कुंडलिनी योग में लेखन का महत्त्व

दोस्तो, पिछली पोस्ट में मैं बता रहा था कि कैसे कुंडलिनी प्रेम की भूखी होती है। आध्यात्मिक शास्त्रों में भगवान भी तो प्रेम के ही भूखे बताए जाते हैं। दरअसल भगवान वहाँ कुंडलिनी को ही कहा गया है। साथ में मैं बता रहा था कि कैसे आजकल की पीढ़ी असंतुलित होती जा रही है। इलेक्ट्रॉनिक वीडियोस, सोशल मीडिया और गेम्स के लिए उनके पास समय भी बहुत है, और संसाधन भी। पर इलेक्ट्रॉनिक बुक्स, वैबपोस्टस और चर्चाओं के लिए न तो समय है, और न ही संसाधन। इनके भौतिक या कागजी रूपों की बात तो छोड़ो, क्योंकि वे भी अपनी जगह पर जरूरी हैं। यदि ये आध्यात्मिक प्रकार के हैं, तब तो बिल्कुल भी नहीं। एकबार एक जानेमाने पुस्तक विक्रेता की दुकान पर उसके मालिक से मेरी इस बात पर संयोगवश चर्चा चल पड़ी थी। बेचारे कह रहे थे कि इलेक्ट्रॉनिक गेजेट्स ने उनकी दुकान पर पुस्तकों की बिक्री बहुत कम कर दी है। फिर भी उनके संतोष व उनकी सहनशीलता को दाद देनी पड़ेगी जो कह रहे थे कि बच्चों को बड़े प्यार से ही मोबाइल फोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक गेजेट्स से दूर रखना चाहिए, डांट कर नहीं। डांट से वे कुण्ठा औऱ हीनता से भर जाएंगे। डांटने से अच्छा तो उनको इनका प्रयोग करने दो, वे खुद सीखेंगे। यहाँ हम किसी चीज को ऊंचा या नीचा नहीं दिखा रहे हैं। हम तो यही कह रहे हैं कि संतुलित मात्रा में सभी मानवीय चीजों की जरूरत है। संतुलन ही योग है, संतुलन ही अध्यात्म है।

असली लेखक अपने लिए लिखता है

मैं हमेशा अपने बौद्धिक विकास के लिए लिखने की कोशिश करता रहता हूँ। जो असली लेखक होता है, वह औरों के लिए नहीं, अपने लिए लिखता है। लेखन से दिमाग को एकप्रकार से एक्सटर्नल हार्ड डिस्क मिल जाती है, डेटा को स्टोर करने के लिए। इससे दिमाग का बोझ कम हो जाने से वह ज्यादा अच्छे से सोच-समझ सकता है। आपको तो पता ही है कि कुंडलिनी योग के लिए चिंतन शक्ति की कितनी अधिक जरूरत है। केंद्रित या फोकस्ड चिंतन ही तो कुंडलिनी है। उस लेखन को कोई पढ़े तो भी ठीक, यदि न पढ़े तो भी ठीक। अपने जिस लेखन से आदमी खुद ही लाभ नहीं उठा सकता, उससे दूसरे लोग क्या लाभ उठाएंगे। अपने फायदे के साथ यदि दुनिया का भी फायदा हो, तो उससे बढ़िया क्या बात हो सकती है। आप मान सकते हो कि मेरे आध्यात्मिक अनुभवों में मेरे लेखन का अप्रतिम योगदान है। कई बार तो लगता है कि यदि मुझे लेखन की आदत न होती, तो वे अनुभव होते ही न। आजकल ईबुक्स की कीमतें बढ़ा-चढ़ा कर रखने का रिवाज सा चला है। पर सच्चाई यह है कि उन पर लेखक के भौतिक संसाधन खर्च नहीं होते, जैसे कि कागज, पैन आदि। सैल्फ पब्लिशिंग से पब्लिशिंग भी निःशुल्क उपलब्ध होती है। केवल लेखक की बुद्धि ही खर्च होती है। पर बुद्धि तो खर्च होने से बढ़ती है। किताब की कीमत तो बुद्धि व अनुभव के रूप में अपनेआप मिल ही जाती है, तब पैसे की कीमत किस बात की। कहते भी हैं कि विद्या खर्च करने से बढ़ती है। इसीलिए पुराने जमाने में आध्यात्मिक सेवाएं निःशुल्क या नो प्रोफिट नो लॉस पर प्रदान की जाती थीं। सशुल्क ईबुक्स को बहुत कम पाठक मिलते हैं। निःशुल्क पुस्तकों को खरीदने व बेचने के लिए गूगल प्ले बुक्स और पीडीएफ ड्राइव डॉट नेट बहुत अच्छे प्लेटफॉर्म हैं। पिछले एक साल के अंदर गूगल प्ले बुक्स पर मेरी नौ हजार पुस्तकें शून्य मूल्य पर बिक गई हैं। इन पुस्तकों में भी सबसे ज्यादा बिक्री इस वेबसाइट की सभी ब्लॉग पोस्टस को इकट्ठा करके बनाई गई पुस्तकों की हुई है। यदि उनकी कीमत रखी होती तो शायद नौ भी न बिकतीं। यह इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि एक अन्य प्लेटफार्म पर इन पुस्तकों के पेड वेरशन्स (न्यूनतम मूल्य पर) भी हैं, वहाँ तो लगभग नौ ही बिकी हैं। गूगल प्ले बुक्स पर भी एक बार पुस्तकों का न्यूनतम मूल्य रखकर प्रयोग किया था, तब भी दो या तीन महीनों में केवल 4-5 प्रतियां ही बिक पाई थीं। अपने लेखन के प्रति पाठकों की रुचि से जो संतोष प्राप्त होता है, वह पैसे से प्राप्त नहीं होता। 

इड़ा औऱ पिंगला नाड़ी अर्धनारीश्वर को इंगित करते हैं

अपने पिछले लेखन से मैंने इस हफ्ते यह बात सीखी कि क्यों न अपने आध्यात्मिक अनुभवों का सार्वभौमिक प्रमाण आध्यात्मिक शास्त्रों में भी ढूंढा जाए। इसलिए मैंने स्वामी मुक्तिबोधानन्द की हठयोग प्रदीपिका को पढ़ना शुरु किया। दो दिनों में ही 15% से ज्यादा पुस्तक को पढ़ लिया। इतना जल्दी इसलिए पढ़ पाया क्योंकि जो मैं अपने अनुभवों से लिखता आया हूँ, कमोबेश वही तो था लिखा हुआ। साथ में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की छुट्टी होने के कारण पर्याप्त समय भी मिल गया। सिर्फ दो-चार विचारों में अंतर जरूर था। यदि मैं वह अंतर बताऊंगा, तो यह माना जा सकता है कि आपने भी वह पुस्तक पढ़ ली होगी, क्योंकि आप मेरी पोस्टस शुरु से पढ़ते आ रहे हैं। मैं वह अंतर आने वाली पोस्टों में भी बताता रहूँगा।
उस पुस्तक में लिखा है कि इड़ा नाड़ी पीठ के बाएं भाग से ऊपर चढ़ती है, पर ऊपर जाकर दाईं ओर मुड़कर मस्तिष्क के दाएं गोलार्ध को कवर करती है। पर मुझे तो वह बाएँ मस्तिष्क में ही जाते हुए अनुभव होती है। इसी तरह पिंगला नाड़ी को निचले शरीर के दाएं भाग और मस्तिष्क के बाएं भाग को कवर करते हुए दर्शाया गया है। पर मुझे तो वह दाएं मस्तिष्क में ही जाते हुए दिखती है। अर्धनारीश्वर के चित्र में भी ऐसा ही, मेरे अनुभव के अनुरूप ही दिखाया जाता है। वहाँ तो ऐसा नहीं दिखाया जाता कि शरीर का निचला बायाँ भाग स्त्री का और ऊपरी बायाँ भाग पुरुष का है। हो सकता है कि इसमें कुछ और दार्शनिक या अनुभवात्मक पेच हो।

आध्यात्मिक सिद्धियां बताने से बढ़ती भी हैं

एक अन्य मतभेद यह था कि उस पुस्तक में सिद्धियों को गुप्त रखने की बात कही गई थी। मैं भी यही मानता हूँ कि एक स्तर तक तो गोपनीयता ठीक है, पर उसके आगे नहीं। जब मन जागृति से भर जाए और आदमी क्षणिक जागृति के और अनुभव प्राप्त न करना चाहे, तब अपनी जागृति को सार्वजनिक करना ही बेहतर है। इससे जिज्ञासु लोगों को बहुत कुछ सीखने को मिलता है। ऐसा दरअसल खुद ही होता है। जिस आदमी के पास कम पैसा होता है, और पैसों से मन नहीं भरा होता है, वह उसे छिपाता है, ताकि दूसरे लोग न मांग ले। पर जब आदमी के पास असीमित पैसा होता है, और पैसों से उसका मन भर चुका होता है, तब वह उसके बारे में खुलकर बताता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि उसे पता होता है कि कोई कितना भी ले ले, पर उसका पैसा खत्म नहीं होने वाला। यदि कोई उसका सारा पैसा ले भी ले, तब भी उसे फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि उसका मन तो पैसे से पहले ही भर चुका होता है। बल्कि उसे तो फायदा ही लगता है, क्योंकि जो चीज उसे चाहिए ही नहीँ, उससे उसका पीछा छूट जाता है। वैसे आजकल के वैज्ञानिक व बुद्धिजीवी समाज में आध्यात्मिक सिद्धियां बताने से बढ़ती भी हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि आजकल के पढ़े-लिखे लोग एक-दूसरे की जानकारियों से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ते हैं। मुझे तो लगता है कि यदि मैं अपने प्रथम आध्यात्मिक अनुभव की खुली चर्चा सोशल मीडिया में न करता, तो मुझे जागृति का दूसरा अनुभव न मिलता। पुराने समय के आदिम युग में अनपढ़ता व अज्ञान के कारण सम्भवतः लोग एक-दूसरे से ईर्ष्या व घृणा करते होंगे। इससे वे एक-दूसरे के ज्ञान से प्रेरणा न लेकर एक-दूसरे की टांग खींचकर आपस में एक-दूसरे को गिराते होंगे, तभी उस समय सिद्धियों को छिपाने का बोलबाला रहा होगा। कुंडलिनी के बारे में भी मुझे अधूरी सी जानकारी लगी। इस बारे अगली पोस्ट में बताऊंगा। 

कुण्डलिनी प्रोमोशन

दोस्तों, इस हफ्ते मैं पिछ्ली पोस्ट को संपादित और अपडेट करने में व्यस्त रहा। पिछली पोस्ट का विषय महत्त्वपूर्ण था। उससे बहुत सी गलतफहमियां पैदा हो रही थीं। यदि उन्हें पहले ही दूर किया जाता तो पोस्ट बहुत बड़ी हो जाती। इसलिए पोस्ट की लंबाई और उसके विषय के विस्तार के बीच में संतुलन बनाना पड़ा। मेरे एक मित्र ने उन कमियों की ओर ध्यान दिलाया, इसलिए मैंने उनका नाम सह संपादक के तौर पर डाला है। लेखक की यह जिम्मेदारी बनती है कि उसके द्वारा लिखित विषय से कोई गलतफहमी पैदा न हो।साथ में आज की पोस्ट प्रोमोशनल है। आजकल इस वेबसाइट की सबसे महत्वपूर्ण, आधारभूत और महत्त्वाकांक्षी पुस्तक पर बड़ा भारी डिस्काउंट ऑफर चल रहा है, जो 29 जून को समाप्त हो रहा है। विस्तृत जानकारी के लिए निम्नलिखित प्रोमो चित्र को क्लिक करें।

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ई-बुक के लिए कवर डिजाइनिंग- स्वयम्प्रकाशन का एक मूलभूत आधारस्तम्भ

दोस्तों, यदि अनुभवों को सबके साथ साझा करने की कला न आए, तो उन अनुभवों का विशेष महत्त्व नहीं होता। वे अनुभव उसी अकेले आदमी तक सीमित रह जाते हैं, और उसी के साथ नष्ट हो जाते हैं। भारत में कभी अध्यात्म का परचम लहराया करता था। आध्यात्मिक विद्याएं अपने चरम पर होती थीं। पर समय के साथ उन विद्याओं को साझा करने की प्रवृत्ति पर रोक लगने लगी। उसके बहुत से कारण थे, जिनकी गहराई में मैं जाना नहीं चाहता। धीरे धीरे करके बहुत सी आध्यात्मिक विद्याएं विलुप्त हो गईं। आजकल के समय में वैबसाइट और ई-पुस्तक अनुभवों को साझा करने के सबसे महत्त्वपूर्ण साधन हैं। इसलिए वैबसाइट निर्माण व स्वयम्प्रकाशन की मूलभूत जानकारी सभी को होना जरूरी है। ईपुस्तक का आवरण ईपुस्तक का सबसे महत्वपूर्ण अंग है।

यह नहीं भूलना चाहिए कि कोरोना वायरस लोकडाऊन के कारण ईबुक्स की मांग में बढ़ौतरी हुई है, और आगे भी होगी। पब्लिशिंग हाऊस भी अच्छा डिस्काउंट ऑफर दे रहे हैं। ब्लयू हिल्स पब्लिकेशन वाले भी 50℅ से ज्यादा का डिस्काउंट दे रहे हैं।

ईपुस्तकों का आवरण आकर्षक होना चाहिए

कभी समय था जब लोग बिना आवरण की पुस्तकों को पढ़ा करते थे। उनका मुख्य उद्देश्य पुस्तक की पाठ्य सामग्री होती थी, आवरण नहीं। अब समय बदल गया है। आजकल लोग आवरण की चकाचौंध में पुस्तक की पाठ्य सामग्री को भूल जाते हैं। अनेकों बार उत्कृष्ट किस्म की पुस्तक भी आवरण की कमी से कामयाब होने में बहुत लंबा समय ले लेती है, जबकि निम्नकोटि की पुस्तक भी आवरण की चकाचौंध में जल्दी ही कामयाब हो जाती है। इसका कारण यह नहीं है कि लोगों को निम्न कोटि की पुस्तक से कोई विशेष लाभ मिलता है। असली कारण तो ई पुस्तकों तक पूरे विश्व की पहुंच है। अगर 20 करोड़ पाठकों में से एक लाख लोग भी आवरण की ठगी का शिकार हो गए, तो पुस्तक तो कामयाब हो गई। दूसरा कारण ई पुस्तकों का सस्ता होना है। तीसरा कारण आजकल का भौतिकवाद औऱ जीवन जीने का बाहरी नजरिया है।

केनवा डॉट कॉम मुझे पुस्तक आवरण बनाने वाली सबसे अच्छी वैबसाइट लगी

आपको हैरानी होगी कि मुझे आवरण बनाना सीखने में 3 साल लग गए। केनवा डॉट कॉम ने मेरा वह काम बहुत आसान कर दिया। 3 साल तक मेरी पुस्तकें केडीपी के बने बनाए बुक कवर के सहारे रहीं। हालाँकि वे कवर सुंदर व प्रोफेशनल नहीं लगते। एक पुस्तक का कवर मैंने एडोबे डॉट कॉम के फोटो एडिटर पर बनाया। उसमें सभी काम खुद करने होते थे, जैसे कि फ़ोटो पर टेक्स्ट लिखना और उसे मनचाहा एडिट करना। वह भी प्रोफेशनल नहीं लगा। एक दूसरी पुस्तक की कवर फोटो पर एडोबे से तितली, फूल आदि चिपकाए। उस फोटो को केनवा डॉट कॉम पर एक बैकग्राउंड प्लेन पेपर पर चिपका दिया। मैं केनवा डॉट कॉम की कार्यप्रणाली को समझ नहीं पा रहा था। केनवा को समझने का मौका मुझे तब मिला जब मैंने 6000 रुपये देकर अपनी एक पुस्तक के लिए ब्लयू हिल्स पब्लिकेशन से बुक कवर बनवाया और पुस्तक को प्रोमोट करवाया। पब्लिशर ने मेरी बाकि की 8 पुस्तकें देखकर कहा कि उनके बुक कवर प्रोफेशनल नहीं लग रहे थे। वैसे भी कुछ पाने के लिए कुछ खोना तो पड़ता ही है।

