कुंडलिनी शक्ति संचरण को ही सभी वेद-पुराणों में हयग्रीव भगवान के रूप में दर्शाया गया है

दोस्तों, बहुत से पुराणों में हयग्रीव की कथा आती है। किसी में हयग्रीव को देवता के अवतार में दिखाया गया है, किसी में राक्षस के रूप में, तो किसी में दोनों ही रूपों में। अन्य मिथक चरित्रों की तरह हयग्रीव भी वेदों से ही लिया गया है। हय का मतलब घोड़ा और ग्रीवा का मतलब गर्दन। जिसका शरीर मनुष्य या देवता का पर गर्दन और सिर घोड़े के हैं, वही हयग्रीव है।

भागवत की एक कथा के अनुसार ब्रह्मा प्रलयकाल शुरु होने पर नींद में जा रहे थे, तो उनके मुंह से जो वेद निकले, उन्हें हयग्रीव राक्षस ने चुरा लिया, जिसे विष्णु ने मछली का रूप लेकर मारा। उन्होंने उससे वेद लेकर ब्रह्मा को लौटा दिए, जो प्रलय के बाद जाग गए थे।

अग्नि पुराण में भी लगभग ऐसा ही आता है कि जब प्रलय के समय विश्व राख बन गया था, तब हयग्रीव दानव वेदों को नष्ट करने लग गया, पर विष्णु ने मछली का रूप लेकर उसे मार दिया।

मत्स्य पुराण में यह आता है कि जब प्रलय से विश्व जल गया था, तब विष्णु ने हयग्रीव का रूप लेकर वेदों को बचाया था।

भागवत की ही एक कथा में आता है कि हयग्रीव बने विष्णु ने दानव मधु और कैटभ को मारकर वेदों को उनसे प्राप्त किया था।

देवीपुराण के अनुसार हयग्रीव राक्षस को देवी से वर मिला कि वह हयग्रीव के द्वारा ही मारा जाएगा, किसी अन्य के द्वारा नहीं। इसलिए विष्णु को उसे मारने के लिए हयग्रीव अवतार में आना पड़ता है।

स्कंद पुराण के अनुसार देवताओं ने यज्ञ शुरु किया और उन्होंने विष्णु का पता लगाया तो वह एक धनुष के साथ कहीं समुद्र के बीच द्वीप आदि पर साधना कर रहे थे। उन्होंने विष्णु को उठाया जिससे धनुष की डोरी का एक सिरा टूटकर विष्णु की गर्दन को काट गया, क्योंकि उसे चींटियों ने खाकर कच्चा किया हुआ था। विश्वकर्मा ने फिर उनको घोड़े का सिर लगा दिया। विष्णु ने खुश होकर उन्हें वेद लाकर दिए जिससे यज्ञ पूर्ण हुआ। फिर दीमकों ने और विश्वकर्मा ने भी यज्ञ में अपना हिस्सा मांगा।

मतलब हयग्रीव कहीं न कहीं तीनों रूपों में है, कहीं दिव्य रूप में, कहीं राक्षसी रूप में तो कहीं एकसाथ दोनों के युग्म रूप में। भागवत पुराण में उसके दोनों रूप हैं, पर हरेक रूप अलग अलग कथाओं में है, दोनों एकसाथ एक ही कथा में नहीं, क्योंकि इस पुराण में विष्णु मुख्य हैं। पर देवीभागवत पुराण में दोनों रूप एक ही कथा में दिखाए गए हैं, क्योंकि उसमें देवी मुख्य है, विष्णु नहीं।

