेरणा मिलती है, आदमी की अंधेरी आत्मा में मनतरंग की तरह।
दुनियादारी को बढ़ाती हुई डार्क एनर्जी सृष्टि को मुक्ति के लिए ही फैलाती है, क्योंकि उसे पता है कि मुक्ति की ओर रास्ता दुनिया में से होकर ही गुजरता है। अगर ब्लैकहोल बाहर के पिंड को बहुत ज्यादा ताकत से न खींचे तो वह उसके सर्फेस पे ही रहेगा और शायद अक्सर विकिरण ज्वाला के रुप में बाहर निकल जायेगा। ऐसे ही आदमी भी अगर बहुत आसक्ति से दुनिया को न भोगे तो वह उसके मन में गहरी नहीं बैठती, और योग आदि से आसानी से खत्म हो जाती है। उसके साथ अंदर दबी हुई और दुनिया भी बाहर निकल जाती है,  जिससे डार्क मैटर पतला होकर डार्क एनर्जी में बदलता रहता है।

प्रकृति गणित को फॉलो करते हुऐ संतुलन बनाने की कोशिश करती है। यह ऐसे ही है कि प्रकाश की गति हर हालत में एकसमान रखने के लिए प्रकृति को समय की चाल बदलनी पड़ती है। सापेक्षता का सिद्धांत यही कहता है। अब जब ब्लैकहोल का द्रव्यमान अनंत ज्यादा हो गया और वह अनंत सूक्ष्म हो गया, तो आसमान में अनंत आकार का गड्ढा भी बनाना ही पड़ेगा गणित के फार्मूले के अनुसार। ऐसा शायद संभव नहीं है, इसलिए वह झुठमुठ में ही या भ्रम से बनाया जाता है। भ्रम यही कि ब्लैकहोल के कारण मूल अर्थात पितृ अनंत आकाश का प्रकाश गायब कर दिया जाता है। यही डार्क मैटर है। दरअसल यह परमाकाश परमात्मा ही है, पर उसका प्रकाश भ्रम से गायब है, असल में नहीं। इसीलिए यह कोई भौतिक वस्तु न होते हुए भी इसका द्रव्यमान सा होता है। द्रव्यमान इसलिए है क्योंकि इसमें सृष्टि के पदार्थ पहले की तरह विद्यमान हैं, और अंधेरा इसलिए क्योंकि उनसे कोई संपर्क नहीं रहता। इस द्रव्यमान से आकाश में गड्ढा बनता ही है, उसे नहीं टाल सकते। इसीलिए डार्क मैटर ग्रेविटी शो करता है। ग्रेविटी अंतरिक्ष का गुण है, पदार्थ का नहीं, इसलिए उसके संपर्क को नहीं टाला जा सकता। इससे वैचारिक रूप से आइंस्टीन का यह सिद्धांत भी सिद्ध हो जाता है कि अंतरिक्ष का गुण होने के कारण ग्रेविटी अंतरिक्ष के मुड़ने से पैदा होती है। पदार्थ के गुणों का दो किस्म का समूह है। एक समूह पदार्थ के अपने गुणों का है। दूसरा समूह उस अंतरिक्ष के गुणों का है, जिसमें वह पदार्थ स्थित है। पहली केटेगरी में बहुत से गुण हैं जैसे प्रकाश आदि विकिरणों का उत्सर्जन, प्रकाश का परावर्तन व अवशोषण आदि अनेकों। दूसरी केटेगरी में केवल एक ही गुण है, वह है ग्रैविटी। डार्क मैटर में सभी पदार्थ वाले गुणों का गायब रहना और सिर्फ ग्रैविटी गुण का रहना यह अंदेशा जताता है कि ग्रैविटी पदार्थ का नहीं बल्कि अन्तरिक्ष का गुण है। क्योंकि इसमें अंधेरा है, इसलिए अंधे कुएं की तरह इसे मान सकते हैं। हर चीज़ कुएं के अंदर को गिरती है। अंदर गया हुआ प्रकाश बेशक मूल आकाश में ही रहता है, पर अंधेरे के कारण नजर नहीं आता। मतलब वह प्रकाश फिर मूल आकाश की किसी चीज़ से प्रतिक्रिया नहीं करता। इसलिए कई वैज्ञनिक अंदेशा जता रहे हैं कि अंदर गया हुआ प्रकाश इसके दूसरे छोर से निकलकर किसी दूसरे ब्रह्मांड में चला जाता होगा। बात यह भी ठीक है, क्योंकि ब्लैकहोल के अन्दर दूसरा ब्रह्मांड ही है, जो हमारे ब्रह्मांड से बिल्कुल अलग और अछूता है। अनंत आकाश तो दोनों का एक ही है। खेत का कुआं उसी की जमीन पर होता हुआ भी उससे अछूता रहता है। उसके अंदर अपनी अलग ही दुनिया तैयार हो जाती है। इसको ऐसा समझ लो कि गणित के अनुसार अंतरिक्ष में अनंत गड्ढा बनना चाहिए, मतलब एक नया अनंत अंतरिक्ष बनना चाहिए, पर ऐसा संभव नहीं है। जहां पर प्रकृति गणित के फार्मूले पर असल में न चल सके, वहां वह उस पर आभासी रूप में चलती है। इसलिए वह गड्ढा असली न होकर आभासी होता है। क्योंकि गड्ढा किसी चीज़ से भरी जमीन पर बने उस खाली स्थान को कहते हैं, जहां पर उस जमीन की कोई चीज विद्यमान नहीं है, इसलिए आकाश का गड्ढा वह स्थान हुआ, जहां आकाश की कोई चीज नहीं है। इसलिए अनंत आकाश में उसी