केनवा डॉट कॉम पर कवर डिजाइनिंग कैसे करें

सबसे पहले वैबसाइट पर अपना अकाउंट बनाओ औऱ लॉग इन करो। होम पर जाओ। यहां ऑल योवर डिजाइन में आपके पहले के बनाए सभी डिजाइन होंगे। एक कस्टम डाइमेंशन का बटन होता है। इसमें हम किसी भी साईज (पिक्सेल लंबाई बाय पिक्सल चौड़ाई) का कवर बना सकते हैं। यह इसलिए जरूरी है क्योंकि हरेक स्वयम्प्रकाशन के प्लेटफार्म पर अलग आकार की डिमांड होती है। केडीपी, किंडल डायरेक्ट पब्लिशिंग पर 2500 बाय 1600 पिक्सेल आकार की जेपीजी इमेज पर स्वीकार्य होती है। यदि ईबुक कवर वाले दूसरे ऑप्शन पर क्लिक किया जाए तो छोटे आकार की कवर (लगभग 800 बाय 200 पिक्सेल) बनती है। उसका साईज फिर अलग सॉफ्टवेयर से बढ़ाना पड़ता है। मुझे इसके लिए इमेजरिसाईज डॉट कॉम सर्वोत्तम व आसान लगा। ईबुक कवर या कस्टम डाइमेंशन बटन को क्लिक करके एक ड्रॉप डाऊन मीनू खुलता है। उस पर सबसे ऊपर टेम्पलेट बटन है। उससे पुस्तकों के सैंकड़ों किस्म के बने बनाए डिज़ाइन खुलते हैं। मनपसंद डिज़ाइन के टेम्पलेट पर क्लिक करने से वह दाईं तरफ की वर्किंग विंडो में आ जाती है। लेफ्ट ड्रॉपडाउन मीनू से अपलोड बटन दबाने से आपके द्वारा अपलोड की गई सभी फ़ोटो दिखेंगी। अपलोड एन इमेज पर क्लिक करके कम्प्यूटर से मनचाही फोटो को अपलोड करें। उस फ़ोटो को माऊस के लेफ्ट बटन से ड्रेग करके वर्किंग विंडो की सेलेक्टिड टेम्पलेट पर ड्रॉप कर दें। सीधा ड्रॉप करने से वह टेम्पलेट के बैकग्राउंड पर चिपक जाएगी। उस फोटो को छोटा या बड़ा किया जा सकता है। उस फोटो को टेम्पलेट का बैकग्राउंड बनाने के लिए ड्रैग की गई फोटो को माऊस से टेम्पलेट पर इधर-उधर चलाओ। एक पोजीशन पर टेम्पलेट के बॉर्डर ग्रीन से हो जाएंगे और फोटो पूरी टेम्पलेट पर फैलकर उसके बैकग्राउंड के रूप में हाईलाइट होने लगेगी। वहां पर माऊस को छोड़कर उस फोटो को ड्रॉप कर दो। इससे वह फोटो टेम्पलेट का बैकग्राउंड बन जाएगी। नीचे दी गई इमेज में पॉलीहाउस वाली फ़ोटो बैकग्राउंड का काम कर रही है। हालांकि टेम्पलेट के हैडिंग, सब-हैडिंग आदि सभी टेक्स्ट, मुख्य लाईनें व बॉक्स आदि वैसे ही रहेंगे। आप इन सभी विजुअल एलिमेंट्स को मनचाहे तरीके से एडिट कर सकते हो या उन्हें हटा सकते हो। आप अपनी पसंद का टैक्स्ट भी जोड़ सकते हो।आप टैक्स्ट के अक्षरों का आकार व उनकी बनावट भी बदल सकते हो। आप टेम्पलेट की ऐसी खाली जगह पर भी टैक्स्ट जोड़ सकते हैं, जहाँ पहले से टैक्स्ट नहीं है। ये सभी सुविधाएं मुफ्त में मिलती हैं। इसमें कवर डिजाइन की विजुअल क्वालिटी बेसिक होती है। पैसे देकर सब्सक्राइब करने पर आपको आपके अपने द्वारा बनाया गया कवर डिज़ाइन हाई डेफिनिशन क्वालिटी में डाऊनलोड करने को मिलता है। इसी तरह से, पैसे देकर बहुत सारी अच्छी टेम्पलेट मिलती हैं। 

केनवा पर फोटो डिजाइनिंग के सभी काम किए जा सकते हैं

केनवा पर लोगो, ब्लॉग बैनर, फेसबुक पोस्ट, इंस्टाग्राम फ़ोटो, लोगो, पोस्टर, कार्ड आदि सभी कुछ बनाया जा सकता है। ब्लॉग बैनर वैबसाइट के पेज या पोस्ट की फीचर्ड इमेज को कहते हैं। लोगो वैबसाइट या फेसबुक पेज के शुरु में एक छोटी सी गोलाकार फोटो के रूप में होता है। केनवा पर फोटो बैकग्राउंड को ट्रांसपेरेंट भी किया जा सकता है, पर शायद पेड सब्सक्रिप्शन के साथ। मोबाइल के लिए केनवा एप भी उपलब्ध है।

केनवा पर डिजाइन किया गया मेरी ईबुक का कवर


केनवा डॉट कॉम पर बने मेरे सभी ईबुक कवर्स को देखने के लिए कृपया इस लिंक पर क्लिक करें।

बच्चों में कुण्डलिनी

कहते हैं कि बच्चे भगवान् का रूप होते हैं। इसके पीछे बहुत से कारण हैं। परन्तु सबसे प्रमुख व मूल कारण कुण्डलिनी से सम्बंधित है। कुण्डलिनी बच्चों का मूल स्वभाव है। वास्तव में, कुण्डलिनी की खोज बच्चों ने ही की है। बड़ों ने तो उस खोज को केवल कागज़ पर उकेरा ही है। बड़ों ने बच्चों के इस मूल स्वभाव की नक़ल करके बहुत सी मैडिटेशन तकनीकों को ईजाद किया है। बड़ों ने बच्चों के इस मूल स्वभाव की नक़ल करके बहुत सी योग-सिद्धियाँ प्राप्त की हैं। परन्तु हैरानी की बात यह है कि बच्चों के इस मूल स्वभाव को बहुत कम श्रेय दिया जाता है। अहंकार के आश्रित अधिकाँश लोग सारा श्रेय स्वयं बटोरना चाहते हैं। आज हम इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से बच्चों को उनका असली हक़ दिलाने की कोशिश करेंगे।

बच्चे स्वभाव से ही अद्वैतवादी होते हैं

बच्चे केवल अनुभव करना जानते हैं। वे अनुभव का पूरा मजा लेते हैं। वे गहराई में नहीं जाते। वे जजमेंट नहीं करते। इसलिए उन्हें सभी कुछ एक जैसा ही प्रतीत होता है। उनकी नजर में लोहा, पत्थर व सोना एकसमान हैं। विपासना साधना के ये मूलभूत गुण हैं। इससे सिद्ध होता है कि बच्चों में स्वयं ही विपासना होती रहती है। विपासना उनका स्वभाव है।

बच्चे स्वभाव से ही कुण्डलिनी प्रेमी होते हैं

यह हम पहले भी विविध प्रमाणों से अनेक बार सिद्ध कर चुके हैं कि विपासना (साक्षी भाव)/अद्वैत व कुण्डलिनी साथ-२ रहते हैं। क्योंकि बच्चे स्वभाव से ही अद्वैतवादी होते हैं, अतः यह स्वयं ही सिद्ध हो जाता है कि बच्चे स्वभाव से ही कुण्डलिनी योगी होते हैं। इसी वजह से ही तो बच्चे किसी एक चीज के दीवाने हो जाते हैं। यदि वे किसी ख़ास खिलौने को पसंद करते हैं, तो रात-दिन उसी के पीछे लग जाते हैं। इसी तरह, यदि बच्चे किसी एक आदमी के दीवाने हो जाते हैं, तो उसी पर अपना सब कुछ लुटाने को तैयार हो जाते हैं। हालांकि इससे वे कई बार बड़ों के धोखे का शिकार भी बन जाते हैं। योग-ऋषि पतंजलि भी तो यही कहते हैं कि “यथाभिमतध्यानात् वा”; अर्थात अपनी किसी भी मनपसंद चीज के निरंतर ध्यान से योग सिद्ध होता है।

सर्वप्रिय वस्तु के रूप में कुण्डलिनी

यही सबसे पसंदीदा चीज ही तो कुण्डलिनी है, जो निरंतर मन में बसी रहती है। एक बात और है। जब बच्चा कोई नयी चीज पसंद करने लगता है, तब वह अपनी पुरानी पसंदीदा चीज को छोड़ देता है। फिर वह उसी एक नयी चीज का दीवाना बन जाता है। वह एक से अधिक चीजों या लोगों से एकसाथ प्यार नहीं कर पाता। कुण्डलिनी योगी का भी यही प्रमुख लक्षण है। योगी भी लम्बे समय तक, यहाँ तक कि जीवनभर भी एक ही चीज का ध्यान करते रहते हैं, जो उनकी कुण्डलिनी बन जाती है।

प्रेम कुण्डलिनी की खुराक के रूप में

प्रेम से कुण्डलिनी को बल मिलता रहता है। तभी तो देखने में आता है कि बच्चे प्रेम की ओर सर्वाधिक आकृष्ट होते हैं।

बच्चों का मोबाईल फोन-प्रेम भी कुण्डलिनी-प्रेम ही है

आजकल बच्चे हर समय मोबाईल फोन से चिपके रहते हैं। यह बच्चों का दोष नहीं है। यह उनका कुण्डलिनी-स्वभाव है, जो उन्हें एक चीज से चिपकाता है। उन्हें अच्छे-बुरे का भी अधिक ज्ञान नहीं होता। इसलिए बच्चों की भलाई के लिए समाज को ऐसी चीजें बनानी चाहिए, जो पूरी तरह से दुष्प्रभाव से मुक्त हों। एक उपाय यह भी है कि बच्चों को प्रेम से ऐसी चीजों के दुष्प्रभाव के बारे में बाताया जाए। उन्हें प्यार से समझाना चाहिए या अपने साथ दूसरे कामों/खेलों/घूमने-फिरने में मित्र की तरह व्यस्त रखना चाहिए। यदि बच्चों के सामने नफरत से भरा हुआ द्वैतभाव प्रकट किया जाएगा, तब तो उनका कुण्डलिनी-गुण नष्ट ही हो जाएगा, और साथ में उनका बचपन भी।

बच्चे मन के भावों को पढ़ लेते हैं

बड़े लोग चाहे जितना मर्जी छुपाने की कोशिश कर लें, बच्चे उनके मन के भाव को पढ़ ही लेते हैं। यह शक्ति कुदरत ने उन्हें आत्मरक्षा के लिए दी है। इसी शक्ति से तो वे किसी आदमी को अच्छी तरह से पहचान कर उसके जी-जान से दीवाने हो जाते हैं, जिससे कुण्डलिनी विकास होता है। वैसे भी बच्चों में कुण्डलिनी आसानी से बन जाती है, क्योंकि उनका दिमाग खाली होता है। तभी तो देखा जाता है कि कई बार अच्छे-खासे घर के बच्चे बिगड़ जाते हैं। वास्तव में, उस घर के लोग बाहर से तो अच्छे होते हैं, पर उनके मन के भाव अच्छे नहीं होते। बच्चे उन मनोभावों से गलत आदतें सीख लेते हैं। इसके उलट, कई बार बुरे घर के बच्चे बहुत अच्छे बनते हैं। वास्तव में, उस घर के लोग बाहर से बुरे प्रतीत होते हैं, पर उनके मन के भाव अच्छे होते हैं। सबसे बेहतर यह है कि मन के अन्दर व बाहर, दोनों स्थानों पर अच्छे बन कर रहा जाए। यदि अपने काम में उन्हें भी भागीदार बनाया जाए, तो वे स्वयं ही सीख जाते हैं। कई बार वे सीखने-सिखाने के नाम से ही चिढ़ जाते हैं।  

बच्चों में कुण्डलिनी सक्रिय होती है, पर वे उसे जागृत नहीं कर पाते

कुण्डलिनी को जागृत करने के लिए बच्चों को कम से कम किशोरावस्था का इन्तजार करना ही पड़ता है। उस आयु में शरीर को यौनशक्ति मिलनी शुरू हो जाती है। यदि उस यौनशक्ति का प्रबंधन सही ढंग से हो जाए, तो वह कुण्डलिनी को मिलने लग जाती है, जिससे कुण्डलिनी आसानी से जाग सकती है। कईयों को दिव्य व अनुकूल परिस्थितियाँ मिलने से यह काम स्वयं हो जाता है, जैसा कि प्रेमयोगी वज्र के साथ हुआ। कईयों को विशेष प्रयास करना पड़ता है।

प्रेमयोगी वज्र का कुण्डलिनी अनुभव

बचपन में वह कुण्डलिनी के प्रति तो आम बच्चों की तरह ही आकृष्ट होता था। यद्यपि किशोरावस्था में उसे दिव्य व अनुकूल परिस्थितियाँ मिलीं, जिनसे उसकी यौनशक्ति उसकी कुण्डलिनी को मिलती रही। वह यौनशक्ति इतनी अधिक मजबूत थी कि उसकी कुण्डलिनी ने जागृत हुए बिना ही उसे क्षणिक आत्मज्ञान करा दिया। उसके बाद तो वह पूरी तरह से एक बच्चे के जैसा बन गया। हर समय उसके मन में कुण्डलिनी वैसे ही बसी रहती थी, जैसे कि एक बच्चे के मन में कोई खिलौना या विशेष प्रेमी। अधिकाँश लोग उसका मजाक जैसा बनाया करते थे। कई तो कभी-२ दुर्व्यवहार पर भी उतर आते थे। वास्तव में, सभी लोग अपने झूठे अहंकार पर लगी चोट को बर्दाश्त नहीं कर पाते।

दूसरी बार उसने क्षणिक कुण्डलिनी जागरण को कृत्रिम योग तकनीक से प्राप्त किया, कुछ यौनयोग की सहायता लेकर। यह सारा वृत्तांत हिंदी में बनी पुस्तक “शरीरविज्ञान दर्शन” में, व अंग्रेजी में लिखी पुस्तक “love story of a Yogi” में वर्णित है, जो इस वैबसाईट के पेज “शॉप” पर उपलब्ध हैं। इसके अतिरिक्त, यदि कोई कुण्डलिनी प्रेमी इस वैबसाईट की सभी कुण्डलिनी से सम्बंधित ब्लॉग पोस्टों को किनडल ईबुक के रूप में आसानी से व एकसाथ पढ़ना चाहे, तो सभी का संग्रह भी पुस्तक रूप में इसी वैबपेज पर उपलब्ध है। उसके हिंदी-रूप का नाम “कुण्डलिनी विज्ञान- एक आध्यात्मिक मनोविज्ञान” व अंग्रेजी-रूप का नाम “kundalini science- a spiritual psychology” है।

आदर्श बचपन तो केवल जीवन के साथ अपनाए जाने योग्य सही दृष्टिकोण के बारे में बताता है, न कि जीवन के वास्तविक अनुभवों को दर्शाता है। जीवन जीने का तरीका तो मानवीय रूप से सामाजिक जीवन को लम्बे समय तक जीने से प्राप्त व्यावहारिक अनुभवों के माध्यम से ही सीखने में आता है। इसलिए बड़े और बच्चे आपस में प्रेमपूर्ण व्यवहार से एक-दूसरे की मदद वैसे ही करते हैं, जैसे कि एक अँधा और एक लंगड़ा।

बच्चों में कोई बुराई नहीं होती है और वे बड़े होते हुए अपने आसपास से बुराई सीखते हैं।

रिसर्च में भी हुआ साबित, ‘भगवान का रूप’ होते हैं बच्चे

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ओसीआर, ऑप्टिकल रिकोग्निशन सिस्टम, आधुनिक प्रकाशन के लिए एक वरदान

