सहस्रार चक्र व स्वाधिष्ठान चक्र के सिवाय सभी चक्रों पर त्रिभुज हैं। कहीं पर वह सीधा ऊपर की ओर है, तो कहीं पर उल्टा नीचे की ओर है। कहीं पर एक-दूसरे को काटते हुए दो त्रिभुज हैं। इसी तरह किसी चक्र पर चार पंखुड़ियां हैं, तो किसी पर छह या सात आदि। सहस्रार में तो एक हजार पंखुड़ियां हैं। इनके पीछे आखिर क्या रहस्य छिपा हो सकता है? कुछ रहस्य दार्शनिक हैं, तो कुछ रहस्य अनुभवात्मक व मनोवैज्ञानिक हैं। योग करते हुए मुझे भी इसके पीछे छिपे हुए कुछ अनुभवात्मक रहस्य पता चले हैं, जिन्हें मैं इस पोस्ट के माध्यम से साझा कर रहा हूँ।
कुण्डलिनी के राजमार्ग और आपूर्ति-मार्ग
त्रिभुज की रेखाएं वास्तव में कुण्डलिनी-चित्र के राजमार्ग हैं, जिन पर दौड़ती हुई कुण्डलिनी का ध्यान किया जाता है। इसी तरह, त्रिभुज के बिंदु भी कुण्डलिनी के विश्राम स्थल हैं। चक्र के पीटल (पंखुड़ियां) उस चक्र से सम्बंधित क्षेत्र से सम्बंधित नाड़ी-पुंज हैं, जो चेतनामयी पोषक शक्ति या ध्यान शक्ति को चक्र व उस पर स्थित कुण्डलिनी तक पहुंचाती हैं। ये वृक्ष या फूल की पत्तियों की तरह ही हैं।
मूलाधार चक्र का उल्टा त्रिभुज नीचे की ओर
मूलाधार चक्र पर उल्टा त्रिभुज होता है। इसकी एक भुजा जननांग से शुरू होकर आगे के स्वाधिष्ठान चक्र (जननांग के मूल में) से होते हुए पीछे के (मेरुदंड के) स्वाधिष्ठान चक्र तक जाती है। इसकी दूसरी भुजा पीछे के स्वाधिष्ठान चक्र से लेकर मूलाधार चक्र (सबसे नीचे, जननांग व मलद्वार के मध्य में) तक है। इसकी तीसरी भुजा जननांग की शिखा से या आगे के स्वाधिष्ठान चक्र से लेकर मूलाधार तक है। मैंने देखा कि जननांग को छोड़कर, छोटा त्रिभुज बना कर भी अच्छा ध्यान होता है। जननांग से तो कुण्डलिनी को कई बार अतिरिक्त शक्ति मिल जाती है। उस छोटे त्रिभुज का एक बिंदु आगे का स्वाधिष्ठान चक्र है, दूसरा बिंदु पीछे का स्वाधिष्ठान चक्र है, व तीसरा बिंदु या त्रिभुज की शिखा मूलाधार है। 4 पीटल का अर्थ है कि एक पीटल जननांग तक है, एक आगे के स्वाधिष्ठान चक्र तक है, तीसरी पीछे के स्वाधिष्ठान चक्र तक है, और चौथी स्वयं मूलाधार चक्र की है (चक्र के संकुचन से उपलब्ध)।
स्वाधिष्ठान चक्र पर कोई अलग से त्रिभुज नहीं है, क्योंकि वह मूलाधार के त्रिभुज में ही कवर हो जाता है। इसकी 6 पीटल निम्नलिखित क्षेत्रों से आती हैं। 4 मूलाधार से, एक जननांग से और छवीं पीटल इसकी अपनी है (संकुचन से उपलब्ध)।
त्रिभुज पिरामिड या शंकु को भी प्रदर्शित करता हुआ व उल्टा त्रिभुज पीछे की ओर को भी
