अस्वीकरण: यह पोस्ट तांत्रिक यौन साधना पर आधारित है और इसमें यौन-स्पष्ट सामग्री हो सकती है। उचित मार्गदर्शन अनिवार्य है, क्योंकि गलत तरीके से अभ्यास करने पर शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक असंतुलन हो सकता है। यह सामग्री केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है और विशेषज्ञ परामर्श का विकल्प नहीं है। सावधानीपूर्वक और अपनी जिम्मेदारी पर अभ्यास करें।
मेरी तांत्रिक जागरण यात्रा
मैंने ऊर्जा जागरण के कई मार्गों का अनुभव किया है। लोग अक्सर क्रिया योग और प्राणायाम की बात करते हैं, लेकिन मेरे लिए तंत्र—विशेषकर तांत्रिक मैथुन—सबसे प्रभावी साधना साबित हुई।
जब भी मैंने तांत्रिक मैथुन से शुरुआत की, मुझे तत्काल गहन आनंद और जागरूकता का अनुभव हुआ। यह मेरी पूर्ण जागृति के क्षणों की तरह था, हालांकि उसकी हल्की झलक भर। बाद में, प्रोस्टेट संबंधी समस्या के कारण मैंने एकल साधना की ओर रुख किया, लेकिन सच कहूँ तो, तंत्र के वास्तविक प्रभाव का अनुभव करने के बाद, एकल साधना मुझे निरर्थक लगी।
लिंग-योनि ध्यान साधना का सिद्धांत
कई साधक लिंग के अग्रभाग पर ध्यान केंद्रित करते हुए योनि में ऊर्जा सक्रिय करने की साधना का वर्णन करते हैं। यह प्रक्रिया इस प्रकार है:
ध्यान छवि को लिंग शिखा की संवेदना पर केंद्रित करें और आध्यात्मिक मिलन के दौरान इस पर ध्यान बनाए रखें।
संवेदनाओं के चरम बिंदु पर, जब सहनशीलता की सीमा पार होने वाली हो, तब ध्यान छवि और ऊर्जा को सुषुम्ना में ऊपर उठाएं।
योनि संकुचन से वीर्य स्खलन को रोकने के लिए, सहवास को ठीक अंतिम सीमा से पहले रोक दिया जाए।
योगिक श्वास द्वारा ऊर्जा को सहस्रार तक ले जाएं।
उससे सहस्रार पर ध्यान केंद्रित हो जाने से ध्यान छवि जागृत जैसी हो जाती है और आध्यात्मिक गुण स्वतः प्रकट होते हैं।
इससे सात्त्विक ऊर्जा का जागरण होता है, जो कई हफ्तों तक बनी रहती है। लेकिन यह भी सत्य है कि संसार की ऊर्जा इसे धीरे-धीरे नीचे खींच लेती है।
तंत्र क्यों है एकल क्रिया साधना से अधिक प्रभावी?
कई साधक मानते हैं कि केवल क्रिया योग ही आध्यात्मिक जागरण के लिए पर्याप्त है। लेकिन मेरा अनुभव कुछ अलग कहता है।
✔ प्राण-अपान का संतुलन: क्रिया योग में श्वास अंदर लेने पर प्राण ऊपर जाता है, लेकिन अपान (नीचे जाने वाली ऊर्जा) कैसे वापस लौटे? अगर मैं इसे और स्पष्ट करूं तो मेरे कहने का मतलब है कि मस्तिष्क में ऊर्जा जमा हो जाने से सिरदर्द, सिर का भारीपन, मूर्छा जैसी अचेतनता या अंधकार या आनंदहीनता या अस्वस्थता का जैसा आभास होता है। ऊर्जा को मस्तिष्क से नीचे लाने के लिए कोई समर्पित नाड़ी ही नहीं है सुषुम्ना की तरह। बेशक कुछ योगी काल्पनिक फ्रंट चैनल से ऊर्जा नीचे निकाल लेते हैं, पर यह कामचलाऊ जुगाड़ ही लगता है और ज्यादा एफिशिएंट नहीं है। क्रिया में सुषुम्ना से ही ऊर्जा को नीचे भी उतारा जाता है। पर यह भी ऐसा ही जुगाड़ है क्योंकि सुषुम्ना ऊर्जा को ऊपर ले जाने के लिए ही बनी है। अगर वन वे रोड को टू वे बना दिया जाए, तो आप समझ सकते हैं कि क्या होगा। इसके विपरीत यबयुम से बंधी कंसोर्ट ऊर्जा को नीचे उतारने के लिए सर्वोत्तम और प्रभावी चैनल है। इससे ऊर्जा एक ट्रक की तरह लूप रोड में घूमती रहती है और ध्यान चित्र के रूप में लोडेड माल को लगातार सहस्रार में उड़ेलती रहती है। यही कारण है कि तंत्र अधिक प्रभावी है, क्योंकि इसमें प्राण और अपान स्वाभाविक रूप से संतुलित होते हैं।