कुण्डलिनी और लेखन कला एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं

पाठक सोचते होंगे कि कुण्डलिनी-वैबसाईट में स्वयंप्रकाशन व वेबसाईट-निर्माण के विषय किस उद्देश्य से डाले गए हैं।  वास्तव में कुण्डलिनी-साधक को स्वयंप्रकाशन का व वेबसाईट-निर्माण का भी व्यावहारिक अनुभव होना चाहिए।  ऐसा इसलिए है, क्योंकि कुण्डलिनी-क्रियाशीलता या कुण्डलिनी-जागरण के बाद दिमाग में मननशीलता की बाढ़ जैसी आ जाती है।  उस स्थिति में व्यक्ति एक उत्कृष्ट पुस्तक व वेबसाईट का निर्माण कर सकता है।  साथ में, इससे वह खालीपन की नकारात्मकता से भी बच सकता है। प्रेमयोगी वज्र के साथ भी ऐसा ही हुआ।

मैं ओसीआर तकनीक तक कैसे पहुंचा

ओसीआर (ocr) तकनीक से मेरा सामना तब हुआ, जब मैं अपने पिता द्वारा लिखित लगभग सात साल पुरानी एक कागजी पुस्तक का ई-पुस्तक वाला रूप बनाने का प्रयत्न कर रहा था। पुस्तक का नाम था ‘सोलन की सर्वहित साधना’। सौभाग्य से उस पुस्तक की सॉफ्ट कोपी प्रकाशक के पास मिल गई। इससे मैं पुस्तक को स्कैन करने से बच गया। साथ में, संभवतः सॉफ्ट कोपी से बनाई गई ई-पुस्तक में कम अशुद्धियाँ होती हैं। वह पुस्तक पीडीएफ फोर्मेट में थी। पहले तो मैं ऑनलाईन पीडीएफ कन्वर्टर की सहायता लेने लगा। मैंने कई प्रकार के कन्वर्टर को ट्राय करके देखा, गूगल ड्राईवर के कन्वर्टर को भी। परन्तु सभी में जो वर्ड फाईल कन्वर्ट होकर आ रही थी, उसके अक्षर तो पूर्णतया दोषपूर्ण थे। वह हिंदी पुस्तक तो कोई चाइनीज पुस्तक लग रही थी। फिर पीडीएफ एलीमेंट का प्रयोग किया। उसमें मुफ्त के प्लान में कुछ ही पेज एक्सट्रेक्ट करने की छूट थी। पेज तो पीडीएफ फाईल से वर्ड फाईल को एक्सट्रेक्ट हो गए थे, पर उन पृष्ठों में पट्टियों, फूलों आदि से सजावट जस की तस बनी हुई थी। वे सजावट की चीजें मुझसे रिमूव नहीं हो रही थीं। कुछ हो भी रही थीं, पर सभी नहीं। अक्षरों की गुणवत्ता भी अधिक अच्छी नहीं थी। मैंने सोचा कि शायद खरीदे जाने वाले प्लान से कोई बात बन जाए। परन्तु जब उसकी कीमत देखी, तो मैं एकदम पीछे हट गया। क्योंकि उसकी न्यूनतम सालाना कीमत लगभग 3000-4000 रुपए की थी।

मुफ्त में उपलब्ध ऑनलाईन फाईल कन्वर्टर से मुझे बहुत सहायता मिली

कई महीनों तक मेरी योजना ठन्डे बस्ते में पड़ी रही। फिर जब मुझे कुछ खाली समय प्राप्त हुआ, तब मैंने गूगल पर सर्च किया। ओसीआर तो मैंने पहले भी पढ़ रखा था, पर मुझे कभी भी पूरी तरह से समझ नहीं आया था। फिर मुझे एक वेबपोस्ट में पता चला कि उसके लिए पुस्तक को स्कैन करना पड़ता है, ताकि पुस्तक का प्रत्येक पृष्ठ एक अलग चित्र के रूप में आ जाए। जैसे ही मैं पुस्तक के स्कैन की तैयारी कर रहा था, वैसे ही मुझे पता चला कि यदि पुस्तक पीडीएफ फाईल के रूप में उपलब्ध हो, तो उसे सीधे ही चित्र-फाईल के रूप में कन्वर्ट किया जा सकता है। मैंने गूगल पर ‘पीडीएफ इमेज एक्सट्रेक्शन’ से सर्च करके बहुत से ऑनलाईन कन्वर्टर ट्राय किए। उनमें मुझे स्मालपीडीएफडॉटकोम पर उपलब्ध कन्वर्टर सर्वोत्तम लगा। मैंने उसमें एक ही बार में सारी बुक-फाईल अपलोड कर दी। कनवर्शन के बाद सारी बुक-फाईल डाऊनलोड कर दी। उससे कम्प्यूटर के डाऊनलोड फोल्डर में सारी बुक-फाईल क्रमवार चित्रों के रूप में आ गई। सभी चित्र एक जिपड (कंप्रेस्ड) फोल्डर में थे। उस फोल्डर को अन्जिप (विनजिप आदि सोफ्टवेयर से) करने से सभी चित्र एक साधारण फोल्डर में आ गए।

हिंदी भाषा के लिए काम करने वाले कम ही ओसीआर उपलब्ध हैं

फिर मैं उन चित्रों को वर्ड डोक में कनवर्ट करने वाले सोफ्टवेयर (ओसीआर) को गूगल में खोजने लगा। बहुत से ओसीआर ऐसे थे, जो हिंदी भाषा की सुविधा नहीं देते थे। अंत में मुझे वैबसाईट http://www.i2ocr.com पर उपलब्ध ऑनलाईन ओसीआर सर्वोत्तम लगा। वह निःशुल्क था। मैं बुक-चित्रों वाला फोल्डर एकसाथ अपलोड करने की कोशिश कर रहा था, पर नहीं हुआ। फिर मैंने सभी चित्रों को सेलेक्ट करके, सभी को एकसाथ अपलोड करने का प्रयास किया। पर वह भी नहीं हुआ। फिर मुझे एक वेबपोस्ट में पता चला कि बैच एक्सट्रेक्शन वाले ओसीआर कमर्शियल होते हैं, व मुफ्त में उपलब्ध नहीं होते। अतः मुझे एक-२ करके चित्रों को कन्वर्ट करना पड़ा। चित्रों की तरह ही कन्वर्ट हुई डोक फाईलें भी क्रमवार रूप में डाऊनलोड फोल्डर में आ गईं।

इमेज एक्सट्रेक्शन से बनाई गई वर्ड-फाईल की फोर्मेटिंग

फिर मैंने क्रम के अनुसार सभी डोक फाईलों को एक अकेली डोक फाईल में कोपी-पेस्ट कर दिया। पर डोक फाईल में अक्षरों की छोटी-बड़ी लाईनें थीं, जो जस्टिफाई एलाईनमेंट में भी ठीक नहीं हो रही थीं। फिर मैंने एक वैबपोस्ट में पढ़ा कि एमएस वर्ड के फाईन्ड-रिप्लेस के फाईन्ड सेक्शन में ^p (^ चिन्ह कीबोर्ड की शिफ्ट व 6 नंबर वाली की को एकसाथ दबाने से छपता है) को टाईप करें, व रिप्लेस में खाली सिंगल स्पेस डालें। ‘रिप्लेस आल’ की कमांड से सब ठीक हो जाता है। वैसा ही हुआ। इस तरह से वह ई-पुस्तक तैयार हुई।

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि यदि बहुत सारी छोटी वर्ड फ़ाइलों को एक साथ जोड़ा जाना है, तो एमएस वर्ड के ‘इंसर्ट’ की मदद ली जानी चाहिए। ‘इंसर्ट’ बटन पर क्लिक करने पर बने ‘ऑब्जेक्ट’ बटन पर क्लिक करें, और इसके कोने पर बने त्रिकोण पर क्लिक करें। अब ड्रॉपडाउन मेनू पर ‘फ़ाइल फ्रॉम टेक्स्ट’ पर क्लिक करें। एक नया ब्राउज़-विंडो पॉप अप होगा। उस पर वर्ड फ़ाइलों का चयन करें, जिन्हें क्लब किया जाना है। ध्यान रखें कि चयन के क्रम में फ़ाइलों को क्लब किया जाएगा। इसका मतलब है, चयनित समूह में पहली फ़ाइल संयुक्त वर्ड फ़ाइल में पहले आएगी और इसी तरह। मैं एक बार में अधिकतम 10 फ़ाइलों को क्लब करने की सलाह देता हूं क्योंकि मुझे लगता है कि यदि बड़ी संख्या में फ़ाइलों को एक साथ चुना जाता है तो यह सिस्टम त्रुटि पैदा कर सकता है। पर वास्तव में कन्वर्ट होने के बाद कई फाईलें वर्ड फोर्मेट में डाऊनलोड नहीं हो रही थीं। मैं हिंदी भाषा की फाईल को ओसीआर कर रहा था। टेक्स्ट फोर्मेट में वे फाईलें डाऊनलोड हो रही थीं। हालांकि टेक्स्ट फोर्मेट वाली फाईल नोटपैड में ही खुल रही थीं, वर्डनोट में नहीं। टेक्स्ट फाईलों में डाऊनलोड करने का यह नुक्सान है कि उन्हें वर्ड फाईलों की तरह इन्सर्ट-ओब्जेक्ट आदि कमांड देकर एकसाथ क्लब नहीं किया जा सकता। सबको अलग-२ कोपी-पेस्ट करना पड़ता है।

फाईनल फाईल करेक्शन

उस पुस्तक में कई जगह दो अक्षर जुड़े हुए थे। जैसे कि मूल पुस्तक के ‘फल का’ शब्दों का ‘फलका’ बन गया था। थोड़ी सी मेनुअल करेक्शन से सब ठीक हो गया। कागजी पुस्तक को सामने रखकर उपयुक्त स्थानों पर पेजब्रेक, लाइनब्रेक, हैडिंग शेप आदि दिए गए, ताकि ई-पुस्तक पूर्णतः मूल पुस्तक की तरह लगती। कवर के व शुरू के कुछ चित्रात्मक पृष्ठों को सीधे ही ई-पुस्तक में इन्सर्ट किया गया। इन कवर फ़ोटो के संपादन के लिए मैंने ‘फोटोजेट’ के ऑनलाइन फोटो संपादक का उपयोग किया। हालाँकि, संपादित छवि डाउनलोड करने से पहले इस ऐप को फेस बुक पर साझा करना पड़ता है। Pixlr.com का ऑनलाइन संपादक भी अच्छा है। चित्रों को सीधे कोपी-पेस्ट करने की बजाय एमएस वर्ड की ‘इन्सर्ट-पिक्चर’ की सहायता ली गई, क्योंकि सीधे कोपी-पेस्ट करने से कई बार ई-बुक में चित्र दिखता ही नहीं।

ओसीआर में कुछ विशेष ध्यान देने योग्य बातें

पुस्तक को स्केन करने से पहले यह देख लें की पुस्तक कितनी पुरानी है। बहुत पुरानी पुस्तकों का ओसीआर नहीं हो पाता। पुस्तक की बाईंडिंग खोलकर प्रत्येक पेज को अलग से सकेन करना पडेगा। पुस्तक को फोल्ड करके स्केन करने से किनारे के अक्षर ढंग से स्कैन नहीं होते, जिससे वे ओसीआर नहीं हो पाते। बाद में आप पुस्तक की पुनः बाईन्डिंग करवा सकते हो। डबल पेज स्कैन करके भी ओसीआर नहीं हो पाता। पेज उसी हिसाब से स्कैनर पर रखना पड़ेगा, जैसा कि आमतौर पर सिंगल पेज रखा जाता है। पेज की लम्बाई स्कैनर की लम्बाई की दिशा में रखी जाती है। पेज सामान्य पुस्तक के पेज की तरह लिखा होना चाहिए, यानी अक्षरों की पंक्तियाँ पेज की चौड़ाई की दिशा में कवर करती हों। स्कैनर पर पेज जितना सीधा होगा, उतना ही अच्छा ओसीआर होगा। इसलिए पेज को स्कैनर-ग्लास की लम्बाई वाली बैक साईड प्लास्टिक बाउंडरी से सटा कर रखा जाना चाहिए। इससे पेज खुद ही सीधा आ जाता है। लैन्थवाईज तो पेज स्कैनर के बीच में आना चाहिए।

फाईल को सुधारने के लिए ओसीआर करने से पहले आसान विकल्प भी आजमा लें

कई बार तो ओसीआर करने की जरूरत ही नहीं पड़ती, क्योंकि फोंट को कन्वर्ट करके काम चल पड़ता है। हर जगह चलने वाला फोंट यूनिकोड है। मैंने एक क्रुतिदेव (krutidev) फोंट में टाईप किए हुए पीडीएफ लेख को वर्ड-लेख में कन्वर्ट किया, परन्तु उसके अक्षर पढ़े नहीं जा रहे थे। फिर मैंने ऑनलाईन फॉण्ट कन्वर्टर में फाईल को डालकर उसके क्रुतिदेव फोंट को यूनिकोड में कन्वर्ट किया। फिर जाकर अक्षर पढ़े गए। १-२ प्रकार के ही अक्षर गलत थे, वो भी कहीं-२ पर ही। थोड़ी सी मेहनत से लेख मैंने करेक्ट कर दिया। वह मेहनत ओसीआर में लगने वाली मेहनत से काफी कम थी। फिर भी ओसीआर दुबारा टाईप करने से बहुत ज्यादा आसान है।

भविष्य की तकनीक ‘हैण्ड टैक्स्ट रिकोग्निशन’

इससे आगे की तकनीक हाथ से लिखे लेख को ओसीआर करने की है। इसे ‘हैण्ड टैक्स्ट रिकोग्निशन’ कहते हैं। परन्तु यह पूरा विकसित नहीं हुआ है। इस पर खोज जारी है। हालांकि डब्बों वाले कागजी फोर्मेट में एक-२ डब्बे में एक-२ अक्षर को डालने से यह तकनीक काम कर जाती है। तभी तो सेवा-भरती या पंजीकरण आदि के अधिकाँश परिचय-फॉर्म भरने के लिए डब्बों वाले फोर्मेट का प्रयोग किया जाता है।

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अभिनन्दन को अभिनन्दन- Abhinandan (Congratulations) to Abhinandan

अभिनन्दन को अभिनन्दन (please browse down or click here to view this post in English)

भारत-पाकिस्तान की निगरानी के लिए अंतर्राष्ट्रीय (संयुक्त राष्ट्रसंघ) पर्यवेक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई है। यदि हुई है, तो वह नाकाफी है, या पक्षपातपूर्ण है। मैं यह बात बता देना चाहता हूँ कि यह बहुत ही ऊंचे स्तर की बात है, जिसकी सम्पूर्ण कूटनीति को समझना मेरे बस की बात नहीं है। फिर भी मैं अपने विचार प्रकट कर रहा हूँ, यह जानने के लिए कि सब कुछ जानते हुए भी संयुक्त राष्ट्रसंघ मूकदर्शक क्यों बना रहता है। तभी तो पाकिस्तान नित-नए झूठ के रंग-बिरंगे बादल उड़ाता रहता है, दुनिया भर में। वह ऐसा हमेशा से ही करता आया है। वह रोज सीजफायर का उल्लंघन करता है, और हमारे रिहायशी इलाकों को अपना निशाना बनाता रहता है, जिसे दुनिया या संयुक्त राष्ट्रसंघ देख ही नहीं पाता। भारत केवल आतंकी शिविरों को ही अपना निशाना बनाता है, सैनिक व नागरिक क्षेत्रों को नहीं। पाकिस्तान केवल सैनिक व नागरिक क्षेत्रों पर ही हमले करता है। और करेगा भी कहाँ, क्योंकि हमारे देश में आतंकवादी हैं ही नहीं।

एक बात जरूर है कि शिमला समझौते के बाद अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षक का प्रश्न ही पैदा नहीं होता। पर यह सवाल भी सच है कि पाकिस्तान ने समझौतों का पालन किया ही कब? जो समझौतों को माने, वह पाकिस्तान ही कैसा? भारत-पाक सीमा पर अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षक रखने का पाक का सुझाव भी साजिश से भरा हुआ लगता है। आजकल के अटैक हाईटेक होते हैं। उन पर सड़क पर दौड़ने वाली यूएनओ की गाड़ी कैसे नजर रख पाएगी। एलओसी बहुत बड़ी है। उस पर एकसाथ नजर रखना आसान काम नहीं है। पाकिस्तान को तो वैसे भी झूठ, दुष्प्रचार व साजिश को रचने में महारत हासिल है। ऐसा वह अनगिनत बार कर चुका है। अतः यह कैसे माना जा सकता है कि वह यूएनओ की टीम का ब्रेनवाश नहीं कर देगा? वह तो उन्हें आतंकवादियों का डर दिखा कर उनसे झूठी रिपोर्टें भी बनवा सकता है। जान बचाने के लिए आदमी क्या काम नहीं कर सकता? आजकल तो आकाशीय उपग्रहों का युग है। एलओसी पर उपग्रहों से क्यों नजर नहीं रखी जाती। उसके लिए तो किसी की अनुमति की आवश्यकता भी नहीं है। उस पर खर्चा भी कम आएगा, और त्रुटि की संभावना भी नहीं होगी। आजकल के उपग्रह तो छत के ऊपर लगी पानी की टंकी को भी स्पष्ट दिखा सकते हैं। क्या वे एलओसी का निरीक्षण नहीं कर पाएंगे?

