दोस्तों, शास्त्रीय संगीत आधारित राग प्राचीन भारतीय परंपरा का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। राग और कुंडलिनी योग में बहुत सी समानताएं हैं। दोनों ही शरीर और मन को तनाव रहित बना देते हैं। रक्तचाप को नियंत्रित करते हैं। ध्यान लगाने में मदद करते हैं। दरअसल रागों का आधार कुंडलिनी योग ही होता है। जैसे “जागो, जागो मोहन प्यारे, भोर भई, तेरे दर्शन को आए जोगी जंगम, जटी, निरंजन” आदि। यहां भोर का मतलब कुंडलिनी योगी के अंदर प्रचुर सतोगुण की वृद्धि है। मोहन यहां कुंडलिनी ध्यान चित्र है। मोहन का जागना यहां कुंडलिनी जागरण है। राग योग के दौरान सांस को ज्यादा देर तक रोक रखने में मदद करते हैं क्योंकि राग में भी ज्यादा देर तक सांस को रोक कर एक ही धुन को लंबा खींचा जाता है। आम गानों में बोल और धुन जल्दी-जल्दी बदलते रहते हैं जिससे ध्यान भी जल्दी जल्दी बदल कर एकाग्र नहीं हो पाता। लोग बोलते हैं कि राग से नींद आती है। दरअसल राग मन को शांत करते हैं। मन की थकान वह बेचैनी के समय राग सुनने से सांसें गहरी और धीमी हो जाती हैं जिससे मन एकदम स्वस्थ महसूस होता है। जब योग के अभ्यास से राग गाने में मदद मिलती है, तो राग श्रवण व गायन से योग में क्यों मदद नहीं मिल सकती, क्योंकि दोनों में सांसों के अभ्यास मतलब प्राणायाम का योगदान है। दिन के समय के अनुसार राग सुनने से मूड फ्रेश हो जाता है। ऐसी ही एक राग्या ऐप है जिसे मैं पसंद करता हूं। मैं कोई प्रमोशन नहीं कर रहा। इसमें लगातार दिन के समय के अनुसार राग चलते रहते हैं और बदल बदल के अनगिनत राग आते हैं। इससे पहले मैंने सारेगामा ऐप को प्रयोग किया पर उसमें किसी बग वगैरह से उसने मेरा 3 महीने का सब्सक्रिप्शन ही भुला दिया, जिसे कस्टमर केयर से भी वापस नहीं पाया जा सका। योग के समय राग सुनने से मन में दबे विचार प्रस्फुटित नहीं होते क्योंकि मस्तिष्क की शक्ति राग सुनने में लगी रहती है। शायद वह दबे विचार नष्ट तो होते रहते हैं, पर बाहर प्रस्फुटित हुए बिना ही, मतलब चुपचाप से। शायद जिस विचार अभिव्यक्ति को हम विचारों के नष्ट होने की प्रक्रिया समझते हो, वह विचारों को जीवित रखने का तरीका हो। किसी आदत को बारंबार दोहराने से वह भला नष्ट कैसे होगी। आदत तभी नष्ट होगी, जब उसे दोहराएंगे नहीं। इसी तरह से उक्त विचार को बारंबार प्रकट करने से वह नष्ट कैसे होगा। नष्ट वह तभी होगा जब उस विचार की शक्ति को किसी दूसरे अच्छे विचार या भाव में लगाएंगे। शायद रागों से यही होता है। योग से उत्पन्न शक्ति सुप्त विचारों को ना लगकर राग संगीत को लगती रहती है जिससे आध्यात्मिक संस्कारों वाले विचार व भाव मजबूत होते रहते हैं, और पिछले जीवन के फालतू व दबे हुए विचार नष्ट होते रहते हैं। यह सुप्त विचारों को हल्के रूप में प्रकट करना और उसकी शक्ति नए कुंडलिनी विचार को देने का मध्य मार्ग ही है, ताकि उन विचारों की शक्ति का आहरण भी