The non dual, tantric, Kundalini yoga technique (the real meditation) including Patanjali Yogsutras, Kundalini awakening, spiritual Enlightenment (self-realization), and spiritual liberation explained, verified, clarified, simplified, justified, taught, guided, defined, displayed, summarized, and proved in experiential, exhilarating, story like, biography like, philosophical, practical, humanely, scientific, and logical ways altogether best over- अद्वैतपूर्ण, तांत्रिक, कुंडलिनी योग तकनीक (असली ध्यान) सहित पतंजलि योगसूत्र, कुण्डलिनीजागरण, आत्मज्ञान और अध्यात्मिक मोक्ष को एक अनुभवपूर्ण, रोमांचक, कथामय, जीवनचरित्रमय, दार्शनिक, व्यावहारिक, मानवीय, वैज्ञानिक और तार्किक तरीके से; सबसे अच्छे रूप में समझने योग्य, सत्यापित, स्पष्टीकृत, सरलीकृत, औचित्यीकृत, सीखने योग्य, निर्देशित, परिभाषित, प्रदर्शित, संक्षिप्त, और प्रमाणित किया गया है
है कौन यहाँ, है कौन वहाँ जाएं तो आखिर जाएं कहाँ। है नीचे भीड़ बहुत भारी पर ऊपर मंजिल खाली है। हैं भीड़ में लोग बहुत सारे कुछ सच्चे हैं कुछ जाली हैं। मंजिल ऊपर तो लगे नरक सी न दाना न पानी है। निचली मंजिल की भांति न उसमें अपनी मनमानी है। है माल बहुत भेजा जाता पर अंधा गहरा कूप वहाँ। न यहाँ के ही न वहाँ के रह गए पता नहीं खो गए कहाँ। है कौन यहाँ, है कौन वहाँ जाएं तो आखिर जाएं कहाँ।
नीचे पूरब वाले हैं पर ऊपर पश्चिम (ही) बसता है। ऊपर है बहुत महंगा सब कुछ नीचे सब कुछ सस्ता है। हैं रचे-पचे नीचे फिरते सब ऊपर हालत खस्ता है। बस अपनी अपनी डफली सबकी अपना अपना बस्ता है। हैं सारे ग्रह तारे सूने बस धरती केवल एक जहाँ। है कौन यहाँ, है कौन वहाँ जाएं तो आखिर जाएं कहाँ।
अंधों का इक हाथी है हर कोई (ही) उसका साथी है। बहुते पकड़े हैं पूँछ तो कोई सूंड पैर सिर-माथी है। सब लड़ते रहते आपस में कह मैं तो कहाँ, पर तू है कहाँ है कौन यहाँ, है कौन वहाँ जाएं तो आखिर जाएं कहाँ।
है कटता समय-किराया हरपल संचित धन ही काम करे। जा नई कमाई कोष में केवल खर्च से वो रहती है परे। है कैसा अजब वपार (व्यापार) है जिसका तोड़ यहाँ न तोड़ वहाँ। है कौन यहाँ, है कौन वहाँ जाएं तो आखिर जाएँ कहाँ।
है नीचे रोक घुटन भारी पर ऊपर शून्य हनेरा है। ऊपर तो भूखे भी रहते पर नीचे लंगर डेरा है। है अंधा एक तो इक लंगड़ा दोनों में कोई प्रीत नहीं। ले हाथ जो थामे इकदूजे का ऐसा कोई मीत नहीं। है कैसी उल्टी रीत है कैसा उल्टा मंजर जहाँ-तहाँ। है कौन यहाँ, है कौन वहाँ जाएं तो आखिर जाएँ कहाँ।
है बुद्धि तो धन है थोड़ा पर धन है तो बुद्धि माड़ी। है बुद्धि बिना जगत सूना बिन चालक के जैसे गाड़ी। बस अपने घर की छोड़ कथा हर इक ही झांके यहाँ-वहाँ। है कौन यहाँ, है कौन वहाँ जाएँ तो आखिर जाएँ कहाँ।
