कुंडलिनी योग ही बौद्ध धर्म का गुप्त कालचक्र है

किसी समय दैत्य महाबलवान हो गए थे। वे लोकों को पीड़ित करने और धर्म का लोप करने लगे। परेशान होकर देवताओं ने देवरक्षक विष्णु से अपना दुख कहा। देवताओं का कार्य सिद्ध करने के लिए विष्णु कैलाशपर्वत के समीप जाकर स्वयं कुंड का निर्माण कर उसमें अग्निस्थापन कर उसी के समक्ष तप करने लगे। वे पार्थिव विधि से अनेक प्रकार के मंत्रों एवं स्तोत्रों द्वारा मानसरोवर में उत्पन्न हुए कमलों से प्रसन्नता के साथ शिवजी का पूजन करते रहे। वे हरि स्वयं आसन लगाकर स्थित रहे और विचलित नहीं हुए। बहुत समय तक भी शिव प्रकट नहीं हुए। इस पर विष्णु ने हैरान होकर शिव के सहस्रनाम का जाप शुरु कर दिया। वे एक एक नाममंत्र का उच्चारण कर उन्हें एक एक कमल अर्पित करते हुए शंभु की पूजा करने लगे। उस समय शिव ने विष्णु की भक्तिपरीक्षा के लिए उन सहस्र कमलों में से एक कमल का अपहरण कर लिया। विष्णु शिव की माया को न समझकर एक कमल को ढूंढने में लग गए। विष्णु ने उस कमल के लिए पूरी पृथ्वी का भ्रमण किया। उसके प्राप्त न होने पर उन्होंने उसकी जगह अपना एक नेत्र ही अर्पित कर दिया, बेशक शिव ने उन्हें अपना नेत्र निकालने से रोक दिया। तभी शिव प्रसन्न होकर प्रकट हुए और विष्णु को वर देने के लिए तैयार हो गए। पूछने पर विष्णु ने बताया कि उनका आयुध दैत्यों को मारने में सक्षम नहीं हो रहा है। विष्णु का यह वचन सुनकर शिव ने उन्हें अपना महातेजस्वी सुदर्शन चक्र प्रदान किया। उसे प्राप्त कर विष्णु ने बिना परिश्रम के शीघ्र ही उन महाबली राक्षसों को विनष्ट कर दिया। इस प्रकार संसार में शांति हुई। देवता सुखी हुए और सुंदर सुदर्शन चक्र प्राप्त कर अति प्रसन्न विष्णु भी परम सुखी हो गए।

कथा का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण

विष्णु या विष्णु अवतार शरीर को संचालित करने वाला जीवात्मा है, और परब्रह्म विष्णु वह अनिर्वचनीय परमात्मा है जिससे वह अवतरित होता है। वही शरीर के रूप में तीनों लोकों का पोषण करता है और विभिन्न देवताओं से भी करवाता है। इसी तरह शिव अवतार रुद्र मृत्यु के निकट शरीर को नष्ट करने वाली उसी जीवात्मा की अवस्था है। ब्रह्मा भी उसी जीवात्मा की मनरूपी सृष्टि का निमार्ण करने बाली अवस्था है। ब्रह्मा का कोई परब्रह्म रूप नहीं, क्योंकि वह विष्णु रूपी जीवात्मा से उत्पन्न मन ही है। इसीलिए कहा जाता है कि ब्रह्मा का जन्म विष्णु की नाभि से होता है। देवताओं से संचालित शरीर तो बहुत कोशिश करता है अज्ञानरूपी दुर्दांत राक्षसों के चंगुल से निकलने के लिए, पर सफल नहीं हो पाता। अंतिम सहारा जीवात्मारूपी विष्णु ही होता है। वह इसके लिए तांत्रिक विधि से शिवसाधना करता है। कैलाश सहस्रार चक्र है जहां परब्रह्म शिव का निवास है। उसके समीप मूलाधार चक्र है जो कुंड की तरह है। दोनों चक्रों को एकदूसरे के करीब इसलिए कहा है क्योंकि दोनों सीधे नाड़ी के माध्यम से आपस में जुड़े हुए होते हैं बेशक भौतिक दूरी अन्य चक्रों के बजाए मूलाधार की अधिक है। कुंड शब्द शिवपुराण में गड्ढे या कुंड के लिए बहुत प्रयुक्त किया गया है। इसका मतलब है कि कुंडलिनी शब्द इसी कुंड से बना है। कुंड में सर्प कुंडली लगाकर बैठता है। कुंडल या कुण्डली वाला सर्प कुंडलिन हुआ और सर्पिणी कुंडलिनी हुई। वैसे ही जैसे धनिन का मतलब है धन वाला और धनिनी का मतलब है धन वाली। कुंडल कान में पहने जाने वाले छल्ले को कहते हैं। इसलिए कुंडलिन का अर्थ हुआ कान की बाली या छल्ले जैसी आकृति वाला। और कुंडलिनी का अर्थ हुआ कान की बाली या छल्ले जैसी आकृति वाली। कुंडल और कान के गड्ढे या कुंड के बीच संबंध है। इसी तरह कुंडलिनी और मूलाधार रूपी गड्ढे या कुंड के बीच भी संबंध है। कुंड में अग्नि स्थापन मतलब मूलाधार चक्र को प्राणवायु से क्रियाशील करना। उस कुंड में शिवसाधना मतलब मूलाधार चक्र पर इष्ट ध्यान। पार्थिव विधि से शिवपूजन किया मतलब मिट्टी का शिवलिंग बनाया। मनुष्य के शरीर को भी पार्थिव देह कहा जाता है। तो उसके अंग पार्थिव अंग हुए। मानसरोवर के फूल मतलब मन के या ध्यान के फूल। उन्होंने एक हज़ार फूल चढ़ाए मतलब हज़ार बार चक्रों की ऊर्जा को मूलाधार पर स्थापित किया और उसके साथ इष्ट ध्यान किया। मतलब ऊर्जा के एक हजार बार चक्कर लगाए। फूल यहां चक्र को कहा है। हजारवां फूल शिव ने चुरा लिया मतलब सहस्रार चक्र तक ऊर्जा नहीं जा पा रही थी। इससे विष्णु ने अपना नेत्र मतलब तीसरा नेत्र मतलब आज्ञा चक्र खोला और उसके ध्यान से अर्थात उस पर शांभवी मुद्रा में ध्यान देने से ऊर्जा सेंट्रल हुई। वह ऊर्जा पहले मूलाधार में पहुंची, वहां उससे प्रगाढ़ शिवध्यान लगा और फिर शिवध्यानचित्र के साथ सहस्रार में चली गई जहां उन्हें शिव के साक्षात दर्शन प्राप्त हुए मतलब उन्हें जागृति प्राप्त हो गई।

