मित्रों, योग एक वैज्ञानिक विधि है। आम लोग इसे आसानी से नहीं समझ सकते। अभ्यास तो इसका तब करेंगे न, जब इसे समझेंगे। इसीलिए आम जनमानस की सुविधा के लिए पुराण रचे गए हैं। पुराणों में योग को विभिन्न मिथक घटनाओं और कथाओं के रूप में समझाया गया है। हालांकि मिथक रूप होने पर भी ये कथाएं सैद्धांतिक रूप से सत्य होती हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि ये मिथक शास्त्रीय होते हैं, विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए होते हैं, और गैर-शास्त्रीय या साधारण मिथकों के विपरीत होते हैं। कुछ तथाकथित आधुनिकतावादियों की सोच के विपरीत, ये अंधविश्वास की श्रेणी में नहीं आते। सामाजिक, व्यक्तिगत और व्यावहारिक मर्यादाओं के उल्लंघन से बचने के लिए कई बातें सीधे तौर पर नहीँ कही जा सकती हैं, इसलिए उन्हें वैज्ञानिक मिथक के रूप में कहना पड़ता है। योग को एकदम से समझना मुश्किल हो सकता है। लम्बे समय तक यौगिक या अद्वैतमयी जीवनशैली को अपना कर रखना पड़ता है। इसीलिए पुराणों में योग से संबंधित बातों को मनोरंजक मिथक कथाओं के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इससे ये कथाएं लंबे समय तक अपने प्रति आदमी की रुचि बना कर रखती हैं। इनसे आदमी अपनेआप ही अप्रत्यक्ष रूप से योगी बना रहता है, और अनुकूल परिस्थिति मिलने पर थोड़े से अतिरिक्त प्रयास से वह पूर्ण योगी भी बन सकता है। यदि सभी लोग एकसाथ पूर्णकालिक योगी बन गए, तब दुनियादारी के काम कैसे चलेंगे। इसीलिए योग को ऐसी वैज्ञानिक व सुहानी कथाओं के रूप में ढाला जाता है, जिन पर विश्वास बना रहे। इससे दुनियादारी के सारे दायित्वों को निभाते हुए भी आदमी हर समय यौगिक जीवनशैली में बंधा रहता है। ऐसी ही एक प्रसिद्ध कथा श्रीमद्भागवत महापुराण में आती है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण व कालियनाग के बीच हुए युद्ध का वर्णन है। उस कथा के अनुसार भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ के डर से रमणक द्वीप पर कालिय नाम का एक विशाल नाग रहता था, जिसके सैंकड़ों फन थे। उसे किसी संत ने श्राप दिया था कि कृष्ण भगवान उसको मारकर उसका उद्धार करेंगे। इसलिए वह वृन्दावन के समीप बह रही यमुना नदी में आ गया था। उसके जहर से यमुना का पानी जहरीला हो गया था, जिससे आसपास के लोगबाग और पशु-पक्षी मर रहे थे। कृष्ण भगवान अपने गोप मित्रों के साथ वहाँ गेंद खेल रहे थे। तभी उनकी गेंद यमुना के जल में चली गई। श्रीकृष्ण ने तुरंत यमुना में छलांग लगा दी। अगले ही पल वे कालियनाग से कुश्ती लड़ रहे थे। बहुत आपाधापी के बाद श्रीकृष्ण उसके बीच वाले और सबसे बड़े सिर पर चढ़ गए। वहाँ उन्होंने अपना वजन बढ़ा लिया और उसके फनों को मसल दिया। उन्होंने उसके सिर और पूँछ को एकसाथ पकड़कर उसे यहाँ-वहाँ पटका। अंत में उन्होंने कालियनाग को हार मानने पर मजबूर कर दिया। तभी कालियनाग की पत्नियां वहाँ आईं और भगवान कृष्ण से उसके प्राणों की भिक्षा माँगने लगीं। श्रीकृष्ण ने उसे इस शर्त पर छोड़ा कि वह सपरिवार यमुना को छोड़कर रमणक द्वीप पर वापिस चला जाएगा और दुबारा यमुना के अंदर कभी नहीं घुसेगा।
कालियनाग सुषुम्ना नाड़ी या मेरुदंड का प्रतीक है, और भगवान श्रीकृष्ण कुंडलिनी के प्रतीक हैँ