आ~राम तो है सत्कार नहीं सत्कार जो है आराम नहीं। है पुष्प मगर वो सुगंध नहीं है गंध अगर तो पुष्प नहीं। इस मिश्रण की पड़ताल में मित्रो भागें हम-तुम किधर कहाँ। है कौन यहाँ, है कौन वहाँ जाएँ तो आखिर जाएँ कहाँ।
है कर्म ही आगे ले जाता यह कर्म ही पीछे को फ़ेंके। है जोधा नहीँ कोई ऐसा जो कर्म-तपिश को न सेंके। न कोई यहाँ, न कोई वहां बस कर्म ही केवल यहाँ-वहाँ। है कौन यहाँ, है कौन वहाँ जाएँ तो आखिर जाएँ कहाँ।
हम गाँवों के गबरू हैं तुम सा शहर में जीना क्या जानें। है गांव शहर में भी बसता तन से न सही मन से मानें। बस सूखी रोटी खाई है तुम सा शहद में पला नहीं। हमने न झेली न टाली ऐसी भी कोई बला नहीं। हमने न पेड़ से खाया हो फल ऐसा कोई फला नहीं। तब तक सिर को दे मारा है जब तलक पहाड़ भी टला नहीं। सिर मत्थापच्ची करते जब तुम थे भरते लंबी तानें। हम गाँवों ----- दिल-जान से बात हमेशा की तुम सी घुटन में जिया नहीं। है प्यार बाँट कर पाया भी नफ़रत का प्याला पिया नहीं। इक काम जगत में नहीं कोई भी हमने है जो किया नहीं। है मजा नहीं ऐसा कोई भी हमने हो जो लिया नहीं। फिर अन्न-भरे खेतों में खड़ के दाना-दाना क्यों छानें। हम गाँवों के ---- है इज्जत की परवाह नहीं बेइज्जत हो कर पले बढ़े। अपनों की खातिर अपने सर सबके तो ही इल्जाम मढ़े। कागज की दुनिया में खोकर भी वेद-पुराण बहुत ही पढ़े। हैं असली जग में भी इतरा कर खूब तपे और खूब कढ़े। बस बीज को बोते जाना था कि स्वर्ण कलश मिलते न गढ़े इस सोच के ही बलबूते हम तो हर पल निशदिन आगे बढ़े। फिर छोटा मकसद ठुकरा कर हम लक्ष्य बड़ा क्यों न ठानें। हम गाँवों के ----- जो शहर न होते फिर अपनी हम काबिलियत को न पाते। रहते अगर न वहाँ तो क्या है घुटन पता कैसे पाते। न लोकतंत्र से जीते गर ये नियम-व्यवस्था न ढाते। फिर बेर फली तरु न भाते गर भेल पकौड़े न खाते। हम साइलेंट जोन में न बसते तो घाट मुरलिया न गाते। हम रिमझिम स्नान भी न करते गर नगर में न तनते छाते। है रात के बाद सुबह आती तम से ही लौ दमखम पाती। है सुखदुख का चरखा चलता वह न देखे जाति-पाति। फिर अहम को अपने छोड़ के हम यह सत्य नियम क्यों न मानें। हम गाँवों ---- है ढोल-गंवार यही कहते बस तुलसी ताड़न-अधिकारी। है अन्न उगाता जो निशदिन वो कैसे है कम अधि-कारी। जो दुनिया की खातिर जाता हो खेतों पर ही बलिहारी। वो कम कैसे सबसे बढ़कर वो तो मस्ती में अविकारी। फिर ऊंच-नीच ठुकरा क्यों न हम इक ही अलख को पहचानें। हम गाँवों ---
यह युद्ध है यह युद्ध है। न कोई यहाँ पे गाँधी है न कोई यहाँ पे बुद्ध है। यह युद्ध है यह युद्ध है।
वीरपने की ऐसी होड़ कि हिंसा-व्यूह का दिखे न तोड़। कोई तोप चलाता है तो कोई देता है बम फोड़। रुधिर-सिक्त शापित डगरी पर दया सब्र रूपी न मोड़। लड़े सांड़ पर मसले घास जिस पर देते उनको छोड़। मान पलायन-कायरता न युद्ध-नीति में इसका जोड़। असली वीर विरल जगती में हर इक न होता रणछोड़। नीति-मार्ग अवरुद्ध है। यह युद्ध है----