विकिलीक ने खुलासा किया है कि अमरीका को बालाकोट के आतंकवादी-शिविरों के बारे में बहुत पहले से पता था। जब उसे पता था, तब उसने उनको अपना लक्ष्य क्यों नहीं बनाया? उसने भारत को भी उस बारे में सतर्क करते हुए, उसकी सहायता भी क्यों नहीं की। यह एक विचारणीय विषय है। डेविड हेडली जो मुंबई हमले की योजना का हिस्सा था, उसका पता अमरीका को पहले से ही था, पर उसने बताया नहीं। यह सबको पता है कि अमरीका ने रशिया के खिलाफ पाकिस्तान के आतंकवाद को पोषित भी किया था। जब वर्ड ट्रेड सेंटर पर हमला हुआ, तब अमरीका को समझ आई। देर से आए, दुरस्त आए। जब जागो, तभी सवेरा। परन्तु आतंकवाद के विरुद्ध अमरीका के प्रयास नाकाफी प्रतीत होते हैं। अमरीका ने बच्चे की तरह पाकिस्तान को पाल-पोस कर बड़ा किया है। उससे आतंकवाद भी खुद ही फलता-फूलता गया। अमरीका जैसे चतुर देश की आंख में कोई धूल नहीं झोंक सकता। पाकिस्तान द्वारा उसकी आँखों में धूल झोंकने की बात करना तो एक बहाना मात्र है, सच्चाई कुछ और ही लगती है। हाल ही में पाकिस्तान ने भारत के सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमले के लिए एफ-16 विमान का प्रयोग किया, जिसे परमवीर विंग कमांडर अभिनन्दन ने मार गिराया। पाकिस्तान ने ऐसा करके अमेरिका के साथ की हुई संधि को तोड़ा है। लगता नहीं है कि अमरीका उसके खिलाफ कोई सख्त एक्शन लेगा। यह भी हो सकता है कि यदि अमरीका भारत का खुल कर साथ दे, तो चीन पाकिस्तान का खुल कर साथ देगा। गुपचुप तरीके से तो वह अभी भी दे रहा है। चीन को यह समझ लेना चाहिए कि बुराई का साथ देकर उसका कभी भी भला नहीं हो सकता। प्रकृति बहुत बलवान है, और वह बड़ों-२ को झुका देती है। अमरीका कहता है कि भारतीय सेना को अफगानिस्तान में नियुक्त करना चाहिए। यहाँ हाल यह है कि भारत के 40 से अधिक सैनिक पाकिस्तान ने मार दिए, और अमरीका ने उस पर एक भी हवाई हमला नहीं किया। यदि वह ऐसा करता, तब हम मानते कि भारतीय-सैनिकों का वास्तव में वह हित चाहता है, और अफगानिस्तान में भी वह उन्हें सुरक्षित रहने में मदद करेगा। जब अपने देश भारत में ही भारतीय-सैनिक सुरक्षित नहीं हैं, तब अफगानिस्तान में वे कैसे सुरक्षित रह सकते हैं। वहां पर तो आतंकवादियों का खुला बोलबाला है। अगर पाकिस्तान के पास परमाणु बम है, तो भारत के पास भी है। भारत के पास तो वह हवा, जल व स्थल, तीनों जगह पर तैनात है, और अब तो वे परमाणु-पनडुब्बी पर भी तैनात कर दिए गए हैं। चीन पाकिस्तान की मदद केवल अपने स्वार्थपूर्ण हितों के लिए कर रहा है। वह विश्व के हितों को अनदेखा कर रहा है।

कश्मीर से धारा 370 व धारा 35-ए को तुरंत हटा दिया जाना चाहिए, क्योंकि वे आतंकवाद का पोषण करती हैं। सिन्धु जल समझौते को भी रद्द कर देना चाहिए। पाकिस्तान भी कोई समझौता नहीं मानता। केवल अपने हिस्से का पानी रोक देने से ही कुछ विशेष नहीं होने वाला है। यदि इसके बदले में चीन भारत का पानी रोकता है, तो उससे विशेष फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि भारत एक बहुत बड़ा देश है। परन्तु पाकिस्तान तो लगभग प्यासा ही हो जाएगा। पाकिस्तान के साथ कोई भी मैच नहीं खेलना चाहिए। क्रिकेट विश्वकप से भी पाकिस्तान का बहिष्कार करवा देना चाहिए, क्योंकि वहां पर भारत की सबसे अधिक चलती है, और सबसे अधिक कमाई भी भारत से ही होती है। कश्मीर को सेना के हवाले कर देना चाहिए। देशद्रोहियों के लिए मृत्युदंड का प्रावधान हो। उनके लिए व आतंकवादियों के लिए विशेष फास्ट ट्रेक कोर्ट बनाने चाहिए, ताकि कांधार-अपहरण जैसी घटना दुबारा न घटे। यदि मसूद अजहर को तुरंत फांसी दे दी गई होती, तो उसके चेले-चांटे उसे छुड़वाने के लिए हमारे विमान का अपहरण न करते। यह नियम है कि जख्म का इलाज करते समय उसके आसपास के स्वस्थ भाग भी कुछ न कुछ दुष्प्रभावित हो ही जाते हैं। सेना उच्च कोटि के हेलमेट व बुलेटप्रूफ जेकेट पहन कर कश्मीर में घर-2 की तलाशी जारी रखे। भारत ने पाकिस्तान के आतंकी-शिविरों को ध्वस्त करके दुनिया के भले के लिए महान काम किया है। इसलिए बदले में दुनिया के अन्य देशों को भारत के लिए अत्याधुनिक हथियार व सैनिक मुफ्त में मुहैया करवा देने चाहिए, ताकि भारत यह कार्यवाही उत्तम तरीके से जारी रख सके।

देशप्रेम की गहराई में जाने के लिए, इस लिंक पर उपलब्ध पुस्तक को अवश्य पढ़ें

अंत में, वीर अभिनन्दन को अभिनन्दन।

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Abhinandan (Congratulations) to Abhinandan

International (United Nations) supervisors have not been appointed to oversee India-Pakistan. If it has happened, then it is inadequate, or biased. I want to tell you that it is a very high-level thing to talk about, whose whole diplomacy is not under my understanding. Still I am expressing my views, to know why the United Nations remains a mute spectator even knowing everything. Pakistan continues to flutter the colorful clouds of ever new lies around the world. It has always been doing this always. It violates the ceasefire every day, and continues to target our habitats, which the world or the United Nations cannot see. India only targets militant camps, not soldiers and civilian areas. Pakistan attacks only on soldiers and civilian areas. And where will it target, because there are not terrorists in our country.

One thing is certain that the question of international observer does not arise after the Shimla Agreement. However, this question is also true that when Pakistan has followed agreements? Who follows agreements, how can that be a Pakistan? The suggestion of Pakistan to keep an international observer on the Indo-Pak border seems to be full of conspiracy. Nowadays, attacks are high-tech. How to track those from a road-laden UNO car? LOC is too big. Keeping an eye on it together is not easy. Pakistan is well mastered to create lies, misrepresentation, and conspiracy anyway. He has done so many times. So how can it be assumed that it will not brainwash the UNO team? He could also make fake reports through them by showing them the fear of terrorists. What can a man not do to save his life? Nowadays, there is an era of celestial satellites. Why are not satellites put to observe the Loc? There is no need for anyone’s permission for that. There will be less expenditure on that, and there will be no possibility of error. Today’s satellites can also show the water tank on top of the roof clearly. Will not they be able to inspect the Loc?

Wiki leaks have disclosed that America knew about Balakot’s terrorist camps long ago. When it knew this, then why did not it make its goal to destroy those? It also did not warn India about that, leave alone the help. This is a considerable topic. David Headley, who was part of the Mumbai attacks plan, was already in the US, but it did not disclose it. It is known to all that America also funded Pakistan’s terrorism against Russia. When the World Trade Center was attacked, then the US came to understand. When understanding comes late, it comes better. When you wake up, then only the morning is there. However, America’s efforts against terrorism seem insignificant. America has raised Pakistan like a naughty child. From it, terrorism itself flourished. There is no dust in the eye of a clever country like America. Talking of dust in its eyes through Pakistan is only an excuse; the truth seems to be something else. Recently Pakistan used the F-16 aircraft to attack Indian military installations, which Paramveer Wing Commander Abhinandan shot down. Pakistan has broken treaty of its use with America. It does not seem that the US will take some tough action against it. It may also be that if the United States opens his heart towards India fully, then China will open its doors to Pakistan. In secretly, it is still supporting Pakistan. China should understand that it could never be good by supporting evil. Nature is very strong, and it bends even the big gamers. The US says that the Indian army should be appointed in Afghanistan. The situation here is that more than 40 soldiers of India were killed by Pakistan, and the United States did not have an air strike on it. If it had done that, then we would have believed that Indian soldiers really under its security, and even in Afghanistan, it would help them stay safe. When Indian soldiers are not safe in their own country, then how can they stay safe in Afghanistan? There the openness of the terrorists is over and above anywhere else. If Pakistan has nuclear bombs, then India also has it. In India, it is stationed at air, water and space, all three places, and now these have been deployed on nuclear submarines also. China is helping Pakistan only for its selfish interests. It is ignoring the interests of the world.

Section 370 and Section 35-A from Kashmir should be removed immediately because these nurture terrorism. The Sindhu Water Treaty should also be canceled. Pakistan also does not accept any agreement. Only by stopping the water of our own part is nothing special. If China inhibits the water of India in return, it will not make any difference because India is a big country. However, Pakistan will be almost thirsty. No mach should be played with Pakistan. The Cricket World Cup should also boycott Pakistan, because there is India’s largest contribution, and the highest earning is from India only. Kashmir should be handed over to the army. Provision of capital punishment for traitors should be there. For them and for the terrorists, special fast track courts should be created so that incident like Kandahar-abduction does not happen again. If Masud Azhar were hanged immediately, then his disciples would not kidnap our plane to rescue him. It is a rule that while treating the wound, healthy areas around it also get some side effects. Army continues the search of every home in Kashmir by wearing high quality helmets and bulletproof jackets. India has done great work for the good of the world by destroying Pakistan’s terrorist camps. Therefore, in return, other countries of the world should provide state-of-the-art weapons and soldiers for free, so that India can continue this action in a best way.

To go deep into patriotism, be sure to read the book (Hindi) available at the link below

Finally, congratulations to Veer Abhinandan.

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सभी मित्रों के बीते वर्ष को सहर्ष विदाई व उनको नववर्ष 2019 की बहुत-2 शुभकामनाएं- Nice farewell to all the friends’ last year and many New Year wishes for them

सभी मित्रों के बीते वर्ष को सहर्ष विदाई व उनको नववर्ष की बहुत-2 शुभकामनाएं (please browse down to view this post in English)।

मेरा बीता वर्ष, 2018 निम्न प्रकार का रहा-

अपनी टाटा टियागो कार में लगभग 3000 किलोमीटर का सपरिवार सफ़र तय किया, जिसमें से अधिकाँश उन्नत उच्चमार्गों का सफर था। पीवीआर सिनेमा में 4 हिंदी फिल्में सपरिवार देखीं, 102 नोट आऊट, संजू, हनुमान वर्सस अहिरावना (थ्री डी एनीमेशन) व सिम्बा। मेरे माता-पिता तीर्थधाम यात्रा का जल चढ़ाने कन्याकुमारी / रामेश्वरम गए। अपने पुराने घर का नवीनीकरण करवाया गया। श्री मद्भागवत सप्ताह श्रवण यज्ञ का अनुष्ठान अपने घर में करवाया गया। मेरी पूज्य व वृद्ध पितामही जी का स्वर्गवास हुआ। मेरे बेटे को पहली कक्षा में ए-1 रहने पर पारितोषिक दिया गया। मेरी पत्नी के द्वारा नए सिलाई के प्रशिक्षण-कोर्स का प्रारम्भ किया गया। मुझे क्वोरा टॉप राईटर (क्वोरा शीर्ष लेखक)- 2018 का सम्मान मिला। मेरे द्वारा कुण्डलिनीयोग का प्रतिदिन का 1 घंटे का सुबह का व एक घंटे का सांय का अभ्यास एक दिन के लिए भी नहीं छोड़ा गया। इसके कारण मेरा वर्ष 2017 का कुण्डलिनीजागरण का अनुभव जारी रहा, महान आनंद के साथ। प्रेमयोगी वज्र की सहायता से इस मेजबानी वेबसाईट (https://demystifyingkundalini.com/home-3/) को पूर्णतः विकसित किया। इस वेबसाईट के लिए 139 शेयर, 30 लाईक्स, 4772 वियूस, 3099 विसिटर व 46 फोलोवर मिले। इस वेबसाईट के लिए मैंने लगभग 31 पोस्टें लिखीं व प्रकाशित कीं। प्रेमयोगी वज्र की सहायता से “शरीरविज्ञान दर्शन- एक आधुनिक कुण्डलिनी तंत्र (एक योगी की प्रेमकथा)” नामक पुस्तक लिखी। उसके लिए 13 सशुल्क डाऊनलोड व 80 निःशुल्क डाऊनलोड प्राप्त हुए। उसके लिए अमेजन पर एक सर्वोत्तम रिव्यू / समीक्षा (5 स्टार) भी प्राप्त हुआ। साथ में, उसे गूगल बुक पर भी दो उत्तम व 5 स्टार रिव्यू प्राप्त हुए। दूरदर्शन के कार्यक्रमों में तेनालीरामा, तारक मेहता का उल्टा चश्मा, मैं मायके चली जाऊंगी, रियल्टी शोज व जी न्यूज (मुख्यतः डीएनए) का आनंद उठाया। अपने पोर्टेबल मिनी जेबीएल स्पीकर पर गाना एप के माध्यम से लगभग 2000 मधुर ओनलाईन गाने सुने। काटगढ़ मंदिर व टीला मंदिर के सपरिवार दर्शन किए। अपने किन्डल ई-रीडर पर 3 पुस्तकें पढ़ीं। पोस्ट पढ़ने के लिए धन्यवाद।

यदि आपको इस पोस्ट से कुछ लाभ प्रतीत हुआ, तो कृपया इसके अनुसार तैयार की गई उपरोक्त अनुपम ई-पुस्तक (हिंदी भाषा में, 5 स्टार प्राप्त, सर्वश्रेष्ठ व सर्वपठनीय उत्कृष्ट / अत्युत्तम / अनौखीरूप में निष्पक्षतापूर्वक समीक्षित / रिव्यूड ) को यहाँ क्लिक करके डाऊनलोड करें। यदि मुद्रित पुस्तक ही आपके अनुकूल है, तो भी, क्योंकि इलेक्ट्रोनिक डीवाईसिस / फोन आदि पर पुस्तक का निरीक्षण करने के उपरांत ही उसका मुद्रित-रूप / print version मंगवाना चाहिए, जो इस पुस्तक के लिए इस लिंक पर उपलब्ध है। इस पुस्तक की संक्षिप्त रूप में सम्पूर्ण जानकारी आपको इसी पोस्ट की होस्टिंग वेबसाईट / hosting website पर ही मिल जाएगी। धन्यवाद।

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Nice farewell to all the friends’ last year and many New Year wishes for them.

