कुंडलिनीपरक संभोग योग ही मस्तिष्क को जागरण के लिए तैयार करती है

दोस्तों, पिछली पोस्ट में कुंडलिनी ध्यान और मनोरोग के बीच तुलनात्मक अध्ययन के बारे में बात हो रही थी। उसी कड़ी में ऐसा भी लगता है कि ऐसे मनोरोगियों का इलाज प्रेमचिकत्सा से भी हो सकता है। इसलिए अक्सर यह कहावत आम है कि प्यार व्यक्ति को नशामुक्ति में मदद करता है। प्यार एक सुपरटोनिक है। मानसिक रोग हमेशा ही बुरे नहीं होते, जैसी कि आम मान्यता है, पर एक गॉडगिफ्ट भी हो सकते हैं। संभवतः हिंदु धर्म में इसीलिए मानसिक रोगियों को विशेष दैवीय नजरिए से देखा जाता है, सम्मान से देखा जाता है। यहां उन्हें मानसिक हस्पताल कम ही भेजा जाता है, जब तक कोई गंभीर खतरा ही पैदा न हो जाए। वे मनोरंजन का मुख्य स्रोत होते हैं, और समारोह आदि में आकर्षण का मुख्य बिंदु होते हैं। फिर भी ज्यादातर उनके साथ सम्मानजनक व्यवहार किया जाता है, और उन्हें पीड़ा नहीं पहुंचाई जाती। उन्हें समाज पर बड़ा बोझ भी नहीं समझा जाता।
मुझे लगता है कि मूलाधारवासिनी कुंडलिनी शक्ति मस्तिष्क को दबाव झेलने में सक्षम बनाती है। यह शायद रक्तवाहिनियों का लचीलापन बढ़ाकर उन्हें ज्यादा और बिना दबाव के रक्त प्रवाह बढ़ाने में मदद करती है। विचित्र सा लगता था जब ध्यान के नाम से ही आम लोग सिर पकड़कर बैठ जाते थे, पर मेरे मस्तिष्क में हर समय ध्यान–समाधि लगी होती थी, यौनयोग के बल से। जब मुझे क्षणिक कुंडलिनी जागरण हुआ था, उस समय मैं तांत्रिक यौनयोग के पूरे प्रभाव में था। नहीं तो वह मुझे होता ही न। शरीर को पता होता है कि अपने साथ कब क्या करना है। इसने तभी जागृति के लिए बैक चैनल पूरी तरह से खोली, जब मस्तिष्क दो तीन महीनों से लगातार यौनयोग की कुंडलिनी शाक्ति के प्रभाव में रहकर ज्यादा से ज्यादा दबाव झेलने में सक्षम बन गया था। मैंने अनजाने में कुंडलिनी को इसलिए नीचे नहीं उतारा कि मैं उसका दबाव सहन नहीं कर पा रहा था, बल्कि इसलिए क्योंकि मुझे यह भय था कि कहीं मैं भौतिक रूप से पिछड़ न जाऊं। क्योंकि ऐसा ही मेरा एक पुराना अनुभव भी था। यह ऑर्गेज्मिक शक्ति पता नहीं क्या जादू करती है। यह एक आन्नदमयी शक्ति है।
सेक्सुअल यिनयांग एकदूसरे के प्रति समर्पण से बढ़ता है। इसीलिए समर्पण भाव पर बहुत जोर दिया जाता है। होता क्या है कि एकदूसरे के प्रति पूरे समर्पण से ही यिन और यांग आपस में एकदूसरे से पूरी तरह से मिश्रित हो पाते हैं। यौन समर्पण से बड़ा भला कौनसा समर्पण हो सकता है। यिनयांग तो हरेक वस्तु में होता है, पर समर्पण केवल पुरुष और स्त्री के ही बीच में होता है। जितना निकटता और अंतर्संबंध एक प्रेमी पुरुष और स्त्री के जोड़े के बीच बनता है, उतना किसी और के बीच में नहीं बनता। इसीलिए प्रेमसंबंध और समर्पण से भरा हुआ संभोग ही सर्वोत्तम यिनयांग एकत्व का भंडार है। इसलिए स्वाभाविक है कि यही भौतिक और आध्यात्मिक प्रगति का भी सर्वोत्तम आधार है। यिनयांग ही पूर्णता है, कुंडलिनी जागरण ही पूर्णता है, ईश्वरत्व ही पूर्णता है। भौतिक संसार भी इसी पूर्णता के अंतर्गत आता है, इससे अलग नहीं है।

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demystifyingkundalini by Premyogi vajra- प्रेमयोगी वज्र-कृत कुण्डलिनी-रहस्योद्घाटन

I am as natural as air and water. I take in hand whatever is there to work hard and make a merry. I am fond of Yoga, Tantra, Music and Cinema. मैं हवा और पानी की तरह प्राकृतिक हूं। मैं कड़ी मेहनत करने और रंगरलियाँ मनाने के लिए जो कुछ भी काम देखता हूँ, उसे हाथ में ले लेता हूं। मुझे योग, तंत्र, संगीत और सिनेमा का शौक है।

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