पहलगाम नरसंहार: एक अनदेखी त्रासदी, एक हारी हुई नैरेटिव की जंग

20 अप्रैल 2025, जम्मू-कश्मीर के सुंदर और शांत शहर पहलगाम में एक दर्दनाक त्रासदी घटी, जहाँ कम से कम 27 हिन्दू पर्यटकों को निर्ममता से मार दिया गया। चश्मदीदों और प्राथमिक जांच के अनुसार, हमलावरों ने लोगों की धार्मिक पहचान की पुष्टि के बाद ही निशाना बनाया—कपड़ों, बोलचाल, ID कार्ड जैसी चीज़ों के ज़रिए। यह हमला एक स्थानीय इस्लामिक आतंकवादी समूह द्वारा किया गया था, जिसकी गहरी सांठगांठ पाकिस्तान-आधारित आतंकी संगठनों से है।

इस हमले के दौरान अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वांस भारत दौरे पर थे, और उन्होंने भारत को बिना शर्त सहयोग का भरोसा दिया। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भी स्पष्ट समर्थन जताया। रूस, चीन, और कई अरब देशों ने शोक संदेश भेजे। लेकिन अंतरराष्ट्रीय मीडिया की प्रतिक्रिया इस हद तक फीकी रही कि यह बड़ा नरसंहार प्रमुख पन्नों तक भी नहीं पहुँच पाया

अंतरराष्ट्रीय मीडिया की चुप्पी: एक पूर्व-निर्धारित नैरेटिव?

सीएनएन, न्यू यॉर्क टाइम्स, वॉशिंगटन पोस्ट जैसे प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों ने इस हत्याकांड को संक्षिप्त और सामान्य खबर की तरह पेश किया। धार्मिक आधार पर की गई हत्या को कहीं स्पष्ट रूप से स्वीकार नहीं किया गया।

वॉशिंगटन पोस्ट की दोहरी भूमिका

वॉशिंगटन पोस्ट के पहले पन्ने पर, नरसंहार की बजाय, भारतीय मूल की पत्रकार राना अय्यूब का लेख प्रकाशित हुआ, जिसमें उन्होंने अमेरिकी नेताओं की घोषणाओं को दिखावा बताया और भारत की नीतियों की आलोचना की। हैरत की बात यह है कि इस लेख में पहलगाम की घटना का एक भी जिक्र नहीं था।

दूसरी ओर, उसी अखबार के “वर्ल्ड” पेज पर एक छोटा-सा लेख छपा जिसमें बताया गया कि कश्मीरी नागरिक अब्दुल वहीद ने साहस दिखाते हुए कई लोगों की जान बचाई। यह मानवीय पक्ष सराहनीय है, परंतु इससे मुख्य बात दब गई—कि यह हमला धार्मिक नफ़रत से प्रेरित था।

क्षेत्रीय मीडिया की भूमिका और कथानक-प्रवर्तन

पाकिस्तानी अख़बार डॉन ने लिखा कि भारत ने सख़्त प्रतिक्रिया की बात कही है और पाकिस्तान को सतर्क रहना चाहिए। साथ ही, उसने यह भी कहा कि हमला इसलिए हुआ क्योंकि “पहलगाम में बाहरी लोगों को बसाया जा रहा था”—यह एक प्रकार से हमले को जायज़ ठहराने का प्रयास था।

अल जज़ीरा ने इसे एक “स्थानीय आज़ादी पसंद समूह का कृत्य” बताया और दावा किया कि मारे गए लोग सरकारी कर्मचारी थे जो किसी मिशन पर आए थे। यह हमला राजनीतिक प्रतिक्रिया की तरह पेश किया गया—जबकि हक़ीक़त इससे कहीं अलग है।

लगता है कि भारत ने नैरेटिव की पहली जंग हार दी

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इतने बड़े पैमाने पर हुए धार्मिक हत्याकांड के बाद भी भारत वैश्विक नैरेटिव को अपने पक्ष में नहीं मोड़ सका है। इसका मुख्य कारण लगता है—कमज़ोर सूचना तंत्र, भावनात्मक लेकिन तथ्यविहीन प्रतिक्रिया, और प्रभावशाली वैश्विक मंचों की कमी

जब तक भारत संगठित और सशक्त सूचना युद्ध में नहीं उतरता, तब तक ऐसी घटनाओं को दुनिया ग़लत परिप्रेक्ष्य में देखती रहेगी।

यह सिर्फ आतंकवाद नहीं, धार्मिक संहार था

जो तीर्थयात्री सिर्फ इसलिए मारे गए क्योंकि वे हिन्दू थे, उसे सामान्य “आतंकी हमला” कहना सच से भागना है। यह धार्मिक घृणा से प्रेरित एक नरसंहार था, जिसे पूरी दुनिया को पहचानना और स्वीकारना होगा।

नैरेटिव युद्ध जीतने के कुछ आसान और व्यावहारिक उपाय

  1. स्वतंत्र मीडिया प्लेटफार्म विकसित करें
    भारत के दृष्टिकोण को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुत करने के लिए प्रमाणिक और बहुभाषीय मीडिया चैनल बनाएं।
  2. तथ्य आधारित माइक्रो-कॉन्टेंट बनाएं
    छोटे-छोटे वीडियो, इन्फोग्राफिक्स और ट्वीट्स के ज़रिए सच्चाई को जल्दी और प्रभावशाली ढंग से साझा करें।
  3. प्रवासी भारतीयों को जोड़ें
    विदेशों में बसे भारतीय नागरिक स्थानीय मीडिया, सांसदों और संगठनों से संपर्क कर भारत का पक्ष रखें।
  4. रीयल-टाइम फैक्ट-चेक टीमें बनाएं
    झूठी खबरों और प्रोपेगैंडा का तुरन्त खंडन करने वाली टीमों की आवश्यकता है।
  5. थिंक टैंक्स और रिसर्च संस्थानों से जुड़ाव
    भारतीय संस्थानों को अंतरराष्ट्रीय नीति-निर्माण मंचों पर सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।
  6. निजी ब्लॉग, सोशल मीडिया और आर्टिकल्स का भरपूर उपयोग करें
    जब मुख्यधारा मीडिया चुप रहे, तब व्यक्तिगत लेख, ब्लॉग, यूट्यूब, ट्विटर जैसे माध्यम सच्चाई को जन-जन तक पहुँचा सकते हैं।

अंत में:
भारत के पास सच है, पर उसे समय पर, प्रभावी और संगठित रूप से कहने की ताकत नहीं। पहलगाम नरसंहार एक ट्रेजडी नहीं, बल्कि एक चेतावनी है—यदि हम अपनी कहानी खुद नहीं कहेंगे, तो दुनिया उसे तोड़े-मरोड़े हुए स्वरूप में सुनेगी।

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demystifyingkundalini by Premyogi vajra- प्रेमयोगी वज्र-कृत कुण्डलिनी-रहस्योद्घाटन

I am as natural as air and water. I take in hand whatever is there to work hard and make a merry. I am fond of Yoga, Tantra, Music and Cinema. मैं हवा और पानी की तरह प्राकृतिक हूं। मैं कड़ी मेहनत करने और रंगरलियाँ मनाने के लिए जो कुछ भी काम देखता हूँ, उसे हाथ में ले लेता हूं। मुझे योग, तंत्र, संगीत और सिनेमा का शौक है।

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