My last year, 2018 was of the following type:

Travelled around 3,000 km in my Tata Tiago car with family, most of which were the journey of advanced highways. In PVR cinema saw 4 Hindi films with family, 102 Not out, Sanju, Hanuman Versus Ahiravana (Three D Animation) and Simmba. My parents went to Kanyakumari / Rameshwaram for carrying water for pilgrimage. My old home was renovated. Shreemad Bhaagvat Shravan Yagna’s week long ritual was performed in my house. My devoted and old grandmother went to heaven. My son was rewarded for being A1 in the first grade. New sewing training-course was started by my wife. I got the Quora Top Writer- the honour of 2018. I did not leave the Kundalini Yoga practice for 1 hour of morning and one hour of evening everyday even for one day. Due to this my experience of KundaliniJagran of 2017 continued, with great bliss. With the help of Premyogi Vajra, this hosted website (https://demystifyingkundalini.com/) was fully developed. For this website, 139 shares, 30 likes, 3099 visitors, 46 followers and 4772 views were obtained. I wrote and published about 31 posts for this website. With the help of Premyogi Vajra, I wrote a book called “Shareervigyaan darshan- ek aadhunik kundalini tantra (ek yogi ki premkatha)”. For that 13 paid downloads and 80 free downloads were received. For that, a great review (5 stars) was also received on Amazon. Along with, two good and 5 star reviews were also obtained on Google book for that. In Doordarshan’s programs, Tenalirama, Tarak Mehta ka Ulta Chashma, main maayake chali jaaoongee, realty shows and Zee news (mainly DNA) were enjoyed well. Two thousands of melodious online songs have been heard through Gaana App on my portable mini JBL speaker. Visiting the Katgarh Temple and the Tila Temple with family by me. Read 3 books on my Kindle e-Reader. Thanks for reading.

If you have found some benefit from this post, please download here the above mentioned e-book (in Hindi language, 5 star rated, reviewed in unbiased way as the best, excellent and must read by everyone) made with steps as told above. If only print version suits you, then too print version should only be got after testing that’s e- version on the electronic devices / phone etc., that is available on this link for this book. You can also find the complete information about this book, both in English as well as Hindi languages on the hosting website of this post. Thank you.

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मेरे द्वारा संकलित व पूर्ववर्णित ई-पुस्तक का प्रचाराभियान- Promotion of a compiled and predefined ebook by me

मेरे द्वारा संकलित व पूर्ववर्णित ई-पुस्तक का प्रचाराभियान (please browse down or click here to view post in English)-

मैंने उस ई-पुस्तक को पूर्णरूप से निर्मित होने से पहले ही केडीपी किन्डल पर डाल दिया था। नई तैयार लिखित सामग्री को मैं प्रतिदिन उस पर अपडेट कर लिया करता था। मैंने उस पुस्तक को किन्डल अनलिमिटिड में ज्वाइन कराया हुआ था, जिसके अनुसार किन्डल अनलिमिटिड के उपभोक्ता उस पुस्तक को मुफ्त में डाऊनलोड कर सकते थे। इस तरह से, पूर्ण निर्माण होने तक मेरी पुस्तक का कुछ प्रचार स्वयं ही हो गया था। वैसे मेरी किस्मत अच्छी रही जो किसी ने अधूरी पुस्तक की समीक्षा / रिव्यू नहीं डाली, क्योंकि उससे पुस्तक की कमियाँ पाठकों के समक्ष उजागर हो सकती थीं। मेरी पुस्तक को सर्वोत्तम समीक्षा तब मिली, जब वह पूर्ण रूप में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत हुई। लैंडिंग पेज / landing page भी मैंने बहुत पहले ही बना दिया था। लैंडिंग पेज एक वेबसाईट / website का वेबपेज / webpage, मुख्यतया होमपेज / homepage होता है, जिसमें पुस्तक के बारे में सम्पूर्ण जानकारी लिखी होती है, तथा उस पुस्तक के ऑनलाइन बुक-स्टोर / online book store का भी लिंक / link दिया होता है। इच्छुक पाठक उस लिंक पर क्लिक करके बुक स्टोर में पहुँचते हैं, और वहां से उस पुस्तक को खरीद लेते हैं। लैंडिंग पेज एक प्रकार से पुस्तक की दुकान ही होती है, और बुक स्टोर का बुक-डिटेल पेज / book detail page एक प्रकार का कैश-काऊंटर होता है। जब भी कभी पुस्तक के लिए एड-केम्पेन (प्रचाराभियान) / ad campaign चलाई जाती थी, तब उसमें लैंडिंग पेज का ही लिंक दिया गया होता था, सीधा बुक-स्टोर का नहीं। वह इसलिए क्योंकि बुक-स्टोर में पुस्तक के बारे में बहुत कम प्रारम्भिक जानकारी होती है, और वह पाठक को पुस्तक खरीदने के लिए अधिक प्रोत्साहित नहीं करता। लैंडिंग पेज में एक प्रकार से सम्पूर्ण पुस्तक ही संक्षिप्त रूप में विद्यमान होती है। मैंने तो सम्पूर्ण वेबसाईट ही पुस्तक के निमित्त कर दी थी। इससे उन पाठकों को भी लाभ मिलता था, जो किसी कारणवश विस्तृत पुस्तक को खरीद नहीं सकते थे, या पढ़ नहीं सकते थे। मैंने गूगल की एड-केम्पेन लगा कर देखी, पर उससे मुझे कोई विशेष लाभ प्रतीत नहीं हुआ। मैं क्वोरा पर प्रश्नों के उत्तर लिखा करता था। उत्तर के अंत में मैं अपनी वेबसाईट का लिंक भी लगा दिया करता था। उससे मेरी वेबसाईट पर ट्रेफिक / traffic तो काफी बढ़ गई थी, पर पुस्तक की खरीद नहीं हो पा रही थी। फेसबुक पर अपनी वेबसाईट के बारे में पोस्ट डाल कर भी बहुत कम ट्रेफिक आ रही थी। मैंने अपने सभी सोशल मीडिया अकाऊंट / social media account पर अपने वेबसाईट का लिंक लगा रखा था। पुस्तक के किन्डल अनलिमिटिड / kindle unlimited में होने की वजह से मुझे 3 महीने में 5 दिनों के लिए मुफ्त पुस्तक के रूप में उस पुस्तक के प्रचार का अवसर मिला हुआ था। उससे लगभग 40 के करीब निःशुल्क पुस्तकें पाठकों के द्वारा डाऊनलोड कर ली जाती थीं। उसके बाद 4-5 सशुल्क पुस्तकें भी बिक जाती थीं। रीडरशिप के अनुसार किण्डल अनलिमिटेड का फंड वितरित होता रहता है। मैंने एक बार किन्डल अनलिमिटिड को बंद कराकर पोथी डॉट कोम / pothi.com पर भी पुस्तक को डाला। निःशुल्क रूप में तो वहां से 2 महीने के अन्दर 15 पुस्तकें उठ गईं, पर सशुल्क रूप में एक भी नहीं। इसी के साथ ही मैंने स्मैशवर्ड / smashword, डी2डी / D2D आदि अन्य ई-बुक साईटों पर भी उस पुस्तक को डाला हुआ था। उनमें से तो एक भी पुस्तक डाऊनलोड / download नहीं हुई। अतः मैंने इन सभी साईटों से पुस्तक को हटा लिया, और उसे किन्डल अनलिमिटिड में पुनः ज्वाइन / join करा दिया। किन्डल अनलिमिटिड में रहते हुए किसी दूसरे प्लेटफोर्म / platform पर पुस्तक को पब्लिश / publish नहीं कर सकते हैं। वास्तव में किन्डल ही ई-पुस्तकों का नेता है, विशेषकर भारत में। भारत में लगभग 70% से अधिक ई-पुस्तकें अमेजन / amazon के किन्डल-स्टोर के माध्यम से ही खरीदी जाती हैं। वैसे भारत में कुल पुस्तकों का केवल लगभग 10% हिस्सा ही ई-पुस्तकों के रूप में पढ़ा जाता है। फेसबुक की एड-केम्पेन से मुझे सर्वाधिक बिक्री मिली। उसमें ग्राहकों को सुविधानुसार लक्षित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, मैं अपने ग्राहकों को योग, ई-बुक लवर, किन्डल ई-रीडर आदि शब्दों तक ही सीमित कर देता था। उसमें स्थान को भी लक्षित किया जा सकता है। मैं अपनी पुस्तक को हिंदीभाषी प्रदेशों व क्षेत्रों तक ही सीमित कर देता था। इसी तरह, मैं 25-45 वर्ष के आयु-वर्ग के लोगों को ही लक्षित करता था। पुरुष व स्त्री दोनों को लक्षित करता था। उसमें एक रुपए से लेकर जितने मर्जी रुपए को खर्च करने का निर्देश दिया जा सकता है। डेबिट कार्ड / क्रेडिट कार्ड का डिटेल मैंने उसमें डाल दिया था। फेसबुक / facebook खुद उससे समयानुसार पैसे निकाल लेता था। उसकी ख़ास बात है की उस एड को किसी के द्वारा देखने पर पैसे नहीं कटते, अपितु तभी कटते हैं, जब कोई उस एड के लिंक पर क्लिक करके लैंडिंग पेज पर पहुँचता है। एक क्लिक लगभग डेढ़ रुपए से लेकर पांच रुपए तक की होती है, डिवाईस / device के अनुसार व अन्य अनेक परिस्थितियों के अनुसार। मोबाईल न्यूजफीड / mobile newsfeed पर संभवतः सबसे महँगी होती है। इसको भी हम सेट / set कर सकते हैं कि किस-2 एप / app (फेसबुक, मेसेंजर या इन्स्टाग्राम) पर कितनी-2 एड दिखानी है। अन्यथा फेसबुक स्वयं ही सर्वोत्तम अनुपात बना कर रखता है। बाद में तो मैंने फेसबुक पेज (बिजनेस परपस / business purpose) भी मुफ्त में बना लिया। उस पर एड डालना और भी आसान हो गया। मैंने अपने वेबसाईट-ब्लॉग / website-blog को अपने फेसबुक पेज के साथ कनेक्ट / connect कर दिया था। उससे जब भी मैं कोई ब्लॉग-पोस्ट अपनी वेबसाईट पर डालता था, तब वह स्वयं ही उसी समय मेरे फेसबुक-पेज पर भी शेयर / share हो जाती थी। फेसबुक पेज पर एक ऑप्शन / option उस पोस्ट को बूस्ट करने के लिए आता था। एक बार मैंने कौतूहलवश उस बूस्ट-बटन / boost button को दबा दिया। कुछ घंटों बाद मुझे अपनी वेबसाईट पर एकदम से बढ़ी हुई ट्रेफिक मिली। उस सम्बंधित पोस्ट को 45 शेयर मिले हुए थे। वह ट्रेफिक फेसबुक से आ रही थी। जब मैंने फेसबुक खोलकर एड-स्टेटस का पता किया, तो वह उस पोस्ट के लिए एक्टिवेटड / activated थी। लगभग 400 रुपए खर्च हो चुके थे। उस पोस्ट को 32 लाईक्स मिल चुके थे, और उसे 15000 लोगों ने (हरियाणा के, अपने आप सेट) देख लिया था। साथ में मेरी 3-4 पुस्तकें भी बिक चुकी थीं। वह तो बड़े घाटे का सौदा लगा, क्योंकि उन पुस्तकों से 70-80 रुपए की ही कमाई हो पाई थी। मैंने तुरंत उस पोस्ट- बूस्ट की एड को बंद करवा दिया। फिर मुझे इंटरनेट से अतिरिक्त जानकारी मिली की एड-केम्पेन पोस्ट-बूस्ट से कहीं अधिक बेहतर व कम खर्चीली होती है। यह भी पता चला कि पुस्तक प्रचार से अधिकांशतः उतनी कमाई नहीं होती है, जितना उस पर खर्चा आता है।

अगली पोस्ट में हम वेबसाईट निर्माण से सम्बंधित स्वानुभूत जानकारी को साझा करेंगे।

यदि आपको इस पोस्ट से कुछ लाभ प्रतीत हुआ, तो कृपया इसके अनुसार तैयार की गई उपरोक्त अनुपम ई-पुस्तक (हिंदी भाषा में, 5 स्टार प्राप्त, सर्वश्रेष्ठ व सर्वपठनीय उत्कृष्ट / अत्युत्तम / अनौखीरूप में समीक्षित / रिव्यूड ) को यहाँ क्लिक करके डाऊनलोड करें। यदि मुद्रित पुस्तक ही आपके अनुकूल है, तो भी, क्योंकि इलेक्ट्रोनिक डीवाईसिस / फोन आदि पर पुस्तक का निरीक्षण करने के उपरांत ही उसका मुद्रित-रूप / print version मंगवाना चाहिए, जो इस पुस्तक के लिए इस लिंक पर उपलब्ध है। इस पुस्तक की संक्षिप्त रूप में सम्पूर्ण जानकारी आपको इसी पोस्ट की होस्टिंग वेबसाईट / hosting website पर ही मिल जाएगी। धन्यवाद।

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ई-रीडर व ई-बुक्स के बारे में विस्तार से जानने के लिए यहां क्लिक करें।

Promotion of a compiled and predefined ebook by me-

I had put that e-book on the KDP platform of Amazon kindle even before it was fully formed. I used to update the new written material on it every day. I had joined that book in Kindle Unlimited, according to which consumers of Kindle Unlimited could download that book for free. In this way, till the complete construction,  my book had got enough exposure. Before my book has been complete, luckily I did not get any review of that incomplete book, because the book’s shortcomings could be exposed to the readers. My book got the best review when it was presented to the readers in full form. I had made the landing page too long ago. The landing page is a website’s webpage, mainly homepage, in which the complete information about the book is written, and also links to the online Book Store of that book are provided there. Interested readers reach the book store by clicking on the link, and buy that book from there. Landing pages are a book shop, and Book Store’s Book-Detail page is a type of cash-counter. Whenever the ad-campaign was run for the book, it was given a link to the landing page tthere, not a direct one to book-store. That’s because book-store has very little initial information about the book, and it does not encourage readers to buy the book more. In a way, the entire book in a landing page is in short form. I had made the entire website just for the sake of the book. It also benefited those readers, who could not buy or read a detailed book for some reason. I looked at Google’s ad-campaign, but it did not seem to be a special advantage to me. I used to write answers to queries on quora. At the end of the reply, I used to link my website too. From that the traffic on my website had increased a lot, but the book was not able to be bought. Posting about my website on Facebook was also very low to attract traffic. I had put a link to my website on all my social media accounts. Because of the book’s kindle unlimited, I had the opportunity to publicize that book in the form of a free book for 5 days in 3 months. Nearly 40 free books were downloaded by the readers. After that 4-5 paid books were also sold. Kindle unlimited fund is distributed according to the readership. I once put the book on Pothi.com by closing the Kindle Unlimited. In the free form, 15 books got up within two months from there, but none in the paid form. At the same time, I had inserted that book on other e-book sites like Smashword, D2D etc. None of books were downloaded from those. So I removed the book from all these sites, and rejoined it in Kindle Unlimited. Self publisher can not publish the book on another platform while being in kindle unlimited. In fact, Kindle is the leader of e-books, especially in India. More than about 70% of e-books in India are purchased through the Amazon Kindle Store. In India, only about 10% of the total books are read as e-books. I got the best sale from Facebook’s ad-campaign. Customers can be targeted according to convenience. For example, I used to limit my clients to the words like Yoga, eBook lover, Kindle e-Reader etc. Location can also be targeted in it. I used to restrict my book to Hindi-speaking states and regions. Similarly, I used to target people aged 25-45 years of age. I targeted both men and women. It can be instructed to spend rupees from one rupee to as much as you like. I had put the details of debit card / credit card in it. Facebook itself withdraw money from time to time. His special thing is that he does not deduct money from anyone watching the ad, but only when he gets to the landing page by clicking the link of that ad. One click ranges from about 1.5 rupees to five rupees, according to the device and many more conditions. Mobile Newsfeed is probably the most expensive. We can also set this to show how much fraction of ad to show on which app (Facebook, Messenger or Instagram). Otherwise Facebook itself maintains the best ratio. Later on, I also created the Facebook Page (Business Purpose) for free. It was even easier to add an ad to it. I had connected my website-blog to my Facebook page. Whenever I used to post a blog-post on my website, it would have been shared on my Facebook page at the same time. An option on the Facebook page came to boost the post. Once upon a time I suppressed that boost-button. After a few hours, I found the tremendous traffic on my website. 45 related shares were received in that respective post. That traffic was coming from Facebook. When I opened Facebook and found the ad-status, it was activated for that post. About 400 rupees had been spent. That post had received 32 likes, and it was seen by 15,000 people (Haryana, the self set). Along with my 3-4 books were also sold. It was a big loss deal, because those books were able to earn only Rs. 70-80. I immediately stopped the post’s Boost. Then I got additional information from the Internet that the ad-campaign is far better and less expensive than Post-Boost. I also came to know that the book promotion is not as much as earning as much as it costs.

