दोस्तों पिछली पोस्ट में बात हो रही थी कि कैसे आदमी को मुक्ति के लिए प्रकृति की चाल के उलट चलना पड़ता है। प्रकृति ने झूठ का सहारा लेकर ही जीवविकास किया, जो आज आदमी के लगभग उच्चतम विकास तक पहुंच गया है। पर अब इस कुदरत के झूठे प्रवाह पर रोक लगाने की जरूरत है, प्रकृति के झूठ यानि मोहमाया को उजागर करने की जरूरत है, सच का सहारा लेने की जरूरत है। ऐसा सब मिलजुल कर करे तो ज्यादा अच्छा होगा, क्योंकि मुक्ति की जरूरत सबको है। ऐसा साक्षीभाव या विपश्यना से ही संभव है, जो योग के दौरान ही सबसे ज्यादा प्रभावपूर्ण है। इस पोस्ट में हम ब्लैकहोल की मदद से आदमी की मुक्ति को समझाएंगे। आदमी के बारे में यह कोई नहीं बोलता कि जितने आदमी है, उतने अंतरिक्ष या ब्रह्मांड क्यों हैं, सिर्फ भौतिक अंतरिक्षों की ही खोज होती रहती है। हरेक आदमी एक अनंत अंतरिक्ष है, जिसमें अपने अलग ही किस्म का ब्रह्मांड है। कहीं सभी अनेकों जीव, एक ही अनंत आकाश में अनेक गड्ढे या ब्लैकहोल तो नहीं हैं। एक ब्लैकहोल से एक नया अनंत अंतरिक्ष बन जाता है। मूल अंतरिक्ष वैसा ही रहता है। उसमें कोई कमी नहीं आती। विज्ञान कहता है कि एक ब्लैकहोल से अंतरिक्ष अनंत रूप में मुड़ जाता है, मतलब अंतरिक्ष का वह गड्ढा कभी खत्म नहीं होता। इसीलिए उसमें गया हुआ प्रकाश कभी मुड़कर वापिस नहीं आता। वह आगे से आगे ही उस नई दिशा में जाता रहता है। मूल अंतरिक्ष में कोई कमी नहीं आती, क्योंकि वह अनंत विस्तृत त्रिआयामी चादर की तरह है। जीवात्मा के बारे में भी शास्त्रों में ऐसा ही कहा गया है कि वह अनंत व पूर्ण है, वह जिस परमात्मा से निकलती है, वह भी अनंत और पूर्ण है, फिर भी उसके निकलने से मूल अनंत अंतरिक्ष में कोई कमी नहीं आती। यह एक मंत्र है,”ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदम…..” , जो एक पुरानी पोस्ट में भी लिखा था। लोग कहते हैं कि इतनी जीवात्माएं कहां से आती हैं, कहां जाती हैं आदि। यह ऐसा ही प्रश्न है कि इतने ब्लैकहोल कहां से आते हैं और कहां जाते हैं। दोनों ही असीम और एकजैसे हैं। जब एकबार कोई जीवात्मा परमात्मा से निकल कर अपना सफर शुरु करती है, तो वह अपने अंदर सूचना इकट्ठी करती जाती है। पर चिदाकाश में शुरुआती गड्ढा करने वाली वैसी सूचना कहां से आती है, जैसे तारे का द्रव्यमान ब्लैकहोल का गड्ढा बनाता है। यह आगे बताएंगे। विज्ञान भी कहता है कि सूचना कभी नष्ट नहीं होती, वह कभी प्रकट और कभी अप्रकट हो जाया करती है। इस तरह जीवात्मा सूचनाओं के जाल में फंस कर रह जाती है, और बारबार जन्मती और मरती रहती है। अंत में कभी वह योग आदि से अपनी मनरूपी सूचनाओं को परमात्मा में मिला देती है, और वह मुक्त हो जाती है। वे सूचनाएं नष्ट नहीं होतीं, पर परमात्मा से एकाकार हो जाती हैं। नष्ट होते रहने से तो वे फिर से उसी रूप में पैदा होती रहती हैं। मतलब साफ़ है कि मरने के बाद आदमी फिर से जन्म लेता है। पर जो योगी मरता ही नहीं, क्योंकि वह शरीर नष्ट होने से पहले ही योग से अपने मन को परमात्मा में मिला लेता है, वह फिर से जन्म नहीं लेता। सबका मूल अंतरिक्ष जो सबकुछ खत्म होने पर भी बचा रहता है, वही परमात्मा है।