गलती को दुत्कारे फिर भी नकल उसी की करते हैं। हमलावर को अँगुली कर के खुद भी हमला करते हैं। चिंगारी वर्षों से दबी जो उसको हवा लगाते हैं। क्रोध का कारण और ही होता और को मार भगाते हैं। खून बहा कर नदियां भर-भर भी हर योद्धा क्रुद्ध है। यह युद्ध है---
बढ़त के दावे हर इक करता आम आदमी है पर मरता। लाभ उठाए और ही कोई कीमत उसकी और ही भरता। जीत का तमगा लाख दिखे पर न स्वर्णिम न शुद्ध है। यह युद्ध है----
धर्म का चोला हैं पहनाते युद्ध को कोमलता से सजाते। दिलों के महलों को ठुकराकर पत्थर पर झंडा फहराते। कैसा छद्म-युद्ध है यह कैसा धर्म-युद्ध है। यह युद्ध है---
ज्वाला में सब जलता है और पानी में सब गलता है। पेड़ हो चाहे या हो तिनका नाश न इनका टलता है। रणभूमि में एकबराबर मूर्ख है या प्र-बुद्ध है। यह युद्ध है----
राजा वीर बहुत होता था रण को कंधे पर ढोता था। जान बचाने की खातिर वो गिरि-बंकर में न सोता था। आज तो प्रजा-खोरों का दिल राज-धर्म-विरुद्ध है। यह युद्ध है---
आग बुझाने जाना था जब आग लगाई क्यों तूने। आग तपिश के स्वाद की खातिर लेता जला तू कुछ धूने। बात ही करनी थी जब आखिर बात बिगाड़ी क्यों तूने। सोच सुहाग उजड़ते क्योंकर क्यों होते आँचल सूने। परमाणु की शक्ति के संग प्रलयंकर महा-युद्ध है। यह युद्ध है--
खून-पसीने की जो कमाई वो दिखती अब धरा-शायी। मुक्ति मिलती जिस शक्ति से क्यों पत्थर में थी वो गंवाई। बुद्धि नहीं कुबुद्ध है। यह युद्ध है---
बोल नहीं सकता कुछ भी मैं घुटन ये कब तुमने जानी। चला है पदचिन्हों पर मेरे मौनी हो या फिर ध्यानी।
मरने की खातिर जीता मैं जीने को मरते हो तुम। खोने का डर तुमको होगा फक्कड़ का क्या होगा गुम। हर पल एकनजर से रहता लाभ हो चाहे या हानि। बोल नहीं सकता ----
मेरे कंधों पर ही तुमने किस्मत अपनी चमकाई। मेरे ही दमखम पर तुमने धनदौलत इतनी पाई। निर्विरोध हर चीज स्वीकारी फूटी-कौड़ी जो पाई। खाया सब मिल-बाँट के अक्सर बन इक-दूजे संग भाई। कर्म-गुलामी की पूरी, ले कुछ तिनके दाना-पानी। बोल नहीं---
तेज दिमाग नहीं तो क्या गम तेज शरीर जो पाया है। सूंघे जो परलोक तलक वो कितनी अद्भुत काया है। मेरा इसमें कुछ नहीं यह सब ईश्वर की माया है। हर-इक जाएगा दुनिया से जो दुनिया में आया है। लगती तो यह छोटी सी पर बात बड़ी और सैयानी। बोल नहीं---
हूँ मैं पूर्वज तुम सबका पर मेरा कहा कहाँ माना। क़ुदरत छेड़ के क्या होता है तुमने ये क्यों न जाना। याद करोगे तुम मुझको जब याद में आएगी नानी। बोल--
मरा हमेशा खामोशी संग तुम संग भीड़ बहुत भारी। तोड़ा हर बंधन झटक कर रिश्ता हो या फिर यारी। मुक्ति के पीछे भागे तुम यथा-स्थिति मुझे प्यारी। वफा की रोटी खाई हरदम तुमको भाए गद्दारी। कर-कर इतना पाप है क्योंकर जरा नहीं तुमको ग्लानि। बोल नहीं---