भगवान हयग्रीव की वैदिक मिथक कथा का अध्यात्मवैज्ञानिक विश्लेषण

वैसे मूल संस्कृत में पुराण पढ़कर ही स्थिति ज्यादा स्पष्ट होती है, पर फिर भी कोशिश तो ऐसे भी कर सकते हैं। इतने सारे पुराण तो लाइब्रेरी में ही इकट्ठे मिल सकते हैं। ऑनलाइन भी उपलब्ध नहीं मिले मुझे। घर पर एक शिवपुराण पड़ा है, जिसमें विशेषज्ञता प्राप्त करने को मन करता है, क्योंकि यह मुझे सर्वाधिक प्रिय, सरल व वैज्ञानिक लगता है। हम वैसे भी पार्ट टाइम या अंशकालिक या हॉबी शोधार्थी ही हैं, पूर्णकालिक नहीं। इसलिए शिवपुराण तक ही अपने को सीमित रखना चाहते हैं। वैसे भी सभी पुराणों की कथाओं की थीम एक ही होती है, जो मुख्यतः योग ही है, सिर्फ कथाएं बदलती हैं। हयग्रीव, मत्स्य आदि की अन्य पुराणों की कथाएं तो कई बार प्रसंगवश चल पड़ती हैं। कागज पर छपे शिवपुराण में भी कई बार यह दिक्कत आ जाती है कि कुछ भी ढूंढने में समय अधिक लगता है, जबकि ऑनलाइन सर्च तो पलक झपकते ही हो जाती है।संस्कृतबुक्सऑनलाइनडॉटकॉम के नाम से एक साइट मिली पर उसमें जो पीडीएफ बुक्स हैं वे ऐसी हैं कि उनमें कुछ भी सर्च नहीं होता। फिर वैज्ञानिक शोध कैसे होगा। ऐसी सिंगल पीडीएफ की जरूरत है जिसमें कम से कम सारे 18 पुराण शामिल हों, और साथ में सर्च फंक्शन भी हो। अगर मिले तो कृपया बताएं। अगर तो सारे वेद, पुराण, उपनिषद और अन्य सारा संस्कृत साहित्य एक ही पीडीएफ में हो, तब तो महान शोध हो सकता है। मुझे लगता है कि आज की ऑनलाइन संचार सुविधाओं का सदुपयोग इसी में है कि प्राचीन सनातन संस्कृति को पढ़ा जाए और समझा जाए। तकनीक आज की, और संस्कृति पुरानी, यही सर्वोत्तम गठबंधन है। आज की संस्कृति ऐसी है, जिसमें तकनीक के अतिरिक्त ज्यादा कुछ नहीं है। आध्यात्मिक जागृति और मुक्ति, जो मनुष्यमात्र का चरम लक्ष्य है, जिसके लिए पुरानी विशेषकर सनातन संस्कृति पूरी तरह समर्पित रहती थी, उसका आज की संस्कृति में नामोनिशान भी नजर नहीं आता।

प्रलयकाल मतलब जब आदमी के मनरूपी ब्रह्मा का सारा ज्ञानविज्ञान मूलाधार के अंधेरे में डूबा हुआ था, मतलब ब्रह्मा सो गए थे। कई लोग बोलेंगे कि आदमी और उसके अभिव्यक्त मन की उमर तो सौ साल होती है, फिर ब्रह्मा की आयु कई युगों लंबी क्यों बताई जाती है। यह इसलिए क्योंकि मन शरीर से बहुत आगे जा सकता है। जब जीव विकसित होकर आदमी बनता है, तब तक ब्रह्मांड बनने के बाद करोड़ों अरबों साल बीत चुके होते हैं। इसलिए आदमी के मन में उस पूरे समय का प्रभाव जमा होता है, ऐसे भी क्योंकि वह उतना सारा कुछ सोच सकता है और क्रमिक विकास के दौरान डीएनए के जरिए भी। जितना बड़ा दिन होता w, उतनी ही बड़ी रात होती है। जितने समय आदमी जाग कर काम करता है, सोता भी उतने ही समय के लिए है। मतलब कि जितने समय वह ब्रह्मा के रूप में जीवित रहा, मरने के बाद भी वह उतने ही समय उस स्थिति में रहेगा, जो ब्रह्मा की रात और नींद होगी।