In the next post we will share the self experienced matters during a website development.

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Know in full detail about e-readers and e-books here.

 

स्वयंप्रकाशन, आधुनिक तकनीक की एक अद्भुत देन-Self-publishing, a wonderful creation of modern technology 

स्वयंप्रकाशन, आधुनिक तकनीक की एक अद्भुत देन (please browse down or click here to view post in English)

मुझे हाल ही में एक पुस्तक को तैयार करने का मौका मिला, जिसका नाम है, “शरीरविज्ञान दर्शन- एक आधुनिक कुण्डलिनी तंत्र (एक योगी की प्रेमकथा)”, और जिसको लिखा है, प्रेमयोगी वज्र नामक एक रहस्यमयी योगी ने। सबसे पहले मैंने उसके द्वारा कई वर्षों से समेटी गई अस्त-व्यस्त रूप की लिखित सामग्री / written material को सही ढंग से क्रमबद्ध किया। फिर बारम्बार उसको पढ़कर, उस पूरी सामग्री को अपने मन में बैठा लिया। वास्तव में लिखने का काम तो बहुत से लोग कर लेते हैं, परन्तु अंतिम दौर में उसे पुस्तक के रूप में सभी नहीं ढाल पाते। यह इसलिए, क्योंकि उसके लिए बहुत अधिक कड़ी व अनवरत मेहनत समेत संघर्ष, लगन, ध्यान, धारणाशक्ति व निरंतरता की आवश्यकता होती है। तीव्र एकाग्रता व स्मरणशक्ति को लम्बे समय तक बना कर रखना पड़ता है। पूरी पुस्तक-सामग्री को मन में एकसाथ बैठा कर रखना पड़ता है, ताकि पूरी सामग्री को युक्तियुक्तता, रोचकता व सजावट के साथ क्रमबद्ध किया जा सके। साथ में, जिससे उसमें पुनुरुक्तियाँ / repetitions भी न हो पाएं। फिर मैंने उसकी बहुत सी पुनुरुक्तियों को हटाया, तथा निर्मित क्रमबद्ध रूप में ही उसे कम्प्युटर पर टाईप करने लगा। समय की कमी के कारण लगभग 300 पृष्ठों को टाईप करने में एक साल लग गया। प्रेमयोगी वज्र बीच-2 में भी लिखित सामग्री भेजता रहा, जिसे भी मैं प्रसंगानुसार उस वर्ड फाईल / word file के बीच-2 में जोड़ता रहा। मैं माईक्रोसोफ्ट वर्ड-2007 / Microsoft word-2007 पर टाईप / type कर रहा था। कहीं मेरा टाईप किया हुआ मेटीरियल / material कम्प्यूटर की खराबी से या अन्य कारणों से नष्ट न हो जाता, उसके लिए मैं अपनी टाईप की हुई फाईल को डी-ड्राईव / D-drive (जिस पर विंडोस-फाईल्ज / windows files नहीं होतीं) में रख लेता था, और साथ में बाहरी स्टोरेज / external storage पर बेक-अप / backup के रूप में भी सुरक्षित रख लेता था। मैंने 600 रुपए के वार्षिक सब्सक्रिप्शन / annual subscription पर (डिस्काऊंट ऑफर / discount offer पर, वास्तविक मूल्य तो रुपए 1500 था) एवरनोट / Evernote को खरीदा हुआ था। वह मुझे सबसे सुरक्षित व आसान लगा, वैसे तो जी-मेल / G-mail या गूगल-ड्राईव / Google drive पर भी मुफ्त में बैक-अप रख सकते हैं। एवरनोट में अन्य भी बहुत सी अतिरिक्त सुविधाएं हैं। उसका लेखक के लिए एक फायदा यह भी है कि कहीं पर भी कुछ भी याद आ जाए, तो उस पर तुरंत लिखा जा सकता है, जो भविष्य के लिए स्टोर हो जाता है। उसका सर्च फंक्शन / search function भी बहुत कारगर है। कई बार मैं अपनी दूसरी वर्ड फाईल से या ब्लॉग पोस्ट / blog post से भी टेक्स्ट / text को कोपी / copy करके पुस्तक वाली फाईल में पेस्ट / paste कर देता था। परन्तु उससे फोर्मेटिंग एरर / formatting error आने से टेक्स्ट दोषपूर्ण हो जाता था, या गायब ही हो जाता था। तब मुझे पता चला कि पेस्ट करते समय ऑप्शन / option आता है कि किस स्टाईल / style में पेस्ट करना है। उसके लिए वह ऑप्शन सेलेक्ट / select करना पड़ता है, जिसमें “कीप टेक्स्ट ओनली” / keep text only लिखा होता है। इसको माईक्रोसोफ्ट वर्ड के बेस बटन / base button “वर्ड ऑप्शन” / word option में जाकर स्थाई तौर पर भी सेलेक्ट किया जा सकता है। और भी बहुत सी एडजस्टमेंट / adjustments सुविधानुसार उस पर की जा सकती हैं, हालांकि उनकी कम ही जरूरत पड़ती है। क्योंकि पुस्तक हिंदी में थी, अतः गूगल इनपुट / Google input के “हिंदी भाषा टूल” / Hindi language tool को डाऊनलोड / download किया गया था। उससे इंगलिश की-बोर्ड / English keyboard पर टाईप करने से उसके जैसे हिंदी के अक्षर छप जाते हैं। जैसे की “MEHNAT” को टाईप करने से फाईल में हिंदी का “मेहनत” शब्द छप जाता है। मैंने संस्कृत टूल को भी डाऊनलोड किया हुआ था, क्योंकि पुस्तक में बहुत से शब्द संस्कृत के भी थे। कम्प्युटर / computer को यूपीएस / UPS (बेटरी बैक-अप / battery backup) के साथ जोड़ा गया था, ताकि अचानक बिजली गुल होने पर कम्प्युटर एकदम से बंद न हो जाया करता, जिससे फाईल को सेव / save करने का मौका मिल जाया करता। वैसे भी टाईप करते हुए बीच-2 में फाईल को सेव कर लिया करता था। जब मेरी फाईल 150 पृष्ठों से बड़ी हो गई थी, तब कई बार सीधे ही पैन-ड्राईव / pen drive के अन्दर उसमें जोड़ा गया टेक्स्ट सेव नहीं हो पाता था, और उसकी सूचना स्क्रीन / monitor screen पर आ जाती थी। तब फाईल को पेन-ड्राईव से कोपी करके कम्प्युटर में पेस्ट करना पड़ता था। फिर उस पर टाईप किया हुआ टेक्स्ट सेव हो जाता था। कहीं दूसरे स्थान, दुकान आदि में टाईप करने के लिए उस ताजा फाईल को फिर से पेन-ड्राईव के अन्दर कोपी-पेस्ट करना पड़ता था। कई बार तो पेन-ड्राईव में स्टोर / store की गयी फाईल खुलती ही नहीं थी। ऐसा होने का एक मुख्य कारण कम्प्यूटर में वायरस होना भी है। इसलिए वायरस वाले कम्प्यूटर पर अपनी पेन ड्राईव न चलाएं, और अपने कम्प्यूटर पर हमेशा एंटिवायरस डाल कर रखें। इसलिए कुछ भी टाईप करने के बाद मैं उस फाईल को एवरनोट (पूर्वोक्त क्लाऊड-स्टोरेज / cloud storage) में बैकअप-स्टोर कर लेता था। पेन-ड्राईव की फाईल न खुलने पर, उस फाईल को एवरनोट से डाऊनलोड कर लेता था। इस तरह से मैंने कभी भी टाईप किए हुए टेक्स्ट को लूज / lose नहीं किया, एक पंक्ति को भी नहीं। इससे एक और फायदा यह होता था कि यदि कभी मेरे पास पेन ड्राईव नहीं होती थी, तो मैं एवेरनोट से बुक-फाईल को डाऊनलोड करके उस पर टाईप कर लेता था, और उसे फिर से एवरनोट में सेव कर लेता था। यद्यपि पेन ड्राईव हमेशा मेरे हेंड बेग में रहती थी। मैंने अतिरिक्त सुरक्षा के लिए, बुक-फाईल के पूरा होने पर उसे बाह्य हार्ड ड्राईव / external hard drive, गूगल ड्राईव व जी-मेल में भी सेव कर लिया। टेक्स्ट की लाईन-स्पेसिंग / line spacing बराबर नहीं आ रही थी। बहुत से फौंट / fonts प्रयुक्त किए, पर बात नहीं बनी। निर्देशानुसार पैराग्राफ स्पेसिंग-सेटिंग / paragraph spacing setting के “डू नोट एड एक्स्ट्रा स्पेस बिफोर ओर आफ्टर पेराग्राफ” / do not add extra space before or after paragraph को भी अनचेक / uncheck किया, पर बात नहीं बनी। मैं एरियल यूनिकोड एमएस / Arial unicode MS पर टाईप करता था। फिर मुझे इंटरनेट / internet से हिंट / hint मिला की कई फोंटों में गैर-अंगरेजी / non English भाषा के अक्षर अच्छी तरह से लाईन / line में फिट / fit नहीं होते। फिर मैंने बहुत से फोंटों को ट्राई / try किया, पर केवल केम्ब्रिया फोंट / Cambria font पर ही बात बनी, और लाईन स्पेसिंग बिलकुल बराबर व शानदार हो गई। उससे मेरी बहुत बड़ी समस्या दूर हो गई, विशेषतः पुस्तक का प्रिंट वर्जन / print version छपवाने के लिए, क्योंकि ई-बुक के लिए तो असमान लाईन स्पेसिंग से भी काम चल रहा था। पर एक बात गौर करने लायक थी कि केम्ब्रिया फॉण्ट तभी एप्लाई / apply हो रहा था, जब टेक्स्ट पहले से ही एरियल यूनिकोड एमएस में टाईप या रूपांतरित किया हुआ था, अन्यथा नहीं। दोनों ही फोंट बनावट में लगभग एक जैसे ही हैं, और हिंदी के लिए सबसे उपयुक्त हैं। टेक्स्ट को सेलेक्ट करके फोंट को कभी भी बदला जा सकता है।

अब आती है बारी वर्ड फाईल को किनडल ई-बुक / kindle e-book के अनुसार फोर्मेट / format करने की। चारों ओर के मार्जिन / margins एक सेंटीमीटर किए गए। हेडर व फूटर / header and footer रिमूव / remove किए गए। हेडर उसे कहते हैं जो एक जैसा वाक्य या शब्द हरेक पेज / page के टॉप / top पर सेलेक्ट एरिया / selected area में अपने आप लिखा होता है। ऐसा आपने पुस्तकों में देखा भी होगा। इसी तरह फूटर हरेक पेज के बॉटम / bottom के सेलेक्ट एरिया में स्वयं ही लिखा होता है। तभी ऐसा होता है यदि हेडर व फूटर को होम-सेटिंग में डाला गया हो। पेज नंबर / page number भी रिमूव किए गए। लाईन स्पेसिंग को 1.5 पर सेट किया गया। टेक्स्ट एलाईनमेंट / text alignment को लेफ्ट / left पर सेट / set किया गया। चित्र, ग्राफ / graph, टेबल / table आदि यदि टेक्स्ट में न ही हों, तो बेहतर है; क्योंकि ये ई-रीडर / e-reader में बहुत अच्छी तरह से डिस्प्ले / display नहीं होते हैं। ई-रीडर में केवल श्वेत-श्याम वर्ण ही होता है। यदि बहुत ही आवश्यक हो तो चित्र को भी डाला जा सकता है, यद्यपि वह बहुत जगह घेरता है, क्योंकि वह टेक्स्ट-लाईनों के बीच में फिट नहीं हो पाता, अपितु पेज के बाएँ मार्जिन से दाएं मार्जिन तक की पूरी जगह को टेक्स्ट के लिए अनुपयोगी बना देता है।

अगली पोस्ट में हम यह बताएंगे कि तैयार वर्ड-फाईल को केडीपी / KDP (किनडल डायरेक्ट पब्लिशिंग / Kindle direct publishing) में कैसे सेल्फ-पब्लिश / self publish करना है।

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ई-रीडर व ई-बुक्स के बारे में विस्तार से जानने के लिए यहां क्लिक करें।

पुस्तक प्रचाराभियान के बारे में स्वानुभूत जानकारी के लिए क्लिक करें

 

Self-publishing, a wonderful creation of modern technology

I recently got an opportunity to prepare a book, whose name is “Shareervigyaan Darshan – Ek adhunik Kundalini tantra (ek yogi ki premkatha)”, and which has been originally written by a mysterious yogi named Premyogi Vajra. First of all, I sorted the written material of the disorganized form that he had been extending for many years. After reading the material again and again, I took the entire contents into my mind. In fact, many people do the work of writing, but in the last round, all of them do not shield the written material in the form of a book. This is because it requires struggle, passion, meditation, perception and continuity, including a lot of hard work and hard work. Acute concentration and memory have to be retained for a long time. The entire book-material has to be seated together in mind so that the whole material can be sorted with reasonableness, attractiveness and decoration. Together, in which words cannot be reproduced second time. Then I removed many of his reimaginations, and started typing it on the computer in the form of a textually built-in form. Due to a shortage of time, it took one year for typing about 300 pages. Premyogi Vajra also continued to send written content, which I continued to add to that word file in between the context at the right place. I was typing on Microsoft Word 2007. So that mine typed material is not destroyed by computer malfunction or for other reasons, I would have kept my typed file in the D-drive (which does not contain windows-files) and on external storage as back-up also safely. I had bought Evernote at an annual subscription of INR 600 (on the discount offer, the actual value was INR 1500). It seemed to me the safest and the easiest way to get back-up, even better than on Gmail or Google Drive both of which are free. Evernote also has many other additional facilities. There is also an advantage for his commentator that even if there is anything remembered anywhere, anything can be written immediately on it, which gets stored for the future. Its search function is also very effective. Many times I copied the text from my second word file or blog post and pasted it into the book file. But due to the formatting error coming from it, the text becomes defective, or disappeared. Then I came to know that there is an option to paste in which style to paste. For that, that option has to be selected, in which “Keep Text Only” is written. It can also be selected permanently by accessing the Microsoft Word’s base button “Word Option”. And also many adjustments can be made from here at the convenience level, although rarely required or not required at all. Because the book was in Hindi, so the “Hindi language tool” of Google Input was downloaded. By typing on the English keyboard, the letters like Hindi are printed. Like typing “MEHNAT”, Hindi’s “hard work” is printed in the file. I also downloaded the Sanskrit tool, because there were many words in the book also of Sanskrit. The computer was connected with UPS (Battery Backup) so that the computer did not stop immediately when suddenly the power was lost, thereby giving the opportunity to save the file. By typing anyway, I used to save the file again and again while typing. When my file went to be larger than 150 pages, added text was at times not able to directly be saved in that base text of the file while that being in pen-drive, and that had come to the notice screen. Then the file had to be copied from the pen-drive and pasted into the computer. Then the subsequently typed text was saved. In order to type in another place, shop etc., that fresh file had to be copied to the pen-drive. Many times the file stored in Pen-Drive did not open. That occurs mainly due to computer virus. So never use your pen drive on infected computer and keep antivirus programme installed on your computer always. So after typing anything I used to backup that file in Evernote (aforementioned cloud-storage). When the Pen-Drive file did not open, I would download the file from the Evernote.  In this way, I never lost the typed text, not even a line. Another advantage of this was that if I had ever not a pen drive, then I would download the book-file from Evernote and type it on it, and would have saved it again in the Evernote. Although the pen drive always used to be in my hand bag. I saved the completed book-file for extra security even in the external hard drive. The line-spacing of the text was not equal. I used lots of fonts, but it did not matter. I also unchecked “Do note ad extra space before and after paragraph” of paragraph spacing-setting as per the instructions, but it did not work. I used to type in Ariel Unicode MS. Then I got a hint from the internet that non-English language letters in many fonts do not fit well in the line. Then I tried a lot of fonts, but only thing happened on the Cambria font, and the line spacing became absolutely equal and fantastic. I got rid of my big problem, especially to print the print version of the book, because the e-book was also working with uneven line spacing. One thing to note was that the Cambria font was being used only when the text was already typed or converted into Aerial Unicode MS, otherwise it would not. Both fonts are almost identical in texture, and are most suitable for Hindi. By selecting the text, the fonts can be changed at any time.