वास्तव में आदमी की संरचना एक नाग से मिलती है। आदमी का सॉफ्टवेयर उसके केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र से बना होता है, जो आकृति में एक फन उठाए नाग की तरह दिखता है। उसमें मस्तिष्क और मेरुदंड आते हैं। आदमी का बाकी का शरीर तो इसी केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर बाहर-बाहर से मढ़ा गया है। इसी केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में सुषुम्ना नाड़ी प्रवाहित होती है। यहाँ यमुना नदी का पानी मेरुदंड के चारों ओर बहने वाले सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूड का प्रतीक है। रमणक द्वीप में निवास करना दुनियादारी के भोग-विलास में उलझने का प्रतीक है। रमणक शब्द को रमणीक या रमणीय शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है मनोरंजक। गरूड़ का भय साधु संतों के भय का प्रतीक है। रमणीक जगह पर साधु संत नहीं जाते। यह देखा जाता है कि साधु संत लोगों को दुनियादारी के फालतू झमेलों से दूर रखते हैं। साधु का श्राप किसी सज्जन द्वारा ईश्वर का सही रास्ता दिखाना है। कालियनाग का श्रीकृष्ण के द्वारा मारे जाने के बारे में कहना उसको आसक्ति के बंधन से मुक्ति प्रदान करने का प्रतीक है। श्रीकृष्ण के द्वारा उसे वापिस रमणक द्वीप भेजने का अर्थ है कि वह दुनिया के भोले-भाले लोगों से दूर एकांत में चला जाए और वहाँ पर आसक्ति का विष फैलाता रहे। कालियनाग की पत्नियां दस इन्द्रियों की प्रतीक हैं। इनमें 5 कर्मेन्द्रियां और 5 ज्ञानेन्द्रियाँ हैं। ये इन्द्रियाँ कालियनाग की पत्नियां इसलिए कही गई हैं, क्योंकि ये दुनियादारी में आसक्त आदमी के सान्निध्य में बहुत शक्तिशाली होकर उससे एकाकार हो जाती हैं। कालियनाग का विष आसक्तिपूर्ण जीवनशैली का प्रतीक है। यह दुनिया का सबसे शक्तिशाली विष है। इससे आदमी जन्म-मरण के चक्कर में पड़कर बार-बार मरता ही रहता है। कालियनाग के सैंकड़ों फनों से निकल रहे विष का अर्थ है कि मस्तिष्क में पैदा हो रही सैंकड़ों इच्छाओं व चिंताओं से यह आसक्ति बढ़ती ही रहती है। भगवान कृष्ण यहाँ कुंडलिनी के प्रतीक हैं। उनका कालियनाग के बीच वाले मस्तक पर चढ़ने का अर्थ है, कुंडलिनी का सहस्रार चक्र में ध्यान करना। श्रीकृष्ण के द्वारा गेंद खेलने का अभिप्राय कुण्डलिनी योगसाधना से है। गेंद यहाँ प्राणायाम की प्राणवायु की प्रतीक है। कृष्ण के सखा ग्वाल-बाल विभिन्न प्रकार के प्राणायामों व योगसाधना के प्रतीक हैं। जैसे गेंद आगे-पीछे जाती रहती है, वैसे ही साँसें भी। गेंद का नदी में घुसने का अर्थ है, प्राणवायु का चक्रों में प्रविष्ट होना। श्रीकृष्ण का नदी में छलांग लगाने का अर्थ है कि कुंडलिनी भी प्राणवायु के साथ चक्रों में प्रविष्ट हो गई। यमुना पवित्र नदी है, जिसमें श्रीकृष्ण छलांग लगाते हैं। इसका अर्थ है कि प्राणवायु से पवित्र हुए चक्रों में ही कुंडलिनी प्रविष्ट होती है। श्रीकृष्ण के द्वारा कालियनाग के फनों को मसले जाने का अर्थ है कि कुंडलिनी ने मस्तिष्क की फालतू इच्छाओं और चिंताओं पर रोक लगा दी है, तथा अवचेतन मन में दबे पड़े वैचारिक कचरे की सफाई कर दी है। श्रीकृष्ण के द्वारा कालियनाग के सिर और पूँछ को एकसाथ पकड़े जाने का अर्थ है कि कुंडलिनी मूलाधार चक्र से सहस्रार चक्र तक पूरी सुषुम्ना नाड़ी में फैल गई है। मूलाधार से शक्ति लेकर कुंडलिनी सहस्रार में चमक रही है। ऐसा तब होता है जब तालु-जिह्वा के जोड़ या सहस्रार और मूलाधार का ध्यान एकसाथ किया जाता है। ऐसा करने से कालियनाग के पटके जाने का अर्थ है कि उससे दिमाग का फालतू शोर खत्म हो रहा है, जिससे आदमी शाश्वत आनन्द की ओर बढ़ रहा है। कालियनाग को जान से मारने का प्रयास करने का अर्थ है कि शरीर के तंत्रिका तंत्र को नियंत्रित रूप में ही काम करने देना है। कालियनाग का दुबारा यमुना में न प्रविष्ट होने का अर्थ है कि कुंडलिनी जागरण के बाद आदमी कभी आसक्तिपूर्ण व्यवहार नहीं करता।