कुंडलीनी योग में डाटा का महत्व

मित्रों! बहुत दिनों से अपने लेखों को व्यवस्थित करने में व्यस्त था। फिर मैंने गजानन को अपनी सूंड को जलकुंड में डुबाते हुए, उससे शक्तिरूपी जल को ऊपर चूसते हुऎ और उसे पीकर और उससे अपने को नहला कर अपने को तारोताज़ा करते हुऎ देखा। इससे मेरे अंदर भी तनिक अतिरिक्त शक्ति का संचार हो आया। फिर सोचा कि लिखूं क्या। कोई विशेष अनुभव तो बचा नहीं। साधारण अनुभव तो बहुतेरे थे, पर उन्हें लिखने का साहस नहीं हो रहा था। फिर सोचा कि जो मन में आएगा उसे लिखता जाऊंगा। कई बार लेखन खुद ही अनुभव को पैदा कर देता है।

दोस्तो, लेख में डाटा होता है। डाटा में बहुत शक्ति होती है। डाटा निर्जीव नहीं बल्कि सजीव होता है। सारे धर्म डाटा पर ही आधारित हैं। सभी धर्मों की एक विशेष पुस्तक होती है, उसमें लेख के रूप में डाटा ही होता है, टेक्स्ट डाटा। उन पुस्तकों ने न जाने कितने समझौते करवाए हैं, कितनी लड़ाईयां करवाई हैं; कितनी सभ्यताएं बनाई हैं, और कितनी ही सभ्यताएं नष्ट की हैं। अन पुस्तकों ने न जाने कितने लोगों की जिंदगियां बनाई हैं, और न जाने कितनों की जिंदगियां बरबाद भी की हैं। उन पुस्तकों ने न जाने कितने महापुरुष पैदा किए हैं, और न जाने कितने ही अत्याचारी राक्षस भी पैदा किए हैं। यह सब डाटा का ही कमाल है। एक पत्थर, लकड़ी की तरह निर्जीव वस्तु इतने सारे काम नहीं कर सकती। न ही सीमित चेतना वाला अकेला व्यक्ति इतना कुछ कर सकता है। यहां तक कि सारी दुनिया के लोग इकट्ठे होकर भी इतना कुछ नहीं कर सकते। इससे डाटा की अमित चेतना शक्ति का अहसास होता है। सारे लोग अगर इकट्ठे हो भी जाएं तो भी उन्हें नियमबद्ध ढंग से चलाने के लिए एक कार्य योजना तो बनानी ही पड़ेगी। वह विस्तृत कार्ययोजना किसी के दिमाग में नहीं रखी जा सकती। अगर रखी भी जाए तो भी उसे बोलकर सबको बारी-बारी से समझाना लगभग असंभव ही है। उसे डाटा के रूप में रखना ही पड़ेगा। टेक्स्ट, ऑडियो और वीडियो किसी भी रूप में रख लो, सब डाटा ही है। इस डाटा को सभी एक साथ एक्सेस कर सकते हैं। इससे परिणाम प्रभावी व त्वरित मिलता है। अगर बोलकर सब को समझाने लगें तो जितने में नए लोगों को समझाया जता है, उतने में पुराने लोग उसे भूल जाते हैं। आदमी के मरने के बाद भी वह उसके डाटा के रूप में जिंदा रहता है और सदियों तक दुनिया को निर्देशित करता रहता है। मतलब एक आदमी के जीवन के डाटा में उस जीवित व्यक्ति से भी ज्यादा चेतना शक्ति होती है। एक आदमी का डाटा उसके जैसे अनगिनत आदमियों को पैदा कर देता है। डाटा खासकर टेक्स्ट डाटा लगभग अमर ही है। बहुत से धर्मों के लोग सैकड़ों और हजारों सालों पहले जन्मे तथाकथित महापुरुष लोगों के जीवन के डाटा से आज तक निर्देशित होते आ रहे हैं।

कुंडलिनी योग जैसे गहन विषय के लिए तो डाटा का सर्वाधिक महत्व है। इसे सीखने में लगभग पूरी उम्र लग जाती है। अधिकांश लोगों को तो जीवन के आखिरी दौर में योगसिद्धि मिलती है। उस समय उनमें वह शक्ति नहीं बची रहती जिससे वे उसका आम जनमानस में प्रचार कर सके। और योग चीज ही ऐसी है कि यह आदमी को प्रचार से दूर एकांत की ओर ले जाती है। ऐसे में योगी के पास गुमनामी में जीते हुए टेक्स्ट डाटा छोड़कर दुनिया से जाने के इलावा और कोई चारा नहीं होता। इसी से तो वेदपुराण और अनगिनत शास्त्र  बने हैं। उनमें लेखकों के नाम नहीं होते मतलब वे गुमनामी में लिखे गए थे। असली भी वही हैं। प्रचार के लिए बनाए गए कालांतर के शास्त्र तो उनकी नकल की तरह लगते हैं मुझे। हालांकि डाटा का काम तो वे भी बखूबी निभा रहे हैं। अगर योगसाधना से जागृत किए हुए देवी देवताओं को डाटा के रूप में सुरक्षित न रखा गया होता तो कालांतर के अनगिनत योगी कैसे उन पर ध्यान लगाकर उनसे मुक्ति हसिल कर पाते। अगर मुझे योग से संबंधित ऑनलाइन टेक्स्ट डाटा न मिलता, तो मैं भी कैसे उच्च साधना कर पाता।

डाटा एक प्रकार से गुरु ही है। पर हर चीज की तरह इसका भी दुरुपयोग हो सकता है। कोई आदमी गलत डाटा प्राप्त करके गलत चीजें भी सीख सकता है। कोई आदमी सही डाटा का भी गलत अर्थ निकाल सकता है। इसलिए डाटा को हसिल करने से ज्यादा डाटा को परखना जरूरी हो गया है, खासकर आज के समय में जब सभी लोग असीमित डाटा के समुद्र की लहरों में गोते लगा रहे हैं, कि क्या सच में यह लाभकारी है या क्या यह हानिकारक तो नहीं है?