मणिपुर चक्र में उल्टा त्रिभुज व 10 पीटल हैं। वास्तव में, उल्टे त्रिभुज का मतलब पीछे की ओर प्वाइंट करता हुआ त्रिभुज है। दो डाईमेंशन वाले कागज़ पर पीछे की ओर या अन्दर की ओर प्वाइंट करते हुए त्रिभुज को ही उल्टा या नीचे की तरफ प्वाइंट करता हुआ दर्शाया गया है। इसमें मुख्य ध्यान-पट्टिका नाभि क्षेत्र में, दाएं से लेकर बाएँ भाग तक फैली है। वैसे तो पट्टी को विस्तृत करते हुए पूरे उदर क्षेत्र को एक शंकु या पिरामिड (कुछ लोग त्रिभुज को पिरामिड ही मानते हैं) के आकार में भी दिखाया जा सकता है, जिसकी शिखा पीछे के (मेरुदंड वाले) मणिपुर चक्र पर है।नाभि क्षेत्र पिरामिड की तरह ही लगता है। पिरामिड की दो तिरछी भुजाएं सबसे निचली पसलियों से बनती हैं। पिरामिड की आधार भुजा पेल्विक कैविटी और एब्डोमिनल कैविटी को विभक्त करने वाली काल्पनिक रेखा से बनती है। यह पिरामिड अन्दर की तरफ जाता हुआ पिछले मणिपुर चक्र पर प्वाइंट करता है। इसीलिए कई लोग पूरे उदर क्षेत्र में कुण्डलिनी को चक्राकार भी घुमाते हैं। वास्तव में जब पेट ध्यान के साथ संकुचित किया जाता है, तो ऐसा लगता है कि पेट व रीढ़ की हड्डी आपस में जुड़ गए हैं, व दोनों आगे-पीछे के चक्र भी। इसकी 10 पीटल में से 6 पीटल स्वाधिष्ठान से आती हैं (ऊपर की ओर संकुचन से)। 7वीं पीटल उदर के दाएं भाग से, 8वीं बाएँ भाग से, 9वीं उसके अपने संकुचन से व 10वीं अनाहत चक्र से आती है (जालंधर बंध के सहयोग से)।
अनाहत चक्र पर सुन्दर षटकोण
अनाहत चक्र में एक-दूसरे को काटते हुए दो त्रिभुज हैं, जिससे एक सुन्दर षटकोण बनता है। क्योंकि यह चक्र सबसे प्रमुख है। मैंने स्वयं ध्यान के समय आगे से पीछे तक फैले हुए सुन्दर व आनंदमयी षटकोण को बनते हुए देखा है। एक त्रिभुज पीछे वाले अनाहत चक्र पर प्वाइंट करती है। उसकी आधार भुजा हृदय से लेकर छाती के दाएं क्षेत्र तक है। दूसरी त्रिभुज आगे वाले अनाहत चक्र पर प्वाइंट करती है, जिसकी आधार भुजा रीढ़ की हड्डी में पीछे वाले अनाहत चक्र के दोनों ओर फैली है। जब आदमी खड़े होकर सांस को भरते हुए व सिर को पीछे की ओर करते हुए छाती को बाहर की ओर फुलाता है, तब त्रिभुज की आधार भुजा आगे वाले क्षेत्र में, दोनों स्तनों के बीच में व त्रिभुज की चोटी पीछे वाले अनाहत बिंदु पर होती है। जब सांस को छोड़ते हुए, सिर को नीचे झुकाते हुए व कन्धों को आगे की ओर मोड़ते हुए छाती को अन्दर की ओर संकुचित किया जाता है; तब त्रिभुज की आधार भुजा कंधे की एक तरफ की उभार वाली हड्डी से लेकर दूसरी तरफ की उभार वाली हड्डी तक होती है, और आगे का अनाहत चक्र त्रिभुज की टिप के रूप में होता है।
इसके 12 पीटल में से 6 तो मणिपुर चक्र से आती हैं (ऊपर की ओर संकुचन के माध्यम से)। 2 आगे की आधार भुजा से, 2 पीछे की आधार भुजा से, तथा एक-2 पीटल दोनों चक्रों की अपनी है। वैसे मुझे एक अकेला, व छोटा त्रिभुज भी आसान लगा, जिसकी आधार भुजा हृदय से लेकर आगे वाले अनाहत चक्र तक ही है।
विशुद्धि चक्र पर भी उल्टा त्रिभुज
