दोस्तों, ऐसा माना जाता है कि यज्ञ हवन से पर्यावरण शुद्ध होता है। कुछ भारतीय वैज्ञानिकों ने प्रयोगों से इसके जीवाणुनाशक गुण का पता लगाया है। पर यह अंतिम निष्कर्ष नहीं है। यह हवन के आसपास के कुछ सीमित दायरे में ही पाया गया। पर्यावरण पर इसके प्रभाव का कोई पता नहीं है। विस्तृत अनुसंधान इस पर अभी नहीं हुए हैं। यह तो है कि हवन सामग्री में डाले गए सुगंधित पदार्थ जैसे कपूर, गूगल आदि जलकर सुगंध फैलाते हैं, जिससे मन में आनंद और शक्ति महसूस होती है। यह अरोमा चिकित्सा की तरह है।
जैसे विचार अनेक प्रकार के हैं, उसी तरह अन्न भी अनेक प्रकार का है
कुछ किस्म के अन्न सत्त्वगुणी, कुछ रजोगुणी और कुछ तमोगुणी होते हैं। सत्त्वगुणी अन्न सत्त्वगुण से भरे विचारों को पैदा करते हैं। रजोगुणी अन्न रजोगुण किस्म के विचारों को और तमोगुणी अन्न तमोगुणी विचारों को पैदा करते हैं। कहते भी हैं कि जैसा खाए अन्न, वैसा बने मन।
अक्सर देखने में भी आता है कि खट्टा, चटपटा और मिर्च-मसालेदार रजोगुणी भोजन खाने से स्वभाव चंचल सा हो जाता है। इसीलिए बच्चों को कुरकुरे, चिप्स जैसे चटपटे जंक फूड पसंद आते हैं, क्योंकि उनका स्वभाव ही चंचल होता है। व्रत के सादे और नरम भोजन खाने से मन में सात्विकता और भक्ति भाव बने रहते हैं।
मांस, अंडा, मदिरा आदि तमोगुणी सेवन से तमोगुणी विचार पैदा होते हैं। भूत, प्रेत आदि तमोगुणी होते हैं। इसीलिए उनको खुश करने के लिए वामपंथी तांत्रिकों के द्वारा इन चीजों का भोग लगाया जाता है। तमोगुण आत्मविकास की रफ्तार को धीमा कर देते हैं।
हवन का हविष्य और तीनों गुणों की भूमिका
हवन का हविष्य बनाने में कई किस्म के अन्न का प्रयोग होता है। इनमें काले तिल भी एक हैं। वे शायद तमोगुण के परिचायक हैं। सुगंधित व मीठे पदार्थ और गाय का देसी घी सत्त्वगुण के परिचायक हैं।
शक्कर और जौ आदि मोटे अनाज रजोगुण के परिचायक हैं। कई जगह अलग-अलग ग्रह या चक्र के हिसाब से सात प्रकार के अन्न डाले जाते हैं। इनमें भी तीनों गुण शामिल हो जाते हैं। मतलब हविष्य के रूप में तीनों गुणों वाले विचार विद्यमान होते हैं।
जब आदमी अन्न खाता है तो वह पेट में पचता है, जिससे आदमी शक्ति प्राप्त करके कर्म करता है। कर्म वह खाए हुए अन्न के हिसाब से ही करता है।
सत्त्वगुणी अन्न खा के वह हल्का काम करता है, जिससे सत्त्वगुणी विचार पैदा होते हैं।
रजोगुणी और चटपटा अन्न खा के वह चंचलता वाले कर्म करता है, जिससे रजोगुणी विचार पैदा होते हैं।
तमोगुणी और भारी भोजन करके वह भारी काम करता है, जिससे तमोगुणी विचार पैदा होते हैं।
पर जब वह हवन की आग में अन्न को डालता है, तो उससे शरीर को शक्ति नहीं मिलती, क्योंकि उसे पेट की आग ने नहीं बल्कि स्थूल, बाह्य व भौतिक आग ने पचाया या जलाया होता है। ऐसे में नए विचार नहीं बन सकते। क्योंकि नए विचार तो नए कर्म करते हुए बनते हैं।
हवन के अप्रत्यक्ष लाभ
अप्रत्यक्ष रूप से हवन पुराने दबे हुए विचारों को अभिव्यक्त करने का काम करता है। एक कहावत याद रखें, “यदि आप प्रत्यक्ष रूप से कुछ नहीं कर सकते, तो उसे अप्रत्यक्ष रूप से करें।”
जलते हुए अनाज की प्रत्यक्ष रूप से नए विचार उत्पन्न करने में असमर्थता, उन्हें अप्रत्यक्ष रूप से चक्रों में दबे पुराने विचारों को पुनः प्रकट करने के लिए बाध्य करती है। मतलब उस मिश्रित हविष्यान्न से सातों चक्रों में दबे विचार प्रकट होने लगते हैं, नई-पुरानी विभिन्न भावनामयी यादों के रूप में। मैंने खुद इसे यज्ञ करते हुए महसूस किया है। इससे मन में हल्कापन सा महसूस होता है, जैसे कोई बोझ कम हुआ।
विचारों का दहन और शुद्धि
हविष्य का जलना मन के विचारों के जलने का प्रतीक है। वह तभी जलेगा जब सूक्ष्म रूप में अभिव्यक्त होगा। मतलब जब बिना इंद्रियों के सहयोग के अपने आप ही अभिव्यक्त होगा। इसलिए हवन करते हुए ऐसा ही महसूस होता है।
हवन करते हुए जो विशेष देवता का विशेष मंत्र बोला जाता है, वह इसलिए ताकि हवन से खाली हो रहे मन में वह पक्की तरह से बैठ जाए, जिससे उस देवता से संबंधित सिद्धि मिल जाए।
कुंडलिनी योग और यज्ञ
कुंडलिनी योग से भी ऐसा ही होता है। पहले आसनों और प्राणायामों से मन और चक्रों का शोर शांत किया जाता है। फिर उसके बाद चक्रों पर किसी विशेष देवता आदि के ध्यान से वहां पर उस देवता की छवि अच्छे से बैठा दी जाती है।
निष्कर्ष
यज्ञ हवन से शरीर के भीतर का पर्यावरण अर्थात मन जरूर शुद्ध होता है। बाहर भी कुछ हद तक शुद्ध होता है।