हो सके और वे प्रचंडता से अभिव्यक्त होकर भौतिक या भौतिक जैसे भी न बन सकें। अगर सुप्त विचार बिल्कुल भी मानस पटल पर न उभरे तो उनकी शक्ति का आहरण हो ही नहीं पाएगा। इसी तरह यदि वे बहुत ज्यादा उभर जाएं तो भी उनसे आहरण करने के लिए शक्ति बचेगी ही नहीं। रागों की मूल थीम आध्यात्मिक या योगमय ही होती है। साथ में राग सुरताल वह लय में होते हैं। इसलिए मन के लिए अच्छे होते हैं। इनमें सुंदर आवाज वाले ढोल, ढोलकी, सितार, बांसुरी आदि प्राकृतिक वाद्य बहुत कर्ण प्रिय लगते हैं। जो तथाकथित आधुनिक कनफोड़ू संगीत यंत्रों से बेहतर ही होते हैं, खासकर योगी व आनंदमयी जीवन शैली के लिए। मुझे राग तांत्रिक लगते हैं। जैसे कुंडलिनी तंत्र से तथाकथित तुच्छ दुनियादारी उत्तम आध्यात्मिक साधना में रूपांतरित हो जाती है, उसी तरह राग से भी। प्रेमी प्रेमिका के बीच का प्रेमसंबंध आमतौर पर भौतिक लगता है, पर राग में बंध जाने पर वह परिष्कृत सा होकर आध्यात्मिक बन जाता है। इसी तरह दुनियादारी का कोई भी विषय ले लो, राग उसे पवित्र कर देता है। इसलिए अगर राग को म्यूजिकल लॉन्ड्रिंग कहो, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। अगर इसके आधारभूत सिद्धांत का गहराई से अवलोकन करें, तो कुंडलिनी ही दिखाई देती है। रागों से सांसों में और शरीर की क्रियाशीलता में सुधार होता है, क्योंकि दोनों आपस में जुड़े हैं। इससे कुंडलिनी शक्ति क्रियाशील हो जाती है, जिससे मन में कुंडलिनी चित्र का निरंतर वास होने लगता है। इससे सभी विचारों, भावों और कर्मों के साथ कुंडलिनी चित्र जुड़ा रहता है। इससे द्वैत से भरी दुनिया में डूबे रहने पर भी मन में उत्तम अद्वैत भाव बना रहता है। यही अद्वैत भाव सबको पवित्र करता है। रागों की एक खास बात यह भी है कि अगर इनके शब्द या बोल समझ भी न आए, ये तब भी अपने बोलने के और संगीत तरीके से योगलाभ प्रदान करते हैं। वैसे भी उनमें बोल ज्यादा नहीं होते। एक ही वाक्य या शब्द पर भी पूरा एक घंटे का राग बन जाता है। उदाहरण के लिए “सांवरे से मन लागा, मोरी माए”, इस जैसे दो चार बोलों पर पैंतालीस मिनट का खयाल आधारित सुमधुर राग है। ऐसा लगता है कि राग शब्दप्रधान न होकर भावप्रधान होते हैं।
कुंडलिनी योग में रागों का महत्त्व
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demystifyingkundalini by Premyogi vajra- प्रेमयोगी वज्र-कृत कुण्डलिनी-रहस्योद्घाटन
I am as natural as air and water. I take in hand whatever is there to work hard and make a merry. I am fond of Yoga, Tantra, Music and Cinema. मैं हवा और पानी की तरह प्राकृतिक हूं। मैं कड़ी मेहनत करने और रंगरलियाँ मनाने के लिए जो कुछ भी काम देखता हूँ, उसे हाथ में ले लेता हूं। मुझे योग, तंत्र, संगीत और सिनेमा का शौक है। View all posts by demystifyingkundalini by Premyogi vajra- प्रेमयोगी वज्र-कृत कुण्डलिनी-रहस्योद्घाटन