कुंडलिनी शक्ति कभी नहीं सोती

शरीर में शक्ति गुप्त रहकर सब काम करती है। यह भोजन का पाचन करती है, दिल को धड़काती है, और भी शरीर के छोटे बड़े अनगिनत काम करती है। यह सोई हुई नहीं हो सकती। अगर यह सोई होती तो इतने काम कैसे करती। शायद हम उसे सोई हुई इसलिए कहते हैं क्योंकि आदमी का शरीर गहरी नींद में होने पर भी अनगिनत काम करता रहता है जीवन के, अन्यथा मर न जाता क्या। उससे एक ही काम नहीं होता बस, चेतन विचारों को पैदा करना। इसी तरह सोई हुई शक्ति का मतलब है कि उससे शरीर के सभी काम हो रहे हैं, पर जागृत विचार पैदा नहीं हो रहे। इसे अर्धसुशुप्त अवस्था कह सकते हैं क्योंकि साधारण या धुंधले विचार तो पैदा हो ही रहे हैं। हल्के विचार तो आदमी को नींद में भी आते हैं स्वप्न के रूप में। शक्ति को जगाने का मतलब है उसे सबसे ज्यादा अभिव्यक्त रूप में लाना और वह है कुंडलिनी जागरण। जैसे आदमी के जागने के अनगिनत स्तर हो सकते हैं पर असली जागृति वही है जिसमें वह सबसे ज्यादा अभिव्यक्त होता है, जो कुंडलिनी जागरण ही है। अन्य अवस्थाओं को सुषुप्ति भी कहा जा सकता है। शास्त्रों में अनेक जगह आता है कि यह दुनिया स्वप्न की तरह है। हम जो साधारण जीवन जी रहे हैं, वह स्वप्न ही है, मतलब हम नींद में हैं। असली जागना तो कुंडलिनी जागरण की अवस्था है। सहस्रार से नीचे सब कुंड ही है, मूलाधार सबसे बड़ा कुंड है। क्योंकि अन्य कुंडों से थोड़ा बहुत शक्ति का रिसाव सहस्रार को होता रहता है इसलिए वहां घुप्प अंधेरा नहीं होता। पर मूलाधार में कुंडलिनी होने पर सबसे ज्यादा अंधेरा होता है, क्योंकि यह सहस्रार से सबसे ज्यादा दूर है। आदमी में ही यह ऊर्जा का घूमना खास महत्त्व का है, क्योंकि वह खड़ा होकर चलता है, और मस्तिष्क तक रक्त को पहुंचाने के लिए विशेष ताकत चाहिए होती है। योग से या शारीरिक क्रियाशीलता से जब चक्र पर शक्ति पहुंचने से वहां मांसपेशियों का संकुचन सा होता है, तब वहां खुराक की खपत बढ़ जाती है, इससे वहां खुद ही रक्तसंचार बढ़ जाता है। इसीलिए कहते हैं कि शक्ति रक्तसंचार को नियंत्रित करती है। वैसे सीधे तौर पर वह मांसपेशियों के संकुचन और प्रसारण की गति को नियंत्रित करती है, जिससे रक्तसंचार खुद ही नियंत्रित हो जाता है। पशुओं में पीठ सीधी होने से ऐसा नहीं होता। क्योंकि बंदर, लंगूर , चिंपांजी आदि भी काफी सीधे हो जाते हैं, इसीलिए वे भी चंचल होते हैं ताकि शक्ति बहती रहे व पूरे शरीर में रक्तसंचार सुचारु रूप से चलता रहे।

शरीरविज्ञान के अनुसार शरीर को सिर्फ नर्व फाइबर ही नियंत्रित नहीं करते, बल्कि हार्मोन नामक जैवरसायन भी नियंत्रित करते हैं और अंगों का कुछ अपना स्थानीय नियंत्रण भी होता है। पर नाड़ियां तो पूरे शरीर को सुचारु कर देती हैं। ऐसा तो कभी नहीं सुना गया कि फलां योगी में नाड़ी चालन से कुछ अंग तो दुरस्त हो गए, पर कुछ अंगों पर विशेषकर हार्मोन से नियंत्रित होने वाले अंगों पर कोई असर नहीं पड़ा। इससे तो यह भी लगता है कि नर्व फाइबर को नाड़ियां नहीं कहा गया है। कहते हैं कि नर्व फाइबर में विद्युत ऊर्जा और नाड़ी में प्राण ऊर्जा या शक्ति प्रवाहित होती है। वैसे जब चक्र में हलचल होगी तो वहां हार्मोन बनाने वाले सेल्स भी सक्रिय होंगे और स्थानीय प्रणालियां भी सक्रिय होंगी ही।

शक्ति और ऊर्जा में काफी समानताएं हैं, पर दोनों अलग अलग हैं। ऊर्जा जड़ है, जबकि शक्ति शिव की सन्निधि से चेतन है। ऊर्जा तो किसी भी जड़ चीज या मशीन आदि में हो सकती है, पर शक्ति चेतन प्राणी में ही हो सकती है। कुंडलिनी योग से मूलाधार से ऊपर चढ़ने वाली संभोग आधारित ऊर्जा को इसलिए शक्ति कहा जाता है क्योंकि इससे समाधि जैसी लगती है। साफ शब्दों में कहें तो इससे समाधि चित्र या कुंडलिनी चित्र पुष्ट होता है। और साधारण शब्दों में कहें तो यह परमात्मा की तरफ ले जाती है। क्योंकि इससे दिमाग को ऊर्जा मिलती है, इसलिए अवचेतन मन में दबी ऊर्जा बाहर निकलकर या अभिव्यक्त होकर नष्ट हो जाती है। हालांकि ऐसा शारीरिक क्रियाशीलता से भी होता है, पर इससे भी शक्ति उसी रास्ते से चलती है। मतलब कि शारीरिक हलचल से मूलाधार पर शक्ति इकट्ठी होती रहती है और पीठ से ऊपर चढ़ती रहती है। इसीलिए शरीर से मेहनती लोगों के लिए भी कुंडलिनी योग बहुत फायदेमंद होता है।

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demystifyingkundalini by Premyogi vajra- प्रेमयोगी वज्र-कृत कुण्डलिनी-रहस्योद्घाटन

I am as natural as air and water. I take in hand whatever is there to work hard and make a merry. I am fond of Yoga, Tantra, Music and Cinema. मैं हवा और पानी की तरह प्राकृतिक हूं। मैं कड़ी मेहनत करने और रंगरलियाँ मनाने के लिए जो कुछ भी काम देखता हूँ, उसे हाथ में ले लेता हूं। मुझे योग, तंत्र, संगीत और सिनेमा का शौक है।

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