लावारिस बन बीच सड़क पर तन मेरा ठिठुरता है। खुदगर्जी इन्सान की यारो कैसी मन-निष्ठुरता है। कपट भरे विवहार में देखो न इसका कोई सानी। बोल नहीं---
रोटी और मकान बहुत है कपड़े की ख्वाइश नहीं। शर्म बसी है खून में अपने अंगों की नुमाइश नहीं। बेहूदे पहनावे में तुम बनते हो बड़े मानी। बोल नहीं----
नशे का कारोबार करूँ न खेल-मिलावट न खेलूँ। सारे पुट्ठे काम करो तुम मार-कूट पर मैं झेलूँ। क्या जवाब दोगे तुम ऊपर रे पापी रे अभिमानी। बोल नहीं----
पूरा अपना जोर लगाता जितना मेरे अंदर हो। मेरा जलवा चहुँ-दिशा में नभ हो या समंदर हो। बरबादी तक ले जाने की क्यों तुमने खुद को ठानी। बोल नहीं सकता--
खून से सींचा रे तुझको फिर भूल गया कैसे मुझको। रब मन्दर मेरे अंदर फिर भी न माने क्यों मुझको। लीला मेरी तुझे लगे इक हरकत उल्टी बचकानी। बोल नहीं---
कुदरत ने हम दोनों को जब अच्छा पाठ पढ़ाया था। भाई बड़ा बना करके तब आगे तुझे बढ़ाया था। राह मेरी तू क्या सुलझाए खुद की जिससे अनजानी। बोल नहीं--
लक्ष्य नहीं बेशक तेरा पर मुंहबोला वह है मेरा। मकड़जाल बुन बैठा तू जो उसने ही तुझको घेरा। याद दिलाऊँ लक्ष्य तुम्हारा बिन मस्तक अरु बिन बानी। बोल नहीं---
प्यार की भाषा ही समझूँ मैं प्यार की भाषा समझाऊँ। प्यार ही जन्नत प्यार ही ईश्वर प्यार पे बलिहारी जाऊँ। ढाई आखर प्रेम का पढ़ ले जो कोई वो ही ज्ञानी। बोल नहीं-- @bhishmsharma95
ज्ञानीजन कहते दुनिया में ऐसा कलियुग आता है। हँस चुगे जब दाना-दुनका कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानी-ध्यानी ओझल रहते काल-सरित के संग न बहते। शक्ति-हीनता के दोषों को काल के ऊपर मढ़ते रहते। मस्तक को अपने बलबूते बाहुबली झुकाता है। हँस चुगे जब दाना-दुनका कवूआ मोती खाता है। ज्ञानीजन----
खूब तरक्की है जो करता नजरों में भी है वो खटकता। होय पलायित बच जाता या दूर सफर का टिकट है कटता। अच्छा काम करे जो कोई वो दुनिया से जाता है। हँस चुगे जब दाना-दुनका कवूआ मोती खाता है। ज्ञानीजन----
अपनी डफली राग भी अपना हर इक गाना गाता है। कोई भूखा सोए कोई धाम में अन्न बहाता है। दूध उबाले जो भी कोई वही मलाई खाता है। हँस चुगे जब दाना-दुनका कवूआ मोती खाता है। ज्ञानीजन----
संघे शक्ति कली-युगे यह नारा सबको भाता है। बोल-बोल कर सौ-दफा हर सच्ची बात छुपाता है। भीड़ झुंड बन चले जो कोई वही शिकार को पाता है। हँस चुगे जब दाना-दुनका कवूआ मोती खाता है। ज्ञानीजन----
जितने ढाबे उतने बाबे हर-इक बाबा बनता है। लाठी जिसकी भैंस भी उसकी मूरख बनती जनता है। शून्य परीक्षा हर इक अपनी पीठ को थप-थपाता है। हँस चुगे जब दाना-दुनका कवूआ मोती खाता है। ज्ञानीजन----
करतब-बोध का ठेका देता कोई भी तब पेन न लेता। मेल-जोल से बात दूर की अपना भी न रहता चेता। हर इक अपना पल्ला झाड़े लदे पे माल चढ़ाता है। हँस चुगे जब दाना-दुनका कवूआ मोती खाता है। ज्ञानीजन----
