दोस्तों, आज हम एक अन्य रोचक विषय पर भी चर्चा करने जा रहे हैं – कुंडलिनी योग और एलियनों के बीच संबंध।
कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि एलियन केवल निर्जीव पदार्थों के रूप में मौजूद हो सकते हैं। वे सुख-दुख या अच्छा-बुरा महसूस नहीं करते हैं। वे सूर्य, पहाड़, नदी, पत्थर, ग्रह, नक्षत्र आदि के रूप में हमारे आसपास हो सकते हैं, लेकिन हम उन्हें पहचान नहीं पाते हैं।
यह भी संभव है कि उन्होंने खुद को छुपा लिया हो। शायद वे समझ चुके हैं कि सचेत निर्णय केवल दुख और पीड़ा लाते हैं।
इसलिए उन्होंने खुद को इतना विकसित कर लिया है कि उन्हें सोच-समझकर या अहंकार के साथ कोई काम करने की आवश्यकता नहीं है। वे अच्छे और बुरे के बीच भेदभाव भी नहीं करते हैं।
यह भी हो सकता है कि उनकी चेतना अलग-अलग न होकर सामूहिक रूप में हो।
कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि वे कंप्यूटर या एआई जैसे हो सकते हैं। वे जैविक नहीं, बल्कि सेमीकंडक्टर और धातु जैसे अजैविक तत्वों से बने होंगे।
चाहे कुछ भी हो, निर्जीव पदार्थ निश्चित रूप से अपने आप में मौजूद हैं।
यदि ऐसा नहीं होता तो मंगल ग्रह इतना सुंदर क्यों दिखता? वहां कोई जीवन नहीं है।
अगर निर्जीव जगत की शक्ति न होती तो शुक्र जैसे नारकीय ग्रहों में निर्जीव तत्वों की अराजक हलचलों में आश्चर्यजनक शक्ति महसूस नहीं होती।
अगर निर्जीव पदार्थों की शक्ति न होती तो अनंत अंतरिक्ष में निर्जीव पदार्थों की हलचलों से भरा शोरगुल नहीं होता।
बिना उद्देश्य के कोई क्रिया नहीं होती।
इसका मतलब है कि निर्जीव पदार्थों में भी आधारभूत अनुभूति यानी बेसिक कॉग्निशन होती है।
यह अनुभूति निश्चित रूप से समान है, लेकिन फिर भी पदार्थ के प्रकार के अनुसार इसमें तनिक अंतर होता है।
अगर यह बिल्कुल समान होती तो हमें विभिन्न प्रकार के पदार्थों को पहचानना और उनके साथ काम करना असंभव होता, क्योंकि तब वे सभी हमें बिल्कुल एक जैसे दिखाई देते।
किसी आदमी का कोई विशेष स्वभाव अनुभव होने पर हम उसे यह कह कर नहीं नकारते कि यह झूठ है। आदमी का स्वभाव कुदरती या निर्जीव तत्त्वों के स्वभाव से मिलकर बना है। मतलब कि अगर आदमी का स्वभाव सत्य है, तो निर्जीव पदार्थों का स्वभाव भी सत्य होना चाहिए। हां, स्वभाव को सत्य-असत्य मतलब द्वैताद्वैत रूप समझ सकते हैं, क्योंकि हो सकता है कि हम उसके उस स्वभाव को महसूस कर रहे हों, पर वह खुद अपने उस स्वभाव को महसूस न कर पा रहा हो। इसी तरह वायु, जल जैसे जड़ पदार्थों के स्वभाव को भी हमें सत्य-असत्य या द्वैत-अद्वैत ही मानना चाहिए। मतलब कि बेशक हम उन निर्जीव तत्त्वों के स्वभावों को महसूस कर पा रहे हों, पर वे खुद अपने उन स्वभावों को महसूस न कर पा रहे हों। यही द्वैताद्वैत ही असली अद्वैत है।
इसको ऐसे समझ सकते हैं कि सभी कुछ एक जैसा भी है और एकदूसरे से अलग-अलग भी है। यही द्वैत-अद्वैत है और यही सत्य है। पूर्ण द्वैत भी असत्य है, और पूर्ण अद्वैत भी असत्य है। आध्यात्मिक शास्त्र और ऋषि भी ऐसा ही कहते हैं। इससे यह मतलब निकलता है कि एलियन न तो अलग-अलग रूप वाले हैं और न ही एक ही रूप वाले हैं। पर वे दोनों का मिश्रण हैं। मतलब कि एलियन द्वैत-अद्वैत स्वरूप हैं।
