नाच

नाच नचाए ये कैसा
सब मुंह पैसा ही पैसा।

भरी दुपहरी गरमी के दिन,
ठेला लोग चलाते हैं।
किसम किसम के उद्योगों में,
अपनी देह जलाते हैं।।

कुछ जीते जी हासिल करते
कुछ इस पे मर जाते हैं।
भटकी आत्मा के जैसे वो,
कम ही शांति पाते हैं।।

अचरज-करतब क्यों ऐसा,
कहीं नहीं देखा जैसा।
नाच नचाए ये कैसा,
सब मुंह पैसा ही पैसा।।

डाकू-चोर बनाए कुछ को,
शातिर कुछ को गजब का।
कुछ से हमला युद्घ कराए,
आम-जैसा या अजब का।।

मानवता की बलि चढ़ा कर,
पूजा इसकी करते हैं।
परमेश्वर की पदवी देकर,
रह-रह इससे डरते हैं।।

क्या है नायक क्या खलनायक,
कोई न इसके जैसा।
नाच नचाए ये कैसा,
सब मुंह पैसा ही पैसा।।

पैसे से पैसा आता बिन,
पैसे ये आए कैसे।
भेड़ अकेले न रह ढूंढे,
झुंडों को अपने जैसे।।

कुछ छोटे रह जाते हैं कुछ,
सागर जैसे बन जाते।
बुद्धि जितनी ताकत जितनी,
उतने ही बढ़-चढ़ जाते।।

कुछ अपने रोगों से सबको,
रोग-युक्त कर देते हैं।
संग-अपने अपने झुंडों को,
श्वास-मुक्त कर देते हैं।।

कोई आम खिलाड़ी है न,
धावक ही ऐसा-वैसा।
नाच नचाए ये कैसा,
सब मुंह पैसा ही पैसा।।

अपनी प्राप्ति करवाने को,
धरम के काम कराता है।
टेढ़ी चाल से चलकर हरदम,
परमेश्वर तक जाता है।।

जीवन के शतरंज में इसको,
जो कोई भी जान गया।
तय है जीत उसी की हरदम,
भीषम इसको मान गया।।

न अपना न पर कोई भी,
इसका 'जैसे को तैसा'।
नाच नचाए ये कैसा,
सब मुंह पैसा ही पैसा।।

पाते कर-भोगी इनसाफ,
करदाता रह जाते हैं।
भेड़ की न सुन ऊन पे ही नित,
दावे ठोके जाते हैं।।

नाचो-गाओ मौज मनाओ,
'गूंगे का गुड़' ये कैसा।
नाच नचाए ये कैसा,
सब मुंह पैसा ही पैसा।।

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demystifyingkundalini by Premyogi vajra- प्रेमयोगी वज्र-कृत कुण्डलिनी-रहस्योद्घाटन

I am as natural as air and water. I take in hand whatever is there to work hard and make a merry. I am fond of Yoga, Tantra, Music and Cinema. मैं हवा और पानी की तरह प्राकृतिक हूं। मैं कड़ी मेहनत करने और रंगरलियाँ मनाने के लिए जो कुछ भी काम देखता हूँ, उसे हाथ में ले लेता हूं। मुझे योग, तंत्र, संगीत और सिनेमा का शौक है।

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