कुंडलिनी योग और निवेश के बीच समानता

दोस्तों, कुंडलिनी योग और निवेश एक दूसरे के विपरीत विषय लगते हैं, पर इनके बीच गहरा संबंध भी है। जैसे आदमी थोड़े समय के निवेश से एकदम से अधिकतम लाभ प्राप्त करना चाहता है, वैसे ही कुंडलिनी योग से भी, पर दोनों ही लंबे समय के अभ्यास से सिद्ध होते हैं। जैसे मन पर काबू न होने से निवेश असफल होता है, उसी तरह अनियंत्रित मन से योग भी असफल हो सकता है। जैसे लालच में आकर आदमी गलत कंपनी में ज्यादा निवेश कर सकता है, वैसे ही ज्यादा योग-लाभ के लालच में आदमी गलत तरीके से या शरीर की सहन सीमा से ज्यादा योग कर सकता है। दोनों ही स्थितियों में नुकसान हो सकता है। जैसे बिना पर्याप्त जानकारी के निवेश से नुकसान हो सकता है, वैसे ही बिना आधारभूत जानकारी के योग से भी छुटपुट हानि हो सकती है। जैसे लंबी अवधि का निवेश लंबे समय बाद फलीभूत होता है, वैसे ही कुंडलिनी योग भी। जैसे उचित जानकारी, समय, शक्ति व अच्छे अवसर के साथ रहने पर ही छोटी अवधि का निवेश बहुत जल्दी सफल हो सकता है, उसी तरह पर्याप्त जानकारी, समय, शक्ति व अच्छे अवसर के साथ करने पर ही तांत्रिक कुंडलिनी योग भी अति शीघ्र फलीभूत होता है। जैसे छोटी अवधि के निवेश के सफल ना होने पर उससे आदमी अपना मूलधन खोकर कंगाल भी बन सकता है, उसी तरह तांत्रिक योग के सफल ना होने पर आदमी की अपनी पुरानी शक्ति भी क्षीण हो सकती है। जैसे सफल लघु अवधि का निवेश आदमी के ज्यादा धन को दांव पर लगाकर उससे भी कहीं ज्यादा धन लाभ के रूप में वापस करता है, वैसे ही सफल तांत्रिक कुंडलिनी योग भी आदमी की ज्यादा शक्ति को दांव पर लगाकर बदले में कुंडलिनी जागरण के रूप का अत्यधिक लाभ या रिटर्न प्रदान करता है। जैसे शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग में अधिक लाभ की संभावना के बावजूद जोखिम भी अधिक है, उसी तरह तांत्रिक कुंडलिनी योग में भी है। जैसे पैसा धीरे-धीरे पैसे को बढ़ाता है, उसी तरह योग का अभ्यास भी योग को धीरे धीरे बढ़ाता रहता है। जैसे गलत तरीके से खर्च किया गया पैसा नष्ट हो जाता है, उसी तरह गलत तरह से इस्तेमाल की गई योग शक्ति नष्ट हो जाती है। जैसे सही दिशा में लगाया गया धन बढ़ता ही रहता है, उसी तरह सही दिशा में लगाई गई योगशक्ति बढ़ती ही रहती है। जैसे बढ़ा हुआ धन धर्मकार्य करवा कर अपने को बढ़ाने के साथ परमात्मा की प्राप्ति में भी मदद करता है, उसी तरह बढ़ा हुआ कुंडलिनी योग भी धर्म कार्य करवा कर अपने को बढ़ाता रहता है, और साथ में परमात्मा की प्राप्ति में भी मदद करता है। जैसे ज्यादा धन की चाह ही आदमी से किस्म किस्म के अच्छे बुरे कर्म करवाती है, उसी तरह ज्यादा योगसुख अर्थात पूर्णता अर्थात परमात्मा की चाह आदमी से सभी किस्म के कर्म करवाती है। जैसे अधिक धन की प्राप्ति के लिए आदमी अनगिनत कपटी काम करता है, उसी तरह उत्तम तांत्रिक योग की प्राप्ति के लिए भी कई लोग पंचमकारिक काम करते हैं। जैसे धन की वृद्धि ही जीवन का मुख्य लक्ष्य है, उसी तरह योगसुख की वृद्धि भी जीवन का मुख्य लक्ष्य है। जैसे अच्छी कंपनियों में निवेश से खर्च करने से पैसा बढ़ता ही है, उसी तरह योग का ज्ञान योग्य लोगों में बांटने से योग बढ़ता ही है। जैसे घटिया कंपनी में पैसा निवेश करने से पैसा घटता है, उसी तरह अपात्र व नकारात्मक लोगों में योग का ज्ञान बांटने से योग घट भी सकता है। जैसे सब से अलग हटकर और अपनी व्यक्तिगत समझ व शैली में निवेश करने से धन अत्यधिक बढ़ता है, उसी तरह अपनी जरूरत के हिसाब से योग को ढालने से योग भी अत्यधिक बढ़ सकता है। जिस प्रकार धन का ना कोई अपना है, और ना कोई पराया है, पर इसका इस्तेमाल करने वाले पर ही इसका उद्देश्य निर्भर करता है, उसी तरह कोई योग से अच्छे काम कर सकता है, तो कोई तांत्रिक अभिचार जैसे बुरे काम, पर योग का इससे कोई लेना-देना नहीं है। जैसे आम लोग कर देकर कोष में धन को बढ़ाते हैं, पर कुछ ही लोग उस पर अपना हक जता सकते हैं, सभी नहीं, इसी तरह योगमय वातावरण को बनाने में सभी सज्जन लोगों का हाथ होता है, पर कुछ ही गिनेचुने लोग योगी वाली सुविधाओं और सम्मान पर अपना दावा कर सकते हैं, सभी नहीं। जैसे आम सांसारिक आदमी अपनी चुप्पी में ही संतोष और सुख प्राप्त करता है, उसी तरह आम सज्जन आदमी भी प्रसिद्धि की चाहत से दूर रहकर अपने मन में ही अपना असली योगानंद प्राप्त करता है।

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demystifyingkundalini by Premyogi vajra- प्रेमयोगी वज्र-कृत कुण्डलिनी-रहस्योद्घाटन

I am as natural as air and water. I take in hand whatever is there to work hard and make a merry. I am fond of Yoga, Tantra, Music and Cinema. मैं हवा और पानी की तरह प्राकृतिक हूं। मैं कड़ी मेहनत करने और रंगरलियाँ मनाने के लिए जो कुछ भी काम देखता हूँ, उसे हाथ में ले लेता हूं। मुझे योग, तंत्र, संगीत और सिनेमा का शौक है।

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