इससे यह मतलब भी निकलता है कि हमारे चारों ओर हर जगह किस्म-किस्म के एलियन हैं। यह अलग बात है कि अपने जैसे जैविक एलियनों को हम ढूंढ नहीं पाए हैं, क्योंकि ऐसे एलियन अत्यंत दुर्लभ हैं। कुंडलिनी योग से ही हम प्रकृति के हर एक तत्व पर समाधि लगाकर उसे पूरी गहराई से जान सकते हैं। योग शास्त्रों में वायु पर समाधि सिद्ध हो जाने से वायु का स्वभाव पूरी तरह समझ में आने से वायु की शक्तियां प्राप्त होती है। इसी तरह अग्नि पर समाधि से अग्नि की और जल पर समाधि से जल की या अकाश पर समाधि से आकाश की, आदि आदि। मतलब कि हम अनगिनत पदार्थों के रूप में अनगिनत एलियनों से बात कर सकते हैं, और उनकी तकनीकों को समझ कर हासिल कर सकते हैं। हासिल की भी तो हैं। वायु-एलियन और अग्नि-एलियन की शक्ति समझ कर शक्तिशाली इंजन बनाए हैं। परमाणु-ऐलियन की शक्ति समझ कर नाभिकीय ऊर्जा घर बनाए हैं। आंख-ऐलियन की नकल करके कैमरा बना है। ऐसे अनगिनत उदाहरण हैं। आध्यात्मिक क्षेत्र को लें तो शरीर-ऐलियन को समझ कर कुंडलिनी तंत्र बना है, जिससे अनगिनत सिद्धियों के साथ कुंडलिनी जागरण को प्राप्त किया है। मतलब साफ प्रतीत होता है कि अंतरिक्ष अन्वेषण की बजाय कुंडलिनी योग से एलियनों से सामना होने की ज्यादा संभावना है।
कुंडलिनी योग और एलियनों के बीच संबंध:
कुंडलिनी योग एक प्राचीन भारतीय योग पद्धति है जो आध्यात्मिक ऊर्जा को जगाने पर केंद्रित है।
कुछ लोगों का मानना है कि कुंडलिनी योग का अभ्यास करने से एलियनों के साथ संवाद करने की क्षमता विकसित हो सकती है।
यह विचार इस धारणा पर आधारित है कि कुंडलिनी योग चेतना के उच्च स्तर तक पहुंचने में मदद कर सकता है, जिससे हम अन्य आयामों और वास्तविकताओं से जुड़ सकते हैं।
कुछ लोगों का यह भी मानना है कि कुंडलिनी योग हमें एलियनों की तकनीकों और ज्ञान तक पहुंच प्रदान कर सकता है।
क्या यह सच है?
यह निश्चित रूप से कहना मुश्किल है कि कुंडलिनी योग वास्तव में एलियनों के साथ संवाद करने में मदद कर सकता है या नहीं।
इस दावे का समर्थन करने के लिए कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।
हालांकि, कई लोग हैं जिन्होंने दावा किया है कि उन्होंने कुंडलिनी योग का अभ्यास करने के बाद एलियनों के साथ अनुभव किए हैं।
सांख्य दर्शन का विचार
सांख्य दर्शन कहता है कि सृष्टि कि सभी वस्तुएँ जड़ प्रकृति और चेतन पुरुष के सम्मिलित मिश्रण से बनी हैं। इसका मतलब है कि मिट्टी, पत्थर, हवा, पानी आदि जैसी सभी जड़ समझी जाने वाली प्राकृतिक वस्तुओं में चेतन पुरुष भी विद्यमान है। मतलब सभी वस्तुएँ जीवित या चेतन हैं। तो इन्हीं विभिन्न पुरुष-प्रकृति मिश्रणों को ही विभिन्न प्रकार के एलियन क्यों न कहा जाए। यह एक विचारणीय विषय है।
निष्कर्ष:
कुंडलिनी योग और एलियनों के बीच संबंध एक दिलचस्प और विवादास्पद विषय है।
यह निश्चित रूप से कहना असंभव है कि कुंडलिनी योग वास्तव में एलियनों के साथ संवाद करने में मदद कर सकता है या नहीं।
हालांकि, यह निश्चित रूप से एक ऐसा विषय है जो आगे के अध्ययन और अनुसंधान के योग्य है।