इस आनंदपूर्ण कविता को कभी मैं अपने रात्रिनिद्रागत जीवंत स्वप्न में किसी मित्र के साथ गा रहा था जिसकी शुरुआती दो पंक्तियां ही मैं याद रख पाया था, जिसे मैंने उसी समय जाग कर लिख लिया था। बाद में समय मिलने पर मैंने इस कविता को पूरा भी कर लिया था।
वो गाने न दिखते हमको
नित जिनको पक्षी गाते।
सुंदर झील किनारे चींचीं
किसको नहीं सुहाती है।
मीठी पवन की वो लहरी जो
मन के भाव बहाती है।।
सारस बन उड़ जाए ऊपर
निखिल जगत पर छा जाए।
मन का पंछी तोड़ के बंधन
मुक्त गगन ही हो जाए।।
गीत सुरीले बोल रसीले
हृदय-धरा से न जाते।
वो गाने न दिखते हमको
नित जिनको पक्षी गाते।।
चींचीं नहीं समझ आती पर
फिर भी गहरी बात करे।
बोली जो खग की समझे वो
कर्ण-शहद दो-गुना भरे।।
कागभाषी~ बड़े दुनिया में
असली अच्छा कोई कहे।
बहुते तो पंछी-बोली को
मुख अपना दे वही कहे।।
असली वक्ता असली पाठी
ढूंढे नहीं धरे जाते।
वो गाने न दिखते हमको
नित जिनको पक्षी गाते।।
पंछी जल पर बस जाते पंक्ति
बन कर पीते-खाते।
सुबह कहीं से आते हैं फिर
घर की ओर चले जाते।।
चींचीं-चकचक सिखा-सिखा कर
क्या है डूब तो क्या है तैर।
दर्पण सबको रोज दिखा कर
क्या है बंधन क्या है सैर।।
अनपढ़ जालम न समझे जो
हा-हा कर हैं भ~गाते।।
वो गाने न दिखते हमको
नित जिनको पक्षी गाते।
अपने पोत बढ़ाते लोग
अपने गोत बढ़ाते लोग।
निकट से नाव लगे पर सबका
बड़ा है जगजलधि का रोग।।
हंस-मत्स्य बिन लटरं-पटरं
सरपट दौड़े पार करे।
मूरख भारी लश्कर के संग
उसमें डूबे और मरे।।
जीवनरक्षक नाव जो बनकर
मंझधारी को बचा पाते।
वो गाने न दिखते हमको
नित जिनको पक्षी गाते।।
कूकू-वेदपुराण छा गए
अद्भुत साउंड-रेकॉर्डर बन।
बिन बिजली बिन बाती के जो
युगों तलक करते छनछन।।
अंडे फूटे शास्त्रों के जब
गहरा हर्षोल्लास हुआ।
चींचीं बोली किलकारी से
छूमंतर जग-त्रास हुआ।।
वही लिख गए दुनिया को जो
लौट गए पाते-पाते।
वो गाने न दिखते हमको
नित जिनको पक्षी गाते।।
कागभुषुन्डी रुकते पल भर
ज्ञान चखा कर उड़ जाते।
भक्त जटायु राम-मिलन को
प्राण-बलि हैं दे जाते।
गरुड़ जटायु शुक-उल्लू खग
सब ज्ञानी माने जाते।
कुछ पुराण की रचना करते
कुछ सुर-वाहन बन जाते।।
कलियुग में तो बका~सुर ही
सत्कारे पूजे जाते।
वो गाने न दिखते हमको
नित जिनको पक्षी गाते।।
यह गाते~ वह गाते
वीणा संग आते-जाते।
दुनिया में झंकार मचा के
अजब जगत को तुर जाते।।
तुकाराम नानक रहीम हो
सब सुनने-में-ही आते।
आए थे जो धरा पे संतन
अब दिखते उड़ते जाते।।
गीत बहुत हैं लोकों में पर
पुतलों से ही-सुने जाते।
वो गाने न दिखते हमको
नित जिनको पक्षी गाते।।