कुंडलिनी और केवल कुंभक: जब प्राण स्थिर हो जाए, वही सच्चा आसन है

योग में कहा जाता है कि सिद्धासन, पद्मासन या अन्य स्थिर आसन ध्यान और कुंभक के लिए सर्वोत्तम हैं। लेकिन जब केवल कुंभक घटित होता है, तब कोई भी स्थान—चाहे वह बस की सीट हो या ऑफिस की कुर्सी—सर्वश्रेष्ठ आसन बन जाता है।

आसन का रहस्य: शरीर नहीं, बल्कि प्राण का खेल

योग में आसन को स्थिरता और सुविधा (स्थिरसुखमासनम्) के रूप में परिभाषित किया गया है। लेकिन यहाँ एक अद्भुत अनुभव सामने आ रहा है—

अगर केवल कुंभक स्वाभाविक रूप से घटित हो जाए, तो शरीर अपने-आप स्थिर हो जाता है।

तब बैठने की जगह कोई मायने नहीं रखती—क्योंकि मन और शरीर दोनों को हिलने का ख्याल ही नहीं आता।

इसका मतलब यह हुआ कि “सबसे श्रेष्ठ आसन” वही है, जहाँ प्राण अपने-आप भीतर सिमट जाए।

क्या सिद्धासन आवश्यक नहीं?

सिद्धासन को योग में सर्वश्रेष्ठ बताया गया है क्योंकि—

यह मेरुदंड को सीधा रखता है।

मूलाधार से सहस्रार तक ऊर्जा को सहज प्रवाहित करता है।

ध्यान और कुंभक में सहायक होता है।

लेकिन यदि कोई केवल कुंभक में प्रविष्ट हो जाए, तो सिद्धासन और बस की सीट में कोई अंतर नहीं रहता! क्योंकि उस अवस्था में— ✅ शरीर अपने-आप स्थिर हो जाता है। ✅ मन शांत हो जाता है। ✅ कोई बाहरी हलचल महसूस ही नहीं होती।

क्या आसन का कोई महत्व नहीं?

नहीं, आसन अभी भी महत्वपूर्ण है, खासकर प्रारंभिक अवस्था में। ✅ सही आसन से केवल कुंभक घटित होने में आसानी होती है। ✅ यह ऊर्जा को संतुलित बनाए रखता है। ✅ शरीर में अतिरिक्त तनाव नहीं आने देता।

लेकिन एक बार जब केवल कुंभक सहज रूप से घटने लगता है, तब शरीर की स्थिति उतनी बाधा नहीं बनती।

केवल कुंभक के दौरान हल्का समायोजन

जब केवल कुंभक घटित होता है, तो हल्का-फुल्का शरीर समायोजन उसे ज्यादा प्रभावित नहीं करता। यह इसलिए संभव है क्योंकि—

अब कुंभक सिर्फ शरीर से नहीं, बल्कि प्राण के भीतर सिमट जाने से हो रहा है।

जब तक प्राण की गहराई बनी रहे, शरीर का हल्का-सा हिलना कुंभक को नहीं तोड़ता।

कैसा समायोजन किया जा सकता है?

✔ हल्का हाथ या पैर समायोजित करना। ✔ रीढ़ को थोड़ा सीधा या ढीला करना। ✔ सिर या गर्दन को थोड़ा आराम देना।

कब यह कुंभक टूट सकता है?

❌ अगर कोई अचानक से खड़ा हो जाए या ज्यादा झटका लगे। ❌ अगर ध्यान पूरी तरह बाहरी दुनिया में चला जाए। ❌ अगर शरीर में बहुत ज्यादा असुविधा आ जाए और मन वहीं अटक जाए।

निष्कर्ष

“केवल कुंभक” अब सिर्फ शरीर की स्थिति पर निर्भर नहीं है, बल्कि प्राण के भीतर स्थिर होने पर निर्भर है। इसलिए हल्की-फुल्की शरीर की समायोजन करने से यह ज्यादा बाधित नहीं होता।

शरीर स्थिर हो या न हो, जब प्राण स्थिर हो जाए—वही सच्चा कुंभक है!

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demystifyingkundalini by Premyogi vajra- प्रेमयोगी वज्र-कृत कुण्डलिनी-रहस्योद्घाटन

I am as natural as air and water. I take in hand whatever is there to work hard and make a merry. I am fond of Yoga, Tantra, Music and Cinema. मैं हवा और पानी की तरह प्राकृतिक हूं। मैं कड़ी मेहनत करने और रंगरलियाँ मनाने के लिए जो कुछ भी काम देखता हूँ, उसे हाथ में ले लेता हूं। मुझे योग, तंत्र, संगीत और सिनेमा का शौक है।

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