उपरोक्त कथा को दूसरे तरीके से भी समझ सकते हैं। एक पंखुड़ी को एक फूल कह सकते हैं क्योंकि कर्मकांड की पूजा के दौरान फूल की कुछ पंखुड़ियां चढ़ाना ही पूरा फूल चढ़ाना समझा जाता है। इससे फूलों की भी बचत होती है और एक ही फूल से बहुत से देवताओं का पूजन भी हो जाता है। सहस्रारचक्ररूपी कमलपुष्प में एक हजार पंखुड़ियां होती हैं। शिव के नाम से एक पुष्प चढ़ाने से मतलब शिव के ध्यान की किसी निश्चित मात्रा से सहस्रार की एक पंखुड़ी खिल रही थी। दरअसल जागृति पाने के लिए सभी चक्रों की पूरी ऊर्जा सहस्रार को अर्पित करनी होती है। जब सहस्रार एक पुष्प है और वह ध्यान से खिलता है तो स्वाभाविक है कि ध्यान भी एक पुष्प ही है। जैसे जल से भरे किसी बर्तन में जल डालने से उसका जल बढ़ता है, वैसे ही सहस्रार रूपी पुष्प में पुष्प जोड़ने से वह पुष्प बढ़ेगा ही। सहस्रार पूरा खिलने वाला था मतलब जागृति होने वाली थी पर उसकी अंतिम पंखुड़ी नहीं खिल पा रही थी। आज्ञाचक्ररूपी ध्यानपुष्प से वह भी खिल गई। कर्मकांड पूजा में ध्यान करते समय पुष्प को नमस्कार मुद्रा में बंद हाथों के अंदर रखा जाता है। ध्यान को देवता को समर्पित करने के रूप में उस अंजलिस्थित पुष्प को देवता के चरणों में अर्पित किया जाता है। सहस्रार को जब सभी चक्रों की समस्त ऊर्जा एकसाथ मिलती है, तभी यह जागृति के स्तर तक पहुंचता है। ऊर्जा को सीधे सहस्रार तक पहुंचाना कठिन है, इसलिए इसे मूलाधार तक लाने का व्यावहारिक तरीका सामने लाया गया है, जहां से यह आसानी से सीधे सहस्रार तक पहुंच जाती है।

यह लेख पिछले और अगले लेख से जुड़ा है। उसमें कालचक्र के ऊपर भी अच्छी अनुसंधानात्मक चर्चा है। बाह्य कालचक्र में अद्वैत भाव आंतरिक कालचक्र के ध्यान की सहायता से बनता है। ऐसा इसलिए क्योंकि आंतरिक कालचक्र के अंदर कहीं भी असक्तिजनित और द्वैतजनित बंधन नहीं दिखता। सभी देवता, कर्मकाण्ड आदि सब आंतरिक कालचक्र के ही अंग है। हरेक बाह्य पदार्थ में उनके अधिष्ठातृ देवताओं के रूप में मानवशरीरधारी देवताओं का ध्यान करना आंतरिक कालचक्र का ध्यान करना ही है। इससे आदमी धीरे धीरे पवित्र होकर गुप्त कालचक्र मतलब कुंडलिनी योगसाधना की और बढ़ता है। शरीरविज्ञान दर्शन देवसाधना को और ज्यादा मजबूती देता है क्योंकि यह वैज्ञानिक रूप से दर्शाता है कि देवताओं और साथ में मनुष्यों सहित सभी जीवों के शरीर के अंदर पूरा ब्रह्मांड मतलब बाह्य कालचक्र मौजूद है।

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demystifyingkundalini by Premyogi vajra- प्रेमयोगी वज्र-कृत कुण्डलिनी-रहस्योद्घाटन

I am as natural as air and water. I take in hand whatever is there to work hard and make a merry. I am fond of Yoga, Tantra, Music and Cinema. मैं हवा और पानी की तरह प्राकृतिक हूं। मैं कड़ी मेहनत करने और रंगरलियाँ मनाने के लिए जो कुछ भी काम देखता हूँ, उसे हाथ में ले लेता हूं। मुझे योग, तंत्र, संगीत और सिनेमा का शौक है।

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