तारे के साथ भी ऐसा ही घटित होता है। उसके नष्ट होने से उसकी सूचना अर्थात उसका मैटीरियल नष्ट नहीं होता, अपितु ब्लैकहोल के रूप में सूक्ष्मरूप में एनकोड हो जाता है। ग्रेविटी से जो और सूचनाएं भी उसके अंदर समाती रहती हैं, वे भी एनकोड होती रहती हैं। ब्लैकहोल के अंदर किसी दूसरे तारे या ब्रह्मांड के जन्म के रूप में वे सूचनाएं फिर से प्रकट हो जाती हैं। कभी वे फिर नष्ट होती हैं, और फिर पुनः प्रकट हो जाती हैं। यह सिलसिला चलता रहता है। कभी ऐसा जरूर होता होगा, जब वे सूचनाएं परमात्मा अर्थात मूल या पितृ अनंत आकाश में विलीन हो जाती हों, नष्ट न होकर। उसे ही शायद तारे की मुक्ति कहा जाए। अभी वैज्ञानिकों को शायद ऐसा कुछ नहीं मिला है, क्योंकि वे अभी तक यही मानकर चले हैं कि सूचना कभी खत्म या नष्ट नहीं होती। वे भी ठीक हैं क्योंकि नष्ट तो अंत में भी नहीं हुई, मूल अंतरिक्ष से एकाकार ही हुई। पर शायद यह पता नहीं चला है कि वह सूचना फिर मूल अंतरिक्ष से कभी वापिस नहीं आएगी, अन्य नई सूचनाएं बेशक आती रहें। पर मनोवैज्ञानिक सिद्धांत तो कहता है कि सूचनाएं कभी पूरी तरह से नष्ट भी हो सकती हैं। बिना पृथक चिह्न या एनकोडिंग के रूप में, अर्थात पृथक अस्तित्व के बिना, परमसूक्ष्म मूलरूप में रहना सूचना का नष्ट होना नहीं है, बल्कि यह भी सूचना का पृथक रूप से अप्रकट होना ही है, जहां से वह पहले सूक्ष्म और फिर स्थूलरूप में प्रकट हो जाती है। इसका मतलब है कि कभी इस ब्रह्मांड की सभी सूचनाएं, लौकिक भाषा में कहें तो नष्ट हो जाएंगी। फिर एक बिल्कुल नया ब्रह्मांड बनेगा, जिसमें सभी सूचनाएं नई होंगी। अब पता नहीं कि किस रूप में होंगी। मतलब कि ब्रह्मांड अनगिनत किस्म व रूपाकार के हो सकते हैं। यानी अनगिनत संसारों के रूप में अनगिनत द्रव्यमान और ऊर्जा उस अंतरिक्ष से निकल सकती है, जिसका कोई मूल नहीं है, क्योंकि अंतरिक्ष स्वयं द्रव्यमान और ऊर्जा का अनंत रूप है, अनंत से अनंत निकल रहा है, इस तरह से भी सब कुछ संरक्षित ही है, सब कुछ हमेशा अनंत ही है। मतलब ब्रह्मांड भी कभी कुंडलिनी योग करेगा, और मुक्त हो जाएगा। फिर नए ब्रह्मांड की वह जाने। मतलब कभी ऐसा समय आएगा कि ब्रह्मांड ब्लैकहोल के रूप में एनकोड न होकर महाकाश में पूरी तरह समा जाएगा, मतलब ब्रह्मांड या ब्रह्मा की मुक्ति। शास्त्रों में भी कहा गया है कि ब्रह्मा की भी एक निश्चित आयुसीमा होती है, जिसके बाद वह मुक्त हो जाता है, मरता नहीं है। पर मैंने शास्त्रों में यह नहीं पढ़ा कि ब्रह्मा भी आम आदमी की तरह बारबार जन्मता और मरता