विशुद्धि चक्र पर उल्टा त्रिभुज है। जहां गले में संकुचन जैसा (आवाज वाले स्थान पर) होता है, वहां पर त्रिभुज की चोटी है। यह आगे वाला चक्र है। त्रिभुज की आधार भुजा गर्दन के मेरुदंड पर लम्बाई व चौड़ाई वाले भाग के लगभग बीचोंबीच है। इस भुजा के केंद्र में पीछे वाला चक्र है। दर्पण में देखने पर गले का वह क्षेत्र उल्टे त्रिभुज की तरह दिखता भी है, विशेषतः जब उड्डीयान बंध पूरा लगा हो। आगे वाले चक्र की ऊपर की ओर सिकुड़न से व उड्डीयान बंध से कुण्डलिनी पीछे वाले चक्र तक ऊपर चढ़ती रहती है। इसकी 16 पीटल में से 12 तो अनाहत चक्र से आती हैं, दो आज्ञा चक्र से, व अंतिम दो इस चक्र के अपने क्षेत्र से आती हैं।
आज्ञाचक्र के त्रिभुज की आधार भुजा दोनों आँखों के बीच में
आज्ञा चक्र पर उल्टी त्रिभुज है। इसका भी पूर्ववत यही अर्थ है कि इसकी आधार भुजा दाईं आँख से बाईं आँख के बीच में है, और यह पीछे के आज्ञा चक्र (सिर के पिछले भाग में, आगे के आज्ञा चक्र के ठीक अपोसिट बिंदु) पर प्वाइंट करती है। इसके दो पीटल में से एक दाईं आँख वाले क्षेत्र से, व एक बाईं आँख वाले क्षेत्र से आती हैं।
मस्तिष्क स्वयं नाड़ी-रेखाओं से भरा हुआ, इसलिए सहस्रार चक्र पर कोई त्रिभुज नहीं
सहस्रार चक्र पर कोई त्रिभुज नहीं है, क्योंकि इसमें ध्यान करने के लिए किसी विशेष रेखा-चित्र की आवश्यकता नहीं है। कहीं पर भी ध्यान किया जा सकता है, और सीधा चक्र-बिंदु पर भी। इसके हजारों पीटल का अर्थ है कि इसके पोषण के लिए लिए पूरे मस्तिष्क सहित पूरे शरीर की भावनामय ऊर्जा पहुंचती है। शरीर के किसी भी भाग पर या चक्र पर ध्यान कर लो, अंततः वह सहस्रार चक्र को ही पुष्ट करता है।
चक्रों के वृत्त कुण्डलिनी-किसान के गोल खेत की तरह
वैसे तो किसी भी चक्र पर षटकोण के रेखा चित्र पर कुण्डलिनी का ध्यान किया जा सकता है। कई चक्रों पर तो वृत्त (गोलाकार रेखाचित्र) भी बनाए गए हैं। इसका यह अर्थ है कि कुण्डलिनी का ध्यान गोलाकार क्षेत्र में भी किया जा सकता है, एक गोलाकार खेत को जोतते हुए किसान की तरह।
सम्भोगीय चक्रों का त्रिभुज बहुत प्रभावशाली
मैं यहाँ एक उदाहरण देकर स्पष्ट करना चाहता हूँ, की त्रिभुजाकार रेखाचित्र से ध्यान करना कितना आसान और प्रभावशाली हो जाता है। यहाँ मैं सबसे नीचे के सम्भोगीय चक्रों की बात करने जा रहा हूँ। अधिकांशतः इनका ध्यान इकट्ठे रूप में ही होता है, अलग-२ नहीं। जालंधर बंध से ऊपर का प्राण आगे के स्वाधिष्ठान चक्र पर आरोपित हो जाता है। मूलाधार के संकुचन से भी नीचे का प्राण वहां पहुँच जाता है। इससे कुण्डलिनी वहां पर दमकने लगती है। तभी वहां पर पीठ की तरफ को एक संकुचन सा अनुभव होता है। उससे जननांग शिखा से लेकर, कुण्डलिनी के साथ प्राण पीछे के स्वाधिष्ठान चक्र पर केन्द्रित हो जाता है। थोड़ी देर बाद वहां की मांसपेशी थक कर शिथिल हो जाती है, जिससे प्राण मूलाधार तक नीचे उतर जाता है। फिर मूलाधार संकुचित किया जाता है, जिससे प्राण फिर आगे वाले स्वाधिष्ठान चक्र तक ऊपर चढ़ जाता है। वही क्रम पुनः-२ दोहराया जाता है, और कुण्डलिनी उस त्रिभुज पर चक्राकार घूमती रहती है, हर बार अपनी चमक बढ़ाते हुए।
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