मित्रों मुझे कई बार लगता है कि कुछ मुख्य चीज छुपाई जा रही है या उसकी खोज नहीं हो पा रही है। नाड़ियों को कहा जा रहा है कि वे सूक्ष्म मार्ग हैं जिनका कोई भौतिक अस्तित्व नहीं है, पर ऐसा होना संभव ही नहीं है। आप कोई भी अनुभव लो, उसका भौतिक अस्तित्व भी जरूर होता है। कोई भी भावना, व्यवहार, सोच, आदि चाहे कितने ही सूक्ष्म क्यों ना हो, मस्तिष्क या शरीर में उनका भौतिक प्रतिरूप भी जरूर होता ही है। बिना भौतिक अभिव्यक्ति के तो केवल शरीर रहित आत्मा ही है। हालांकि उसमें भी पिछले जन्मों के भौतिक अनुभवों का डाटा, सूक्ष्म रूप या अव्यक्त रूप में कोडिड होता है। फिर जब एक प्रकाश की रेखा सुषुम्ना में महसूस होती है तो उसका कोई भौतिक प्रतिरूप भी जरूर होता होगा, जिससे वह पैदा हो रही है। यह मेरुदंड के अंदर स्नायु रज्जु ही तो है, जिसे हम स्पाइनल कॉर्ड कहते हैं। मुझे लगता है कि जो इरेक्टस स्पाइने मांसपेशी सेकरम से स्कल तक, रीढ़ की हड्डी के दोनों तरफ जाती है, वही इड़ा और पिंगला को भौतिक अभिव्यक्ति प्रदान करती हैं। हालांकि ऐसी रस्सी जैसी पेशी छूने पर ही महसूस होती है खासकर शरीर के निचले हिस्से में सैक्रम तक। सामान्यतः तो कुछ शरीर के बाएं या दाएं हिस्से में ऊर्जा या स्फूर्ति जैसी ऊपर चढ़ती महसूस होती है, जम्हाई लेने की तरह। ऐसा लगता है कि वह अज्ञाचक्र बिंदु रूपी सिंक में ओझल हो रही हो। जिस तरफ़ को उर्जा चल रही हो, उस तरफ़ के कपोल या चेहरे की चमड़ी उसी तरफ को खिंचती हुई लगती है। मुझे यह दोनों मसल टाइट रस्सी की तरह हाथ से छूने पर महसूस होते हैं। रीढ़ की हड्डी के दोनों तरफ कभी ये मसल बैंड टाइट जैसे हो जाते हैं, तो कभी लूज। जब टाइट होते हैं तो ऐसा लगता है कि कुछ आनंदात्मक संवेदना इससे ऊपर गई और उससे मूलाधार अंग का उर्जा दबाव कम हो गया। एनाटॉमी देखने पर यह पीठ में वैसे ही फैले हैं, जैसे मुझे महसूस होते हैं। यह सैक्रम के आसपास शुरू होते हैं। फिर थोड़े कम चौड़े होते हैं ऊपर जाते समय नाभि के स्तर पर कम फैले होते हैं और ह्रदय के स्तर पर ज्यादा चौड़े होते हैं और स्कल के बेस पर कम चौड़े होकर दोनों तरफ मुड़ कर स्कल से जुड़ जाते हैं। यह तो विज्ञान भी कहता है कि रासायनिक संवेदना जैसी नाड़ी में बहती है, वैसी ही मांसपेशी में भी बहती है। हो सकता है मांसपेशी में तेजी से बहती हो, इसीलिए मूलाधार की संवेदना मेरुदंड के स्नायु दंड से न जाकर इन दोनों मांसपेशियों से गुजरती है जिसे इड़ा और पिंगला कहा गया है। आप कल्पना करो कि तीन समानांतर पाइप हैं। इनमें बीच वाला पतला और इसके दोनों तरफ एक एक मोटा पाइप है। अगर आप बाएं पाइप को पूरा खुला छोड़ कर दाएं पाइप को पूरा बंद करते हैं तो सारा पानी बाएं पाइप से गुजरेगा। अगर आप दाएं को पूरा खुला छोड़कर बाएं को पूरा बंद करते हैं तो सारा पानी दाएं पाइप से गुजरेगा। अगर आप दोनों को आधा खुला छोड़ते हैं तो अतिरिक्त पानी दूसरी तरफ वाले पाइप की और भागेगा और इस दौरान बीच वाले पाइप से भी गुजरेगा। बाकी शेष पानी ही दूसरे पाइप तक पहुंचेगा। इड़ा और पिंगला के एक साथ क्रियाशील करने से भी शायद ऐसा ही होता है। मतलब संवेदना सुषुम्ना से भी प्रवाहित होने लगती है। दोनों पाइपों को इसलिए एक साथ पूरा खुला नहीं रख सकते क्योंकि इतना पानी ही नहीं होता। मतलब अगर एक नाड़ी को जितना बंद करेंगे, दूसरी नाड़ी उतना ही खुलेगी। मुझे महसूस होता है कि जब मूलाधार की संवेदना ऊपर चढ़ती है तो कभी बाईं तरफ वाली फैली हुई मांसपेशी तन कर रस्सी की तरह दंडवत हो जाती है तो कभी दाएं तरफ वाली। जब दोनों बराबर और हलके रूप में तनती हैं तब ऐसा लगता है कि कुछ संवेदना रीढ़ की हड्डी के अंदर से भी ऊपर गई। क्योंकि तब दोनों से अलग और विशेष सा संतुलित आनंद और तरोताजगी महसूस होते हैं।