Then comes to convert the word book-file to e-book format. The margins around were made one centimeter. Headers and footers were removed. Header is that in the form of same sentence or word written automatically in the selected area at the top of each page. Similarly, the footer is written in the selected area of ​​each page’s bottom. Page numbers were also removed. Line spacing was made 1.5. Text alignment set on the left. If not photo, graph, table etc., then it is better; because these in e-readers are not very well displayed. The e-reader only has black and white characters. The picture can also be inserted if it is very necessary, although it occupies a lot of space, because it does not fit in between text- lines, but the entire space from the left margin to the right margin of the page is made by this unusable for text.

In the next post we will tell how to publish the ready word-file in KDP (Kindle Direct Publishing).

If you have found some benefit from this post, please download here the above mentioned e-book (in Hindi language, 5 star rated, reviewed as the best, excellent and must read by everyone) made with steps as told above. If only print version suits you, then too print version should only be got after testing that’s e- version on the electronic devices / phone etc., that is available on this link for this book. You can also find the complete information about this book, both in English as well as Hindi languages on the hosting website of this post. Thank you.

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पुस्तक-प्रचार, एक निःशुल्क पुस्तकों का खजाना (ई-पुस्तकों व ई-रीडर के बारे में सम्पूर्ण, दिलचस्प व स्वानुभूत जानकारी)- Book-promotion as a treasure of free books (full, interesting and experiential information about e-books and e-readers)

पुस्तक-प्रचार, एक निःशुल्क पुस्तकों का खजाना (ई-पुस्तकों व ई-रीडर के बारे में सम्पूर्ण, दिलचस्प व स्वानुभूत जानकारी)- Please browse down or click this Link to see post in English

यह पोस्ट एक पुस्तक के स्वयंप्रकाशन के दौरान प्राप्त हुए अनुभवों पर आधारित है

उदाहरण के लिए निम्न लिंक को क्लिक करके आपको हिंदी की एक अत्युत्तम ई-पुस्तक (*****पांच सितारा प्राप्त, सर्वश्रेष्ठ व सर्वपठनीय उत्कृष्ट / अत्युत्तम / अनौखीरूप में समीक्षित / रिव्यूड) अति कम मूल्य पर उपलब्ध हो जाएगी। फिर कोई पुस्तकप्रेमी यदि उसका कागजी-प्रतिरूप भी अपने पास रखना चाहे, तो उसे बाद में मंगवा सकता है। यदि किसी सज्जन के पास अपना ई-रीडर नहीं है, या वे ई-रीडर में पढ़ना पसंद नहीं करते हैं, तो वे अपने मोबाईल फोन पर ही उक्त पुस्तक को  न्यूनतम मूल्य में डाऊनलोड कर सकते हैं। यदि बीच-2 में जांचने-परखने पर वह पुस्तक उन्हें अच्छी लगे, तो वे उस पुस्तक के सशुल्क कागजी-प्रतिरूप (प्रिंट वर्जन) को बाद में मंगवा सकते हैं।

किंडल ई-रीडर की विशेषताएं

ऐसी बहुत सी वेबसाईटें हैं, जो प्रचारान्तर्गत पुस्तकों (प्रोमोशनल बुक्स) को सूचिबद्ध करती हैं, तथा पुस्तक-प्रेमियों को निःशुल्क उपलब्ध करवाती हैं (यद्यपि भारत के पुस्तक प्रेमियों के लिए यह सेवा मुझे उपलब्ध नहीं दिखती है)। उन वेबसाईटों के माध्यम से हमें नए जमाने की नई-2 पुस्तकों के बारे में निःशुल्क जानकारी प्राप्त होती रहती है। यदि कोई पुस्तक हमें अच्छी लगे, तो उसे हम विस्तार के साथ भी पढ़ सकते हैं। पूरी पढ़ने के बाद यदि हमें पुस्तक प्रशंसा के योग्य लगे, और यदि हम अन्य लोगों से भी उसके पढ़ने के लिए उसकी सिफारिश करना चाहते हैं, तब हम उसी वेबसाईट पर या पुस्तक-विक्रेता वेबसाईट पर उसका रिव्यू / review भी डाल सकते हैं। जिनके पास किन्डल ई-रीडर / kindle e-reader है, या अन्य कंपनियों के ई-रीडर हैं, उनके लिए तो वे निःशुल्क पुस्तकें किसी वरदान से कम नहीं होतीं। ऐसा इसलिए है क्योंकि ई-रीडर पर कागजी पुस्तक से कहीं अधिक अच्छा पढ़ा जाता है। वे आँखों पर ज़रा भी दुष्प्रभाव नहीं डालते, क्योंकि उनमें मोबाईल फोन की तरह लाईट / रेडिएशन नहीं होती, बल्कि वे बाहर की रौशनी से ही पढ़े जाते हैं, कागजी पुस्तकों की तरह ही। उसमें ई-स्याही (e-ink) होती है, जिसमें कोई रेडिएशन नहीं होती। इसी वजह से उसमें बहुत कम बिजली खर्च होती है। एक बार फुल चार्ज करने के बाद वह एक हफ्ते से लेकर एक महीने तक चल पड़ता है, प्रयोग के अनुसार। उसमें हम अपनी सुविधानुसार अक्षरों को छोटा या बड़ा कर सकते हैं, बहुत लम्बी रेंज तक। यह सुविधा दृष्टिदोष वालों के लिए व बुजुर्ग लोगों के लिए बहुत फायदेमंद साबित होती है। अक्षरों को बड़ा करके उसे रेलगाड़ी या बस में भी आराम से पढ़ा जा सकता है। उसकी एक ख़ास बात होती है कि उसमें सैंकड़ों पुस्तकें भंडारित करके रखी जा सकती हैं, जिससे पुस्तकों का भारी-भरकम बोझ साथ में उठा कर रखने की आवश्यकता समाप्त हो जाती है। क्या पता कि कब किस प्रकार की पुस्तक को पढ़ने का मन कर जाए। कहीं पर भी यदि आदमी को किसी चीज का इन्तजार करते हुए बोरियत व समय की बर्बादी महसूस होने लगे, तो उससे बचने का सर्वोत्तम उपाय ई-रीडर ही है। इसके प्रयोग से मोबाईल फोन की जरूरत से ज्यादा लत भी धीरे-२ छूटने लगती है। लगभग एक बड़े मोबाईल फोन के या औसत टेबलेट के जितने आकार (परन्तु कुछ अधिक वर्गाकार आकृति होती है ई-रीडर की) के ई-रीडर का वजन केवलमात्र 50-75 ग्राम के आसपास प्रतीत होता है, और एक पुराने जमाने के छोटे मोबाईल फोन के वजन जितना लगता है। इसमें कम्प्यूटिंग जगत का सबसे साधारण प्रॉसेसर, सेलेरोन लगा होता है, जिससे यह कभी गर्म भी नहीं होता।इसका मतलब यह है कि ई-रीडर बहुत हल्का होता है। उसकी एक अन्य खासियत यह है कि जो पुस्तक हमने जहां तक पढ़ी हो, उसे दुबारा खोलने पर वह वहीं से शुरू होती है। इसलिए कागजी पुस्तक की तरह निशान लगाने की जरूरत नहीं पड़ती। पुस्तक के किसी भी भाग में हम मात्र एक क्लिक से पहुँच सकते हैं। उसके अक्षरों को हम आवश्यकतानुसार हाईलाईट / highlight कर सकते हैं, और उसे उसी जैसे ई-रीडर पर वही ई-पुस्तक पढ़ रहे लोगों के साथ शेयर / share भी कर सकते हैं। उसमें शब्दकोश की सुविधा भी होती है। किसी अंग्रेजी के शब्द को क्लिक करके उसका विस्तृत अर्थ सामने आ जाता है। अतः उसमें कठिन से कठिन अंग्रेजी में पुस्तकों को भी आसानी से पढ़ सकते हैं। उसको पढ़ने के लिए उतने ही प्रकाश की आवश्यकता होती है, जितने प्रकाश की आवश्यकता एक कागजी पुस्तक को पढ़ने के लिए होती है। परन्तु अब नए व तुलनात्मक रूप से महंगे ई-रीडरों में अपनी लाईट भी लगी होती है। उसे हम बाहरी प्रकाश के अनुसार एडजस्ट भी कर सकते हैं। वह लाईट वास्तव में ई-रीडर के अन्दर से नहीं आती, बल्कि स्क्रीन के बाहर, उसके किनारों पर लगे बल्बों से स्क्रीन के ऊपर बाहर से पड़ती रहती है। इसका अर्थ है कि उन ई-रीडरों को हम रात के समय अपने बेडरूम में ही, रूमलाईट को जलाए बिना व अन्य पारिवारिक सदस्यों की नींद खराब किए बिना भी पढ़ सकते हैं। इससे बिजली की भी बचत हो जाती है, क्योंकि उस प्रकार के ई-रीडर में बहुत कम पावर की एलईडी लाईट लगी होती है। एक साधारण ई-रीडर का न्यूनतम मूल्य लगभग 5500 रुपए होता है, वहीँ अपनी लाईट वाले एक आधुनिक ई-रीडर का न्यूनतम मूल्य लगभग 8500 रुपये होता है। दोनों में केवल लाईट का ही अंतर होता है, अन्य कुछ नहीं या बहुत मामूली / अस्पष्ट सा (महंगे वाले में अधिक स्क्रीन रिजोल्यूशन होता है)। किन्डल / kindle के ई-रीडर सबसे सस्ते माने जाते हैं। सनेपडील / snapdeal के माध्यम से न्यूनतम मूल्य पर मिल जाते हैं। जहाँ पर पसंदीदा कागजी पुस्तक को मंगवाने के लिए कई दिन या हफ्ते लग जाते हैं, वहीँ पर ई-रीडर के माध्यम से एक मिनट से भी कम समय में ई-पुस्तक उपलब्ध हो जाती है। कई पुस्तकें तो ई-पुस्तकों के रूप में ही मिलती हैं, क्योंकि उन पुस्तकों के कागजी प्रतिरूप छपे ही नहीं होते हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि या तो पुस्तक नई-2 बाजार में आई होती है, या उसका लेखक विभिन्न बाध्यताओं के कारण उसके कागजी प्रतिरूप को नहीं छपवा पाता। ई-रीडर में इंटरनेट भी चल सकता है। यद्यपि उसमें इंटरनेट चलाना मोबाईल फोन के जितना सुविधाजनक तो नहीं होता, परन्तु फिर भी पुस्तकों को सर्च करने और उन्हें डाऊनलोड करने के लिए काफी होता है। ई-रीडर में वाई-फाई रिसीवर भी लगा होता है, जिससे वह हमारे स्मार्टफोन के वाई-फाई हॉटस्पॉट से उत्सर्जित इंटरनेट डाटा-युक्त सिग्नल को रिसीव कर सकता है, और उससे पुस्तक-हेतु इंटरनेट सर्फ़ कर सकता है। यह ऐसे ही होता है, जैसे हम एक फोन से दूसरे फोन को वाई-फाई से इंटरनेट का सिग्नल भेजते हैं। हम अपने स्मार्टफोन पर भी ई-पुस्तक को डाऊनलोड कर सकते हैं, और फिर दोनों डिवाईसों / उपकरणों को वाई-फाई के माध्यम से सिंक / sync करके, उस ई-पुस्तक को ई-रीडर को भेज सकते हैं। कई बार सिंक होने में कठिनाई आती है, इसलिए उस समय सीधे ही ई-रीडर पर डाऊनलोड करना ठीक रहता है। इससे हम ई-रीडर को दुबारा रिसेट / reset करने से बच जाते हैं। यद्यपि किनडल कंपनी के बाहर से प्राप्त की गईं सशुल्क व  निःशुल्क पीडीएफ पुस्तकें ई-रीडर पर सीधी डाउनलोड नहीं की जा सकतीं, इसलिए उन्हें पहले फोन पर डाउनलोड करना पड़ता है। इसलिए सिंक को पुनः चालू करने के लिए ई-रीडर को रिसेट करना पड़ता है। उससे पहले की डाऊनलोड की हुई पुस्तकें ई-रीडर से गायब हो जाती हैं, हालांकि रिसेटिंग के बाद वे फिर से लाईब्रेरी में प्रतीक रूप में दिख जाती हैं, जिन्हें फिर से डाऊनलोड करना पड़ता है। जो पुस्तकें ई-रीडर वाली कंपनी से नहीं प्राप्त की गई थीं, अपितु कहीं बाहर से हासिल की गई थीं व कनवर्ट करके ई-रीडर को भेजी गई थीं, वे रिसेटिंग के बाद नहीं दिखतीं। इसलिए उन ई-पुस्तकों के पीडीएफ वर्जन को अपने स्मार्ट फोन पर सुरक्षित रखना चाहिए या क्लाउड सर्विस / cloud service (like evernote) पर सुरक्षित रूप से भंडारित करके रखना चाहिए, ताकि बाद में उन्हें फिर से कन्वर्ट करके ई-रीडर को भेजा जा सके और उनकी मूल वेबसाईटों में उन्हें ढूँढने में दिक्कत भी न हो। रिसेटिंग के थोड़े से झंझट से बचने के लिए डाटा केबल के प्रयोग से ई-पुस्तकों को अन्य इलेक्ट्रोनिक स्टोरेज डिवाईसिस से ई-रीडर को भेजा जा सकता है। महंगे ई रीडर में अपना इंटरनेट भी होता है। उससे हम शान्ति के लिए अपना फोन घर पर छोड़कर भी ई रीडर के साथ घूम सकते है।  किन्डल कंपनी पीडीएफ पुस्तक को स्वयं कन्वर्ट करने की सुविधा भी देती है। उसके लिए ई-रीडर में किन्डल सर्विस से जुड़े हुए अपने ईमेल आईडी को एक्टिवेट करने की ऑप्शन होती है। उस ईमेल पते पर उस पीडीएफ बुक को अटेचमेंट के रूप में भेजा जाता है, तथा मेसेज की सब्जेक्ट लाइन में CONVERT लिखा जाता है। फिर वह बुक रीडेबल मोबि फोरमेट में हमारे ई-रीडर पर पहुँच जाती है, जिसे हम फिर डाऊनलोड कर लेते हैं।

ई-रीडर से पर्यावरण की सुरक्षा

ई-रीडरों का भविष्य उज्जवल है। पुस्तकीय कागज़ के लिए पेड़ों का अंधाधुंध कटान हो रहा है, जिससे पर्यावरण को हानि पहुँच रही है, और कागज़-उद्योगों से प्रदूषण भी बढ़ रहा है। यदि कोई व्यक्ति ई-रीडर पर 100 ई-पुस्तकें पढ़ता है, तो इसका अर्थ है कि उसने उन पुस्तकों में प्रयुक्त होने वाले कागज़ को बचाया। हमारे देश के विद्यालयों में कागज़ की बहुत खपत व साथ में बर्बादी भी होती है, क्योंकि कक्षा को उत्तीर्ण करने के बाद अधिकाँश विद्यार्थी अपनी पुस्तकों को रद्दी में बेच देते हैं। वे किताबें सिर्फ एक साल ही पढ़ी गई होती हैं, जिससे वे नई होती हैं। विदेशों की तरह ही, पुस्तकें विद्यालयों के द्वारा उपलब्ध करवाई जानी चाहिए, और कक्षा पूरी करने के बाद विद्यार्थी से वापिस ले ली जानी चाहिए, ताकि वे नए विद्यार्थी को पढ़ने के लिए दी जा सकें। इससे विद्यार्थी पुस्तकों का सम्मान करना भी सीखेंगे। इससे जहां एक ओर कागज़ की बर्बादी रुकेगी, वहीँ पर सर्वशिक्षा अभियान को भी मदद मिलेगी। यदि कागज़ की पूर्ण बचत करनी हो, तो विद्यालयों में भी सभी को ई-रीडर उपलब्ध करवा दिए जाने चाहिए।