घोड़े के शरीर की एक अनौखी विशेषता है कि उसकी पीठ पर केंद्रीय रेखा में ठीक सुषुम्ना नाड़ी के रास्ते के ऊपर विशेष और बड़े बाल होते हैं। गर्दन और सिर में तो ये बड़े सुंदर और आकार में काफी बड़े होते हैं, जिससे घोड़े की झालर जैसी मेन बनती है। इसीलिए हयग्रीव अवतार में सिर्फ घोड़े की गर्दन और सिर लिए गए हैं, बाकि शरीर तो मनुष्य का ही अच्छा है, क्योंकि वही ठीक ढंग से योग कर सकता है। इसका मतलब है कि एक योगी की आकृति हयग्रीव जैसी है। इसी शरीर से शक्ति मूलाधार से सुषुम्ना से होते हुए मस्तिष्क स्थित सहस्रार को चढ़ती है। मस्तिष्क की यही शक्ति सारे ज्ञानविज्ञान का आधार है। स्वाभाविक है कि जिस शरीर से शक्ति ऊपर चढ़ती है, उसी से नीचे भी उतरती है। जिस सीढ़ी से आदमी घर की छत पर चढ़ता है, उतरता भी उसी से है। जब मरते समय आदमी के मस्तिष्क की शक्ति फ्रंट चेनल से होते हुए मूलाधार को नीचे उतरती है, तब कहते हैं कि ब्रह्मा नींद में जा रहा था, और उसी समय उसके मुख से वेद बाहर निकले, क्योंकि फ्रंट चैनल मुख से होकर ही नीचे गुजरता है। उन वेदों को लेकर हयग्रीव दानव समुद्र में छिप गया। जब उस व्यक्ति का पुनर्जन्म होता है, और उसे अपने मस्तिष्क में शक्ति और चेतना का आभास होता है, क्योंकि फिर शक्ति मूलाधार से मस्तिष्क की ओर ऊपर चढ़ रही होती है। इस बात का प्रमाण है, बच्चे के मातापिता द्वारा किए जाने वाले परस्पर प्रेम प्रसंग का बहुत बढ़ना और गहरा हो जाना। उनका मस्तिष्क उनके हयग्रीव जैसे शरीर के माध्यम से मूलाधार से शक्ति प्राप्त कर रहा होता है। वही शक्ति अत्यधिक निकटता और प्रेम के कारण उनके बच्चे को भी संप्रेषित हो रही होती है, जिससे वह तेजी से विकास करता है। मां बाप भी बच्चे के शरीर को प्यार से सहला कर और उसकी अच्छे से मालिश वगैरह कर के उसकी शक्ति को भी उसके हयग्रीव जैसे शरीर में मूलाधार से ऊपर उठाते रहते हैं। इसीको ऐसा कहा जाता है कि ब्रह्मा नींद से जाग गया है, और भगवान विष्णु ने हयग्रीव के रूप में अवतार लेकर दैत्य हयग्रीव को मारकर उससे वेद छुड़ा कर ब्रह्मा को वापिस कर दिए हैं।

कई स्थानों पर विष्णु की नाभि के कमल से ब्रह्मा की उत्पत्ति बताई है। यहां विष्णु हयग्रीव के रूप में ब्रह्मा के जागने में मदद करता है। बात एक ही है, सिर्फ शब्दों का फर्क है। उत्पत्ति उसी की कही जा सकती है जो जागा हुआ हो। सोए हुए की या ज्ञानविज्ञान से शून्य व्यक्ति की कैसी उत्पत्ति। मतलब यहां भी ब्रह्मा को विष्णु ही उत्पन्न कर रहा है। पहले मामले में समुद्र में शेषनाग पर लेटे विष्णु हैं, दूसरे में समुद्र में वेद ढूंढते विष्णु। पहले मामले में भी विष्णु अपने शरीर के विकास से ब्रह्मा को निर्मित करता है, दूसरे मामले में भी ऐसा ही होता है। परस्पर प्रेम से मां बाप के मस्तिष्क में जो चेतना का कमल खिलता है, वह भी ब्रह्मा का नींद से जागना ही है। इसे ही ब्रह्मा का जन्म भी कह सकते हैं, क्योंकि सोए हुए का कैसा जन्म। जैसे उनके मस्तिष्क में ब्रह्मा का जन्म होता है, वैसे ही उनके गर्भ में पलने वाले संभावित बच्चे में भी हो सकता है। मूलाधार में सोई हुई कुंडलिनी भी एक प्रकार से प्रलयार्णव में सोया हुआ ब्रह्मा ही है। जब हयग्रीव रूपी विष्णु या योगी उसे ऊपर उठाता है, तो वह सहस्रार में जागने लगता है, और सृष्टिनिर्माण की प्रक्रिया शुरु करता है। पूर्ण जागृति अर्थात कुंडलिनी जागरण को सृष्टि निर्माण की पूर्णता समझना चाहिए। यह तो ब्रह्मा के सोने और जागने की शास्त्रों की बात रही। पर शास्त्रों में यह भी आता है कि ब्रह्मा सृष्टि पूरी होने पर खुद ही मुक्त हो जाता है। आदमी भी तो ऐसा ही होता है। जिसको जागृति रूपी पूर्णता नहीं मिली, वह सोकर या मरकर फिर जागता या जन्म लेता है, पर जिसको मिल गई, वह अपना जीवन पूरा होने पर मुक्त हो जाता है।

