दोस्तो, कुंडलिनी योग के दौरान जब हम प्राणायाम से लंबी और धीमी सांसें लेते हैं, तब विचारों के प्रति साक्षीभव उदित होता है, जिससे तनाव कम हो जाता है। इससे प्रेरित होकर हम दिन भर की दुनियादारी के बीच में भी लंबी और धीमी सांसें लेकर अपने तनाव को कम करने की कोशिश करते हैं। सांसें मुख्यतः तीन किस्म की होती हैं। एक पेट से सांस जो नाभि चक्र पर प्राण को केंद्रित करती है। एक छाती से सांस जो प्राण का आघात अनाहत चक्र पर करती है। एक बहुत उथली सांस होती है, जो प्राणों को विशुद्धि चक्र पर डालती है। आपने देखा होगा कि भावनात्मक रूप से आहत या क्रियाशील होने पर सांस छाती से चलने लगती है। ज्यादा खाने पीने पर सांस नाभि से चलने लगती है। यह योगिक सांस होती है। इसीलिए तो भरपेट स्वादिष्ट भोजन के बाद बड़ा आनंद आता है, खासकर अगर भ्रमण भी कर रहे हों तो। भ्रमण से साक्षीभाव बढ़ जाता है। ज्यादा बोलचाल के दौरान दम जैसा घुटता है क्योंकि सांस उथली और गले तक ही होती है। इसीलिए तो ज्यादा बकवास करने के बाद आदमी लंबी लंबी सांसों के साथ हांफने सा लगता है। जब हम चक्र ध्यान करते हैं तो चक्र के अनुसार ही सांस चलाते हैं ताकि चक्र पर अच्छे से ध्यान हो सके। इस रहस्य को समझकर हम व्यवहार काल में सांस से क्रिया को नियंत्रित कर सकते हैं। अगर हमने ज्यादा ही बोल दिया हो या ज्यादा ही भावनात्मक संबंध स्थापित कर लिया हो तो हम पेट से सांस लेने लगते हैं। इससे वाणी और भावना नियंत्रण में आ जाती है। अगर हम ज्यादा ही शांत, तनावरहित और मौन होने लगें तो छाती से सांस लेना शुरु करते हैं। इससे थोड़ा तनाव आ जाता है, जो दुनियादारी व प्रतिस्पर्धा में टिके रहने के लिए कुछ मात्रा में होना भी जरूरी है। कुछ सांस छाती से ऊपर उठकर गले तक भी पहुंच जाती है।
छाती से सांस ऊपर के सभी चक्रों तक चढ़ती है, क्योंकि छाती से सांस लेते समय कंधे ऊपर को उठे होते हैं। इसीलिए कहते हैं कि प्राण नाभि से ऊपर रहता है। अपान नाभि से नीचे रहता है। जब पेट से सांस लेते हैं तो कुछ प्राण स्वाधिष्ठान चक्र और मूलाधार चक्र तक उतरता हुआ प्रतीत होता है। हालांकि वहां से पुनः सीधा आज्ञा चक्र और सहस्रार चक्र तक ही चढ़ता है सुषुम्ना से होकर। पर शरीर के निचले हिस्से को तो शक्ति दे ही जाता है, जो अपान का मुख्य काम है। इस तरह की बातें सतही तौर पर बड़ी जटिल लगती हैं। पर अगर हम इन्हें इत्मीनान और गहराई से समझें तो सबकुछ बच्चों के खेल जैसा साधारण है। यही तो अध्यात्मवाद की खासियत है। इसमें क्लिष्ट कुछ नहीं है। बस खुला दिल और विचारशील और रचनात्मक दिमाग चाहिए समझने के लिए। अन्य तीन मुख्य प्राण हैं, व्यान, उदान और समान। ये भी धीरे धीरे समझ आ ही जाएंगे। ये लो, समान प्राण का पता चल गया। इसे नाभि का प्राण माना जाता है। नाभि पर सांस डालने से पूरे शरीर में प्राण समान रूप से फैलता है, जैसा हमने ऊपर बताया है। इसका कुछ हिस्सा स्वाधिष्ठान और मूलाधार चक्र को जाता है, जो अपान बन जाता है। वह वहां से पुनः ऊपर चढ़ता है, और प्राण बन जाता है। इसका थोड़ा सा हिस्सा सीधा भी नाभि चक्र से ऊपर चढ़ता है। शेष चर्चा अगली पोस्ट में करेंगे।