है, ब्रह्माण्ड की तरह। आत्मविकास की सीढ़ियां चढ़ते हुए चींटी भी ब्रह्मा बन सकती है। शायद ब्रह्मा के जन्ममरण को इसलिए नहीं दिखाया गया है क्योंकि वह ब्रह्मांड से ऐसे बद्ध नहीं है, जैसे आम जीव अपने शरीर से होता है। ब्रह्मा तो हमेशा मुक्त ही है। शायद ब्रह्मांड की मुक्ति को ही ब्रह्मा की सांकेतिक मुक्ति कह दिया गया हो। यह भी हो सकता है कि ब्रह्मा ब्रह्मांड के साथ बहुत कच्चे बंधन से जुड़ा होता हो। जब ब्रह्मांड एनकोड हो जाता है, तो वह ब्रह्मा मुक्त हो जाता है, और एनकोडिड ब्रह्मांड के साथ नया स्तरोन्नत ब्रह्मा जुड़ जाता है, अगली बार के लिए। वैसे भी ब्लैकहोल के अंदर जो ब्रह्मांड बनता है, वह मूल ब्रह्मांड से छोटा ही होगा। वैसे ऐसा नहीं भी हो सकता, क्यों, यह आगे बताएंगे। इसका मतलब कि उसके तारे भी आगे से आगे छोटे होते जाएंगे। ब्लैकहोल की एक ऐसी पीढ़ी आएगी, जिसके अंदर के ब्रह्मांड के तारे इतने छोटे हो जाएंगे कि वे ब्लैकहोल नहीं बना पाएंगे। फिर तो ब्रह्मांड एनकोड न होकर मूल आकाश में विलीन हो जाएगा, मतलब मुक्त हो जायेगा। एक प्रकार से ऐसा समझ सकते हैं कि ब्रह्मांड लगातार कुंडलिनी योग के अभ्यास से अपने अंदर से सूचनाओं का कचरा हटाता गया। एक स्तर पर उसका कचरा इतना कम हो गया कि वह उससे दुबारा जन्म नहीं ले सका, बल्कि सीधा मुक्त हो गया। मतलब कि जैसे आदमी योगसाधना से मुक्त होता है, उसी तरह ब्रह्मांड भी। वैसे भी जो तारे एक निश्चित द्रव्यमान से कम द्रव्यमान के होते हैं, वे ब्लैकहोल नहीं बना सकते और आकाश में विलीन हो जाते हैं मतलब मुक्त हो जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार राजा खटवांग ने ढाई घड़ी मतलब एक घंटे के अंदर मुक्ति प्राप्त कर ली थी, जब उन्हें पता चला था कि वे एक घंटे में मृत्यु को प्राप्त हो जाएंगे। एक घंटे में तो कोई मन का सारा कचरा खत्म नहीं कर सकता। हां इतना कम जरूर किया जा सकता है, जिससे बंधन और पुनर्जन्म न होए। राजा खटवांग को एक बड़े द्रव्यमान का तारा मान लो। उन्होंने किसी अन्य पिंड आदि से अपने को टकराकर अपना द्रव्यमान उस सीमा के नीचे कर दिया, जितना ब्लैकहोल बनाने के लिए जरुरी है। उस टकराव को आप कोई भी ऊर्जासंपन तीव्र योगसाधना समझ सकते हो। इसीलिए योग करते रहना चाहिए, चाहे जागृति मिले या न। भगवान श्रीकृष्ण ने भी योग को ही सर्वाधिक महत्त्व दिया है और अर्जुन को कहा है कि हे अर्जुन, तू योगी बन। क्योंकि मनोवैज्ञानिक सिद्धांत कहता है कि जब आदमी के मन का सूचना का कचरा अर्थात अहंकार एक निश्चित सीमा के नीचे पहुंच जाएगा, तो वह जरूर मुक्त हो जाएगा, जैसा कि एक तारे के साथ भी होता हुआ हमने बताया। अगर मुक्ति के लिए सिर्फ जागृति ही जरूरी होती, तब तो दुनिया में उथलपुथल मच गई होती। इतने कम लोगों की मुक्ति से इतनी सारी जीवात्माओं का जीवनप्रवाह रुक सा गया होता।