की चीजों को आभासी रूप में गायब करने से उसमें अनंत गड्ढा बन गया। असल में तो गायब नहीं कर सकते, पर उसका प्रभाव, प्रतिक्रिया आदि गायब कर दी जाती है शायद। यह वैसा भ्रम ही हुआ, जैसा अज्ञान में पड़े आदमी को होता है। मतलब वह खुद प्रकाश और ऊर्जा से भरा परमात्मा ही होता है, पर भ्रम से उसे ऐसा महसूस न होकर बिल्कुल उल्टा महसूस होता है, मतलब परम प्रकाश की जगह परम अंधेरा। इसे यूं कहो कि आभासी रूप में उसका अपना नया अंतरिक्ष बन गया, असल में नहीं। इस तरह से तो अनगिनत अनंत अंतरिक्षों का और उनमें अनंत सृष्टिओं का अस्तित्व सिद्ध होता है। जीवन में आशावादी और सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखने के लिए ऐसा समझना जरूरी है। अब यह कैसे होता है, इसकी गहराई से जांच पड़ताल तो अंतरिक्ष वैज्ञानिक ही कर सकते हैं। एक संदेह की बात जरूर है कि अगर एक ही स्थान पर प्याज के छिलकों की तरह भीतर ही भीतर असीमित संख्या में ब्रह्मांड होते, तो डार्क मैटर अनंत ग्रैविटी प्रदर्शित करता। पर ऐसा नहीं होता। उसकी ग्रैविटी की भी एक सीमा है। इससे जाहिर होता है कि एक ही स्थान पर ओवरलेपिंग ब्रह्मांडों की संख्या सीमित ही है। यह भी हो सकता है कि असीमित ब्रह्मांड हो, पर उनसे उत्पन्न ग्रैविटी किसी अज्ञात कारणवश सीमित ही रह जाती हो। इसलिए हतोत्साहित होने की जरूरत नहीं है। जीवन अनंत है। ऐसा भी हो सकता है कि डार्क मैटर ऐसी तरंगों का बना हो, जैसी तरंगें हमारे मस्तिष्क में मन के रूप में होती हैं। जैसे मनरूपी आभासी तरंगें ग्रैविटी जैसा गुण दिखाती हैं, वैसे ही वे डार्क मैटर में दिखाती हों, मतलब बिना किसी पदार्थ या द्रव्यमान के ग्रेवीटी। शायद इसीलिए कहते हैं कि इस सृष्टि को परमात्मा अपनी इच्छानुसार चला रहे हैं। डार्क मैटर मतलब परमात्मा का मन। संभावनाएं कई हैं। हम तो कुंडलिनीयोग शक्ति की मदद से विचार प्रयोग ही कर सकते हैं। डार्क मैटर में खुद ही ब्रह्मांड बनना शुरु हो जाता है, क्योंकि उसमें मूल आकाश की सारी ऊर्जा तो होती ही है, पर उस पर पर्दा सा पड़ा होता है। मजबूरन उससे चिंगारियों की तरह मूल तरंगें और मूलकण बाहर को कूदते रहते हैं, जो आगे से आगे ब्रह्मांड बनाने का सिलसिला जारी रखते हैं। यह भ्रमरूप अंधेरा मूल परमात्माकाश से सृष्टि बनाने के लिए उत्तेजक का काम करता है। इसीको भारतीय दर्शन में प्रकृति या महामाया या शक्ति कहा गया है। जो इसके आधार में सत्य और मूल आकाश है, उसे पुरुष या परमात्मा या शिव कहा गया है। इसलिए बहुत से लोग यह संभावना ठीक ही जता रहे हैं कि ब्लैकहोल ब्रह्मांड के निर्माण की फैक्ट्री है। जैसे भ्रम आदमी को अपने आत्माकाश में महसूस होता है, वैसा ब्लैकहोल को तो नहीं होता होगा। बेशक न हो, पर भ्रम लायक भौतिक परिस्थिति तो बनाई ही जाती है, जो एक तारे के अनंत सूक्ष्मता तक सिकुड़ने के रूप में है। इस तरह ब्लैकहोल से ब्रह्मांड और ब्रह्मांड से ब्लैकहोल आगे से आगे बनता ही रहता है। पर पहले क्या बना। यह ऐसा ही प्रश्न है कि पहले मुर्गी बनी या अंडा। पहले ब्लैकहोल बना या ब्रह्मांड। पहले अंधेरा बना या प्रकाश। पहले मूल प्रकृति बनी या दृश्य जगत । पहले व्यष्टि प्रकृति बनी या जीव। इस बारे शास्त्र कहते हैं कि दोनों ही अनादि हैं, और क्रमवार एकदूसरे को बनाते रहते हैं।

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demystifyingkundalini by Premyogi vajra- प्रेमयोगी वज्र-कृत कुण्डलिनी-रहस्योद्घाटन

I am as natural as air and water. I take in hand whatever is there to work hard and make a merry. I am fond of Yoga, Tantra, Music and Cinema. मैं हवा और पानी की तरह प्राकृतिक हूं। मैं कड़ी मेहनत करने और रंगरलियाँ मनाने के लिए जो कुछ भी काम देखता हूँ, उसे हाथ में ले लेता हूं। मुझे योग, तंत्र, संगीत और सिनेमा का शौक है।

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