ई-रीडर आध्यात्मिक-अध्ययन के लिए सर्वश्रेष्ठ

ई-पुस्तकों से ज्ञान एकदम से और चारों ओर से बढ़ता है, जो आध्यात्मिक उत्कर्ष / कुण्डलिनी-जागरण के लिए अत्यावश्यक है। अधिकाँश मामलों में आध्यात्मिक रुचि केवल थोड़े से समय के लिए ही उत्पन्न होती है। इसलिए उस रुचि को पूरा करने वाली पुस्तक तुरंत मिलनी चाहिए, जो ई-बुक से ही संभव है। फिर स्थान-2 के आध्यात्मिक आश्रमों, योगाश्रमों या आध्यात्मिक / मनोहर प्रकृतियों के बीच में भौतिक पुस्तकों को उठा कर घूमा भी तो नहीं जा सकता। जब तक कागजी पुस्तक जिज्ञासु व्यक्ति तक पहुंचती है, तब तक उसका शौक या तो ठंडा पड़ गया होता है, या नष्ट हो गया होता है, समय की कमी से या अन्य अनेक कारणों से। इसका ताजा उदाहरण है, इस वेबसाईट व उपरोक्त प्रचाराधीन पुस्तक का नायक, “प्रेमयोगी वज्र”। उसने विभिन्न वेबसाईटों, ई-पुस्तक विक्रेता वेबसाईटों, ई-रीडर व ई-पुस्तकों के माध्यम से तीव्रता से अपने आध्यात्मिक उत्कर्ष को प्राप्त किया।

जापान एक पुस्तक-प्रेमी देश

यह जानकर हैरानी होगी कि जापान जैसे तकनीकप्रधान देश के लोग भी बहुत पुस्तक-प्रेमी होते हैं। वहां पर नई पुस्तक की रिलीज के बाहर उतनी भीड़ लग जाती है, जितनी हमारे देश में नई फ़िल्म की रिलीज के बाहर नहीं लगती। भारत में अन्य विकसित देशों की तुलना में अभी ई-रीडर का चलन बहुत कम है, और अधिकाँश लोग भौतिक / कागजी पुस्तक के ही आश्रित हैं। अच्छी ई-पुस्तकों के बाजार में आने से ई-रीडर के चलन में तेजी आएगी।

सभी लोगों की रुचियाँ भिन्न-२ हैं, इसलिए ज्ञान-विज्ञान को विभिन्न माध्यमों की सहायता से युक्तियुक्त ढंग से प्रस्तुत किया जाना चाहिए

जो सामग्री इस ई-पुस्तक में उपलब्ध है, वह पूरी की पूरी इस वर्तमान ब्लॉग की मेजबानी-वेबसाईट / hosting website पर भी उपलब्ध है। नया कुछ नहीं है। ई-पुस्तक में तो केवल उस सामग्री को अधिक निष्ठा व मेहनत के साथ विस्तृत किया गया है, और सजाया गया है। कुशाग्रबुद्धि व मेहनती व्यक्ति तो इस वेबसाईट को समझ कर उसकी सामग्री से खुद भी इस ई-पुस्तक को तैयार कर सकता है। होना भी ऐसा ही चाहिए। सभी लोग भिन्न-2 होते हैं। कोई व्यक्ति आर्थिक रूप से कमजोर होता है, जो पुस्तक नहीं खरीद सकता और उसके पास समय की भी कमी होती है। किसी व्यक्ति को पुस्तकें पढ़ने का शौक नहीं होता। वैसे व्यक्तियों के लिए वेबसाईट ही बहुत होती है। कोई व्यक्ति निःशुल्क या सस्ती वस्तु को तुच्छ समझता है। कोई व्यक्ति महँगी पुस्तक को पसंद नहीं करता। वैसे व्यक्ति के लिए सस्ती ई-पुस्तक को बनाया गया है। कोई व्यक्ति मूल्यवान व गुणवान वस्तु को निःशुल्क प्राप्त करना चाहता है, विविध कारणों से। वैसे व्यक्ति के लिए इस पुस्तक का यह त्रिदिवसीय व वर्तमानकालिक निःशुल्क पुस्तक का प्रचाराभियान रखा गया है। कोई व्यक्ति ई-पुस्तक को महत्त्व देता है, तो कोई कागजी-पुस्तक को। ताकि सभी प्रकार के व्यक्तियों की जरूरतें पूरी हो सकें, इसीलिए इस प्रकार की अनेकदिशात्मक प्रणाली को बनाया जाता है।

खोजी प्रकार के व्यक्ति के लिए ई-रीडर सबसे उपयुक्त

कई बार क्या होता है कि हम बहुत सी मुश्किलों का सामना करते हुए कागजी पुस्तक / paper book खरीद भी लेते हैं। फिर यदि वह अच्छी न भी लगे, तो भी उसे मजबूरीवश पढ़ना ही पढ़ता है, क्योंकि उसमें बहुत सा पैसा खर्च किया गया होता है, और बेशकीमती कागज़ भी। इसके विपरीत इंटरनेट / internet पर हजारों ई-पुस्तकें पीडीएफ फाईल / pdf file के रूप में निःशुल्क उपलब्ध होती हैं। हम बहुत आसानी से उन पीडीएफ फाईलों को ऑनलाईन या ऑफलाइन फाईल कनवर्टरों / file converters (कैलिबर / caliber आदि) से ई-रीडर पर पढ़ने योग्य (किन्डल के लिए मोबी फाईल / mobi file के रूप में) बना सकते हैं। इस तरह से हम बीसियों पुस्तकों को एकसाथ डाऊनलोड / download कर सकते हैं। उन्हें हम बन्दर-दृष्टि से बीच-२ में व जल्दी-२ से पढ़ सकते हैं। पुस्तकों के जो भाग हमें अच्छे लगें, हम सिर्फ उन्हें ही पढ़ सकते हैं, बाकि के निरर्थक भाग को छोड़कर। यह तरीका खोजी प्रकार के लोगों के लिए बहुत अच्छा रहता है, क्योंकि उन्होंने किसी एक संक्षिप्त विषय के बारे में वर्तमान तक की विश्वभर की सम्पूर्ण जानकारी चाहिए होती है, ताकि वे कुछ उससे अलग व नया कर सके। भौतिक पुस्तकों से हम इतनी शीघ्रता से जानकारी प्राप्त नहीं कर सकते। यदि हम किसी एक विषय से सम्बंधित विश्व की सभी कागजी पुस्तकों को पुस्तकालय आदि में प्राप्त भी कर लें, तो भी उस विषय के बारे में सभी पुस्तकों को पड़ना बहुत दूभर व असंभव सा ही होता है। क्योंकि वैसा करते हुए समय भी बहुत लगेगा, और हमारे शरीर का 5 किलोग्राम वजन भी घट जाएगा। धूल खाने को मिलेगी, वह अलग। साथ में, जल्दबाजी में व सामान्य प्रयोग-क्षरण के तहत भौतिक पुस्तकों को जो नुक्सान होगा, वह भी अलग।  ई-रीडर को तो हम धूप में भी पढ़ सकते हैं, कागजी पुस्तक की तरह ही। यह इसका विशेष गुण है, जो फोन या कम्प्यूटर आदि में नहीं होता है।

कागजी पुस्तक को तो निःशुल्क नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि उस पर भौतिक संसाधन खर्च किए गए होते हैं। इसी तरह से, कागजी पुस्तकों के प्रोमोशनल ऑफर / promotional offer भी नहीं दिए जा सकते। इस बात को लेकर भी मुकाबले में ई-पुस्तक ही बाजी मार जाती है। इसकी एक ही कमी है कि इसमें चित्र अच्छे नहीं दिखते, रंग तो दिखते ही नहीं। ई-स्याही केवल श्वेत-श्याम ही दिखा सकती है।इस क्षेत्र में भी इसमें सुधार चल रहा है।

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Book-promotion as a treasure of free books (Full, interesting and experiential information about e-books and e-readers)

This post is based on the experiences gained during the self-publishing of a book

For example, by clicking on the following link, you will get one of the best Hindi eBooks (*****5 star rated, reviewed as the best, excellent and must read by everyone) at minimum price tag. Then if someone book lover wants to keep its paper-version too, then he can arrange it later. If a gentleman does not have his e-reader, or he does not like to read on an e-reader, he can download this above said book on his mobile phone. If the book looks good to him, then he can order the comparatively costlier paper version of that book later on.

Kindle e-reader features

There are many such websites, which lists promotional books, and make books available to book lovers free of charge (although this service doesn’t appear to me available for Indian book lovers presently). Through these websites, we get free new information about new-age new books. If a book looks good to us, then we can also read it with detail. After reading the entire book, if we find the book worthy of praise and if we want to recommend it to other people to read it, then we can put a review on the same website or book-seller website. For those who have a kindle e-reader, or e-readers of other companies, those free books are not less than any boon. This is because the e-reader is better to read than the paper book. These do not have any side effects on their eyes, because these do not have light / radiation, like mobile phones, but they are read only in the outside light, just like paper books. There is an e-ink in which there is no radiation. That is why it costs very little power. Once full charge, this works from one week to one month according to usage. In this we can shorten or enlarge the letters at our convenience, to a very long range. This feature proves to be beneficial for partially blind people and elderly people. The letters can be expanded and read comfortably even at the train or bus. There is a special thing that hundreds of books can be stored in it, this eliminates the need to keep a heavy load of books together. Do you know when to read what type of book? If somewhere waiting for a man feeling boredom and waste of time waiting for something, then the best way to avoid it is e-reader. Using this, the excessive addiction of mobile phone also decreases slowly. The weight of the e-reader of the size of a large mobile phone or small tablet appears only around 50-75 grams, that is the weight of the old mobile phone. It works on simplest computing processor, celeron, so it never heats up. This means that the e-reader is very light. Another feature of it is that the book that we have read as far as it has been opened, it starts it right there. That is why it does not need to be marked as a paper book. In any part of the book, we can reach with just one click. We can highlight words of e-book in it and share with people same book on similar e-reader. It requires as much light to read it, as much as the light is needed to read a paper book. But now, the new and comparatively costly e-readers have their own lights. We can also adjust that according to the outer light. The light does not actually come from the e-reader inside, but it keeps coming from the outside of the screen with the bulbs on its edges, outside the screen. This means that we can read those e-readers in the night of the bedroom, without switching on the room light and disturbing sleep of other room partners. This also saves electricity, because this type of e-reader has very low power LED light. The minimum value of a simple e-reader is about INR 5500, the minimum price of a modern e-reader with its own light is about INR 8500. there is not any other appreciable difference between both except of the barely noticeable higher screen resolution of the costly one. Kindle E-readers are counted as cheapest. Through snapdeal these are available at a minimum price. Where it takes days or weeks to get a favorite paper book, its e-Book version becomes available in less than a minute via e-reader. Many books are available only in the form of e-books, because the paper versions of those books are not printed. This is because either the book has come newly in the market, or its author has not been able to print its paper counterpart due to various compulsions. The Internet can also run in the e-Reader. Although running the Internet is not as convenient as in the mobile phone, but still it is enough to search and download the books. The e-reader also has a Wi-Fi receiver, so that it can receive Internet data signal emitted from the Wi-Fi hotspot of our smart phone, and it can surf the Internet for the book. It is just like we send an Internet signal from one phone to another. We can also download the e-book on our smart phone, and then by syncing both the devices via Wi-Fi, you can send that e-book to the e-reader. Many times, there is problem in syncing. In such cases it is better to download the e-book directly on e-reader. Due to this we are saved from resetting the e-reader. However, free or prized pdf-books from sources other than kindle can not be directly downloaded on the e-reader. In that case we have to reset the e-reader. Due to that old downloaded e-books are washed away, however they are again visible on e-reader after resetting to be downloaded. To be saved from resetting, data cable can be used to transfer book from other storage devices to kindle. Books which were not received from the e-reader company, but were received from outside elsewhere and converted then sent to e-readers, those do not appear after the resetting. So pdf version of those books needs to be properly stored in the smart phone or cloud service (evernote etc.) so that those could be again sent to e-reader after conversion and also those pdf books need not to be searched again in the source website. Some costly e readers have their own internet. So we can wander with those peacefully leaving our phone at home. Kindle Company also gives the facility to convert the PDF book itself. For that, the e-reader has an option to activate the email id associated with the Kindle Service. That PDF is sent on that activated address as an attachment, and in the subject line of message it is written, CONVERT. Then the book reaches our e-reader in the readable Mobi format, which we then download again. Other than the facility of highlighting the text on e reader, there is also dictionary facility in it. On clicking a word it’s detailed meaning pops up. So it’s easy to read challenging English books in it.

Protecting the environment with e-readers

The future of e-readers is bright. The trees are being indiscriminately cut down for the paper, which is causing harm to the environment, and pollution from paper industries is also increasing. If a person reads 100 eBooks on e-Reader, it means that he has saved the paper used in those books. There is a lot of paper consumption in our country’s schools as well as its wastage because most of the students sell their books in the trash after passing the class. Those books have been read only for one year, due to which those are new. Like abroad, books should be made available by the schools, and after completing the class, the books should be taken back from the student and should be given to new student to read. Then students will also learn to care for books. This will help prevent the waste of paper on one hand, the Sarva Shiksha Abhiyan / Mission of education to all will also be helped on other hand. If there is desired a complete saving of paper, then everyone should be provided e-reader in schools too.

E-Reader is Best for Spiritual Studies

Knowledge from e-books grows instantly and all around, which is essential for spiritual prosperity / Kundalini-Jagran / awakening. In most people, spiritual interest arises only for a short time. Therefore, a book fulfilling that interest should be available immediately, which is possible only through the e-book. Also, in the spiritual ashrams / retreats, yoga-ashrams or spiritual / attractive natural places, one cannot wander through lifting physical books. As long as the paper book reaches the inquisitive person, then his hobbies have either fallen or destroyed, due to lack of time or many other reasons. The latest example of this is the protagonist of this on-promotion book and this very same website too, “Premogi vajra”. He achieved his spiritual prosperity through various websites, e-book vendor websites, e-readers and e-books.

Japan is a book-loving country

It will be surprising to know that people of tech-driven country like Japan are very book-lovers. There is so much rush outside the release of the new book, as does not seem to be outside the release of the new film in our country. In India, the trend of e-readers is very low compared to other developed countries, and most people are dependent on the physical / paper books. With good e-books coming into the market, the e-reader trend will accelerate.

Everyone’s interests are different, so knowledge should be presented in a rational manner with the help of various mediums.

The content available in this e-book is also available entirely on this current blog-hosting website. Nothing new. In e-book, only that material has been expanded with more fidelity and hard work, and is decorated. A diligent person can understand this website and prepare his own eBook from this content. It should be the same. All people are different from each other. Someone is financially weak, who cannot buy a book. Someone don’t like books. For such persons the website is very much. Someone considers free or low cost thing to be despised. Someone does not like expensive books. The cheap e-book has been made for such a person. Someone wants to get valuable and costly book for free. For that person, this three days long, free eBook promotional offer has been kept. Someone gives importance to e-book, but for someone paper-book is important. In order to meet the needs of all types of individuals, this kind of much disciplinary system is made.

E-reader is best suited for investigative type person

What happens many times, that we also hire a paper book while facing many difficulties. Even if it does not feel good, he reads it strictly, because he has spent a lot of money in it, and even prized papers. On the contrary, thousands of eBooks are available free of charge as PDF file on the internet. We can easily make those PDF files through online or offline file converters (caliber etc) readable on e-reader (as a mobi file for kindle). In this way, we can download twenties of books together. We can read them with monkey-eye, rapidly and selectively. The parts of the books that we think are good; we can only read those, except for the futile part of the rest. This method is very good for people of the type of searching and researching habit, because they need a brief subject to be present in the whole world till date, so that they can do something different and new. We cannot get information from physical books so quickly. Even if we get all the world’s books together in the library etc. related to one topic, then even reading all the books about that subject is very confusing and nearly impossible. Because doing so will take too much time, and our body will also lose 5-kilogram weight. Dust will also be eaten little or more. In the hasty and common use-erosion, the damage to physical books is also there. We can also read the e-Reader in the sun, just like a paper book. This is its special quality, which is not in the phone or computer etc.

The paper book cannot be made free because the physical resources are spent on it. Similarly, promotional offers of paper books cannot be given too. E-book only gets hit in this match about this matter. It’s only drawback is that it doesn’t show pictures well, never show colours at all. E-ink can only show black and white.

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