शिष्टाचार किताबी होता नौटँकी खिताबी होता। भीतर वाला सोया होता सर्व-धरम में खोया होता। घर के भीतर सेंध लगाकर घरवाले को भगाता है। हँस चुगे जब दाना-दुनका कवूआ मोती खाता है। ज्ञानीजन----
मेहनत करे किसान बिपारी खूब मुनाफा पाता है। बैठ-बिठाय सिंहासन पर वो पैसा खूब कमाता है। देकर करज किसानों को वह अपना नाच नचाता है। हँस चुगे जब दाना-दुनका कवूआ मोती खाता है। ज्ञानीजन----
जात-धरम को ऊपर रख कर हक अपना जतलाता है। शिक्षा-दीक्षा नीचे रख कर शोषित वह कहलाता है। निर्धन निर्धनता को पाए पैसे वाला छाता है। हँस चुगे जब दाना-दुनका कवूआ मोती खाता है। ज्ञानीजन---- साभार~@bhishmsharma95🙏
गाने के लिए उपयुक्त वैकल्पिक रचना (मामूली परिवर्तन के साथ)~हँस चुगे है दाना-दुनका, कवूआ मोती खाता है
ज्ञानीजन कहते जगत में ऐसा कलियुग आता है। हँस चुगे है दाना-दुनका कवूआ मोती खाता है।
ज्ञानी-ध्यानी ओझल रहते काल-सरित तट रहते हैं। शक्ति-हीनता के दोषों को काल के ऊपर मढ़ते हैं। मस्तक को अपने बलबूते-2 बाहु-बली झुकाता है। हँस चुगे है दाना-दुनका कवूआ मोती खाता है। ज्ञानीजन----
खूब तरक्की करता है जो आँखों में वो खटकता है। होय पलायित बच जाता जां दूर-टिकट तब कटता है। अच्छा काम करे जो कोई-2 वो दुनिया से जाता है। हँस चुगे है दाना-दुनका कवूआ मोती खाता है। ज्ञानीजन----
अपनी डफली राग भी अपना हर इक गाना गाता है। कोई भूखा सोए कोई धाम में अन्न बहाता है। दूध उबाले है जो कोई-2 वो ही मलाई खाता है। हँस चुगे है दाना-दुनका कवूआ मोती खाता है। ज्ञानीजन----
संघे शकती कली-युगे यह नारा सबको भाता है। बोल-बोल के सौ-दफा हर सच्ची बात छुपाता है। भीड़-झुंड चलता जो कोई-2 वो ही शिकारी पाता है। हँस चुगे है दाना-दुनका कवूआ मोती खाता है। ज्ञानीजन----
जितने ढाबे उतने बाबे हर-इक बाबा बनता है। लाठी जिसकी भैंस भी उसकी मूरख बनती जनता है। शून्य परीक्षा हर इक अपनी-2 पीठ को थप-थपाता है। हँस चुगे है दाना-दुनका कवूआ मोती खाता है। ज्ञानीजन----
करतब का ठेका देता है पेन न कोई लेता है। मेल-जोल से बात दूर की अपना भी न चेता है। हर इक अपना पल्ला झाड़े-2 लदे पे माल चढ़ाता है। हँस चुगे है दाना-दुनका कवूआ मोती खाता है। ज्ञानीजन----
शिष्टाचार किताबी होता नौटँकी व खिताबी है। भीतर वाला सोया होता सर्व-धरम में खोया है। घर के भीतर सेंध लगाकर-2 घरवाले को भगाता है। हँस चुगे है दाना-दुनका कवूआ मोती खाता है। ज्ञानीजन----
मेहनत करे किसान बिपारी पैसा खूब कमाता है। बैठ-बिठाय सिंहासन पर वो खूब मुनाफा पाता है। देकर करज किसानों को वो-2 अपना नाच नचाता है। हँस चुगे है दाना-दुनका कवूआ मोती खाता है। ज्ञानीजन----
जात-धरम को ऊपर रख कर हक अपना जतलाता है। शिक्षा-दीक्षा नीचे रख कर शोषित वह कहलाता है। निरधन निरधनता को पाए-2 पैसे वाला छाता है। हँस चुगे है दाना-दुनका कवूआ मोती खाता है। ज्ञानीजन---- ए जी रे--- ए जी रे---