अब थोड़ा इसको और समझते हैं कि दैत्य हयग्रीव वेदों को चुराकर ब्रह्मा को केसे चेतनाशून्य बना कर रखता है। यह तो पता ही है कि मस्तिष्क की ऊर्जा फ्रंट चैनल से होकर मूलाधार को जाती है। फ्रंट चैनल को दैत्य हयग्रीव मान लो, और बैक चैनल को भगवान हयग्रीव, क्योंकि दोनों में केंद्रीय रेखा से होकर ही ऊर्जा का सर्वाधिक गमन होता है। अगर भगवान हयग्रीव नहीं होगा, तो वेदरूपी सारी ऊर्जा मूलाधार रूपी समुद्र में ही इकट्ठी दबी रह जाएगी।

शक्ति का ऐसा ऊपर नीचे का गमन सभी में होता है, पर क्योंकि योगियों को ही इसका साक्षात व स्पष्ट अनुभव होता है, इसीलिए योग की चीजों को इससे जोड़ा गया है।

मछली, शेषनाग, हयग्रीव आदि के रूप आपस में दार्शनिक रूप से जुड़े हुए हैं, इसलिए कुछ भी बोल सकते हैं। प्रलय के समय कहीं विश्व को जली हुई राख की ढेरी, तो कहीं समुद्र में निमग्न बताया जाता है। दोनों ही मूलाधार के अंधेरे और अभाव को इंगित करते हैं।

एक कथा के अनुसार हयग्रीव ने मारा, और मछली ने बचाया, इसको समझते हैं। यह तो मुझे तांत्रिक मामला लगता है मत्स्य पुराण की तरह। कुंडलिनी चित्र रूपी छोटी सी संवेदनात्मक मछली कैसे विशाल मत्स्य बन कर कर्मबंधन में फंसे जीवों को सृष्टिसुख और जागृति प्रदान करती है।

मुझे लगता है कि मधु कैटभ इड़ा पिंगला के प्रतीक हैं। ये नाड़ियां शरीर के बाएं और दाएं भाग को कवर करती हैं। इससे शरीर बहिर्मुख सा रहता है, जिससे आदमी अध्यात्म से दूर सा हो जाता है। रहती तो उर्जा शरीर में ही, और शरीर भी स्वस्थ रहता है, पर यह केंद्रीय लूप या छल्ले में नहीं घूम पाती, जिससे सहस्रार में ऊर्जा की कमी हो जाती है। सहस्रार ही अध्यात्म का सर्वप्रमुख चक्र है। सहस्रार में जो ज्ञान है, वह संपूर्ण सृष्टि रूप ही है, क्योंकि इसमें संसार का ज्ञानविज्ञान अद्वैत के साथ होता है, और सृष्टि भी अद्वैतरूप ही है। हयग्रीव के ध्यान से ऊर्जा केंद्रीय छल्ले में आ जाती है, मतलब मधु कैटभ मर जाते हैं, और सृष्टि का सही वर्णन करने वाले वेद क्रियाशील हो जाते हैं। वैसे भी जब दिमाग का कोई फालतु विचार परेशान कर रहा हो तो हयग्रीव के ध्यान से वह गायब होकर उसकी जगह कुंडलिनी चित्र आ जाता है। घोड़ा दिमाग की कम और दिल की ज्यादा सुनता है। गधा तो एक कदम बढ़ कर लगता इस मामले में, तभी तो वह माता शीतला देवी और कालरात्रि देवी की सवारी है। हो सकता है, दोनों देवियों के नाम या चेहरे विशेष पर ज्यादा ध्यान न जाए, इसीलिए गधे को इनके साथ रखा गया है। इसका मतलब है कि अगर अगर चेहरे के रूप सौंदर्य आदि की चिंता हो रही हो, तो हयग्रीव का ध्यान करने से वह खत्म और कुंडलिनी प्रकट हो जाती है।

