कुंडलिनी योग के बिना सभी आध्यात्मिक तकनीकें और विधियां अधूरी हैं

सभी दोस्तों को क्रिसमिस की हार्दिक बधाइयां

दोस्तों! कुंडलिनी योग एक रहस्यमय विद्या है। इसे जितना ज्यादा खंगाला जाए, उतने ही इससे नए-नए अर्थ निकलते रहते हैं। इसकी खोज कभी खत्म नहीं होती। शायद यह इसलिए है क्योंकि यह अनंत से जुड़ा है। अनंत की खोज भी कभी पूरी नहीं होती। अन्य सभी भौतिक दुनियादारी से संबंधित विद्याएं उसी की भांति सीमित हैं और उसी की तरह अंत को प्राप्त हो जाती हैं।

राजयोग वाले कहते हैं कि मन से ध्यान ही सर्वश्रेष्ठ है। शरीर से साधना गौण है? भक्ति योग वाले कहते हैं कि शरीर की परवाह न करो, बस मन भगवान में लगाकर रखो। ज्ञान योग वाले कहते हैं कि बस अपने आपको ब्रह्म समझते हुऎ जीवन बिताओ, बाकि चीजों के चक्कर में ना पड़ो। कर्मयोग की वकालत करने वाले कहते हैं कि कर्म ही योग है। अलग से योग या कुंडलिनी योग करने की जरूरत नहीं है। तप की वकालत करने वाले कहते हैं कि तप से ही पाप नष्ट होते हैं जिससे मुक्ति मिलती है। पर मुझे तो कुंडलिनी योग के बिना सभी योग अधूरे लगते हैं। वह इसलिए क्योंकि शक्ति का मूल स्रोत शरीर ही है। मन में कहीं आसमान से गिरकर शक्ति नहीं आ जाती। शरीर ही मन को शक्ति प्रदान करता है। मन को शक्ति के लिए शरीर के आश्रित रहना ही पड़ता है। फिर शरीर को शक्ति पैदा करने के लिए और उसे मन को प्रदान करने के लिए कुंडलिनी योग करना ही पड़ता है।

मन की शक्ति के बिना राजयोग का ध्यान कैसे कर पाएंगे? चंद मिनिटों या सेकंडों में ही ध्यान चित्र मन से गायब हो जाएगा। हफ्तों या दिनों तक लगातर तो लग गया। जब तक लगातर महीनों तक प्रगाढ़ ध्यान नहीं बना रहेगा, तब तक कैसे सोए विचारों के रूप में पाप भस्म होंगे, और कैसे कुंडलिनी जागरण होगा। बस होगा तो सिर्फ ध्यान का ढोंग और दिखावा। मन की शक्ति के बिना भक्ति योग भी कैसे कर पाएंगे। भक्ति भी एक प्रकार से ध्यान ही है। इष्ट देवता या गुरु का ध्यान ही है। ज्ञान योग के ममले में भी मन की शक्ति के बिना आदमी अपने आपको ब्रह्म कैसे समझ पाएगा। यह समझ विचारों से पैदा होती है और विचार शक्ति से पैदा होते हैं। कर्म योग से मान लिया कि विचारों का कचरा शांत होता है। उससे भी मन में ध्यान चित्र ही मजबूत होता है। पर अगर आदमी कर्मयोग के बाद कर्म से थोड़ा उपरत होकर कुंडलिनी योग नहीं करेेगा तो उस कुंडलिनी चित्र को जागने की शक्ति कैसे मिलेगी। अगर आदमी हमेशा कर्मयोग में ही लगा रहेगा तो एक ध्यान चित्र थोड़ा मजबूत होगा और फिर शांत हो जाएगा। उसकी जगह पर कोई नया ध्यान चित्र आ जाएगा। वह भी थोड़ा मजबूत होगा और फिर शांत हो जाएगा। या विरले मामलों में वही ध्यान चित्र हल्की स्मृति के रूप में उम्रभर बना रहेगा। इस तरह यह सिलसिला चलता रहेगा पर कोई भी ध्यान चित्र जाग नहीं पाएगा। मतलब कुंडलिनी जागरण नहीं होगा। तप से शरीर में शक्ति का संचय होता है। पर अगर उसे कुंडलिनी योग से मन को प्रदान नहीं किया जाएगा तो तप से क्या आध्यात्मिक लाभ मिलेगा। फिर तो तप एक ढोंग मात्र बनकर रह जाएगा।

अगर कोई भी आध्यात्मिक तकनीक अपनाई जाए पर उसके साथ कुंडलिनी योग ना किया जाए तो पूर्ण फल नहीं मिलेगा। पर अगर कुछ भी न किया जाए और सिर्फ कुंडलिनी योग ही किया जाए, फिर भी पूर्ण आध्यात्मिक लाभ की संभावना बन जाती है। वह इसलिए क्योंकि मन का स्वभाव है कि वह हमेशा विकसित होकर परमात्मा की तरफ ही जाता है। जब मन को शक्ति मिलेगी तो वह खुद ही किसी भी तरीके से परमात्मा की तरफ जाने की पूरी कोशिश करेेगा। मन परमात्मा का अंश है और वह उसमें ही जुड़कर उससे ही एकाकार होना चाहता है। कुंडलिनी योग के साथ अगर और भी आध्यात्मिक तकनीकें अपनाई जाएं तब तो और भी अच्छा है, और वह सोने पे सुहागे वाली बात है।

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demystifyingkundalini by Premyogi vajra- प्रेमयोगी वज्र-कृत कुण्डलिनी-रहस्योद्घाटन

I am as natural as air and water. I take in hand whatever is there to work hard and make a merry. I am fond of Yoga, Tantra, Music and Cinema. मैं हवा और पानी की तरह प्राकृतिक हूं। मैं कड़ी मेहनत करने और रंगरलियाँ मनाने के लिए जो कुछ भी काम देखता हूँ, उसे हाथ में ले लेता हूं। मुझे योग, तंत्र, संगीत और सिनेमा का शौक है।

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