धुन प्रकार~रामचंद्र कह गए सिया से, ऐसा कलियुग आएगा---
जग में सुंदर हैं सब काम पर मिल जाए अब आ~राम। बोलो राम राम राम राम से बड़ा राम का नाम।१। दीपावली मनाएं हम खुशियां खूब लुटाएं हम। आ~राम आ~राम रट-रट के काम को ब्रेक लगाएं हम।२। मानवता को जगाएँ हम दीप से दीप जलाएँ हम।-2 प्रेम की गंगा बहाएं हम-2 नितदिन सुबहो शाम।३। बोलो राम राम राम राम से बड़ा राम का नाम।-2 जग में------ वैर-विरोध को छोड़ें हम मन को भीतर मोड़ें हम। ज्ञान के धागे जोड़ें हम बंधन बेड़ी तोड़ें हम।४। दिल से राम न बोलें हम माल पराया तोलें हम।-2 प्यारे राम को जपने का-2 ऐसा हो न काम।५। बोलो राम राम राम राम से बड़ा राम का नाम।-2 जग में------ मेहनत खूब करेंगे हम रंगत खूब भरेंगे हम। मन को राम ही देकर के तन से काम करेंगे हम।६। अच्छे काम करेंगे हम अहम-भ्रम न भरेंगे हम।-2 बगल में शूरी रखकर के-2 मुँह में न हो राम।७। बोलो राम राम राम राम से बड़ा राम का नाम।-2 जग में------ भाईचारा बाँटें हम शिष्टाचार ही छांटें हम। रूढ़ि बंदिश काटें हम अंध-विचार को पाटें हम।८। धर्म विभेद करें न हम एक अभेद ही भीतर हम।-2 कोई शिवजी कहे तो कोई-2 दुर्गा कृष्ण या राम।९। बोलो राम राम राम राम से बड़ा राम का नाम।-2 जग में------ धुन प्रकार~ जग में सुंदर हैं दो नाम, चाहे कृष्ण कहो या राम [भजनसम्राट अनुप जलोटा गीत] साभार~भीष्म🙏@bhishmsharma95
खड़ा है रावण धर्म में पड़ा है खंजर मर्म में। पाप है अपने चरम में मनुता डूबी शर्म में। हिंसा का ढूंढोगे कब तक बहाना। जैसा करोगे वैसा पाओगे। कब तक सत्य छुपाओगे कब तक प्रकाश दबाओगे।
पूजा पंडाल सज चुके अपना धर्म भज चुके। रावण धर्म के लोगों के हिंसक कदम नहीँ रुके। पुतले को जलाओगे अपना मन बहलाओगे। कब तक सत्य छुपाओगे कब तक प्रकाश दबाओगे।
अगला वर्ष आएगा यही बहारें लाएगा। राज करेगा वीर बुजदिल ये ही मंजर पाएगा। मानवता को बुजदिली कब तक तुम कह पाओगे। कब तक सत्य छुपाओगे कब तक प्रकाश दबाओगे। साभार~भीष्म🙏@bhishmsharma95
जय माता दुर्गे जय माता तारा। हम पापी मानुष को तेरा सहारा।। जय माँ भवानी तेरा जयकारा। भव-सा-गर का तू ही किनारा।। जय माता दुर्गे------ हिंगलाज नानी। जय हो जयकारा तेरे लिए मेरा जीवन पहारा।। जय माता--- भटकूँ अवारा बेघर बिचारा। तेरे सिवा नहीं अब कोई चारा।। जय माता--- जग देख सारा भटका मैं हारा। भूलूँ कभी न तेरा नजारा।। जय माता--- हे अम्बे रानी जय जय जयकारा पागल सुत तेरा नकली खटारा।। जय माता---- तू ही जगमाता तू ही विधाता। तू जो नहीं हमें कुछ भी न आता।। हम थरमामीटर तू उसमें पारा। तू क्षीरसागर हम पानी खारा।। जय माता--- किसमत का मारा जग में नकारा तू जो मिले जग पाए करारा।। हे माता--- जो है हमारा सब है तुम्हारा। दूँ क्या मैं तुझको जो हो हमारा।। जय माता दुर्गे जय माता तारा। हम पापी मानुष को तेरा सहारा।। साभार~भीष्म🙏@bhishmsharma95