धनुष का लकड़ी का लहरदार आधार आदमी की लहरदार रीढ़ की हड्डी का बैक चेनल है, और उसमें बंधी डोरी शरीर के आगे का सीधा फ्रंट चैनल है। इसीको ऐसा कहा है कि विष्णु धनुष के साथ साधना कर रहे थे, क्योंकि योग इन्हीं दो मुख्य चैनलों की सहायता से होता है। दिमाग के फालतु पर चिपकू विचारों के कारण उसकी ऊर्जा मस्तिष्क से नीचे नहीं जा रही थी। इन्हीं विचारों को दीमक कहा है, क्योंकि ये आदमी की उम्र को लकड़ी की तरह खाते रहते हैं। इस से उनका फ्रंट चैनल पहले से ही कमजोर था, जब उन्हें देवताओं ने योग से उठाया तो वह बिल्कुल ही टूट गया, मतलब गर्दन कट गई, क्योंकि चैनल को ही गर्दन कहा है। फिर घोड़े का सिर इसीलिए लगाया ताकि फ्रंट चैनल सबसे अच्छा चले। इससे भगवान हयग्रीव बने। इससे जब ऊर्जा लूप पूर्ण हो गया, तो स्वाभाविक है कि सहस्रार में सृष्टिरूपी वेदों की पुनर्स्थापना हो गई। इससे देवताओं का यज्ञ पूर्ण हुआ। यज्ञ होता ही सृष्टि के कल्याण के लिए है। अद्वैत के साथ दुनियादारी, इससे बढ़कर सृष्टि का क्या कल्याण हो सकता है। विष्णु को यज्ञपति इसीलिए कहते हैं क्योंकि वही मनुष्य रूप में सही वर्ताव से यज्ञ को पूर्ण कर सकता है। अन्य देवता तो गुलाम नौकरों की तरह हैं, जो जीवात्मा रूपी विष्णु के शरीर मतलब यज्ञस्थली के सेवाकार्य में लगे रहते हैं। जीवन व्यवहार का अंतिम फैंसला तो जीवात्मा ने ही लेना होता है। इसीलिए यज्ञ के फल का सबसे बड़ा भाग विष्णु को ही मिलता है। हयग्रीव ध्यान से मणिपुर चक्र पर अच्छा ध्यान लगता है, और मणिपुर चक्र को यज्ञस्थल भी कहा जाता है, जहां भोजन रूपी आहुति हर समय शरीरस्थ सभी देवताओं की तृप्ति के लिए जठराग्नि रूपी अग्नि देवता के माध्यम से दी जाती रहती है, पर यज्ञ तो यज्ञपुरुष विष्णु, राम या आदर्श मनुष्य की भागीदारी से ही पूर्ण होता है।

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demystifyingkundalini by Premyogi vajra- प्रेमयोगी वज्र-कृत कुण्डलिनी-रहस्योद्घाटन

I am as natural as air and water. I take in hand whatever is there to work hard and make a merry. I am fond of Yoga, Tantra, Music and Cinema. मैं हवा और पानी की तरह प्राकृतिक हूं। मैं कड़ी मेहनत करने और रंगरलियाँ मनाने के लिए जो कुछ भी काम देखता हूँ, उसे हाथ में ले लेता हूं। मुझे योग, तंत्र, संगीत और सिनेमा का शौक है।

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