कुण्डलिनी जागरण और आत्मज्ञान या आत्मबोध के बीच में तत्त्वतः कोई अंतर नहीं है

मुझे बिंग एआई से जानकारी मिली कि आत्मज्ञान धीरे धीरे हासिल होता है, किसी योग आदि तकनीक से एकदम से नहीं। पर आत्मज्ञान कहते हैं, अपने को महसूस करने को। बहुत से लोगों ने इसे योग तकनीक से महसूस किया है। मुझे भी परमात्मा की असीम कृपा से सौभाग्यवश तंत्रसहायित कुंडलिनी योग से इसकी मामुली सी झलक महसूस की थी, जिसका वर्णन तथाकथित 10 सैकंड का कुंडलिनी जागरण कह के वर्णित किया गया है इस वेबसाईट पर। दुर्भाग्यवश ज्यादातर लोग इस स्तर तक नहीं पहुंच पाए होंगे और कुंडलिनी क्रियाशीलता या तथाकथित कुंडलिनी जागरण तक ही सीमित कर पाए हों, और वैसा ही वर्णन उन्होंने ऑनलाइन किया हो, जिसे बिंग एआई ने पकड़ लिया हो। शायद चैट जीपीटी वही पकड़ता है जो ज्यादा होता है। उनका कुंडलिनी जागरण भी आत्मज्ञान से निचले स्तर का रहा होगा। जागरण या समाधि के भी स्तर होते हैं। जैसे कोई आदमी जागकर बैठता है, कोई चलता है, कोई दौड़ता है, तो कोई दुनिया जीतता है। इसी तरह कुंडलिनी जागरण की अंतिम पराकाष्ठा ही आत्मज्ञान है। अगर मैं पुराणपाठी गुरु और देवताओं के सान्निध्य और उनकी अप्रत्यक्ष प्रेरणा से साधारण कुंडलिनी जागरण को तांत्रिक बल न देता तो शायद वह कुछ ही क्षणों के लिए पूर्ण रूप से जागृत महसूस न हुई होती। यही पूर्ण जागृति आत्मज्ञान है। मतलब इसमें मन जागकर आत्मा या परमात्मा जितना विस्तृत हो गया है। सिर्फ स्तर का अंतर है, और कुछ नहीं। इसे ही पूर्ण समाधि भी कह सकते हैं। तथाकथित आम भाषा की समाधि भी कुंडलिनी जागरण का बहुत ऊंचा स्तर होता है। वैसे तो हरेक अनुभव किसी न किसी स्तर की समाधि होता है। किसी चीज से जुड़े बिना हम उसे अनुभव ही नहीं कर सकते। पर पूर्ण जागरण मतलब आत्मज्ञान उस तथाकथित या लोकप्रसिद्ध योगसमाधि से भी एक कदम आगे होता है। ज्यादातर मामलों में समाधि को ही योग से प्राप्त होने वाली अंतिम अवधि माना जाता है। यह इसलिए क्योंकि योग की सहायता से समाधि से आगे बहुत कम लोग गए होंगे जिनकी आवाज को अनसुना कर दिया गया होगा। संसार में तो बीन बाजे की ही ज्यादा पूछ होती है। ज्यादातर लोग लोकलाज या घरगृहस्थी की मोहमाया से घरबार न छोड़ सकने के कारण अपनी समाधि को यौनतांत्रिक बल न दे पाए होंगे। शायद इसी वजह से पतंजलि ने भी अपने अष्टांगयोग सूत्र में समाधि को ही योग की अंतिम अवधि मान बैठे हैं। हो सकता है कि वे अल्पसंख्यक योगियों की आवाज न सुन पाए हों। पतंजलि भी यही कहते हैं कि अगर समाधि के बाद ईश्वर के सहारे जीवन जिया जाए , तो उनकी कृपा से आत्मज्ञान भी शीघ्र ही हो जाता है। जो काम आदमी खुद कर सकता है, उसके लिए खुद भी प्रयत्न करना चाहिए, ईश्वर तो ख़ैर हमेशा ही सबकी सहायता करता है। यह अक्सर होता है कि अपने काम की कमी को पूरा करने के लिए भी ईश्वर से मदद मांगी जाती है। मुझे यह भी लगता है कि इसमें गलतफहमी भी हुई है। क्योंकि समाधि का अनुभव तो अक्सर योगसाधना की क्रिया के दौरान होता है, पर जागृति का नहीं। जागृति कहीं सुंदर स्थान जैसे झील के पास, पहाड़ पर, या समारोह आदि में ज्यादा होती है। पर यह नहीं भूलना चाहिए कि उस समय भी नियमित रूप से चल रही वर्तमानकालिक तांत्रिक योगसाधना से इकट्ठी हुई कुंडलिनी ऊर्जा ही जागृति कराती है। क्योंकि तांत्रिक तरीके से ही योगसाधना वैज्ञानिक रूप से निश्चित और अल्प समय में मतलब कुछ महीनों के अंदर आत्मज्ञान करा सकती है, पर साधारण योग से तो पूर्णतः अनिश्चित होता है। क्या पता कितने साल में होए, पूरी उम्र में होए या ताउम्र न होए। ज्यादातर को तो ताउम्र नहीं होता, ऐसा लगता है। लोग बताने से छिपाते हों, यह अलग बात है। पूरी तरह से चमत्कार या विशेष कृपा की जरूरत होती है, जैसा पतंजलि कहते हैं। वैसे यह पतंजलि की मजबूरी भी रही होगी क्योंकि अगर उनकी पुस्तक में तंत्र का उल्लेख किया गया होता, तो शायद वह उस समय के अति आदर्शवादी समाज को ज्यादा स्वीकार्य न होती। एक कामयाब लेखक बनने के लिए कई बार सत्य को ढकना भी पड़ जाता है। इसीलिए मुझे शिव सबसे बड़े देवता लगते हैं, क्योंकि वे खुलकर सत्य सबके सामने रखते हैं। जिसे ऑनलाइन पोर्टल पर उम्र के पड़ाव के साथ धीरे धीरे मिलने वाला बताया गया है, वह आत्मज्ञान नहीं बल्कि आत्मा की विचारों की गंदगी की सफाई है। आत्मा मतलब अपने को जानने में तो कुछ ही क्षण काफी हैं। हम दोस्त को पहचानने में भी कुछ क्षणों से ज्यादा समय नहीं लेते, फिर उस अपने आप को पहचानने में कैसे ज्यादा समय ले सकते हैं, जो सबसे निकट है।

शुभ दीपावली

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demystifyingkundalini by Premyogi vajra- प्रेमयोगी वज्र-कृत कुण्डलिनी-रहस्योद्घाटन

I am as natural as air and water. I take in hand whatever is there to work hard and make a merry. I am fond of Yoga, Tantra, Music and Cinema. मैं हवा और पानी की तरह प्राकृतिक हूं। मैं कड़ी मेहनत करने और रंगरलियाँ मनाने के लिए जो कुछ भी काम देखता हूँ, उसे हाथ में ले लेता हूं। मुझे योग, तंत्र, संगीत और सिनेमा का शौक है।

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