कुंडलिनी ऊर्जा कीप: जागरण, संतुलन और ग्राउंडिंग तकनीकें

अपने अनुभव से मैंने समझा कि कुंडलिनी ऊर्जा की धारा एक प्रकार की कीप या फनल से गुजर कर बहती है। वह फनल पूरे शरीर से प्राण इकठ्ठा करके, उसे मूलाधार चक्र के आसपास संचित करती है, और सुषुम्ना नाड़ी नामक निकासी नलिका के माध्यम से आज्ञा और सहस्रार तक ले जाती है। अगर यह ऊर्जा सीधी ऊपर जा सकती, तो इस फनल प्रक्रिया की जरूरत ही नहीं होती। लेकिन जब तक फनल के रूप में कोई स्वाभाविक संग्रहण बिंदु और उचित निकास मार्ग नहीं होता, तब तक इसकी तीव्रता वैसी नहीं बन पाती जितनी जागृति के लिए जरूरी है। माना कहीं शरीर में और भी ऊर्जा का संग्रहण बिंदु हो सकता है, पर उससे कोई समर्पित निकासी नलिका सीधी मस्तिष्क तक नहीं जाती जैसी सुषुम्ना जाती है। और तो और इस कीप के शंकु के अंदर फिल्टर पेपर भी लगा हुआ है। यह वासना, आसक्ति, दुर्व्यवहार, घृणा, द्वैत आदि अशुद्धियों को छानकर कुंडलिनी ऊर्जा की धारा को शुद्ध करके ही आगे भेजती है।

जिस प्रकार यांग शक्ति स्वाभाविक रूप से यिन की ओर बहती है, उसी तरह शरीर रूपी पर्वत से ऊर्जा की धाराएँ तलहटी में स्थित एक अदृश्य झरने की ओर खिंचती हैं। जैसे पहाड़ की ऊँचाइयों से रिसकर जल सबसे निचले स्रोतों में इकट्ठा होता है, वैसे ही जीवन-ऊर्जा भी पहले मूलाधार नामक अपने सबसे गहरे केंद्र में समाहित होती है। यह आकर्षण गुरुत्वाकर्षण का ही खेल है—यांग और यिन का सनातन मिलन।

परन्तु, यदि जल को पुनः पर्वत की चोटी पर ले जाना हो, तो हमें पंप का सहारा लेना पड़ता है। ठीक वैसे ही, जब ऊर्जा को उच्चतम चक्रों तक पहुँचाना होता है, तो साधना रूपी पंप इसकी दिशा मोड़ता है। सीधे पर्वत के कण-कण से जल एकत्र करना कठिन है, इसलिए पहले इसे खुद नीचे एकत्रित होने दिया जाता है, फिर इसे ऊपर उठाया जाता है। यह यात्रा केवल बहाव की नहीं, बल्कि संतुलन और पुनरुत्थान की है—एक चिरंतन चक्र, जहाँ गहराई ही ऊँचाई की जननी बनती है।

प्राण को सीधे मस्तिष्क तक ले जाया जा सकता है, लेकिन जब यह इस ऊर्जा  फनल से होकर गुजरता है, तब इसकी शक्ति कई गुना बढ़ जाती है। पर इसके लिए पूर्ण एकांत (आइसोलेशन) जरूरी होता है। अगर इंद्रियां सक्रिय रहीं, तो इनसे होकर ऊर्जा चारों ओर बिखर कर बाहर चली जाती है, जिससे ऊपर उठने के लिए जरूरी दबाव नहीं बन पाता। दबाव कम हुआ तो निकासी मार्ग पूरी तरह नहीं खुलता, और अगर सहनशक्ति से अधिक दबाव बन जाए, तो ऊर्जा उलटी दिशा में बह सकती है, जिससे असंतुलन हो सकता है। अगर अधिक ऊर्जा इकठ्ठा हो जाए लेकिन सही ढंग से निकल न पाए, तो यह भीतरी स्तर पर तनाव और परेशानी पैदा कर सकती है, और फनल को भी नुकसान पहुंचा सकती है। मस्तिष्क यदि फनल से ऊर्जा लेने के लिए तैयार हो जाए लेकिन ऊर्जा न पहुंचे, तो वहां भी बेचैनी हो सकती है।

मैंने इसे प्रत्यक्ष अनुभव किया है। ऊर्जा के अधिक संचय और बाहरी अशांति के कारण उपयुक्त निकासी न होने के कारण शारीरिक तकलीफ भी हुई, जिसमें सूजन जैसी समस्या शामिल हो सकती है, खासकर प्रोस्टेट में। हालांकि इसके लिए और भी वजहें जिम्मेदार हो सकती हैं। मुझे ऊर्जा के विपरीत बहने (बैकफ्लो) का विचार पानी के प्रवाह को देखकर आया—अगर किसी मार्ग को एकतरफा प्रवाह के लिए बनाया गया है, और वह अवरुद्ध हो जाए, तो पानी उलटी दिशा में बहकर गड़बड़ी कर देता है।

इस पूरे अनुभव से मैंने समझा कि संतुलन सबसे जरूरी है। तनाव कम करने, योग, प्राणायाम और क्रिया-श्वास विधियों से राहत मिली। विशेष रूप से ग्राउंडिंग (संतुलन साधना) ने बहुत मदद की—इससे मस्तिष्क की ऊर्जा की मांग कम हो जाती है, जिससे ऊर्जा-फनल पर अनावश्यक दबाव नहीं पड़ता और यह अपने स्वाभाविक रूप में स्थिर रहती है। मेरे लिए प्राण और ऊर्जा एक ही चीज़ हैं, बस अलग-अलग दृष्टिकोण से देखे जाते हैं।

मैं अभी इस प्रक्रिया का पूर्ण ज्ञानी नहीं बना, न ही कोई अटल आत्मबोध प्राप्त किया है। मेरी यात्रा जारी है, और समझ निरंतर गहरी होती जा रही है। अब मैं ऊर्जा को जबरदस्ती ऊपर उठाने की बजाय उसे संतुलित और स्वाभाविक रूप से प्रवाहित होने देने पर ध्यान देता हूँ।

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demystifyingkundalini by Premyogi vajra- प्रेमयोगी वज्र-कृत कुण्डलिनी-रहस्योद्घाटन

I am as natural as air and water. I take in hand whatever is there to work hard and make a merry. I am fond of Yoga, Tantra, Music and Cinema. मैं हवा और पानी की तरह प्राकृतिक हूं। मैं कड़ी मेहनत करने और रंगरलियाँ मनाने के लिए जो कुछ भी काम देखता हूँ, उसे हाथ में ले लेता हूं। मुझे योग, तंत्र, संगीत और सिनेमा का शौक है।

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