कुंडलिनी योग एक लाभ अनेक

दोस्तों, अब समय आ गया है कि सभी धर्मों की वैज्ञानिक और मानवतावादी बातों को लेकर एक वैश्विक धर्म बनाया जाए। खैर, यह विषय इस ब्लॉग के विषय से हटकर है, इसलिए हम इसकी गहराई में नहीं जाना चाहते। अभी हाल ही में मैंने अपनी बेटी के लिए विश्वविद्यालय के किसी कार्यक्रम के लिए योग के ऊपर एक लघु लेख लिखा था, उसी को थोड़ा विस्तृत करके यहां प्रस्तुत कर रहा हूं।

योग सांस, शक्ति, गति, और ध्यान से मिलकर बना है। इन चारों का हम थोड़ा बारीकी से अध्ययन करेंगे।

सांस ही जीवन है, जीवन ही सांस है। मित्रो, सांसें ही मन समेत पूरे शरीर को नियंत्रित करती हैं। और योग सांस को नियंत्रित करता है। अमीर वह नहीं है, जो खाता है और पीता है, बल्कि अमीर वह है जो सांस लेता है। योग से सांसें शरीर के विभिन्न चक्रों पर केंद्रित की जाती हैं, जिससे उन्हें पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती है। असली सांस गहरी ही होती है जो पूरे शरीर को अच्छे से लगती है। उसे लेने का आनंद आता है। उससे तृप्ति जैसी महसूस होती है। उसके साथ शरीर की सिकुड़न जैसी हलचल भी जुड़ी होती है। थोड़ी देर सांस रोककर शरीर में ऐंठनें जैसी होने लगती हैं। पूरे शरीर पर ध्यान देते समय वह ज्यादा गहरी महसूस होती हैं, खासकर पेट में। जब सांस रोके रखना बर्दाश्त से बाहर सा हो जाए, उस समय ऐसी सांस निकलती है। थोड़ी देर के लिए यह सांसों को यौगिक सांसें बना कर रखता है। फिर वह क्रम दोहराना पड़ता है। सिर्फ तेज सांसों को कितना ही लेते रहो, पूरी तृप्ति नहीं होती, उल्टा थकान भी बढ़ती है और मन का भटकाव भी।

हमारा शरीर शक्ति से संचालित होता है। और शक्ति योग से नियंत्रित होती है। योग से हम शक्ति को जरूरत के हिसाब से शरीर के विभिन्न अंगों पर केंद्रित कर सकते हैं। इससे अंगों पर ज्यादा बोझ नहीं पड़ता, जिससे वे स्वस्थ रहते हैं। सांस रोककर जब एक विशेष चक्र पर ध्यान लगाया जाता है, तब वहां आनंद के साथ एक ऐंठन सी महसूस होती है। शायद यही शक्ति है, जो चक्र को लग रही होती है। इसी को ऐसा कहते हैं कि सांस चक्र पर केंद्रित हो रही है। इसी को ही ऐसा भी कहा जाता है कि प्राण और अपान यहां आपस में जुड़ रहे हैं। प्राण शरीर के ऊपर वाले हिस्से की सांस को कहते हैं और अपान नीचे वाले हिस्से की सांस को। इसलिए चक्र को संगम स्थल भी कहा जाता है कई जगहों पर। संगम स्थल वह होता है जहां दो विपरीत बहने वाली नदियां आपस में मिलती हैं।

हमारा जीवन शरीर की गतिशीलता से भी प्रभावित होता है। जहां आवश्यक गतिशीलता फायदेमंद है, वहीं अनावश्यक गतिशीलता नुकसानदेह भी होती है। योगासन शरीर की गतिशीलता पर नियन्त्रण लगाते हुए शक्ति के दुरुपयोग को रोकता है।

हमारे जीवन में ध्यान का बहुत ज़्यादा महत्त्व है। ध्यान लगाकर काम करने से ही उसमें गुणवत्ता आती है। काम में दक्षता आने से आदमी तेजी के साथ चहुंमुखी विकास करने लगता है। इसीलिए हर काम के साथ ध्यान शब्द जोड़ा जाता है, जैसे ध्यान से चलना, ध्यान से पढ़ना, ध्यान से खेलना आदि। योग से ध्यान का अभ्यास विकसित होता है। मतलब कि योग से जीवन विकसित होता है।

दोस्तों, योग से उपरोक्त सभी लाभ मिलने से शरीर खुद ही स्वस्थ बना रहता है। सांसों से उसे पर्याप्त ऑक्सीजन अर्थात प्राणवायु मिलती है। शक्ति से उसके सभी अंग सही ढंग से काम करते हैं। आवश्यक गतिशीलता से शरीर में लचीलापन बना रहता है। ध्यान से शक्ति इधर उधर बिखरने की बजाय एक स्थान पर केंद्रित हो जाती है, जिससे वह ज्यादा असर दिखाती है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन निवास करता है। मन स्वस्थ होने से हमारा स्वभाव संतुलित हो जाता है, जिसमें आध्यात्मिकता या धार्मिकता और भौतिकता या सांसारिकता, दोनों की समुचित भागीदारी होती है। इसलिए दोस्तो, चाहे कुछ भी हो जाए, योग हमेशा और प्रतिदिन करना चाहिए।

जयतु योग:

Published by

Unknown's avatar

demystifyingkundalini by Premyogi vajra- प्रेमयोगी वज्र-कृत कुण्डलिनी-रहस्योद्घाटन

I am as natural as air and water. I take in hand whatever is there to work hard and make a merry. I am fond of Yoga, Tantra, Music and Cinema. मैं हवा और पानी की तरह प्राकृतिक हूं। मैं कड़ी मेहनत करने और रंगरलियाँ मनाने के लिए जो कुछ भी काम देखता हूँ, उसे हाथ में ले लेता हूं। मुझे योग, तंत्र, संगीत और सिनेमा का शौक है।

Leave a comment