✔ ऊर्जा प्रवाह का प्राकृतिक चक्र: एकल साधना में, प्राण और अपान को एक साथ चलाने के लिए तकनीकों का प्रयोग किया जाता है, लेकिन यह प्राकृतिक रूप से नहीं होता। तांत्रिक मिलन में, जब साधक की श्वास प्राण को ऊपर ले जाती है, तब सहचरी के शरीर में अपान नीचे की ओर प्रवाहित होता है। ऐसा शायद प्राणापान का संतुलन बनाए रखने के लिए ही होता है। इससे एक सतत ऊर्जात्मक चक्र बनता है, जो प्राकृतिक और शक्तिशाली होता है।
✔ क्रिया योग की सीमाएँ: क्रिया श्वास अर्थात रीढ़ की साँस या आंतरिक श्वास या विलोम श्वास, यह ऊर्जा प्रवाह की नकल करने की कोशिश करता है, लेकिन यदि मूलाधार में ऊर्जा उत्पन्न ही नहीं हुई, तो इसे ऊपर खींचने का क्या लाभ? तंत्र सबसे पहले आधार चक्र में ऊर्जा उत्पन्न करता है, फिर उसे परिष्कृत और ऊर्ध्वगामी करता है।
इसलिए तंत्र और क्रिया का संतुलित समावेश सबसे प्रभावी मार्ग है। पहले तंत्र से ऊर्जा उत्पन्न करें, फिर क्रिया से उसे ऊपर उठाएँ और परिष्कृत करें। बेशक कुदरती तौर पर भी यौन ऊर्जा बनती रहती है और यौन चक्रों में जमा होती रहती। पर इसे तंत्र से ही तेज गति मिलती है। वास्तव में हठयोग की उन्नत और गुप्त तकनीकें यौन तंत्र की ही नकल करके बनाई गई लगती हैं।
जागृत अवस्था को बनाए रखने की चुनौती
तंत्र से जागृति संभव तो है, लेकिन शरीर की सीमाएँ भी होती हैं। सवाल यह उठता है कि इस जागरण को बिना बार-बार तंत्र का अभ्यास किए कैसे बनाए रखा जाए?
स्थायी जागरूकता बनाए रखने के उपाय
शारीरिक से मानसिक साधना की ओर स्थानांतरण: जब ध्यान छवि पूरी तरह सहस्रार में जीवंत हो जाती है, तो भौतिक क्रियाओं की आवश्यकता नहीं रहती। लिंग-योनि से जागरण की जगह, सीधे सहस्रार में प्रवेश किया जा सकता है।
ऊर्जा स्मृति सक्रिय करना: प्रत्येक अभ्यास हमारे चेतना केंद्रों में एक गहरी छाप छोड़ता है। यदि ध्यान छवि जागृत अवस्था से जुड़ी है, तो सिर्फ स्मरण मात्र से ऊर्जा सक्रिय हो सकती है। लेकिन यह बिना क्रिया के थोड़ा कठिन होता है। इसलिए मैं इसके लिए क्रिया श्वसन का सहारा लेता हूँ।
जीवन में ऊर्जा प्रवाह बनाए रखना: संसार की नकारात्मक ऊर्जा स्वाभाविक रूप से हमारी ऊर्जा को नीचे खींचती है। लेकिन अब मैं इसे नियंत्रित करने में सक्षम हूँ। ✔ हल्की उज्जायी श्वास दैनिक गतिविधियों के दौरान उच्च ऊर्जा अवस्था को बनाए रख सकती है। ✔ मेरी शरीरविज्ञान दर्शन साधना भी इसी उद्देश्य की पूर्ति करती है।
क्या मैं पूर्ण जागरण प्राप्त कर चुका हूँ?
मैं कोई अतिशयोक्ति नहीं करूंगा। मैंने लंबे समय तक जागृत अवस्था को बनाए रखा, लेकिन संसार की ऊर्जा ने अंततः इसे नीचे खींच लिया।
✔ क्या क्रिया योग से यह संभव है? हाँ, यदि इसे वर्षों तक निरंतर, गहन अभ्यास किया जाए। लेकिन आज के व्यस्त जीवन में यह अव्यवहारिक है।
✔ क्या तंत्र अकेले पर्याप्त है? नहीं, क्योंकि यह पूर्ण सामाजिक और स्वास्थ्य अनुकूल नहीं है।
सबसे व्यावहारिक और शक्तिशाली मार्ग क्या है?
✔ जब संभव हो, तंत्र से ऊर्जा उत्पन्न करें और बेशक परिष्कृत भी करें। ✔ क्रिया से इसे और परिष्कृत करें और ऊपर उठाएँ। ✔ जीवन की परिस्थितियों के अनुसार अनुकूलन करें।
क्या तंत्र-क्रिया मिश्रण सर्वोत्तम मार्ग है?
निश्चित रूप से हाँ।
✔ कठोर नियम काम नहीं करते। ✔ केवल तंत्र या केवल क्रिया पर्याप्त नहीं हैं। ✔ जीवन की परिस्थितियों के अनुसार तंत्र और क्रिया का संतुलन ही सबसे तेज, सबसे शक्तिशाली और सबसे व्यावहारिक मार्ग है।
यह केवल सिद्धांत नहीं है—यह मेरा स्वयं का अनुभव है। और इसमें कोई संदेह नहीं कि यह मार्ग वास्तव में कार्य करता है।