डाटा भौतिक दुनियादारी को तो सुधारता ही है, आध्यात्मिक दुनियादारी को भी संवारता है। जब डाटा हैंडलिंग की मदद से भौतिक जीवन सुव्यवस्थित हो जाता है, तब आदमी को पर्याप्त अतिरिक्त समय मिल जाता है, जिसमें वह योगसाधना कर सकता है। जब आदमी के मस्तिष्क का काम कृत्रिम बुद्धिमत्ता युक्त क्लाउड कम्प्यूटिंग से होने लगता है तो स्वाभाविक है कि उसका मस्तिष्क काम के बोझ से मुक्त हो जाता है। मस्तिष्क की जो शक्ति पहले याद रखने में, कार्ययोजना बनाने में, और गुलामों की तरह नौकरी करने में व्यय हो रही थी, वह अब मुफ्त में उपलब्ध हो जाती है। उस शक्ति से कुंडलिनी योग को आसानी से सिद्ध किया जा सकता है। मतलब आदमी उसी आदिम युग की तरफ जा रहा है जब दिमाग पर काम और तनाव का बोझ नहीं होता था। क्योंकि उसी दिमाग से योग संभव है और योग ही मनुष्य जीवन का मुख्य लक्ष्य है। अंततः विकास जाएगा तो कुंडलिनी जागरण की ही दिशा में, चाहे इसे जो मर्जी नाम दो या जो मर्जी रूप दो। आदमी जितना मर्जी चाहे इससे मुंह मोड़ ले पर अंततः पहुंचेगा यहीं। यह दुनिया गोल है, आदमी जहां से चलता है अंततः वहीं पहुंच जाता है।

देवता का ध्यान पापों को नष्ट करता है। देवता का मतलब ही प्रकाशमान गुणों वाला है। देवता दिव शब्द से बना है, जिसका अर्थ प्रकाश होता है। प्रकाश उच्च कोटि के मानवीय गुणों में होता है। मतलब देवता को महामानव जैसा मान सकते हैं। इसीलिए देवता की मूर्ति साफ, और सत्वगुणों से भरी हुई होती है। चित्र भी वैसा ही होता है। शांत, दयालु, सत्यवादी, मैत्रीपूर्ण आदि गुणों से भरपूर। एक विकृत और अमानवीय चित्र के ध्यान से तो लाभ की बजाय हानि संभव है। वैसे जब ध्यान से सत्वगुण बढ़ता है तो मन में देवता की सौम्य मूर्ति खुद ही बन जाती है, बेशक वह बाहर कैसी ही क्यों न हो। इसीलिए तो देवता की प्रतिमा, पिंडी, आदि का कोई विशेष मानवीय रूप नहीं होता बल्कि यह एक सुवर्ण जैसी धातु की पत्ती या पत्थर की शिला होती है, पर उसके निरंतर ध्यान से मन में मानवीय देवता का ही सौम्य चित्र बनता है। यह इसलिए क्योंकि ध्यान से सत्वगुण बढ़ता है और सत्वगुणी या सौम्य शरीर एक आदमी का ही है, किसी पशु या राक्षस या निर्जीव वस्तु का नहीं। बेशक पशु और बेजान चीजें ध्यान लगाने में सहायक हों। पाप तमोगुण रूप है, जो सतोगुण रूपी ध्यान से नष्ट होता है, जैसे अंधकार प्रकाश से नष्ट होता है। वैसे तो पाप ध्यान की शक्ति से नष्ट हो रहा होता है, पर हमें लगता ऐसे है कि उसे देवता नष्ट कर रहा है। एक ग्वाला अपनी भैंस से बहुत प्यार करता था। इससे उस पर उसका ध्यान लग गया। धीरे धीरे उसकी चमक बढ़ती गई और ध्यान में उजली, शांत और सतोगुणी हो गई, सभी मानवीय गुणों से भरपूर। उसका ध्यान पक्का होने से उसकी समाधि लग गई और वह मुक्त हो गया। काम तो सारा ध्यान ने किया, भैंस ने थोड़े ही कुछ किया। इसीलिए पतंजलि अपने अष्टांग योग में लिखते हैं कि यथाभिमत ध्यानात वा। अर्थात जिस मर्जी मनपसंद चीज पर ध्यान लग जाए, उससे समाधि और मुक्ति मिलती ही है। पर ज़्यादातर योगियों की तरह मुझे तो देवता का ध्यान ही अच्छा लगता है, क्योंकि वे अध्यात्म वैज्ञानिक रूप से बनाए होते हैं, जिनसे अन्य कुंडलिनी लाभ भी मिलते हैं।

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demystifyingkundalini by Premyogi vajra- प्रेमयोगी वज्र-कृत कुण्डलिनी-रहस्योद्घाटन

I am as natural as air and water. I take in hand whatever is there to work hard and make a merry. I am fond of Yoga, Tantra, Music and Cinema. मैं हवा और पानी की तरह प्राकृतिक हूं। मैं कड़ी मेहनत करने और रंगरलियाँ मनाने के लिए जो कुछ भी काम देखता हूँ, उसे हाथ में ले लेता हूं। मुझे योग, तंत्र, संगीत और सिनेमा का शौक है।

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